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अजय देवगन से विस्‍तृत बातचीत - 1

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अजय देवगन से यह विस्‍तृत बातचीत 'शिवाय' की रिलीज के पहले हो गई थी। इसके कुछ अंश प्रकाशित हुए। इतनी लंबी बातचीत एक साथ पोस्‍ट कर पाना सहज नहीं है। देर करने से अच्‍छा है कि इसे धारावाहिक के तौर पर प्रकाशित कर दें...आज प्रस्‍तुत है पहला अंश। -अजय ब्रह्मात्‍मज -सबसे पहले शिवाय के बारे में आप जो पहले बताना चाह रहे हो? ०- शिवाय के कांसेप्ट के बारे में आपको फिल्म के वक्त पता चलेगा।   मैं इस फिल्म के बारे में कहना चाहूंगा कि इस स्केल की फिल्म पहले हिंदुस्तान में नहीं बनी है। ऐसा एक्शन कभी देखने को नहीं मिला है। हमारा आइडिया सिर्फ ऐसा एक्शन करना नहीं है। आइडिया यह है कि एक्‍शन के साथ पारिवारिक ड्रामा और इमोशनल ड्रामा हो। इसके लिए आपको अपने कंफर्ट जोन से निकलना पड़ता है। क्योंकि आप इतनी फिल्में कर चुके होते हैं। और इतनी फिल्में बन चुकी होती हैं। एक बात होती है कि कोई कोशिश   नहीं करना चाहता है। यह अलग बात है कि मेहनत तो सभी करते हैं। इसमें शुन्‍य से 20 डिग्री नीचे के तापमान पर हमें शूट करना था।ऐसी लोकेशन पर शूटिंग करना, जहां पर आप आसानी से पहुंच नहीं सकते हो। ऐसी जगहों

मुझे हारने का शौक नहीं : आलिया भट्ट

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विस्‍तृत बातचीत की कड़ी में इस बार हैं आलिया भट्ट। आलिया ने यहां खुलकर बातें की हैं। आलिया के बारे में गलत धारणा है कि वह मूर्ख और भोली है। आलिया अपनी उम्र से अधिक समझदार और तेज-तर्रार है। छोटी उम्र में बड़ी सफलता और उससे मिले एक्‍सपोजर ने उसे सावधान कर दिया है। 23 की उम्र आमतौर पर खेल-कूद की मानी जाती है। मगर उस आयु की आलिया भट्ट अपने काम से वह मिथक ध्‍वस्‍त कर रही हैं। वह भी लगातार। नवीनतम उदाहरण ‘उड़ता पंजाब’ का है। ‘शानदार’ की असफलता को उन्होंने मीलों पीछे छोड़ दिया है। उनके द्वारा फिल्म में निभाई गई बिहारिन मजदूर की भूमिका को लेकर उनकी चौतरफा सराहना हो रही है। देखा जाए तो उन्होंने आरंभ से ही फिल्‍मों के चुनाव में विविधता रखी है। वे ऐसा सोची-समझी रणनीति के तहत कर रही हैं।      आलिया कहती हैं, ‘ मैं खेलने-कूदने की उम्र बहुत पीछे छोड़ चुकी हूं। मैं इरादतन कमर्शियल व ऑफबीट फिल्मों के बीच संतुलन साध रही हूं। इस वक्त मेरा पूरा ध्‍यान अपनी झोली उपलब्धियों से भरने पर है। हालांकि मैं किसी फिल्म को इतना गंभीर तरीके से नहीं लेती हूं कि मरने और जीने का मामला हो जाएं। कई बार एक्ट

है सबसे जरूरी समझ जिंदगी की - अनुष्‍का शर्मा

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विस्‍तृत बातचीत की सीरिज में इस बार अनुरूका शर्मा। अनुष्‍का शर्मा की विविधता गौरतलब है। अपनी निंदा और आलोचना से बेपरवाह वह प्रयोग कर रही हैं। साहसी तरीके से फिल्‍म निर्माण कर रही हैं। वह आगे बढ़ रही हैं। -अजय ब्रह्मात्‍मज मुझे स्वीकार किया जा रहा है। यह बहुत बड़ी चीज है। इसके बिना मेरी मेहनत के कोई मायने नहीं होंगे। हम लोग एक्टर हैं। हमारी सफलता इसी में है कि लोग हमारे काम के बारे में क्या सोचते हैं ? चाहे वह अप्रत्यक्ष सफलता हो या प्रत्यक्ष सफलता हो। इससे हमें और फिल्में मिलती हैं। यह हमारे लिए जरूरी है। मैं बचपन से ऐसी ही रही हूं। मुझे हमेशा कुछ अलग करने का शौक रहा है। यही मेरा व्यक्तित्व है। फिल्‍मों में आरंभिक सफलता के बाद मुझे एक ही तरह के किरदार मिलें। वे मैंने किए। लेकिन मुझ में कुछ अलग करने की भूख थी। मैंने सोचा कि अब मुझे कुछ अलग तरह का किरदार निभाना है। मैंने सोचा कि कुछ अलग फिल्में करूंगी,जिनमे अलग किरदार हों या फिर अलग पाइंट दिखाया जा रहा हो। कोई अलग सोच हो। यह एक सचेत कोशिश थी। बीच में ऐसी कई फिल्में आईं, जिनमें मुझे लगा कि कुछ करने के लिए नहीं हैं। उन फिल्

खुदपसंदी यहां ले आई - स्‍वरा भास्‍कर

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स्‍वरा भास्‍कर से यह विस्‍तृत बातचीत है। किसी अभिनेत्री को चंद सवालों और जवाबों में नहीं समझा जा सकता। फिर भी उनकी सोच,समझ और काम की झलक मिलती है। इस सीरिज में और भी इंटरव्‍यू आएंगे....  -निल बटे सन्नाटा से ही शुरू करते हैं। जीत जैसा ना कहें लेकिन इस फिल्म का लोगों पर असर रहा ही है?इस फिल्म के बारे में बोलते हुए आप अपनी बात पर आएं? 0निल बटे सन्नाटा का ब्रीफ यही है कि जब यह फिल्म मुझे मिली मैं उत्साहित थी। मैंने सोचा कि लीड में टाइटल पार्ट और इतना एक दम नायक जैसा रोल। इससे पहले मेरी दो –तीन फिल्में आ चुकी थी। जहां में सहायक भूमिका का किरदार निभा रही थी। लेकिन जब इस फिल्म के लिए मुझे पता चला कि पंद्रह साल की बच्ची की मां का रोल है, तो हल्की सी कड़वाहट मेरे अंदर पैदा हुई।मैंने सोचा कि यार, पता नहीं क्या करना पड़ेगा हीरोईन बननेके लिए। लीड भी मिल रहा है तो मां के किरदार के लिए। सच कहूं तो मेरी सोच यही थी। पर मैंने जब स्क्रिप्ट पढ़ी तो मुझे लगा कि इस फिल्म को मना नहीं करना चाहिए। मैंने सोचा कि रिस्क है। पर कोई बात नहीं। इस फिल्म के लिए मुझे मना नहीं करना चाहिए। फिल्म शुरू ह