Posts

Showing posts with the label अनुराग कश्‍यप

रानी मुखर्जी का दिलखोल इंटरव्‍यू

Image
-अजय ब्रह्मात्मज -‘अय्या’के फर्स्‍ट   लुक को लोगों ने काफी पसंद किया है।आप को कैसी प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं? 0 फर्स्‍ट लुक आने के बाद से मेरे दोनों मोबाइल फोन लगातार बज रहे हैं। फिल्म इंडस्ट्री और देश-विदेश से दोस्तों और परिचितों के फोन आ रहे हैं। वे चीख-चीखकर बता रहे हैं कि उन्हें बहुत हंसी आई। बहुत कम ऐसा होता है कि ट्रेलर देखकर इतना आनंद आए। मेरे दोस्तों ने तो कहा कि उन्होंने लुप में ‘अय्या’ के ट्रेलर देखे। मुझे अभी तक काफी पॉजीटिव रिस्पॉन्स मिले हैं। मीडिया बिरादरी के कई लोगों ने फोन किया। मैंने देखा है कि जब मीडिया के लोग पॉजीटिव रिस्पॉन्स देते हैं, तो फिल्म में कुछ खास बात होती है। ऐसा लग रहा है कि सभी मेरी फिल्म के इंतजार में थे। सोशल नेटवर्किंग साइट पर भी मैंने आम दर्शकों के रिएक्शन देखे। दो प्रतिशत लोगों ने मेरी आलोचना की है। बाकी 98 प्रतिशत को फस्र्ट लुक अच्छा लगा। - इस पॉजीटिव रिएक्शन की वजह क्या मानते हैं? यह सिर्फ फर्स्‍ट  लुक का कमाल है या रानी मुखर्जी के प्रति लोगों का प्रेम? सलमान खान ने एक बार कहा था कि मेरी फिल्म की झलक देखते समय भी दर्शकों के दिमागमें मेरी पू

अय्या का पोस्‍टर

Image
सचिन कुंदालकर की पहली फिल्‍म है 'अय्या'। इस फिल्‍म का निर्माण अनुराग कश्‍यप ने किया है। फिल्‍म में रानी मुखर्जी मराठी लड़की  की भूमिका में हैं और पृथ्‍वीराज ने मलयाली लड़केका किरदार निभाया है।

Tracking the coming of age of Bollywood’s enfant terrible -Namrata Joshi

Image
चवन्‍नी के पाठकों के लिए अंग्रेजी आउटलुक में छपा नम्रता जोशी का लेख...   Swear By Him It was in the August of 2001 that Outlook got a call from the writer of Satya, Shool and Kaun about a run-in with the censors over his directorial debut, Paanch . About five youngsters who are part of a rock group called Parasites, the film was rejected by the Central Board of Film Certification for glorifying drugs, sex and violence, besides the foul language and negative characters. Paanch never saw the light of day and jokingly came to be referred to as the most widely seen unreleased film in the history of Indian cinema. Its director Anurag Kashyap, however, became a regular presence in our Bollywood forays—mostly for controversial reasons. In a scathing column in 2004 , he got after every big name in the industry, from Khalid Mohammed to Subhash Ghai. “We are running a donkey’s race, swimming in the shallow end of mediocrity, believing we are masters of the sea,” he wrote.

फिल्‍म समीक्षा : गैंग्‍स ऑफ वासेपुर 2

Image
ओझल समाज का लहूलुहान सच  -अजय ब्रह्मात्‍मज कहानी अब जाकर पूरी हुई। दुश्मनों के वंशजों ने नए और निजी स्वार्थो की वजह से हाथ मिला लिए। भरपूर बदला लिया गया। खून की होली खेली गई। लहूलुहान रामाधीर सिंह को देख कर फैजल खान की प्रतिहिंसा की मात्रा का पता चला। नृशंस हत्यारे में तब्दील हो चुका फैजल खान अपने जीवन के दंश से फिर भी नहीं निकल पाया। उसने बदले की राह चुनी नहीं थी। वह दबाव में आ गया था,लेकिन हुआ क्या? खुद ही उसने अपना अंत तय कर लिया। गैंग्स ऑफ वासेपुर 2 में कोई किसी का सगा नहीं है। सभी पाला बदलते हैं। 1985 से 2009 तक की इस लोमहर्षक कहानी से हिंदी फिल्मों के दर्शक वंचित रहे हैं। गौर से देखिए। यह भी एक हिंदुस्तान है। यहां भी जीवन है और जीवन के तमाम छल-प्रपंच हैं। जीवन की इस सच्चाई से उबकाई या घिन आए तो मान लीजिए कि हिंदी सिनेमा ने आप को संवेदनशून्य कर दिया है। सच देखने की मौलिकता भ्रष्ट कर दी है। गैंग्स ऑफ वासेपुर 2 सही मायने में सिक्वल है। इन दिनों हर फिल्म के 2और 3 की झड़ी लगी हुई है,लेकिन उनमें से अधिकांश सिक्वल नहीं हैं। सभी पहली फिल्म की सफलता का ब्रांड इस्ते

दमदार कश्यप बंधु -रघुवेन्‍द्र सिंह

Image
यह आर्टिकल चवन्‍नी के पाठकों के लिए रघुवेन्‍द्र सिंह के ब्‍लॉग अक्‍स-रघुवेन्‍द्र से यहां कट-पेस्‍ट किया गया है.... बड़े भाई ने हिंदी फिल्मों के पारंपरिक ढांचे को ढाह दिया और एक नई सिनेमाई परंपरा की शुरुआत की, और छोटे भाई ने हिंदी सिनेमा की प्रचलित परंपरा की परिधि में रहकर कीर्ति अर्जित की. हिंदी सिनेमा की पाठशाला में दोनों साथ बैठा करते थे, फिर एक क्रांतिकारी और दूसरा अनुयायी कैसे बन गया? चर्चित फिल्मकार बंधुओं अनुराग कश्यप और अभिनव कश्यप के साथ पहली बार उनके रोमांचक अतीत की यात्रा कर रहे हैं रघुवेन्द्र सिंह .   अनुराग कश्यप ने अपना वादा निभाया. उन्होंने अपने छोटे भाई अभिनव कश्यप से स्वयं बात की और फिल्मफेयर के लिए इस संयुक्त बातचीत का प्रबंध अपने घर पर किया. कश्यप बंधुओं का एक साथ बातचीत के लिए तैयार होना हमारे लिए प्रसन्नता और उत्साह का विषय था. हमारी इस भावना से जब अनुराग और अभिनव वाकिफ हुए तो दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े. अनुराग ने अपनी हंसी पर नियंत्रण किया और बड़े सहज भाव से कहा, ‘‘लोगों को पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि हम आपस में बात नहीं करते. लोगों के

भविष्य का सिनेमा

Image
  -अजय ब्रह्मात्‍मज दिल्ली में मोहल्ला लाइव द्वारा आयोजित सिने बहस तलब में विमर्श का एक विषय रखा गया था -अगले सौ साल का एजेंडा। इस विमर्श में अनुराग कश्यप, हंसल मेहता, स्वरा भास्कर और सुधीर मिश्र मौजूद थे। अनुराग और सुधीर दोनों ने कहा कि हम उस इंडस्ट्री के संदर्भ में अगले सौ सालों के बारे में कैसे बातें कर सकते हैं जो अगले कुछ सालों की तो छोडि़ए, अगले साल के बारे में भी आश्वस्त नहीं हैं कि वह किस दिशा में मुड़ेगी या बढ़ेगी? तात्कालिक लाभ में यकीन करने वाली हिंदी फिल्म इंडस्ट्री हमेशा पिछली कामयाबी को दोहराने मे लगी रहती है। अचानक कभी एक निर्देशक कोई प्रयोग करने में सफल होता है और फिर उसकी नकल आरंभ हो जाती है। धीरे-धीरे एक ट्रेंड बन जाता है और कहा जाने लगता है कि दर्शक यही चाहते हैं। इसी एकरूपता में परिव‌र्त्तन चलता रहता है। सुधीर मिश्र ने जोर देकर कहा कि तकनीक की प्रगति से सिनेमा पारंपरिक हद से निकल रहा है। सिनेमा का स्क्रीन छोटा होता जा रहा है। फिल्म देखने का आनंद आज भी थिएटरों में ही आता है, लेकिन उसे दोबारा-तिबारा या अपनी सुविधा से देखने का आनंद कुछ और होता

फिल्‍म समीक्षा : गैंग्‍स ऑफ वासेपुर-गौरव सोलंकी

Image
गौरव सेलंकी के ब्‍नॉग रोटी कपड़ा और सिनेमा से साभार वासेपुर की हिंसा हम सबकी हिंसा है जिसने कमउम्र फ़ैज़लों से रेलगाड़ियां साफ़ करवाई हैं  मैं नहीं जानता कि आपके लिए ‘ गैंग्स ऑफ वासेपुर ’ गैंग्स की कहानी कितनी है, लेकिन मेरे लिए वह उस छोटे बच्चे में मौज़ूद है, जिसने अपनी माँ को अपने दादा की उम्र के एक आदमी के साथ सोते हुए देख लिया है, और जो उस देखने के बाद कभी ठीक से सो नहीं पाया, जिसके अन्दर इतनी आग जलती रही कि वह काला पड़ता गया, और जब जवान हुआ, तब अपने बड़े भाई से बड़ा दिखता था। फ़िल्म उस बच्चे में भी मौज़ूद है, जिसके ईमानदार अफ़सर पिता को उसी के सामने घर के बगीचे में तब क्रूरता से मार दिया गया, जब पिता उसे सिखा रहे थे कि फूल तोड़ने के लिए नहीं, देखने के लिए होते हैं। थोड़ी उस बच्चे में, जिसकी नज़र से फ़िल्म हमें उसके पिता के अपने ही मज़दूर साथियों को मारने के लिए खड़े होने की कहानी दिखा रही है। थोड़ी उस बच्चे में, जो बस रोए जा रहा है, जब बाहर उसके पिता बदला लेने का जश्न मना रहे हैं। थोड़ी कसाइयों के उस बच्चे में, जिस पर कैमरा ठिठकता है, जब उसके और उसके आसपास के घरों में स

फिर से अनुराग कश्‍यप-2

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज पिछली बार अनुराग कश्‍यप से हुई बातचीत का पहला अंश पोस्‍ट किय था। यह उस बातचीत का दूसरा और अंतिम अंश है। आप की प्रतिक्रिया और जिज्ञासा मुझे जोश देती है अनुराग कश्‍यप से बार-बार बात करने के लिए। आप के सवालों का इंतजार रहेगा। -लेकिन बिहार में सब अच्‍छा ही नहीं हो रहा है। वहां के सुशासन का स्‍याह चेहरा भी है। 0 वह हमें नहीं पता है। बिहार के लोग अच्‍छी तरह बता सकते हैं,क्‍योंकि वे वहां फंसे हुए हैं। कहानी का हमें पता चलेगा तो उस पर भी फिल्‍म बना सकते हैं। अच्‍छा या गलत जो भी आसपास हो रहा है,उसे सिनेमा में दर्ज किया जाना चाहिए। पाइंट ऑफ व्‍यू कोई भी हो सकता है। हमें अच्छी कहानी मिलेगी तो अच्छी फिल्म बनाएंगे।  - वासेपुर में सिनेमा का कितना इंफलुएंश है। 0 वासेपुर देखा जाए तो पूरे इंडियन सोसायटी का एक छोटा सा वर्सन है। वासेपुर कहीं न कहीं वही है। - इस फिल्म के पीछे जो गॉड फादर वाली बात की जाती है ? 0 ये कहानी वासेपुर की है। इस कहानी का ‘ गॉड फादर ’ से कुछ लेना देना नहीं है। लोग बिना पिक्चर देखे हुए बात करते हैं तो लोगों के हिसाब से क्या जवाब दूं। कहानी

मेरे पास खोने के लिए कुछ नहीं था-नवाजुद्दीन सिद्दिकी

Image
  -अजय ब्रह्मात्मज     (कई सालों तक नवाजुद्दीन सिद्दिकी गुमनाम चेहरे के तौर पर फिल्मों में दिखते रहे। न हमें उनके निभाए किरदार याद रहे और न वे खुद कभी लाइमलाइट में आए। उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में पहचान बनाने की लंबी राह पकड़ी थी। शोहरत तो आंखों से ओझल रही। वे अपने वजूद के लिए पगडंडियों से अपनी राह बनाते आगे बढ़ते रहे। उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी। वे अनवरत चलते रहे। और अब अपनी खास शख्सियत और अदाकारी से नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने सब कुछ हासिल कर लेने का दम दिखाया है। पिछले पखवाड़े कान फिल्म फेस्टिवल में उनकी दो फिल्में ‘मिस लवली’ और ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ प्रदर्शित की गई। इंटरनेशनल फेस्टिवल में मिली सराहना से उनके किसान माता-पिता और गंवई घरवालों का सीना चौड़ा हुआ होगा।)     दिल्ली से तीन घंटे की दूरी पर मुजफ्फरनगर जिले में बुढ़ाना गांव है। वहीं किसान परिवार में मेरा जन्म हुआ। घर में खेती-बाड़ी का काम था। पढ़ाई-लिखाई से किसी को कोई वास्ता नहीं था। अपने खानदान में मैंने पहली बार स्कूल में कदम रखा। उन दिनों जब पिता से पांच रुपए लेकर पेन खरीदा तो उनका सवाल था कि इसमें ऐसा क्या है कि पांच

फिर से अनुराग कश्‍यप

अनुराग से यह बातचीत उनके कान फिल्‍म फेस्विल जाने के पहले हुई थी। उस दिन वे बहुत व्‍यस्‍त थे। बड़ी मुश्किल से देश-विदेश के पत्रकारों से बातचीत और इंटरव्‍यू के बीच-बीच में मिले समय में यह साक्षात्‍कार हो पाया। इसका पहला अंश यहां दे रहा हूं। दूसरी कड़ी में आगे का अंश पोस्‍ट करूंगा।  - कान में चार फिल्मों का चुना जाना बड़ी खबर है, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री ने अनसुना कर दिया। कोई हलचल ही नहीं है? 0 क्या कर सकते हैं। कुछ लोगों के व्यक्तिगत संदेश आए हैं। कुछ नहीं कह सकते। हमारी इंडस्ट्री ऐसी ही है। मेनस्ट्रीम की कोई फिल्म चुनी गई रहती तो बड़ी खबर बनती। इंडस्ट्री कभी हमारी कामयाबी को सेलिब्रेट नहीं करती। - हर छोटी बात पर ट्विट की बाढ़ सी आ जाती है। इस बार वहां भी शून्य ब सन्नाटा छाया है? 0 उन्हें लगता होगा कि हम योग्य फिल्ममेकर नहीं हैं। ये कौन से लोग हैं, जिनकी फिल्में जा रही हैं? इनसे अच्छी फिल्में तो हम बनाते हैं। इंडस्ट्री का यह भी तो भावना है। इंडस्ट्री का एक ही मानना है कि मैं जो फिल्में बनाता हूं। वह बहुत ही डार्क और वाहियात होती हैं। उन्हें यह भी लगता होगा कि ऐसी फिल्में कैसे चुन