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पहली छमाही नहीं मिली वाहवाही

-अजय ब्रह्मात्मज पहली छमाही हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के लिए तबाही लेकर आई है। आश्चर्य की बात तो यह है कि और साल की तुलना में इस साल की पहली छमाही में फिल्मी कारोबार एकदम ठंडा रहा। पिछले साल की बात करें, तो छह महीने में 49 फिल्में रिलीज हुई थीं, लेकिन इस साल फिल्मों की संख्या घटकर 41 हो गई है और यदि यही स्थिति रही, तो सैकड़ों की संख्या में हिंदी फिल्में बनने का ब्यौरा अब केवल इतिहास की किताबों में मिलेगा! इन 41 फिल्मों में से हम चार ऐसी फिल्में भी नहीं बता सकते, जिन्होंने अच्छा कारोबार किया हो। फिल्में सिनेमाघरों में टिकने का नाम ही नहीं ले रही हैं। वजह मात्र यही है कि दर्शकों को ये फिल्में भा नहीं रही हैं। रेस और जन्नत ने बचाई इज्जत हालांकि पहली छमाही में ही नौ नए डायरेक्टर और उतने ही नए ऐक्टर फिल्मों में आए। आमिर, समर 2007 और भूतनाथ लीक से हटकर बनी फिल्में थीं। उनकी प्रशंसा जरूर हुई, लेकिन दर्शकों ने उन्हें खारिज भी कर दिया। दर्शकों की पसंद और फिल्मों के चलने की बात करें, तो अब्बास-मस्तान की रेस और नए डायरेक्टर कुणाल देशमुख की जन्नत ने ही फिल्म इंडस्ट्री की इज्जत रखी। इन दोनों ने अच्छा ब

बॉक्स ऑफिस:११.०७.२००८

हिट हो गई है जाने तू या जाने ना एक लंबे अंतराल के बाद बॉक्स ऑफिस पर दर्शकों की भीड़ दिख रही है। टिकट नहीं मिल पाने के कारण दर्शक एक मल्टीप्लेक्स से दूसरे मल्टीप्लेक्स भाग रहे हैं। किसी भी निर्माता के लिए इससे बड़ी खुशी नहीं हो सकती कि उसकी फिल्म को देखने भीड़ उमड़ पड़ी हो। आमिर खान की यह लगातार तीसरी हिट है। उनके होम प्रोडक्शन से आई लगान और तारे जमीन पर के बाद जाने तू या जाने ना की सफलता से ट्रेड सर्किल यकीन करने लगा है कि आमिर खान दर्शकों की रुचि समझते हैं। जाने तू या जाने ना के दर्शकों में लगातार इजाफा हो रहा है। मुख्य रूप से किशोर और युवा दर्शकों के बीच यह फिल्म पसंद की जा रही है। फिल्म में दोस्ती और प्यार का सरल एवं आधुनिकअंदाज उन्हें अपने अनुकूल और आसपास का लग रहा है। यही कारण है कि कॉलेज के नए सत्र आरंभ होते ही नए दोस्तों का झुंड सिनेमाघरों की ओर रूख कर रहा है। जाने तू या जाने ना के साथ रिलीज हुई लव स्टोरी 2050 को दर्शकों ने नापसंद कर दिया है। उन्हें न तो इस फिल्म की लव स्टोरी पसंद आई और न 2050 का चित्रण। हालांकि फिल्म के निर्देशक हैरी बवेजा बयान दे रहे हैं कि उनकी फिल्म को नुकसा

जाने तू.. देखकर सभी को मजा आएगा: अब्बास टायरवाला

अब्बास टायरवाला ने निर्देशन से पहले फिल्मों के लिए गीत और स्क्रिप्ट लिखे। लगातार लेखन के बाद एक दौर ऐसा भी आया, जब उन्हें न ही कुछ सूझ रहा था और न कुछ नया लिखने की प्रेरणा ही मिल पा रही थी! इसी दौर में उन्होंने निर्देशन में उतरने का फैसला किया और अपनी भावनाओं को जानू तू या जाने ना का रूप दिया। यह फिल्म चार जुलाई को रिलीज हो रही है। बातचीत अब्बास टायरवाला से.. जाने तू या जाने ना नाम सुनते ही एक गीत की याद आती है। क्या उस गीत से प्रेरित है यह फिल्म? बिल्कुल है। यह मेरा प्रिय गीत है। गौर करें, तो पाएंगे कि इतने साल बाद भी इस गीत का आकर्षण कम नहीं हुआ है। पुराने गीतों की बात ही निराली है। इन दिनों एक फैशन भी चला है। नई फिल्मों के शीर्षक के लिए किसी पुराने गीत के बोल उठा लेते हैं। फिल्म की थीम के बारे में जब मुझे पता चला कि प्यार है, तो इसके लिए मुझे जाने तू या जाने ना बोल अच्छे लगे। इस गीत में खुशी का अहसास है, क्योंकि यह लोगों को उत्साह देता है। मैंने इसी तरह की फिल्म बनाने की कोशिश की है। कोशिश है कि फिल्म लोगों को खुशी दे। जाने तू या जाने ना के किरदार इसी दुनिया के हैं या आजकल की फिल्मो

हरमन बवेजा बनाम इमरान खान

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पिछली चार जुलाई को हरनाम बवेजा ने 'लव स्टोरी २०५०' और इमरान खान ने 'जाने तू या जाने ना' से अपनी मौजूदगी दर्शकों के बीच दर्ज की.अभी से यह भविष्यवाणी करना उचित नहीं होगा कि दोनों में कौन आगे जायेगा ?पहली फ़िल्म के आधार पर बात करें तो इमरान की फ़िल्म'जाने तू...'की कामयाबी सुनिशिचित हो गई है.'लव स्टोरी...' के बारे में यही बात नहीं कही जा सकती.हालाँकि चार जुलाई के पहले हरमन की फ़िल्म की ज्यादा चर्चा थी और इमरान की फ़िल्म छोटी मानी जा रही थी.वैसे भी हरमन की फ़िल्म ५० करोड़ में बनी है,जबकि इमरान की फ़िल्म की लगत महज १० करोड़ है। चवन्नी को इसका अंदेशा था.सबूत है इसी ब्लॉग पर किया गया जनमत संग्रह.चवन्नी ने पूछा था की पहले किसकी फ़िल्म देखेंगे? २५ लोगों ने इस जनमत संग्रह में भाग लिया था,जिनमें से १७ ने इमरान की फ़िल्म पहले देखने की राय दी थी,बाकी ८ ने हरमन के पक्ष में मत दिए.चवन्नी को तभी समझ जाना चाहिए था कि दोनों फिल्मों के क्या नतीजे आने जा रहे हैं.चवन्नी ने एक पोस्ट के बारे में सोचा भी था। हरमन और इमरान को मीडिया आमने-सामने पेश कर रहा है.मुमकिन है कि कुछ दिन

फ़िल्म समीक्षा:लव स्टोरी २०५०

न साइंस है और न फिक्शन -अजय ब्रह्मात्मज हैरी बवेजा की लव स्टोरी 2050 से उम्मीद थी कि हिंदी फिल्मों को एक छलांग मिलेगी। इस फिल्म ने छलांग जरूर लगाई, लेकिन पर्याप्त शक्ति नहीं होने के कारण औंधे मुंह गिरी। अफसोस ही है कि इतनी महंगी फिल्म का यह हाल हुआ। लव स्टोरी 2050 बुरी फिल्म बनाने की महंगी कोशिश है। फिल्म दो हिस्सों में बंटी है। इंटरवल के पहले सारे किरदार आस्ट्रेलिया में रहते हैं और जैसा कि होता आया है, वे सभी हिंदी बोलते हैं। उनके आसपास स्थानीय लोग नहीं रहते। पड़ोसियों के सिर्फ घर दिखते हैं। हां, हीरो-हीरोइन डांस करने लगें तो कुछ लोग साथ में नाचने लगते हैं और अगर उन्हें पैसे नहीं मिले हों तो वे औचक भाव से घूरते हैं, जैसे कि बंदर और मदारी को देखकर हमारा कौतूहल जाग जाता है। इंटरवल के बाद कहानी सन् 2050 की मुंबई में आ जाती है। आकाश में इतनी कारें और अन्य सवारियां उड़ती दिखाई पड़ती हैं... क्या 2050 में पतंगें सड़कों पर दौड़ेंगी और पक्षी पिंजड़ों में बंद हो जाएंगे? फिल्म में एक अजीब सी तितली है, जो 2008 के आस्ट्रेलिया में नाचती हुई आकर हथेली पर बैठ जाती है और सन् 2050 में भी हीरो-हीरोइन की

फ़िल्म समीक्षा:जाने तू या जाने ना

कुछ नया नहीं, फिर भी नॉवल्टी है -अजय ब्रह्मात्मज रियलिस्टिक अंदाज में बनी एंटरटेनिंग फिल्म है जाने तू या जाने ना। एक ऐसी प्रेम कहानी जो हमारे गली-मोहल्लों और बिल्डिंगों में आए दिन सुनाई पड़ती है। जाने तू... की संरचना देखें। इस फिल्म से एक भी किरदार को आप खिसका नहीं सकते। कहानी का ऐसा पुष्ट ताना-बाना है कि एक सूत भी इधर से उधर नहीं किया जा सकता। सबसे पहले अब्बास टायरवाला लेखक के तौर पर बधाई के पात्र हैं। एयरपोर्ट पर ग्रुप के सबसे प्रिय दोस्तों की अगवानी के लिए आए चंद दोस्त एक दोस्त की नई गर्लफ्रेंड को प्रभावित करने के लिए उनकी (जय और अदिति) कहानी सुनाना आरंभ करते हैं। शुरू में प्रेम कहानी के नाम पर मुंह बिचका रही माला फिल्म के अंत में जय और अदिति से यों मिलती है, जैसे वह उन्हें सालों से जानती है। दर्शकों की स्थिति माला जैसी ही है। शुरू में आशंका होती है कि पता नहीं क्या फिल्म होगी और अंत में हम सभी फिल्म के किरदारों के दोस्त बन जाते हैं। माना जाता है कि हिंदी फिल्में लार्जर दैन लाइफ होती हैं, लेकिन जाने तू.. देख कर कहा जा सकता है कि निर्देशक समझदार और संवेदनशील हो तो फिल्म सिमलर टू लाइफ

निर्देशकों का लेखक बनना ठीक है, लेकिन.. .

-अजय ब्रह्मात्मज पिछले कुछ सालों में फिल्म लेखन में बड़ा बदलाव आया है। उल्लेखनीय है कि इस बदलाव की तरफ सबसे पहले यश चोपड़ा ने संकेत किया था। उन्होंने अपने बेटे आदित्य चोपड़ा समेत सभी युवा निर्देशकों के संबंध में कहा था कि वे सब अपनी फिल्मों की स्क्रिप्ट खुद लिखते हैं। भले ही दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे के समय यह ट्रेंड नहीं रहा हो, लेकिन हाल-फिलहाल में आए अधिकांश युवा निर्देशकों ने अपनी फिल्में खुद लिखीं और उन युवा निर्देशकों ने किसी और की कहानी ली, तो पटकथा और संवाद स्वयं लिखे। इस संदर्भ में हिंदी फिल्मों के एक वरिष्ठ लेखक की टिप्पणी रोचक है। उनकी राय में फिल्म लेखक-निर्देशक और निर्माता की भागीदारी पहले भी रहती थी, लेकिन वे कथा, पटकथा और संवाद का क्रेडिट स्वयं नहीं लेते थे। उन्होंने महबूब खान, बी.आर. चोपड़ा, बिमल राय और राजकपूर के हवाले से कहा कि इन सभी निर्देशकों की टीम होती थी और इस टीम में लेखक भी रहते थे। स्टोरी सिटिंग का चलन था। फिल्म की योजना बनने के बाद फिल्म के लेखक, ऐक्टर, निर्माता और निर्देशक साथ बैठते थे। सलाह-मशविरा होती थी और फिल्म के लिए नियुक्त लेखक हर स्टोरी सिटिंग के

इमरान खान से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत

रियलिस्टिक और नैचुरल है जाने तू ....- इमरान खान क्या आप पहली रिलीज के लिए तैयार हैं? मुझे नहीं लगता कि ऐसे तैयार होना आसान है, हम ये नहीं सोचते हैं कि आगे जाकर क्या होगा। हमने कोशिश की है कि अच्छी फिल्म बन सके, मैंने ईमानदारी से काम किया है ....आगे क्या होगा किसी को पता नहीं। लेकिन कुछ तो तैयारी रही होगी। बाहर इतना कम्पिटीशन है। आप पहुंचेंगे, बहुत सारे लोग पहले से ही मैदान में खड़े हैं? कम्पिटीशन के बारे में आपको सोचना नहीं चाहिए। आपको अपना काम करना है। अगर मैं बैठ कर सोचूंगा कि बाकी एक्टर क्या कर रहे हैं, कैसी फिल्में कर रहे हैं। ये कॉमेडी फिल्म कर रहा है, ये रोमांटिक फिल्म कर रहा है तो मैं अपने काम पर ध्यान नहीं दे पाऊंगा। मुझे अपना काम करना है, मुझे अपना काम देखना है। मुझे सोचना है कि मुझे कैसी फिल्में अच्छी लगती हैं। मुझे कैसी स्क्रिप्ट पसंद हैं। और ये काम मैं कितने अच्छे तरीके से कर सकता हूं। कभी किसी को देख जलना नहीं चाहिए, इंस्पायर होना चाहिए। किसी और को देखकर अपना काम नहीं करना चाहिए। मेरे खयाल में कम्पिटीशन के बारे में सोचना नहीं चाहिए। कैसे फैसला लिया कि जाने तू या जाने ना ही

बॉक्स ऑफिस:०४.०७.२००८

थोड़ा ट्रैजिक ही रहा कारोबार पूरे छह महीने बीत गए। बॉक्स ऑफिस पर कोई खुशहाली नहीं दिखी। हर फिल्म की रिलीज के समय खुशहाली की उम्मीद के बादल उमड़े, घिरे और गरजे भी, लेकिन बूंदाबादी ही होकर रह गई। शुरू की छमाही में जोधा अकबर, रेस,जन्नत और सरकार राज का ही ठीक-ठाक कारोबार रहा। वैसे भी हिंदी फिल्मों की कामयाबी का प्रतिशत पांच ही रहता है। इस बार इसमें भी कमी आने की आशंका है। पिछले हफ्ते रिलीज फिल्मों में थोड़ा प्यार थोड़ा मैजिक कुणाल कोहली की पहली होम प्रोडक्शन होने के साथ यशराज की भी फिल्म थी। सैफ अली खान और रानी मुखर्जी की जोड़ी के साथ चार-चार बच्चे ़ ़ ़ ऐसा लगा था कि इस फिल्म को बच्चे लपक लेंगे। थोड़ा प्यार थोड़ा मैजिक का कलेक्शन वास्तव में थोड़ा ट्रैजिक ही रहा। पच्चीस प्रतिशत का कलेक्शन सैफ और रानी की फिल्म के लिए संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। इस फिल्म के नाम से मिलती-जुलती फिल्म थोड़ी लाइफ थोड़ा मैजिक तो ठीक से सिनेमाघरों तक में नहीं पहुंच सकी। कहा जा रहा है कि यशराज फिल्म्स ने कोई दांव खेला। दूसरी फिल्म वाया दार्जीलिंग सीमित प्रिंट के साथ रिलीज हुई थी। एनएफडीसी की इस फिल्म का हश्र उनकी अत

प्रियंका चोपड़ा, बारिश और एक मुलाकात

इन दिनों अंतरंग बातचीत तो छोड़िए, अंतरंग मुलाकातें भी नहीं हो पातीं। एक्टर व्यस्त हैं और फिल्म पत्रकार जल्दी से जल्दी अखबारों की जगह भरने में सिर्फ कानों और आंखों का सहारा ले रहे हैं। दिल और दिमाग अपने कोनों में दुबके पड़े हैं। आश्चर्य है कि इस स्थिति से सभी खुश हैं... अखबार के मालिक, संपादक, पत्रकार, पाठक और फिल्मी हस्तियां... इस स्थिति की परिस्थिति पर फिर कभी, फिलहाल चवन्नी की मुलाकात पिछले दिनों प्रियंका चोपड़ा से हुई। चवन्नी के पाठकों के लिए विशेष रूप से इस मुलाकात का विवरण... प्रियंका चोपड़ा से अजय ब्रह्मात्मज मिलने गए थे। चूंकि चवन्नी हमेशा उनके साथ रहता है, इसलिए स्वाभाविक रूप से इस इंटरव्यू के लिए मौजूद था। चवन्नी ने अजय से कहा भी कि गाड़ी निकाल लो। बारिश का दिन है। अपनी गाड़ी रहेगी तो गीले नहीं होंगे और भीगी हुई बातों से आप भी बचे रहोगे, लेकिन अजय को प्रियंका चोपड़ा के इंटरव्यू के बाद स्वानंद किरकिरे से मिलने के लिए बांद्रा भी जाना था, इसलिए गाड़ी निकालना मुनासिब नहीं था। बारिश में अनजानी सड़कों के गड्ढों की जानकारी नहीं रहती और फिर मुंबई में पार्किंग इतनी बड़ी समस