कुछ तो बात है इस खान में
-अजय ब्रह्मात्मज अपनी हर फिल्म में दोनों हाथों को फैलाकर जब शाहरुख खान जुंबिश लेते हैं तो लगता है कि वे पूरी दुनिया को अपने अंकवार में भर लेना चाहते हैं। उनकी यह अदा सभी को भाती है। शाहरुख को भी पता है कि दर्शक उनकी इस भावमुद्रा का इंतजार करते हैं और उनके हाथों के फैलने के साथ सिनेमाघर सीटियों और सिसकारियों से गूंजने लगते हैं। यही कारण है कि हर विधा, विषय, भाव और पीरियड की फिल्मों में शाहरुख इसे दोहराने से नहीं हिचकते। ऐसी भावमुद्राओं की वजह से ही उनके आलोचक कहते हैं कि शाहरुख अपनी हर फिल्म में शाहरुख ही रहते हैं। मजेदार तथ्य यह है कि वे आलोचकों के इस आरोप से इत्तफाक रखते हैं। वे कहते हैं, मेरे प्रशंसक मेरी फिल्मों में मुझे देखने आते हैं। मैं उन्हें किसी और रूप और अंदाज से निराश नहीं कर सकता। इस तर्क के साथ वे यह जोडना नहीं भूलते कि मैंने फिर भी दिल है हिंदुस्तानी, अशोक, स्वदेस, पहेली और चक दे जैसी फिल्में भी की हैं। इन सारी फिल्मों में मैं बिलकुल अलग था। छोटे पर्दे का फौजी अलग तो हैं शाहरुख। दूरदर्शन के दिनों में फौजी और सर्कस जैसे धारावाहिकों से ही उन्हें राष्ट्रीय पहचान मिल गई थी।