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किरदार ने निखारा मेरा व्‍यक्तित्‍व - मनोज बाजपेयी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज ‘ अलीगढ़ ’ का ट्रेलर आने के बाद से ही मनोज बाजपेयी के प्रेजेंस की तारीफ हो रही है। ऐसा लग रहा है कि एक अर्से के बाद अभिनेता मनोज बाजपेयी अपनी योग्‍यता के साथ मौजूद हैं। वे इस फिल्‍म में प्रो. श्रीनिवास रामचंद्र सिरस की भूमिका निभा रहे हैं। - इस फिल्‍म के पीछे की सोच क्‍या रही है ? 0 एक आदमी अपने एकाकी जीवन में तीन-चार चीजों के साथ खुश रहना चाहता है। समाज उसे इतना भी नहीं देना चाहता। वह अपनी अकेली लड़ाई लड़ता है। मेरी कोशिश यही रही है कि मैं दुनिया के बेहतरीन इंसान को पेश करूं। उसकी अच्‍छाइयों को निखार कर लाना ही मेरा उद्देश्‍य रहा है। -किन चीजों के साथ खुश रहना चाहते थे प्रोफेसर सिरस ? 0 वे लता मंगेशकर को सुनते हैं। मराठी भाषा और साहित्‍य से उन्‍हें प्रेम है1 वे कविताओं में खुश रहते हैं। अध्‍ययन और अध्‍यापन में उनकी रुचि है। वे अलीगढ़ विश्‍वविद्यालय औा अलीगढ़ छोड़ कर नहीं जाना चाहते। वे अपनी जिंदगी अलग ढंग से जीना चाहते हैं। -एक अंतराल के बाद आप ऐसी प्रभावशाली भूमिका में दिख रहे हैं ? 0 अंतराल इसलिए लग रहा है कि मेरी कुछ फिल्‍में रिलीज नहीं ह

सवाल-जवाब : मनोज बाजपेयी

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मनोज बाजपेयी से फेसबुक मित्रों ने पूछे सवाल और मनोज बाजपेयी ने दिए उनके बेधड़क जवाब। यह पोस्‍ट उन सभी मित्रों के लिए है,जिनके मन में ऐसी ही जिज्ञासाएं हैं। उमैर हाशमी : अगली पिंजर कब आ रही है ? मनोज बाजपेयी : अलीगढ़ ही मेरी अगली पिंजर है। सौरभ महाजन : क्‍या स्‍टार्स एक्‍टर्स के साथ काम करने से परहेज़ करते हैं ? मनोज बाजपेयी : स्‍टार के साथ काम करने वाले प्रोड्यूसर और डायरेक्‍टर एक्‍टर के साथ काम करने में परहेज करते हैं। अभिषेक पंडित : क्‍या कभी भोजपुरी फिल्‍म का ऑफर मिले तो करेंगे ? मनोज बाजपेयी : मेरे लिए स्‍क्रिप्‍ट सर्वेसर्वा है। भाषा कोई भी हो। अगर मातृभाषा में स्क्रिप्ट मिले , तो अच्‍छा लगता है। निशांत यादव : उनकी फिल्म अलीगढ के के सम्बन्ध में प्रश्न है : क्या भारत में समलैंगिंकता अब स्वीकार्य हो जानी चाहिए , अब जो समाज का ऊपरी तबका है , उसमें थोड़ी बहुत स्वीकृति तो है लेकिन नीचे का तबका इसे मानसिक विकृति या वासना का पर्याय मानता है , आप क्या मानते हैं... ये कोई रोग है या प्राकृतिक भावना ? मनोज बाजपेयी : सबसे पह

हंसल मेहता के निर्देशन में गे प्रोफेसर की भूमिका निभाएंगे मनोज बाजपेयी

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अजय ब्रह्मात्मज  हंसल मेहता और मनोज बाजपेयी की दोस्ती बहुत पुरानी है। बीच में कुछ ऐसा संयोग बना कि दोनों ने साथ काम नहीं किया। इस बीच दोनों अपने-अपने तरीके से संघर्ष करने के साथ उपलब्धियां भी हासिल करते रहे। दोनों ने 'दिल पे मत ले यार' में एक साथ काम किया था। 14 सालों के बाद वे फिर से एक फिल्म करने जा रहे हैं। मनोज बताते हैं, 'मुंबई में हंसल पहले व्यक्ति थे, जिनसे मैं काम मांगने गाया था। 'सत्या' के सफल होने पर मुझे पहचान मिली तो हम दोनों ने साथ काम करने का फैसला किया। तब 'दिल पे मत ले यार' की योजना बनी। इस फिल्म में मेरे साथ तब्बू भी थीं। फिल्म नहीं चली। हम दोनों कुछ नया करने की साच में रहे। एक दौर ऐसा भी आया कि हमारे बीच मनमुटाव हुआ और हम दोनों अलग हो गए। हमारी बातचीत भी बंद हो गई। हंसल अलग मिजाज की फिल्में बनाने लगे। मुझे खुशी है कि 'शाहिद' से वे अपनी जमीन पर लौटे हैं। हमारे संबंध फिर से कायम हुए और उन्होंने अपनी नई फिल्म का प्रस्ताव मेरे सामने रखा। इस फिल्म में मुझे अपना रोल चुनौतीपूर्ण लगा, इसलिए मैंने हां कर दी।' हंसल

फिल्‍म समीक्षा : तेवर

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  लड़के का नाम घनश्याम और लड़की का नाम राधिका हो और दोनों ब्रजभूमि में रहते हों तो उनमें प्रेम होना लाजिमी है। अमित शर्मा की फिल्म 'तेवर' 2003 में तेलुगू में बनी 'ओक्काड़ु' की रीमेक है। वे शांतनु श्रीवास्तव की मदद से मूल कहानी को उत्तर भारत में रोपते हैं। उन्हें अपनी कहानी के लिए आगरा-मथुरा की पूष्ठभूमि समीचीन लगती है। वैस यह कहानी हरियाणा से लेकर झारखंड तक में कहीं भी थोड़े फेरबदल के साथ ढाली जा सकती है। एक बाहुबली है। उसके दिल यानी रोज के गार्डन में एक लड़की प्रवेश कर जाती है। वह प्रोपोज करता है। लड़की मना कर देती है। और ड्रामा चालू हो जाता है। मथुरा के गुंडा बाहुबली की जोर-जबरदस्ती के बीच में आगरे का लौंडा पिंटू शुक्ला उर्फ घनश्याम आ जाता है। फिर शुरू होती है भागदौड़, मारपीट,गोलीबारी और चाकू व तलवारबाजी। और डॉयलागबाजी भी। हिंदी फिल्मों में मनोरंजन के इन परिचित मसालों का इस्तेमाल होता रहा है। इस बार नई बात है कि उसमें अर्जुन कपूर और सोनाक्षी सिन्हा आ जाते हैं। उन्हें मनोज बाजपेयी से मुकाबला करना है। अपने तेवर के साथ प्यार का इजहार कर

ऑक्‍सीजन है एक्टिंग : मनोज बाजपेयी

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-अमित कर्ण मनोज बाजपेयी दो दशकों से स्टार संचालित सिनेमा को लगातार चुनौती देने वाले नाम रहे हैं। ‘बैंडिट क्वीन’ और ‘सत्या’ जैसी फिल्मों और मल्टीप्लेक्स क्रांति के जरिए उन्होंने उस प्रतिमान का ध्वस्त किया कि सिर्फ गोरे-चिट्टे और सिक्स पैक से लैस चेहरे ही हिंदी फिल्मों के नायक बन सकते हैं। आज की तारीख में वे मुख्यधारा की सिनेमा के भी डिमांडिंग नाम हैं। नए साल में उनकी ‘तेवर’ आ रही है। वह आज के दौर में दो युवाओं की प्रेम कहानी के अलावा प्रेम को लेकर हिंदी पट्टी के पुस्ष प्रधान समाज की सोच और अप्रोच भी बयां करती है।     मनोज कहते हैं, ‘मैंने अक्सरहां फॉर्मूला फिल्में नहीं की हैं। ‘तेवर’ इसलिए की, क्योंकि उसका विषय बड़ा अपीलिंग है। मेनस्ट्रीम की फिल्म होने के बावजूद रियलिज्म के काफी करीब है। छोटे शहरों में आज भी बाहुबलियों का बोलबाला है। उनके प्यार करने का तौर-तरीका जुदा व अलहदा होता है। मैं एक ऐसे ही बाहुबली गजेंद्र सिंह का रोल प्ले कर रहा हूं, जो जाट है। मथुरा का रहवासी है। वह राधिका नामक लडक़ी से बेइंतहा प्यार करता है। वह बाहुबली है, मगर चरित्रहीन नहीं। वह राधिका से शादी करना चाहता है

फिल्‍म समीक्षा : सत्‍याग्रह

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  -अजय ब्रह्मात्‍मज                    इस फिल्म के शीर्षक गीत में स्वर और ध्वनि के मेल से उच्चारित 'सत्याग्रह' का प्रभाव फिल्म के चित्रण में भी उतर जाता तो यह 2013 की उल्लेखनीय और महत्वपूर्ण सामाजिक-राजनीतिक फिल्म हो जाती। प्रकाश झा की फिल्मों में सामाजिक संदर्भ दूसरे फिल्मकारों से बेहतर और सटीक होता है। इस बार उन्होंने भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया है। प्रशासन के भ्रष्टाचार के खिलाफ द्वारिका आनंद की मुहिम इस फिल्म के धुरी है। बाकी किरदार इसी धुरी से परिचालित होते हैं।               द्वारिका आनंद ईमानदार व्यक्ति हैं। अध्यापन से सेवानिवृत हो चुके द्वारिका आनंद का बेटा भी ईमानदार इंजीनियर है। बेटे का दोस्त मानव देश में आई आर्थिक उदारता के बाद का उद्यमी है। अपने बिजनेस के विस्तार के लिए वह कोई भी तरकीब अपना सकता है। द्वारिका और मानव के बीच झड़प भी होती है। फिल्म की कहानी द्वारिका आनंद के बेटे की मृत्यु से आरंभ होती है। उनकी मृत्यु पर राज्य के गृहमंत्री द्वारा 25 लाख रुपए के मुआवजे की रकम हासिल करने में हुई दिक्कतों से द्वारिका प्रशासन को थप्पड़ मारते हैं। इस अपराध

हमें भी महत्ता मिले-मनोज बाजपेयी

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-अजय ब्रह्मात्मज -‘सत्या’ से लेकर ‘सत्याग्रह’ तक के सफर में अभिनेता मनोज बाजपेयी के क्या आग्रह रहे? 0 सत्य और न्याय का आग्रह ही करता रहा हूं। हमलोगों की...मेरी हो चाहे इरफान की हो या नसीर की हो, ओमपुरी की हो हम सब की लड़ाई एक ही रही है। अभिनय में प्रशिक्षित अभिनेताओं को बराबर मौका मिले। अपने काम के जरिए हमलोगों ने यही कोशिश की है। लगातार कोशिशों के बावजूद अभी भी सेकेंड क्लास सीटिजन हंै हम सभी। अनुराग, दिबाकर, तिग्मांशु के आने के बाद हमरा महत्व बढ़ा है, लेकिन अभी भी मुझे लगता है कि दूर से आए लोगों की महत्ता या थिएटर से आए लोगों की महत्ता पर जोर देना चाहिए। अगर कमर्शियल हिट्स भी  सबसे हमारे हिस्से में आ रहे हैं तो महत्व देने में क्या जाता है? उचित स्थान देने में क्या जाता है? यही आग्रह हमेशा से रहा है। यह आग्रह हम अपने काम के जरिए करते रहे हैं। - उचित श्रेय नहीं मिल पाने के लिए कौन जिम्मेदार है? इंडस्ट्री, मीडिया और दर्शक तीनों में कौन ज्यादा जिम्मेदार है? 0 सब जिम्मेदार हैं। थोड़े-थोड़े सब जिम्मेदार हैं। इंडस्ट्री पुराने पैमाने से ही जांचती है। - इंडस्ट्री आपको इनसाइडर मानती है या

मिली बारह साल पुरानी डायरी

कई बार सोचता हूं कि नियमित डायरी लिखूं। कभी-कभी कुछ लिखा भी। 2001 की यह डायरी मिली। आप भी पढ़ें।  30-7-2001       आशुतोष राणा राकेशनाथ (रिक्कू) के यहां बैठकर संगीत शिवन के साथ मीटिंग कर रहे थे। संगीत शिवन की नई फिल्म की बातचीत चल रही है। इसमें राज बब्बर हैं। मीटिंग से निकलने पर आशुतोष ने बताया कि बहुत अच्छी स्क्रिप्ट है। जुहू में रिक्कू का दफ्तर है। वहीं मैं आ गया था। रवि प्रकाश नहीं थे।       आज ऑफिस में बज (प्रचार एजेंसी) की विज्ञप्ति आई। उसमें बताया गया था कि सुभाष घई की फिल्म इंग्लैंड में अच्छा व्यापार कर रही है। कुछ आंकड़े भी थे। मैंने समाचार बनाया ‘ बचाव की मुद्रा में हैं सुभाष घई ’ । आज ही ‘ क्योंकि सास भी कभी बहू थी ’ का समाचार भी बनाया।       रिक्कू के यहां से निकलकर हमलोग सुमंत को देखने खार गए। अहिंसा मार्ग के आरजी स्टोन में सुमंत भर्ती हैं। उनकी किडनी में स्टोन था। ऑपरेशन सफल रहा , मगर पोस्ट ऑपरेशन दिक्कतें चल रही हैं। शायद कल डिस्चार्ज करें। अब हो ही जाना चाहिए ? काफी लंबा मामला खिच गया।       रास्ते में आशुतोष ने बताया कि वह धड़ाधड़ फिल्में साइन कर रहे

फिल्‍म समीक्षा :शूटआउट एट वडाला

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  निर्देशक संजय गुप्ता और उनके लेखक को यह तरकीब सूझी कि गोली से जख्मी और मृतप्राय हो चुके मन्या सुर्वे की जुबानी ही उसकी कहानी दिखानी चाहिए। मन्या सुर्वे नौवें दशक के आरंभ में मारा गया एक गैंगस्टर था। 'शूटआउट एट वडाला' के लेखक-निर्देशक ने इसी गैंगस्टर के बनने और मारे जाने की घटनाओं को जोड़ने की मसालेदार कोशिश की है। मन्या सुर्वे के अलावा बाकी सभी किरदारों के नाम बदल दिए गए है, लेकिन फिल्म के प्रचार के दौरान और उसके पहले यूनिट से निकली खबरों से सभी जानते हैं कि फिल्म का दिलावर वास्तव में दाउद इब्राहिम है। यह मुंबई के आरंभिक गैंगवार और पहले एनकाउंटर की कहानी है। आरंभ के कुछ दृश्यों में मन्या निम्न मध्यवर्गीय परिवार का महत्वाकांक्षी युवक लगता है। मां का दुलारा मन्या पढ़ाई से अपनी जिंदगी बदलना चाहता है। उसकी चाहत तब अचानक बदल जाती है, जब वह सौतेले बड़े भाई की जान बचाने में एक हत्या का अभियुक्त मान लिया जाता है। उसे उम्रकैद की सजा होती है। जेल में बड़े भाई की हत्या के बाद वह पूरी तैयारी के साथ अपराध की दुनिया में शामिल होता है। यहां उसकी भिड़ंत हक्सर

7 तस्‍वीरें सत्‍याग्रह की

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प्रकाश झा की फिल्‍म सत्‍याग्रह की भोपाल में शूटिंग आरंभ हो गई है। यह फिल्‍म अगस्‍त में रिलीज होगी। सत्‍याग्रह में अमिताभ बच्‍चन के साथ अजय देवगन,मनोज बाजपेयी,अर्जुन रामपाल और करीना कपूर हैं। राजनति के बैकड्राप पर एक और हाई ड्रामा प्रकाश झा की स्‍टाइल में...

फिल्‍म रिव्‍यू : चक्रव्‍यूह

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-अजय ब्रह्मात्मज  पैरेलल सिनेमा से उभरे फिल्मकारों में कुछ चूक गए और कुछ छूट गए। अभी तक सक्रिय चंद फिल्मकारों में एक प्रकाश झा हैं। अपनी दूसरी पारी शुरू करते समय 'बंदिश' और 'मृत्युदंड' से उन्हें ऐसे सबक मिले कि उन्होंने राह बदल ली। सामाजिकता, यथार्थ और मुद्दों से उन्होंने मुंह नहीं मोड़ा। उन्होंने शैली और नैरेटिव में बदलाव किया। अपनी कहानी के लिए उन्होंने लोकप्रिय स्टारों को चुना। अजय देवगन के साथ 'गंगाजल' और 'अपहरण' बनाने तक वे गंभीर समीक्षकों के प्रिय बने रहे, क्योंकि अजय देवगन कथित लोकप्रिय स्टार नहीं थे। फिर आई 'राजनीति.' इसमें रणबीर कपूर, अर्जुन रामपाल और कट्रीना कैफ के शामिल होते ही उनके प्रति नजरिया बदला। 'आरक्षण' ने बदले नजरिए को और मजबूत किया। स्वयं प्रकाश झा भी पैरेलल सिनेमा और उसके कथ्य पर बातें करने में अधिक रुचि नहीं लेते। अब आई है 'चक्रव्यूह'। 'चक्रव्यूह' में देश में तेजी से बढ़ रहे अदम्य राजनीतिक और सामाजिक आंदोलन नक्सलवाद पृष्ठभूमि में है। इस आंदोलन की पृष्ठभूमि में कुछ किरदार रचे गए हैं।