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फिल्‍म समीक्षा : खेलें हम जी जान से

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-अजय ब्रह्मात्‍मज आजादी की लड़ाई के अनेक शहीद गुमनाम रहे। उनमें से एक चिटगांव विद्रोह के सूर्य सेन हैं। आशुतोष गोवारीकर ने मानिनी चटर्जी की पुस्तक डू एंड डाय के आधार पर उनके जीवन प्रसंगों क ो पिरोकर सूर्य सेन की गतिविधियों का कथात्मक चित्रण किया है। स्वतंत्रता संग्राम के इस अध्याय को हम ने पढ़ा ही नहीं है, इसलिए किरदार, घटनाएं और प्रसंग नए हैं। खेलें हम जी जान से जैसी फिल्मों से दर्शकों की सहभागिता एकबारगी नहीं बनती, क्योंकि सारे किरदार अपरिचित होते हैं। उनके पारस्परिक संबंधों के बारे में हम नहीं जानते। हमें यह भी नहीं मालूम रहता है कि उनका चारीत्रिक विकास किस रूप में होगा। हिंदी फिल्मों का आम दर्शक ऐसी फिल्मों के प्रति सहज नहीं रहता। खेलें हम जी जान से 1930 में सूर्य सेन के चिटगांव विद्रोह की कहानी है। उन्होंने अपने पांच साथियों और दर्जनों बच्चों के साथ इस विद्रोह की अगुवाई की थी। गांधी जी के शांति के आह्वान के एक साल पूरा होने के बाद उन्होंने हिंसात्मक क्रांति का सूत्रपात किया था। सुनियोजित योजना से अपने सीमित साधनों में ही चिटगांव में अंग्रेजों की व्यवस्था को तहस-नहस कर दिया

फिल्‍म समीक्षा : ब्रेक के बाद

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थीम और परफार्मेस में दोहराव -अजय ब्रह्मात्‍मज आलिया और अभय बचपन के दोस्त हैं। साथ-साथ हिंदी सिनेमा देखते हुए बड़े हुए हैं। मिस्टर इंडिया (1987) और कुछ कुछ होता है (1998) उनकी प्रिय फिल्में हैं। यह हिंदी फिल्मों में ही हो सकता है कि ग्यारह साल के अंतराल में आई फिल्में एक साथ बचपन में देखी जाएं और वह भी थिएटर में। यह निर्देशक दानिश असलम की कल्पना है, जिस पर निर्माता कुणाल कोहली ने मोहर लगाई है। इस साल हम दो फिल्में लगभग इसी विषय पर देख चुके हैं। दोनों ही फिल्में बुरी थीं, फिर भी एक चली और दूसरी फ्लॉप रही। पिछले साल इसी विषय पर हम लोगों ने लव आज कल भी देखी थी। इन सभी फिल्मों की हीरोइनें प्रेम और शादी को अपने भविष्य की अड़चन मान बे्रक लेने या अलग होने को फैसला लेती हैं। उनकी निजी पहचान की यह कोशिश अच्छी लगती है, लेकिन वे हमेशा दुविधा में रहती हैं। प्रेमी और परिवार का ऐसा दबाव बना रहता है कि उन्हें अपना फैसला गलत लगने लगता है। आखिरकार वे अपने प्रेमी के पास लौट आती हैं। उन्हें प्रेम जरूरी लगने लगता है और शादी भी करनी पड़ती है। फिर सारे सपने काफुर हो जाते हैं। ब्रेक के बाद इसी थी

फ़िल्म समीक्षा:लव आज कल

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शाश्वत प्यार का अहसास **** -अजय ब्रह्मात्मज इम्तियाज अली निर्देशित लव आज कल बीते कल और आज की प्रेम कहानी है। 1965 और 2009 के किरदारों के जरिए इम्तियाज अली एक बार फिर साबित करते हैं कि प्यार किया नहीं जाता, हो जाता है। प्रेम ज्ञान है, आख्यान है, व्याख्यान है। यही हिंदी फिल्मों का दर्शन है। रोमांटिक हिंदी फिल्मों में हमेशा से पटकथा प्यार और उसके विशुद्ध अहसास पर केंद्रित रहती है। हर पीढ़ी का निर्देशक अपने नजरिए से प्यार को परिभाषित करने का प्रयास करता है। इम्तियाज अली ने 2009 के जय और मीरा के माध्यम से यह प्रेम कहानी कही है, जिसमें 1965 के वीर और हरलीन की प्रेम कहानी एक रेफरेंस की तरह है। इम्तियाज अली नई पीढ़ी के निर्देशक हैं। उनके पास सुघढ़ भाषा और संवेदना है। अपनी पिछली फिल्मों सोचा न था और जब वी मेट से दमदार दस्तक देने के बाद लव आज कल के दृश्यों और प्रसंगों में इम्तियाज के कार्य कुशलता की छाप स्पष्ट नजर आती है। हिंदी फिल्मों में हम फ्लैशबैक देखते रहे हैं। लव आज कल में फ्लैशबैक और आज की कहानी साथ-साथ चलती है, कहीं कोई कंफ्यूजन नहीं होता। न सीन डिजाल्व करने की जरूरत पड़ती है और न कहीं

फ़िल्म समीक्षा:चांदनी चौक टू चायना

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चूं चूं का मुरब्बा निकली 'चांदनी चौक टू चायना' निखिल आडवाणी, रोहन सिप्पी और उनकी टीम को अंदाजा लग गया होगा कि 'चांदनी चौक टू चायना' का प्रचार भारत में गैरजरूरी है। यहां इस फिल्म को पसंद कर पाना मुश्किल होगा, लिहाजा वे अमेरिका, इंग्लैंड और कनाडा में अपनी फिल्म का प्रचार और प्रीमियर करते रहे। मालूम नहीं, उनकी मेहनत क्या रंग ले आयी? अक्षय कुमार का आकर्षण और दीपिका पादुकोण का सौंदर्य भी इस फिल्म से नहीं बांध सका। फिल्म की कहानी लचर थी और पटकथा इतनी ढीली कि गानों से उन्हें जोड़ा जाता रहा। 'चांदनी चौक टू चायना' में न तो चांदनी चौक की पुरजोश सरगर्मी दिखी और न चायना की चहल-पहल। साल के पहले बड़े तोहफे के रूप में आई 'चांदनी चौक टू चायना' चूं चूं का मुरब्बा निकली। यह स्थापित होता है कि सिद्धू चांदनी चौक का है,लेकिन वह चायना में कहां और किस शहर या देहात में है ... यह लेखक और निर्देशक के जहन में रहा होगा। पर्दे पर हमें कभी शांगहाए दिखता है, तो कभी पेइचिंग की फॉरबिडेन सिटी तो कभी नकली चीनी गांव ... इस गांव में बांस की खपचियों से बने मकान हैं। मकान में दैनिक उपयोग के ऐ

ऐक्शन-कॉमेडी दोनों हैं चांदनी चौक टू चाइना में : रोहन सिप्पी

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कई फिल्में बना चुके रोहन सिप्पी की नई फिल्म है चांदनी चौक टू चाइना। अक्षय कुमार और दीपिका पादुकोण अभिनीत इस फिल्म को लेकर उनसे बातचीत हुई। प्रस्तुत हैं उसके अंश.. फिल्म का आइडिया कैसे आया? श्रीधर राघवन ने यह फिल्म लिखी है। कहानी अक्षय कुमार को पसंद आ गई। दोनों उस पर काम कर रहे थे। पहले इसे श्रीराम राघवन डायरेक्ट करने वाले थे, लेकिन वे किसी और प्रोजेक्ट में व्यस्त हो गए। इस बीच सलाम-ए-इश्क रिलीज हुई। मेरी निखिल से बात हुई। उन्हें भी फिल्म की स्क्रिप्ट पसंद आई। इस तरह फिल्म शुरू हो गई। अक्षय की निजी जिंदगी और फिल्म की कहानी में समानता है? श्रीधर ने उनके साथ खाकी में काम किया था। उस फिल्म के समय ही इसका आइडिया आया था। फिल्म और उनकी निजी जिंदगी में कुछ बातें एक जैसी जरूर हैं, लेकिन दोनों में काफी अंतर भी है। सबसे बड़ा अंतर यही है कि फिल्म का अंत है, लेकिन अक्षय का करियर तो लगातार आगे बढ़ता जा रहा है! फिल्म में कुछ ऐसे तत्व हैं, जिनमें उनकी जिंदगी की झलक मिल सकती है। हम सभी जानते हैं कि वे इस फिल्म के पहले चीन नहीं गए थे। हमारी कहानी का एक हिस्सा चीन में ही है। यह एक आम लड़के की कहानी है, ज

फ़िल्म समीक्षा:बचना ऐ हसीनों

एक फिल्म में तीन प्रेम कहानियां बहरहाल, हिंदी लिखने और बोलने में बरती जा रही लापरवाही बचना ऐ हसीनों में भी दिखती है। शीर्षक में ही हसीनो लिखा गया है। फिल्म में राज और उसकी जिंदगी में आई तीन हसीनाओं की कहानी है। राज दिलफेंक किस्म का नौजवान है। लड़कियों को प्रेमपाश में बांधना और फिर उनके साथ मौज-मस्ती करने को उसने राजगीरी नाम दे रखा है। वह अपनी जिंदगी में आई माही और राधिका को धोखा देता है। उनकी मनोभावनाओं और प्यार की कद्र नहीं करता। फिर उसकी मुलाकात गायत्री से होती है। वह गायत्री से प्रेम करने लगता है। जब गायत्री उसका दिल तोड़ती है और उसके प्रेम को अस्वीकार कर देती है, तब उसकी समझ में आता है कि दिल टूटने पर कैसा लगता है? इस अहसास के बाद वह पुरानी प्रेमिकाओं, माही और राधिका, से माफी मांगने वापस लौटता है। वह उनके सामने स्वीकार करता है कि वह कमीना और गिरा हुआ आदमी है। संभवत: हिंदी फिल्म में पहली बार हीरो ने खुद को कमीना और गिरा हुआ इंसान कहा है। पुरानी प्रेमिकाओं से जबरदस्ती माफी लेने के बाद राज नई प्रेमिका गायत्री के पास लौटता है। इस दरम्यान गायत्री को भी अहसास हो चुका है कि वह राज से प्रे