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सितारों की बढ़ती कीमत!

-अजय ब्रह्मात्मज हिंदी फिल्मों का इतिहास बताता है कि आजादी के बाद से ही सितारों की तूती बोलती रही है। स्टूडियो सिस्टम के टूटने और बैनरों का प्रभाव कम होने के बाद सितारों का भाव बढ़ा, क्योंकि किसी भी फिल्म की शुरुआत, निर्माण और बाजार के लिए फिल्म के स्टार प्रमुख होते गए। दिलीप कुमार से लेकर अक्षय कुमार तक सितारों ने अपनी लोकप्रियता की पूरी कीमत वसूली है। उन्हें मालूम है कि लोकप्रियता की चांदनी चार दिनों से ज्यादा नहीं रहती, इसलिए अंधेरी रात के आने के पहले जितना संभव हो, बटोर लो। पिछले दिनों सलमान खान सुर्खियों में रहे। ऐसा कहा गया कि अपेक्षाकृत एक नई प्रोडक्शन कंपनी ने उन्हें भारी रकम देने के साथ ही लाभ में शेयर देने का वादा किया है। इतना ही नहीं, 15 साल के बाद फिल्म का नेगॅटिव राइट भी उन्हें मिल जाएगा। अगर बहुत संकुचित तरीके से भी इस अनुबंध को रकम में बदलें, तो कुल राशि 25-30 करोड़ का आंकड़ा पार कर जाएगी। जिस देश में प्रति व्यक्ति औसत आय हजारों में चल रही हो, वहां करोड़ों की यह रकम चौंकाती है। लगता है कि सितारे करते क्या हैं कि उन्हें करोड़ों की रकम दी जाती है? सितारों को मिलने वाली भा

क्यों नए नए से दर्द की फिराक में तलाश में उदास है दिल

चवन्नी आज स्वानंद किरकिरे का पूरा गीत यहाँ पेश कर रहा है.आप यह गीत सुनें और फिर इन पंक्तियों को पढें तो ज्यादा आनंद मिलेगा। आज शब जो चांद ने है रुठने की ठान ली गर्दिशों में हैं सितारे बात हम ने मान ली अंधेरी स्याह ज़िन्दगी को सूझती नहीं गली कि आज हाथ थाम लो एक हाथ की कमी खली क्यों खोया खोया चांद की फ़िराक में तलाश में उदास है दिल क्यों अपने आप से खफ़ा खफ़ा जरा जरा सा नाराज़ है दिल ये मन्ज़िले भी खुद ही तय करेये रास्ते भी खुद ही तय करे क्यों तो रास्तों पे फिर सहम सहम के संभल संभल के चलता है ये दिल क्यों खोया खोया चांद की फ़िराक में तलाश में उदास है दिल जिंदगी सवालों के जवाब ढूंढने चली जवाब में सवालों की एक लंबी सी लड़ी मिली सवाल ही सवाल है सूझती नहीं गली कि आज हाथ थाम लो एक हाथ की कमी खली जी में आता है सितारे नोच लूं इधर भी नोच लूं उधर भी नोच लूं एक दो पांच क्या मैं फिर सारे नोच लूं इधर भी नोच लूं उधर भी नोच लूं सितारे नोच लूं, मैं सारे नोच लूं क्यों तो आज इतना वहशी है मिजाज में मजाज है ऐ गम-ए-दिल क्यों अपने आप से खफा खफा जरा जरा सा नाराज है दिल दिल को समझाना कह दो क्या आसान है दिल तो फितरत से

क्यों अपने आप से खफ़ा खफ़ा जरा जरा सा नाराज़ है दिल

आज शब जो चांद ने है रुठने की ठान ली गर्दिशों में हैं सितारे बात हम ने मान ली अंधेरी स्याह ज़िन्दगी को सूझती नहीं गली कि आज हाथ थाम लो एक हाथ की कमी खली क्यों खोया खोया चांद की फ़िराक में तलाश में उदास है दिल क्यों अपने आप से खफ़ा खफ़ा जरा जरा सा नाराज़ है दिल ये मन्ज़िले भी खुद ही तय करे ये रास्ते भी खुद ही तय करे क्यों तो रास्तों पे फिर सहम सहम के संभल संभल के चलता है ये दिल क्यों खोया खोया चांद की फ़िराक में तलाश में उदास है दिल क्या आप इन पंक्तियों को सुन चुके हैं.सुधीर मिश्र की नयी फिल्म खोया खोया चाँद का यह गीत खूब पसंद किया जा रहा है.इसे स्वानंद किरकिरे ने लिखा है और संगीत शांतनु मोइत्रा का है.अगर आप पूरा गीत पढना चाहते हैं तो बताएं.चवन्नी शाम तक यह भी करेगा.सुधीर मिश्र की फिल्म छठे दशक की याद दिलाएगी.शांतनु ने संगीत और स्वानंद ने शब्दों से उस दशक को जिंदा कर दिया है.फिल्म इंडस्ट्री के इन जवान प्रतिभाओं को सलाम.शांतनु बनारस से ताल्लुक रखते हैं तो स्वानंद इंदौर के हैं। सुधीर मिश्र ने इन्हें हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी... में मौका दिया था .तब से दोनों लगातार आगे ही बढ़ते जा रहे हैं.शुक्र है कि

ओम शांति ओम: यथार्थ से कोसों दूर

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-अजय ब्रह्मात्मज फराह खान और शाहरुख खान की ओम शांति ओम का भी वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है। इंटरवल तक की फिल्म फिर भी मनोरंजक और रोचक लगती है। उसके बाद पुनर्जन्म, आत्मा, न्याय और बदले का जो वितान बुना गया है, वह उबाऊ है। फराह ने अगर इंटरवल तक की कहानी पर ही पूरी फिल्म बना दी होती तो अधिक प्रभावशाली निर्मित होती। फिल्म में दो ओम हैं, एक शांति है। एक सैंडी है, जो बाद में शांति का रूप लेती है। और एक शांति की अतृप्त आत्मा है, जो निर्माता मुकेश मेहरा से बदला लेने के बाद ही शांत होती है। चलिए थोड़ा विस्तार में चलें। ओमप्रकाश मखीजा (शाहरुख) जूनियर फिल्म आर्टिस्ट है। वह स्टार बनने के ख्वाब देखता है। उसे शांतिप्रिया से प्रेम हो गया है। वह सेट पर लगी आग से शांति को जान पर खेल कर बचाता है। शांति उसके जोखिम से प्रभावित होती है। ओम को लगता है कि शांति उसे चाहने लगी हैं। ओम का प्यार पींगें मारने लगता है। अगली बार जब मुकेश मेहरा शांति को सचमुच आग में झोंक देता है तो उसे बचाने के चक्कर में ओम जान भी गवां बैठता है। यहीं इंटरवल होता है। हमें पता चलता है कि ओम का पुनर्जन्म हो गया है। नए ओम को पिछले

सांवरिया : रंग और रोमांस वास्तविक नहीं

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-अजय ब्रह्मात्मज खयालों की दुनिया और ख्वाबों के शहर में राज, सकीना, गुलाब और ईमान की कहानी में लॉजिक खोजना बेमानी है। इस सपनीली दुनिया का परिवेश भव्य और काल्पनिक है। नहर है, नदी है, पुल है, अंग्रेजों के जमाने के बार हैं और आज की अंग्रेजी मिश्रित भाषा है। सांवरिया का रंग और रोमांस वास्तविक नहीं है और यही इस फिल्म की खासियत है। संजय लीला भंसाली के काल्पनिक शहर में राज (रणबीर कपूर) गायक है। उसे नयी नौकरी मिली है। बार में ही उसकी मुलाकात गुलाब ( रानी मुखर्जी) से होती है। दोनों के बीच दोस्ती होती है। दोस्तोवस्की की कहानी ह्वाइट नाइट्स पर आधारित इस फिल्म में दो प्रेमियों की दास्तान है। सिर्फ चार रातों की इस कहानी में संजय लीला भंसाली ने ऐसा समां बांधा है कि हम कभी राज के जोश तो कभी सकीना (सोनम कपूर) की शर्म के साथ हो लेते हैं। संजय लीला भंसाली ने एक स्वप्न संसार का सृजन किया है, जिसमें दुनियावी रंग नहीं के बराबर हैं। रणबीर कपूर और सोनम कपूर के शो केस के रूप में बनी इस फिल्म में संजय लीला भंसाली ने खयाल रखा है कि हिंदी फिल्मों में नायक-नायिका के लिए जरूरी और प्रचलित सभी भावों का प्रदर्शन किय

शुक्रवार,९ नवम्बर,२००७

माफ़ करें.दीपावली कि खुशियों में थोडी देर हो गयी.चवन्नी ने सोचा था कि सवेरे ही पोस्ट कर देगा,लेकिन एक के बाद एक काम लगा रहा.और फिर रात में फिल्म देख कर देर से लौटने के कारण चवन्नी आज ज्यादा देर तक सोया ही रहा.बहरहाल इस शुक्रवार की बात करें। आज दो फिल्में और दोनो ही बड़ी फिल्में रिलीज हुई हैं.संजय लीला भंसाली की सांवरिया और फराह खान कि ओम शांति ओम ने सभी सिनेमाघरों को भर दिया है.चवन्नी ने आप को पिछले हफ्ते बताया ही था कि इन दोनों फिल्मों के डर से २ नवम्बर को कोई फिल्म रिलीज नही हुई थी.चवन्नी आप को बता दे कि अगले हफ्ते भी कोई फिल्म रिलीज नही हो रही है। सांवरिया में दो नए स्टार हैं.कपूर खानदान के वारिस के तौर पर पेश किये जा रहे रणबीर कपूर और अनिल कपूर कि बेटी सोनम कपूर को आप इस फिल्म में देख सकते हैं.चवन्नी ने सुना है कि रणबीर कपूर और सोनम कपूर को पसंद किया गया है.पसंद तो ओम शांति ओम की दीपिका पदुकोन को भी किया जा रहा है.चवन्नी को अजय ब्रह्मात्मज की समीक्षाओं का इंतज़ार है। बुधवार को सांवरिया का प्रीमियर था.फिल्म जगत के ढेर सारे लोग फिल्म देखने आये थे.यह अनोखा माहौल होता है.मौका मिल तो च

क्यों अभिनेता बने बलराज साहनी ?

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कहना मुश्किल है कि अगर हंस में बलराज साहनी की कहानी छाप गयी होती तो वे फिल्मों में अभिनय के क्षेत्र में सक्रिय होते या नही?चवन्नी मानता है कि फिल्मों में उनका आना एक लिहाज से अच्छा ही रहा.हमें एक स्वभावाविक अभिनेता मिल और कई खूबसूरत फिल्में मिलीं.हाँ,अगर वह कहानी अस्वीकृत नही हुई होती तो शायद एक अच्छा लेखक भी मिलता.और यह अलग मिसाल होती जब दो भाई बडे साहित्यकार होते.बलराज साहनी कि फिल्मी आत्मकथा भी किसी साहित्य से कम नही है.किसी प्रकाशक को चाहिए कि इसे पुनः प्रकाशित करे.बलराज साहनी के अभिनेता बनने का निर्णय उन्ही के शब्दों में पढें: विलायत से वापस आकर मैंने अंग्रजी साम्राज्य का निडरता से खुल्लम-खुल्ला विरोध करना शुरू कर दिया था. यहां तक कि मेरे दोस्त कभी-कभी मेरा ध्यान डिफेंस आफ इंडिया रूल्स की ओर भी दिलाते थे. पर इसका यह मतलब नहीं कि मैं सब.कुछ छोड़.छाड़कर स्वतन्त्रता-आन्दोलन में कूदने के लिए तैयार हो चुका था. मेरी यह प्रिक्रिया केवल मेरा अहंकार था. विलायत जाकर मैं अपने.आपको अंग्रेजों के बराबर समझने लगा था. इस अहंकार के सम्बंध में उस समय की एक और तस्वीर मेरे सामने आती है. विलायत जान

तरह-तरह के प्रचार!

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-अजय ब्रह्मात्मज फिल्म ओम शांति ओम और सांवरिया दोनों फिल्में दीवाली में आमने-सामने आ रही हैं। सच तो यह है कि दर्शकों को अपनी तरफ खींचने के प्रयास में लगी दोनों फिल्में प्रचार के अनोखे तरीकों का इस्तेमाल कर रही हैं। कहना मुश्किल है कि इन तरीकों से फिल्म के दर्शकों में कोई इजाफा होता भी है कि नहीं? हां, रिलीज के समय सितारों की चौतरफा मौजूदगी बढ़ जाती है और उससे दर्शकों का मनोरंजन होता है। सांवरिया का निर्माण सोनी ने किया है। सोनी इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की मशहूर कंपनी है। सोनी एक एंटरटेनमेंट चैनल भी है। सोनी के कारोबार से किसी न किसी रूप में हमारा संपर्क होता ही रहता है। सांवरिया की रिलीज के मौके पर सोनी उत्पादों की खरीद के साथ विशेष उपहार दिए जा रहे हैं। अगर आप भाग्यशाली हुए, तो प्रीमियर में शामिल हो सकते हैं और सितारों से मिल सकते हैं। उधर एक एफएम चैनल शाहरुख खान की फिल्म ओम शांति ओम के लिए प्रतियोगिता कर रहा है। विजेताओं को शाहरुख के ऑटोग्राफ किए टी-शर्ट मिलेंगे। टीवी के कार्यक्रमों, खेल संबंधित इवेंट और सामाजिक कार्यो में दोनों ही फिल्मों की टीमें आगे बढ़कर हिस्सा ले रही हैं। कोशिश है

बलराज साहनी की नज़र में फिल्मों की पंजाबियत

चवन्नी यह बात जोर-शोर से कहता रहा है कि हिन्दी फिल्मों में पंजाब और पंजाबियत का दबदबा है.कुछ लोग इसे चवन्नी की उत्तर भारतीयता से जोड़ कर देखते हैं.आप खुद गौर करें और गिनती करें कि अभी तक जितने हीरो हिन्दी फिल्मों में दिखे हैं ,वे कहाँ से आये हैं.आप पाएंगे कि ज्यादातर हीरो पंजाब से ही आये हैं.बलराज साहनी भी इस तथ्य को मानते हैं। बलराज साहनी की पुस्तक मेरी फिल्मी आत्मकथा के पृष्ठ २४ पर इसका उल्लेख हुआ है.बलराज साहनी के शब्द हैं: और यह कोई अनहोनी बात भी नहीं थी. पंजाब प्राचीन काल से ही आर्यों, युनानी, तुर्की और अन्य गोरी हमलावर कौमों के लिए भारत का प्रवेश-द्वार रहा है। यहां कौमों और नस्लों का खूब सम्मिश्रण हुआ है। इसी कारण इस भाग में आश्चर्यचकित कर देने की सीमा तक गोरे, सुन्दर लोग देखने में आते हैं. इसकी पुष्टि करने के लिए केवल इतना ही कहना पर्याप्त है कि पंजाब सदैव से हीरो-हीरोइनों के लिए फिल्म-निर्माताओं की तलाशगाह रहा है. दिलीप कुमार, राजकपूर, राजकुमार, राजिन्दर कुमार, देव आनन्द, धर्मेन्द्र, शशि कपूर, शम्मी कपूर, तथा अन्य कितने ही हीरो इसी ओर के लोग हैं. इस लिहाज से हमारा पिंडी-पिशौर त

शुक्रवार,२ नवम्बर ,२००७

ब्लॉग की दुनिया में पोस्टदेखी चलती है.आप का पोस्ट दिखता है तो लोग पढ़ते हैं और टिपण्णी भी करते हैं.आप पोस्ट न करें तो किसी को याद भी नही रहता कि आप ब्लॉग पर सक्रिय थे.बोधिसत्व अपवाद है,क्योंकि वे अभय तिवारी को याद करते हैं.चवन्नी किसी ग़लतफ़हमी में नही है कि उसका पोस्ट खूब पढ़ जाता है या कोई इंतज़ार करता है. शुक्रवार का यह पोस्ट २ नवम्बर को नही लिखा गया। चवन्नी आप को याद रहे न रहे ...वह लिखता रहेगा.पिछले शुक्रवार को चवन्नी शहर से दूर था और पोस्ट लिखने कि स्थिति में नही था.अब इसे संयोग ही कहें कि २ नवम्बर को कोई फिल्म रिलीज नही हुई.एक तरह से अच्छा ही रहा।वैसे आपको चवन्नी बता दे कि सांवरिया और ओउम शांति ओउम के दर से कोई निर्माता इस हफ्ते फिल्म रिलीज करने कि हिम्मत नही कर सका.किसी ने बताया कि दीवाली के पहले के हफ्ते में पिछले पच्चीस सालों से फिल्में रिलीज नही होती.अगर आप लोगों में से किसी को जानकारी हो तो बताएं. चलिए थोडी बासी खबरें ही जान लें.पिछले हफ्ते ऐश्वर्या राय और शाहरुख़ खान का जन्मदिन था.चवन्नी उन्हें बधाई देता है... देर से ही सही.उम्मीद है कि आप ने उन्हें बधाई भेज दी होगी.दोनों