शांघाई पर सोनाली सिंह की टिप्पणी
शांघाई देखने के बाद सोनाली सिंह आग्रह करने पर यह टिप्पणी भेजी है। चवन्नी के पाठक इसे संवेदनशील रचनाकार की अपने समय की महत्वपूर्ण फिल्म पर की गई सामन्य प्रतिक्रिया के रूप में पढ़ें या विशेष टिप्पणी के रूप में....मर्जी आप की। "हर आदमी के अन्दर होते है दस- बीस आदमी, जिसको भी देखना कई बार देखना ..." फिल्म कितनी सफल है या सार्थक है , दो अलग- अलग चीजें होती है I जरुरी नहीं कि जो सफल हो सार्थक भी हो और न ही सार्थकता सफलता की कुंजी होती है I सफल फिल्मो की तरह यहाँ एक हलवाई की बेटी किसी business tycoon से शादी करने का ख्वाब नहीं देख सकती I फिल्म के किरदार में हम और आप है जहाँ विजातीय संबंधों को लेकर बवाल कटता है और लड़के को जान बचाने के लिए शहर छोड़कर भागना पड़ता है I फिल्म की कहानी हमारे नाकारापन और दोगलेपन को घेरती कहानी है I सुबह रास्ते में हुए एक्सीडेंट को अनदेखा कर हम ऑफिस भागते है जैसे जिंदगी की ट्रेन छूटी जा रही हो पर शाम को तयशुदा वक़्त एक नोबल cause के लिए इंडिया गेट पर मोमबत्ती लेकर पहुच जाते है I कहानी है उन बिल्डर्स की ,जो ग