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कैरेक्टर में ढलने की जरूरत क्यों?

-अजय ब्रह्मात्मज यह खबर लोगों ने पढ़ी और देखी जरूर होगी। मधुर भंडारकर चाहते हैं कि उनकी फिल्म की नायिका किसी मॉडल की तरह छरहरी दिखे। इसी कारण वे प्रियंका चोपड़ा पर वजन कम करने का दबाव भी डाल रहे हैं। कहा जा रहा है कि शूटिंग के पहले प्रियंका को अपना वजन आठ किलोग्राम घटाना है। वे अभी तक आधे में पहुंची हैं। इस खबर के पीछे का सच यह है कि आजकल निर्देशक चरित्रों के अनुसार एक्टर के कायिक परिवर्तन पर बहुत जोर दे रहे हैं। दरअसल, एक्टर भी इससे आ रहे फर्क को महसूस करने के बाद ऐसे परिवर्तन के लिए सहज ही तैयार हो जा रहे हैं। ज्यादा पीछे न जाएं और पिछले साल की फिल्मों को याद करें, तो तीन एक्टर इस नए ट्रेंड के सबूत के तौर पर दिखते हैं। गुरु में अभिषेक बच्चन, ओम शांति ओम में शाहरुख खान और तारे जमीं पर में आमिर खान॥। सच तो यह है कि इन तीनों ने ही फिल्म के चरित्र के अनुसार अपना वजन बढ़ाने और घटाने के साथ ही शरीर पर अलग ढंग से मेहनत भी की। गुरु के मुख्य किरदार के लिए अभिषेक बच्चन को अपना वजन बढ़ाना पड़ा। मध्यांतर के बाद में वे काफी तोंदिले और मोटे दिखाई पड़ते हैं। तोंद तो विशेष मेकअप से बनाई गई थी, लेकिन

सिगरेट और शाहरुख़ खान

शाहरुख़ खान ने कहा कि फिल्मों में सिगरेट पीते हुए कलाकारों को दिखाना कलात्मक अधिकार में आता है और इस पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए.अगर आप गौर से उस समाचार को पढें तो पाएंगे कि एक पंक्ति के बयान से खेला गया है.फिल्म पत्रकारिता की यही सामाजिकता है। हमेशा बहस कहीं और मुड़ जाती है.सवाल फिल्मों में किरदारों के सिगरेट पीने का नहीं है.सवाल है कि आप उसे अपने प्रचार में क्यों इस्तेमाल करते हैं.क्या पोस्टर पर स्टार की सिगरेट पीती तस्वीर नहीं दी जाये तो फिल्म का प्रचार नहीं होगा ?चवन्नी ने देखा है कि एक ज़माने में पोस्टर पर पिस्तौल जरूर दिखता था.अगर फिल्म में हत्या या बलात्कार के दृश्य हैं तो उसे पोस्टर पर लाने की सस्ती मानसिकता से उबरना होगा. फिल्म के अन्दर किसी किरदार के चरित्र को उभारने के लिए अगर सिगरेट जरूरी लगता है तो जरूर दिख्यें.लेकिन वह चरित्र का हिस्सा बने,न कि प्रचार का। शाहरुख़ खान इधर थोड़े संयमित हुए हैं.पहले प्रेस से मिलते समय कैमरे के आगे वे बेशर्मों की तरह सिगरेट पीते रहते थे.इधर होश आने पर उन्होंने कैमरे के आगे सिगरेट से परहेज कर लिया है.चवन्नी को याद है एक बार किसी टॉक शो म

सिगरेट और शाहरुख़ खान

छोटे कद का उम्दा कलाकार

चवन्नी राजपाल यादव की बात कर रहा है। राजपाल यादव को पहली बार दर्शकों ने प्रकाश झा के सीरियल मुंगेरी के भाई नौरंगी लाल में देखा था.वे सभी को पसंद आये थे.लोगों ने पूछा भी था कि प्रकाश झा कहाँ से मुंगेरी लाल यानी रघुबीर यादव के छोटे भाई को खोज कर ले आये. शयद सरनेम की समानता के कारण ऐसा हुआ था और दोनों की कद-काठी भी मिलती थी.वैसे दोनों ही राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के छात्र रहे हैं। राजपाल को फिल्मों का पहला मौका इ निवास की फिल्म शूल में मिला.इस फिल्म में राजपाल यादव ने कुली का छोटा सा रोल किया था.राम गोपाल वर्मा को वह जंच गए.रामू ने उन्हें फिर जंगल में थोड़ा बड़ा रोल दिया.इस फिल्म में वह मुख्य खलनायक सुशांत सिंह से ज्यादा चर्चित हुए.देखते ही देखते राजपाल यादव के पास काम की कमी नहीं रही.उन दिनों राजपाल यादव से चवन्नी की लगातार मुलाकातें होती थीं या कम से कम हर फिल्म की रिलीज के समय बात होती थी कि फिल्म कैसी लगी? इधर राजपाल की फिल्मों की संख्या बढ़ती गयी और उसी अनुपात में वार्तालाप छोटी और कम होती गयी.अब केवल गाहे-बगाहे कभी बात हो जाती है.चवन्नी अपने परिचित कलाकारों की ऐसी व्यस्तता से खुश होता

फिल्मी चलन- एक प्रतिनिधि इंटरव्यू

इन दिनों फिल्म स्टार इंटरव्यू देने से भागते हैं.बेचारे पत्रकारों की समस्या का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता.आम तौर पर फिल्म पत्रकारों को ही दोषी माना जाता है और कहा जाता है कि उनके पास सवाल नहीं रहते.ऊपर से फिल्म बिरादरी के लोग शिक़ायत करते हैं कि हम से एक ही तरह के सवाल पूछे जाते हैं। चलिए आपको चवन्नी बताता है कि आम तौर पर ये इंटरव्यू कैसे होते हैं.मान लीजिये एक फिल्म 'मन के लड्डू' रिलीज हो रही है.इसमें कुछ बड़े कलाकार हैं.बड़ा बैनर और बड़ा निर्देशक भी है.फिल्म की रिलीज अगर १ मार्च है तो १५ फरवरी तक प्रोड्यूसर की तरफ से फिल्म का पी आर ओ एक मल्टी मीडिया सीडी भेजेगा.इस सीडी में चंद तस्वीरें,फिल्म की कहानी और फिल्म के कलाकारों की लिस्ट रहती है.इधर सीडी मिली नहीं कि अख़बारों में उसके आधार पर पहली झलक आने लगती है.न प्रोड्यूसर कुछ बताता है और न निर्देशक को फुरसत रहती है.अमूमन फिल्म की रिलीज के दो दिनों पहले तक फिल्म पर काम ही चल रहा होता है। बहरहाल,इसके बाद तय किया जाता है कि फिल्म के स्टार इंटरव्यू देंगे.पत्रकार से पूछा जाता है कि क्या आप इंटरव्यू करना चाहेंगे?अब कौन मना करेगा?बताया जा

शाहरुख़ खान को फ़्रांस का सम्मान

शाहरुख़ खान को कल रात फ़्रांस के राजदूत जेरोम बोनाफों ने फ़्रांस के प्रतिष्ठित insignia of officer in the order of arts & letters से सम्मानित किया.उन्हें यह सम्मान इसलिए दिया गया है कि उन्होंने कला और साहित्य के क्षेत्र में प्रसिद्धि पायी है और फ़्रांस एवं शेष दुनिया में उसे प्रचारित भी किया है.यह हिन्दी फिल्मों का जलवा है.शाहरुख़ खान को इतराने का यह मौका उसी हिन्दी फिल्म ने दिया है,जिसमें बोलने और बात करने से वे कतराते हैं.उस पर चवन्नी फिर कभी विस्तार से बताएगा। कल रात मुम्बई के एक पंचसितारा होटल में यह सम्मान दिया गया.फ़्रांस के राजदूत महोदय ने आश्वस्त किया कि भविष्य में हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं की फिल्मों को ज्यादा तरजीह दी जायेगी.कोशिश रहेगी कि कान फिल्म महोत्सव में भारत की फिल्में आमंत्रित की जाएँ.राजदूत महोदय ने स्वीकार किया कि फ़्रांस अभी तक भारतीय फिल्मों को अधिक तवज्जो नहीं दे रहा था। इस अवसर पर शाहरुख़ खान ने फ्रांसीसी फिल्मों की तारीफ की और जोर देकर कहा कि हर दर्शक और फिल्मकार को फ़्रांस की फिल्में देखनी चाहिए.उन्होंने बगैर किसी शर्म के बताया कि वे दिल्ली में जवान

चोली में फुटबाल

माफ़ करें अगर ऐसे गानों और गब्बर सिंह जैसी फिल्मों से भोजपुरी सिनेमा आगे बढ़ रहा है तो बहुत गड़बड़ है.कहीं भोजपुरी सिनेमा किसी गड्ढे में गिरकर तो आगे नहीं बढ़ रहा है.भोजपुरी फिल्मों में अश्लील गीतों और उसी के मुताबिक अश्लील मुद्राओं पर बहुत जोर रहता है।क्या सचमुच दर्शक यही चाहते हैं? चवन्नी की समझ में एक बात आ रही है कि भोजपुरी सिनेमा के दर्शक मुख्य रुप से पुरुष हैं.उनकी अतृप्त यौन आकांक्षाओं को उकसा कर पैसे बटोरे जा रहे हैं.यह अच्छी बात नहीं है.भोजपुरी इलाक़े के बुद्धिजीवियों को हस्तक्षेप करना चाहिए.वक़्त आ गया है कि हम भोजपुरी सिनेमा की मर्यादा तय करें और उसे इतना शिष्ट बनायें कि परिवार की बहु-बेटियाँ भी उसे देख सकें। शीर्षक में आये शब्द गब्बर सिंह नाम की फिल्म के हैं.इसमें चोली में बाल,फुटबाल और वोलीबाल जैसे शब्दों का तुक भिडा़या गया है.इस गाने में फिल्म के दोनो नायक और लिलिपुट जैसे वरिष्ठ कलाकार अश्लील तरीके से नृत्य करते नज़र आये हैं.कृपया इस तरफ ध्यान दें और अपनी आपत्ति दर्ज करें। भोजपुरी सिनेमा को गंगा,बियाह,गवना,बलमा,सैयां आदि से बाहर आने का समय आ गया है.बाबु मनोज तिवारी और बाब

कॉमेडी, थ्रिलर और एक्शन यानी संडे

-अजय ब्रह्मात्मज कॉमेडी, थ्रिलर और एक्शन तीनों को उचित मात्रा में मिला कर रोहित शेट्टी ने अपने किरदारों के साथ ऐसा घोला कि एक मनोरंजक फिल्म तैयार हो गई है। रोहित ने पारंपरिक तरीके से एक-एक कर अपने प्रमुख किरदारों को पेश किया है। किरदारों को स्थापित करने के बाद उनके ट्रैक आपस में मिलना शुरू करते हैं। शुरू में एक कंफ्यूजन बनता है, जो इंटरवल तक सस्पेंस में तब्दील हो जाता है। फिल्म के शुरू में चेजिंग होती है। उस समय हीरो राजवीर चांदनी चौक की गलियों, मुंडेरों और छतों पर दौड़ता-छलांग लगाता दिखाई पड़ता है। फिल्म के अंत में भी चेज है, लेकिन वह कारों में हैं। कारें नाचती हुई पलटती हैं। कारों को उड़ाने, पलटाने और ध्वस्त कराने में रोहित को आनंद आता है। सहर (आयशा टाकिया) और राजवीर (अजय देवगन) की इस प्रेम कहानी में कुमार (इरफान खान) और बल्लू (अरशद वारसी) भी आते हैं। सहर की जिंदगी से एक संडे मिसिंग है और फिल्म का सस्पेंस इसी संडे से जुड़ा है। इरफान खान ने स्ट्रगलिंग एक्टर का सुंदर काम किया है। आखिरकार वे भोजपुरी फिल्मों के सिंगिंग स्टार बन जाते हैं, लेकिन इस उपलब्धि को छोटी नजर से पेश किया गया है। फ

शुरू हो फिल्मों की पढ़ाई

-अजय ब्रह्मात्मज अब स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी में फिल्मों को पाठ्यक्रम में शामिल करने का वक्त आ गया है। दरअसल, आज फिल्में हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा बन गई हैं। हर व्यक्ति फिल्में देखता है और यही वजह है कि फिल्में और उनके स्टार हमारी बातचीत और विमर्श का हिस्सा बन गए हैं। फिल्मों के इस प्रसार और प्रभाव के बावजूद अभी तक सामाजिक स्तर पर फिल्मों के प्रति हमारा रवैया सहज नहीं हो पाया है, क्योंकि इसे एक विषय के तौर पर पाठ्यक्रम में शामिल करने को हम तैयार नहीं हैं। कुछ विश्वविद्यालयों में स्वतंत्र कोर्स या किसी कोर्स के हिस्से के तौर पर सिनेमा की पढ़ाई आरंभ जरूर हो गई है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। इन दिनों हर तरह की प्रतियोगिता की परीक्षाओं में सिनेमा से संबंधित सवाल पूछे जाते हैं। इन प्रतियोगी परीक्षाओं के विद्यार्थी अपने सामान्य ज्ञान या उपलब्ध सीमित जानकारियों के आधार पर ही जवाब देते हैं। अभी तक कोई व्यवस्थित पुस्तक या संदर्भ स्रोत नहीं है, जहां से विधिवत और क्रमिक जानकारी ली जा सके। फिल्मों पर आ रही पुस्तकें मुख्य रूप से स्टार या फिल्म पर ही केंद्रित होती हैं, क्योंकि ट्रेंड, इतिहास और

रिया की पार्टी में नहीं आएंगे रुश्दी

चवन्नी कल रात से ही परेशान था .उसे बताया गया था कि रिया सेन की जन्मदिन पार्टी में सलमान रुश्दी आ रहे है.मायानगरी मुम्बई के लिए यह बड़ी घटना है और चवन्नी को इस पर नज़र रखनी चाहिए.चवन्नी ने अपना चश्मा साफ किया और कल रात जल्दी सो गया ताकि ताज़ा दिमाग से पूरे मामले को देख और समझ सके.सलमान रुश्दी सिर्फ लिख कर ही परेशान नहीं करते.वे देख कर भी दुखी करते हैं.अब इसी प्रसंग को लें.पद्मा लक्ष्मी से बिछुड़े अभी कुछ ही महीने हुए होंगे और जनाब रिया सेन के रसिक हो गए। हुआ यों कि परमेश्वर गोदरेज की एक पार्टी में शामिल होने के लिए वे मुम्बई आये थे.बड़े लोगों की उस पार्टी में कई बड़ी हस्तियाँ थीं.वहीं अपनी सेन सिस्टर्स रिया और राइमा भी थीं.दोनों आकर्षक हैं,जवान हैं और नैन मटक्का करने में उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं होती.वास्तव में चवन्नी की मध्यवर्गीय बिरादरी की यह समस्या है कि कोई पुरुष किसी स्त्री से थोडा अंतरंग हो जाता है तो खबर फैल जाती है कि आग लगने वाली है,क्योंकि धुआं दिखा है.चवन्नी को लगता है कि यह धुआं उन पत्रकारों के दिमाग में रहता है जो भावनात्मक रुप से असुरक्षित ज़िंदगी जी रहे होते हैं.उस पर अलग