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संजय को मान्यता मिली

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संजय ने आखिरकार मान्यता के संग शादी कर ली.यह उनकी तीसरी शादी है.सबसे पहले उनकी शादी ऋचा शर्मा के साथ हुई थी.यह शादी लंबे समय तक नहीं चल सकी. संजय दत्त की अकेली बेटी त्रिशाला की माँ ऋचा शर्मा ही थीं.ऋचा शर्मा की मौत हो चुकी है. मुम्बई बम विस्फोट में फंसने के बाद संजय दत्त को जेल जाना पड़ा था.वे जेल से निकले तो रिया पिल्लै ने उनसे जबरदस्त हमदर्दी दिखाई और कालांतर में उनकी बीवी बन गयी.भावनाओं के उफान में की गयी यह शादी यथार्थ की कठोर सच्चाईयों से टकराने पर टिक नहीं सकी.रिया पिल्लै बाद में लिएंडर पेस के बच्चे की माँ बनी । इस बार फिर संजय के जेल का सिलसिला चला तो उन्हें मान्यता के साथ देखा गया.कयास लगाया जाता रहा कि दोनों ने शादी कर ली है ...हालांकि संजय दत्त ने हाँ या ना नहीं की.इन्हीं कयासों के बीच उन्होंने आखिरकार मान्यता को अपनी संगिनी बना लिया. इस शादी में संजत दत्त की बहनें मौजूद नहीं थीं.उनकी नामौजूदगी बहुत कुछ कहती है.आप क्या कहते हैं?

सुपर स्टार: पुराने फार्मूले की नई फिल्म

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-अजय ब्रह्मात्मज यह रोहित जुगराज की फिल्म है। निश्चित रूप से इस बार वे पहली फिल्म जेम्स की तुलना में आगे आए हैं। अगर कोई कमी है तो यही है कि उन्होंने हमशक्लों के पुराने फार्मूले को लेकर फिल्म बनायी है। कुणाल मध्यवर्गीय परिवार का लड़का है। बचपन से फिल्मों के शौकीन कुणाल का सपना है कि वह फिल्म स्टार बने। उसके दोस्तों को भी लगता है कि वह एक न एक दिन स्टार बन जाएगा। अभी तक उसे तीसरी लाइन में चौथे स्थान पर खड़े होकर डांस करने का मौका मिला है। कहानी में टर्न तब आता है,जब उसके हमशक्ल करण के लांच होने की खबर अखबारों में छपती है। पूरे मुहल्ले को लगता है कि कुणाल को फिल्म मिल गयी है। कुणाल वास्तविकता जानने के लिए फिल्म के दफ्तर पहुंचता है तो सच्चाई जान कर हैरत में पड़ जाता है। नाटकीय मोड़ तब आता है,जब कुणाल से कहा जाता है कि वह करण के बदले फिल्म में काम करे। प्रोड्यूसर पिता की समस्या है कि करण को एक्टिंग-डांसिंग कुछ भी नहीं आती और उन्होंने फिल्म के लिए बाजार से पैसे उगाह लिए हैं। कुणाल राजी हो जाता है। कहानी आगे बढ़ती है। एक और जबरदस्त मोड़ आता है,जब करण की मौत हो जाती है और कुणाल को रियल लाइफ म

मिथ्या: अधूरे चरित्र, कमजोर पटकथा

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-अजय ब्रह्मात्मज रजत कपूर ने अलग तरह की फिल्में बनाकर एक नाम कमाया है। ऐसा लगने लगा था कि इस दौर में वे कुछ अलग किस्म का सिनेमा कर पा रहे हैं। उनकी ताजा फिल्म मिथ्या इस उम्मीद को कम करती है। इस फिल्म में वे अलग तरीके से हिंदी फिल्मों के फार्मूले के शिकार हो गए है। मिथ्या निराश करती है। वीके एक्टर बनने की ख्वाहिश रखता है। वह कोशिश करता है और किसी प्रकार जूनियर आर्टिस्ट बन पाया है। उसकी मुश्किल तब खड़ी होती है,जब वह मुंबई के एक डॉन राजे सर का हमशक्ल निकल आता है। विरोधी गैंग के लोग उसे अगवा करते हैं और उसे अद्भुत एक्टिंग एसाइनमेंट देते हैं। उसे राजे सर बन जाना है और फिर अगवा किए गैंग का काम करना है। मजबूरी में वह तैयार हो जाता है। इस एक्टिंग की अपनी दिक्कतें हैं। वह किसी तरह इस जंजाल से निकलना चाहता है। इस कोशिश में उससे ऐसी गलतियां होती हैं कि वह दोनों गैंग का टारगेट बन जाता है। और जैसा कि ऐसी स्थिति में होता है। आखिरकार उसे अपनी जान देनी पड़ती है। हिंदी फिल्मों में हमशक्ल का फार्मूला इतना पुराना और बासी हो गया है कि रजत कपूर उसमें कोई नवीनता नहीं पैदा कर पाते। हमशक्ल की फिल्मों में लॉजि

छोटे फिल्म फेस्टिवल की सार्थकता

-अजय ब्रह्मात्मज गोरखपुर, पटना, गया, भोपाल, जयपुर, शिमला जैसे शहरों के साथ ही मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और चेन्नई जैसे महानगरों में भी छोटे पैमाने पर अनेक फिल्म फेस्टिवल होते रहते हैं। दरअसल, देश की दूसरी तमाम गतिविधियों की तरह फिल्म फेस्टिवल के भी श्रेणीकरण और वर्गीकरण हो गए हैं। और उन श्रेणियों और वर्गो के आधार पर उनकी चर्चा होती है और उनका पैमाना भी तय होता है। एक इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल है, जोकि पिछले चार सालों से गोवा में ही हो रहा है। भारत सरकार ने तय किया है कि वह हर साल इसे गोवा में ही आयोजित करेगी और चंद सालों में उसे कान, बर्लिन, वेनिस और टोरंटो की तरह महत्वपूर्ण इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल बना देगी। हालांकि पिछले चार सालों में ऐसा कोई संकेत नहीं मिला। लेकिन हो सकता है कि पांचवें साल में कोई चमत्कार हो जाए। गोवा के अतिरिक्त कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, पुणे और तिरुअनंतपुरम के फिल्म फेस्टिवल राष्ट्रीय महत्व रखते हैं। क्योंकि इन फेस्टिवलों में भी सिनेप्रेमी और फिल्मकार पहुंचते हैं। चूंकि इन सभी फिल्म फेस्टिवल का बजट अपेक्षाकृत ज्यादा होता है, इसलिए फिल्मों का चुनाव अच्छा रहता है। देश और

सेंसर हो गयी 'जोधा अकबर'

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चवन्नी को जानकारी मिली है की कल मुम्बई में जोधा अकबर को सेंसर प्रमाणपत्र मिल गया है.कल ही यह फिल्म क्षेत्रीय सेंसर बोर्ड में भेजी गयी थी.मुम्बई में सेंसर बोर्ड के सदस्यों ने इसे देखा और बगैर किसी कतरब्योंत के सार्वजनिक प्रदर्शन की अनुमति दी। जोधा बाई के नाम को लेकर चल रहे विवाद को ध्यान में रख कर आशुतोष गोवारिकर ने एक डिस्क्लेमर डाला था,लेकिन आदतन वह अंग्रेजी में लिखा था.सेंसर बोर्ड ने सिफारिश की है कि यह डिस्क्लेमर हिन्दी में भी दिया जाना चाहिए.साथ ही यह लिखने का भी निर्देश दिया गया है कि जोधा के और भी कई नाम हैं.आशुतोष ने इस मामले में पहले भी स्पष्टीकरण दिया है कि उन्होंने जयपुर के राजघराने की सहमति से जोधा बाई नाम रखा है.आशु ने यह भी कहा है कि अकबर के साथ जोधा का नाम मुगलेआज़म के कारण विख्यात हो चुका है. वे उसे बदलकर किसी प्रकार का जोखिम नहीं लेना चाहते. सेंसर बोर्ड ने यह भी सिफारिश की है कि फिल्म में इस आशय का भी एक डिस्क्लेमर हो कि इस फिल्म में वर्णित ऐतिहासिक तथ्य निर्देशक की व्याख्या है.निर्देशक की व्याख्या से इतर व्याख्याएँ भी हो सकती हैं। हाँ,सेंसर बोर्ड ने जोधा अकबर को यूए

अभिषेक बच्चन का जन्मदिन

आज अभिषेक का जन्मदिन है.पूरा बच्चन परिवार आज जयपुर में है,क्योंकि अभिषेक बच्चन वहाँ राकेश मेहरा की फिल्म दिल्ली-६ की शूटिंग कर रहे हैं.राकेश उन्हें छोड़ना नहीं चाहते थे और परिवार के अन्य सदस्य खाली थे लिहाजा तय हुआ की जन्मदिन जयपुर में ही मनाया जाये। अभिषेक बच्चन को अपने पिता अमिताभ बच्चन की छवि की छाया से निकलने में पांच साल और १६ फिल्में लग गयीं.मशहूर पिता के बेटे होने का नुकसान अभिषेक को उठाना पड़ा है,लेकिन उस नुकसान की तुलना में फायदे अधिक हुए है.दूसरे ऐक्टर तो सवाल करते ही हैं न की अगर अभिषेक के पिता अमिताभ बच्चन नहीं होते तो क्या उन्हें १६ फिल्मों का मौका मिलता?जवाब एक ही होगा की नहीं मिलता। इसके बावजूद अभिषेक अभी जिस स्थिति में हैं और उन्होंने जो थोड़ी जगह बनायीं है,उसमें उनकी मेहनत और लगन है.और फिर दर्शकों ने भी स्वीकार कर ही लिया.युवा के बाद से ही अभिषेक बच्चन की स्वतंत्र पहचान बनी.पिछले साल आई गुरु कथ्य के स्तर पर चाहे जैसी फिल्म हो,लेकिन ऐक्टर अभिषेक बच्चन के नज़रिये से देखें तो उन्होंने एक कठिन भूमिका को साकार किया था। गुरु की बात आई तो चवन्नी आप को बताना चाहता है कि अभिषेक ब

मैंने युवा अकबर का किरदार निभाया है: रितिक रोशन

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-अजय ब्रह्मात्मज रितिक रोशन को इंटरव्यू के लिए पकड़ पाना लगभग उतना ही मुश्किल काम है, जितनी दिक्कत उन्हें किसी फिल्म के लिए राजी करने में किसी निर्देशक को होती होगी। आप अपनी फिल्मों के चुनाव के प्रति काफी सावधान रहते हैं। क्या वजह रही कि जोधा अकबर के लिए हाँ कहा? पीरियड, कॉस्टयूम और अकबर तीनों में से क्या आपको ज्यादा आकर्षित कर रहा था? मेरे लिए अकबर आकर्षण और चुनौती दोनों थे। कोई मिल गया और धूम 2 की मेरी भूमिका को देखते हुए जोधा अकबर में मेरी भूमिका एकदम अलग है। इसके लिए मुझे खास तरह से तैयारी करनी पड़ी। 14 किलो का कवच पहनकर मैंने स्वयं को किसी पुराने योद्धा की तरह से महसूस किया। मेरी कोशिश रही है कि अकबर के बारे में जो भी जानकारी है, उसके आधार पर उनके एटीट्यूड को ईमानदारी से पर्दे पर उतार सकूं। अकबर के लिए मैंने ढेर सारी किताबें पढ़ीं। मुगल काल और अकबर के बारे में सारी जानकारियां एकत्रित कीं। उन्हें आत्मसात किया। शूटिंग शुरू करते समय मैंने सारी जानकारियां दिमाग से निकाल दीं। आप इस फिल्म को किस नजरिये से देखते है? जोधा अकबर का मकसद मनोरंजन करना है, शिक्षा देना या डाक्यूमेंट्री नहीं है। म

हाय रामा, क्या है ड्रामा

-अजय ब्रह्मात्मज लगता है इस फिल्म की सारी क्रिएटिविटी शीर्षक गीत में ही खप गई है। अदनान सामी के गाए गीत में शब्दों से अच्छा खेला गया है। सुनने में भी अच्छा लगता है। इस गीत के चित्रांकन में फिल्म के सारे कलाकार दिखे हैं, लेकिन शुरू के क्रेडिट के समय ही यह गाना खत्म हो जाता है। उसके बाद फिल्म आरंभ होती है, तो फिर उसके खत्म होने का इंतजार शुरू हो जाता है। रामा रामा क्या है ड्रामा में निर्देशक एस चंद्रकांत ने कामेडी क्रिएट करने की असफल कोशिश की है। अमूमन स्फुट विचार को लेकर बनाई गई फिल्मों का यही हश्र होता है। अधूरी कहानी और आधे-अधूरे किरदारों को लेकर फिल्म पूरी कर दी जाती है। इस फिल्म में निर्देशक एक संदेश देना चाहते हैं कि बीवी का जिंदगी में खास महत्व होता है और सफल दांपत्य के लिए पति-पत्नी को थोड़ा बहुत एडजस्ट करना चाहिए। फिल्म का सारा भार राजपाल यादव के कंधों पर है और उनके कंधे इस फिल्म को ढो नहीं पाते। बाकी कलाकारों का उन्हें लापरवाह सहयोग मिला है। हां, फिल्म में अंग्रेजी के गलत शब्दों का इस्तेमाल करते हुए मिसरा जी (संजय मिश्रा) आते हैं तो राजपाल यादव के साथ उनकी जोड़ी जमती है। अनुपम

लौटे आदित्य चोपड़ा,ले आएंगे ' रब ने बना दी जोड़ी

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बहुत पहले मनमोहन देसाई की एक फिल्म आई थी ' सुहाग '.इस फिल्म में अमिताभ बच्चन और रेखा थे.उन दिनों दोनों की जोड़ी ने धूम मचा रखी थी.इसी फिल्म का गीत है ' रब ने बना दी जोड़ी '.इस गीत में दोनों की मस्ती और अंतरंगता दिखती है.अब इसी गीत को आधार बना कर आदित्य चोपड़ा अपनी नयी फिल्म की योजना बना रहे हैं। आदित्य चोपड़ा हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री के चमत्कारी निर्देशक माने जाते हैं.उनकी पहली फिल्म ' दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे ' अभी तक मुम्बई के एक सिनेमाघर में चल रही है.वह १३वें साल में प्रवेश कर चुकी है.आदित्य चोपड़ा कि पहली फिल्म का ऐतिहासिक महत्व हो गया है.उनकी दूसरी फिल्म ' मोहब्बतें ' ज्यादा नहीं चली थी,लेकिन उस फिल्म से अमिताभ बच्चन की दूसरी पारी निखर गयी थी. यह आज से आठ साल पहले की बात है। पिछले आठ सालों में आदित्य चोपड़ा ने यशराज फिल्म्स में बन रही सभी फिल्मों की निगरानी की.उन्होंने कांसेप्ट से लेकर उनकी रिलीज तक पर नज़र रखी.उनमें से कुछ हिट रहीं और कुछ सुपर फ्लॉप साबित हुईं.आदित्य चोपड़ा ने इन आठ सालों में अपना स्टूडियो भी खड़ा किया। यह मुम्बई का आधुनिकतम स्टूडियो

जोधाबाई,हरखा बाई या हीरा कुंवर?

जोधा अकबर की रिलीज में अभी दो हफ्ते की देर है.एक विवाद छेड़ा गया है कि अकबर के साथ जिसकी शादी हुई थी, उस राजपूत राजकुमारी का नाम जोधा बाई नहीं था.एक जाति विशेष के संगठन ने आपत्ति की है और आह्वान किया है कि राजस्थान में इस फिल्म को नहीं चलने देंगे.हो सकता है कि वे अपने मकसद में कामयाब भी हो जाएँ,क्योंकि जब भी किसी फिल्म पर इस तरह की सुपर सेंसरशिप लगी है तो सरकार पंगु साबित हुई है। सवाल है कि अगर राज परिवार के वंशजों को इस नाम पर आपत्ति नहीं है तो बाकी लोगों को इस नाम के उपयोग से गुरेज क्यों है?क्या यह सिर्फ आत्मप्रचार के लिए छेड़ा गया विवाद है?अगर आपत्ति करने वाले जोधा के नाम नाम को लेकर गंभीर हैं तो उन्हें पहले मुगलेआज़म पर सवाल उठाना चाहिए.१९६० में बनी इस फिल्म ने भारतीय मानस में जोधा और अकबर की ऐसी छवि बिठा दी है कि आशुतोष गोवारिकर के अकबर बने रितिक रोशन और जोधा बनी ऐश्वर्या राय को दिक्कत हो रही है। अपने देश में फिल्मों के साथ विवादों का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है.कोई भी कहीं से उठता है और अपनी उंगली दिखा देता है.बाकी लोग भी उसे देखने कगते हैं और फिल्मकार की सालों की मेहनत एकबारगी कठघ