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सिद्धांतों और सामाजिक जिम्मेदारी को न भुलाएं-महेश भट्ट

समारोह में चर्चा का विषय था-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक जिम्मेदारी। वक्ताओं ने परस्पर विरोधी विचार रखे। हम वाणिज्य एवं उद्योग संगठन फिक्की के वार्षिक समारोह फ्रेम्स में शामिल होने आए थे। इसमें हिस्सा लेने के लिए विश्व मनोरंजन उद्योग से जुडे लोग आते हैं, ताकि वैचारिक साझा कर सकें, एक-दूसरे को समझें और उन चुनौतियों का जवाब तलाशें, जिनका सामना मनोरंजन उद्योग से जुडे लोगों को करना पड रहा है। पत्रकार और मीडिया से जुडे प्रीतिश नंदी ने कहा-आजादी उस कुंवारेपन की तरह है जो या तो है या फिर नहीं है। सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टीफिकेशन की अध्यक्षा शर्मिला टैगोर ने कहा-बतौर एक अभिनेत्री मैं स्वतंत्रता की पक्षधर हूं, लेकिन यह भी मानती हूं कि सांस्कृतिक एवं भावनात्मक विविधता वाले देश भारत में अभिव्यक्ति की आजादी पर नजर रखना भी आवश्यक है। राज्यसभा के सदस्य, दादा साहब फालके पुरस्कार सहित कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाले श्याम बेनेगल ने कहा कि इस मुद्दे पर मेरे सामने कोई समस्या नहीं आई, लेकिन पिछले कुछ वर्षो में एक नई बात हुई है कि जब भी बडे सितारों को लेकर कोई फिल्म रिलीज हो

फ़िल्म समीक्षा:एक विवाह ऐसा भी

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परिवार और रिश्तों की कहानी -अजय ब्रह्मात्मज राजश्री प्रोडक्शन की एक विवाह ऐसा भी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का देसी सिनेमा है। पश्चिमी प्रभाव, तकनीकी विकास और आप्रवासी एवं विदेशी दर्शकों को लुभाने की कोशिश में अपने ही दर्शकों को नजरअंदाज करते हिंदी सिनेमा में ऐसे विषयों को इन दिनों पिछड़ा मान लिया गया है। महानगरों की गलाकाट प्रतियोगिता, होड़ और आपाधापी के बावजूद आप के दिल में संबंधों की गर्माहट बची है तो संभव है कि फिल्म को देखते हुए छिपी और दबी भावनाएं आपकी आंखे नम कर दें। कौशिक घटक और फिल्म के लेखक ने ऐसे कोमल और हृदयस्पर्शी दृश्यों को रचा है जो हमारी स्मृतियों में कहीं सोए पड़े हैं। वास्तव में एक विवाह ऐसा भी देशज सिनेमा है। यह परिवार और रिश्तों की कहानी है। यह त्याग और समर्पण की कहानी है। यह प्रेम के स्थायी राग की कहानी है। यह परस्पर विश्वास और संयम की कहानी है। मुमकिन है महानगरों और मल्टीप्लेक्स के दर्शक इस कहानी की विश्वसनीयता पर ही शक करें। सूरज बड़जात्या की देखरेख में कौशिक घटक ने किसी प्रादेशिक शहर का मोहल्ले के मध्यवर्गीय परिवार को चुना है। यहां भव्य सेट और आलीशान मकान नहीं है। प

दरअसल:आमिर खान की पहली ऐक्शन फिल्म गजनी

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-अजय ब्रह्मात्मज आमिर खान की इमेज ऐक्शन ऐक्टर की नहीं रही है। वैसे, एक सच यह भी है कि खान त्रयी में से कोई भी ऐक्शन स्टार की प्रचलित श्रेणी में नहीं आता। ऐक्शन के लिए सनी देओल, अक्षय कुमार और सुनील शेट्टी मशहूर रहे हैं। जख्म के बाद अजय देवगन ने ऐक्शन ऐक्टर की अपनी इमेज बदली। अब वे कॉमेडी फिल्मों में हंसाने के लिए ऐक्शन करते नजर आते हैं। बात शुरू हुई थी आमिर से। वे अपनी आने वाली नई फिल्म गजनी में भरपूर ऐक्शन करते नजर आएंगे। यह फिल्म तमिल में बनी गजनी की रिमेक है और इसे मूल फिल्म के निर्देशक ए.आर मुर्गदास ही निर्देशित कर रहे हैं। अपनी हर फिल्म की तरह आमिर इसे भी खास फिल्म मान रहे हैं। दरअसल, लगान के समय से वे अपनी फिल्मों पर पूरा ध्यान देने लगे हैं। कहानी सुनने से लेकर फिल्म की रिलीज और उसके प्रचार और पुरस्कार आदि के प्रति भी उनकी सक्रियता बनी रहती है। अपनी फिल्मों को लेकर स्टारों का यह समर्पण कम ही लोगों में देखने को मिलता है। हां, अपने होम प्रोडक्शन की फिल्म हो, तो अलग बात है। बाकी स्टारों और आमिर में एक फर्क साफ-साफ नजर आता है किवे पहले दिन से ही अपनी फिल्म के लिए उत्साहित रहते हैं।

सजग पत्रकार की चेतना के फिल्मकार बीआर चोपड़ा

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-अजय ब्रह्मात्मज पिछले कुछ सालों से वह स्वस्थ नहीं थे। ह्वील चेयर पर ही कार्यक्रमों में आते-जाते थे। लोगों से बात न कर पाने की बेबसी उनके चेहरे पर झलकती थी। लेकिन दूसरों की बातें सुन कर उनकी आंखों में चमक आ जाती थी। वे आंखें बहुत कुछ बयां कर देती थीं। बेटे रवि चोपड़ा उनकी भावनाओं को शब्द देते थे। मुझे याद है बीआर फिल्म्स के 50 साल पूरे होने पर उन्होंने अपनी फिल्मों की खास स्क्रीनिंग रखी थी। चार दिनों तक चली उस स्क्रीनिंग में दिलीप कुमार से लेकर उनके साथ जुड़े कई कलाकार आए थे। सभी ने उस दौर की फिल्म मेकिंग, डायरेक्टर के साथ रिश्तों और काम के माहौल पर अपने संस्मरण सुनाए। बीआर यानी बलदेव राज को करीब से समझने का वह पहला मौका था। 'सिने हेराल्ड जर्नल' के लिए फिल्म पत्रकार के तौर पर करियर शुरू करने वाले बलदेवराज चोपड़ा आजादी के पहले लाहौर की फिल्म सर्किल में काफी सक्रिय थे। उन्होंने गोवर्धन दास अग्रवाल की फिल्म 'डाक बंगला' की समीक्षा में फिल्म की धज्जियां उड़ा दी थीं। फिल्म फ्लाप हो गई तो अग्रवाल ने कहा कि बीआर ने बदले की भावना से समीक्षा लिखी थी। स्थितियां जो भी रही हों, आजादी क

अनुराग कश्‍यप से अंतरंग बातचीत

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'सत्या' मैंने रिलीज के चंद दिनों पहले देखी थी। मनोज बाजपेयी के सौजन्य से यह संभव हुआ था। फिल्म देखने के बाद 'संझा जनसता' में मैंने 'सत्या' पर एक लेख लिखा था। मुझे किसी ने बताया था कि फिल्म के लेखक अनुराग कश्यप ने वह लेख राम गोपाल वर्मा को पढ़ कर सुनाया था और फिर उन्होंने मुझे इंटरव्यू के लिए बुलाया था। अनुराग कश्यप से मेरी मुलाकात तब तक नहीं हुई थी। 'शूल' की रिलीज के समय मनोज बाजपेयी और अनीस रंजन के साथ मैं लखनऊ और कानपुर जा रहा था। हिंदी फिल्मों और मीडिया ग्रुप के साथ आज फैशन बन चुके मीडिया टाईअप की वह पहली घटना थी। हमलोग दिल्ली में रूके थे। वहां 'शूल' से संबंधित एक प्रेस क्रांफ्रेंस आयोजित किया गया था। वहीं अनुराग कश्यप से पहली मुलाकात हुई और उसके बाद मुलाकात का सिलसिला चलता रहा। परस्पर आदर और प्रेम का भाव हम दोनों के बीच रहा है। एक-दूसरे के काम में बगैर हस्तक्षेप किए हमलोग जरूरत के समय मिलते रहे हैं। धीरे-धीरे अनुराग कश्यप ने अपनी स्पष्टता, पारदर्शिता और कस्बाई होशियारी से फिल्म इंडस्ट्री में खास जगह बना ली है। वह प्रयोगशील युवा

हिन्दी टाकीज:फिल्म बनाई है तो कोई बात होगी-सचिन श्रीवास्तव

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हिन्दी टाकीज-१५ इस बार सचिन श्रीवास्तव.सचिन नई इबारतें नाम से एक ब्लॉग लिखते हैं.उनके लेखन में एक बांकपन है,जो इन दिनों दुर्लभ होता जा रहा है.आजकल सभी चालाक और सुरक्षित लिखते हैं.अगर सचिन की बात करें तो उनके ही शब्द हैं,'मैं अपने बारे में उतना ही जानता हूं जितना कोई अपने किसी पडोसी के बारे में जानता हो सकता है। गांव देहात में यह भी पता होता है कि पडोसी ने कल कितनी रोटियां खाई थीं और नगरीय सभ्यता ने सिखाया कि पडोसी के बेटी के ब्याह में भी पूछकर ही मदद की जाए... मैं खुद को इतना ही जानता हूं... बडी और दिलचस्प बात यह कि सारी दुनिया का कुछ न कुछ हिस्सा जानने का दम भरता हूं और कभी कभी आइने में अपनी ही शक्ल देखकर बाजू हट जाता हूं कि भाई सहाब को शायद यहां से कहीं जाना है... मैं सफर पर हूं कहां पहुंचना है यह नहीं जानता बस चल रहा हूं थके कदमों से अकेला...' हिन्दी टाकीज सीरिज़ के लिए बात हुई तो आरम्भिक आलस्य के बाद सचिन ने यह लेख भेजा,' पूरी ईमानदारी से बताया,'इसे लिखते हुए मेरे सामने कोई नहीं था बस मुंगावली, गुना, गंजबासौदा और ऐसे ही आसपास के कस्बों के टॉकीज थे। लिखते हुए उन या

प्रेम और विवाह दुर्लभ संबंध है: सोनू सूद -ईशा कोप्पिकर

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पंजाब के छोटे से शहर मोगा के सोनू सूद और एक विवाह ऐसा भी के भोपाल के प्रेम में समानताएं देखी जा सकती हैं। सोनू मोगा से एक्टर बनने निकले और प्रेम सिंगर बनने निकलता है। छोटे शहरों से आए युवकों को महानगरों में आने के बाद एहसास होता है कि अपने बड़े सपनों के लिए वे छोटे हैं। फिर भी छोटे शहरों में रिश्तों की जो अहमियत है, वह बड़े शहरों में नहीं है। ईशा कोप्पिकर मुंबई में पली-बढ़ी हैं। डाक्टर के परिवार से आई ईशा कोप्पिकर आज भी मध्यवर्गी मूल्यों में यकीन करती हैं। उनकी सोच और योजनाओं में उसकी झलक मिलती है। प्रेम, विवाह और समर्पण को वह बहुत जरूरी मानती हैं। उनके घर में हमेशा परस्पर प्रेम को तरजीह दी गयी है। ईशा एक विवाह ऐसा भी में चांदनी के रूप में प्रेम और वैवाहिक संबंधों को प्राथमिकता देती है। प्रेम के बारे में आपकी क्या धारणा है? सोनू सूद: प्रेम के बिना जिंदगी मुमकिन नहीं है। मां-बाप के प्रेम से हमारी जिंदगी जुड़ी होती है। आप को ऐसा लगता है कि अपने प्रियजनों के लिए कुछ करें। एक विवाह ऐसा भी में प्रेम को नए ढंग से चित्रित किया गया है। सुख में तो हम साथ रहते ही हैं। दुख में साथ रहें तो प्रेम का म

जन्मदिन विशेष:तब शाहरुख गार्जियन बन जाते हैं

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-अब्बास टायरवाला शाहरुख खान की जिन दो फिल्मों अशोका और मैं हूं ना का लेखन मैंने किया, उन दोनों के वे स्वयं निर्माता भी थे। निर्माता होने के साथ ही उन्होंने फिल्मों में लीड भूमिकाएं भी की थीं। गौर करने वाली बात यह है कि दोनों निर्देशकों को ही उन्होंने पहला अवसर दिया था। हालांकि संतोष शिवन पहले फिल्म बना चुके थे, लेकिन हिंदी में यह उनकी पहली फिल्म थी और यह अवसर उन्हें शाहरुख ने ही दिया। वैसे, संतोष हों या फराह खान, दोनों ही उनके पुराने परिचित और करीबी हैं। संतोष से उनकी मित्रता दिल से के समय हुई थी। इसी तरह फराह उनकी फिल्मों में नृत्य-निर्देशन करती रही हैं। फराह को वे छोटी बहन की तरह मानते हैं। शाहरुख के व्यक्तित्व की यही खास बात है कि वे अपने करीबी लोगों के गार्जियन बन जाते हैं या यूं कहें कि लोग उन्हें उसी रूप में देखने लगते हैं। सच तो यह है कि वे अपने मित्र और भरोसे के व्यक्तियों के साथ काम करना पसंद करते हैं। लोग उनके निर्देशक की सूची बनाकर देख सकते हैं। बतौर ऐक्टर वे अपने निर्देशक पर पूरी तरह से निर्भर करते हैं। शायद इसी वजह से भी वे मित्र निर्देशकों की फिल्में करते हैं। अशोका की

जन्मदिन विशेष:प्रियजनों को नाराज़ नहीं कर सकतीं ऐश्वर्या राय

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-अजय ब्रह्मात्मज जन्मदिन 1 नवंबर पर विशेष.. इंटरनेशनल पहचान वाली ऐश्वर्या राय हिंदी फिल्मों की पॉपुलर हीरोइन होने के साथ ही खूबसूरती की इंटरनेशनल आइकॉन भी हैं। माना जाता है कि नाम, इज्जत और धन पाने के बाद व्यक्ति डगमगा जाता है। उसका दिमाग सातवें आसमान पर पहुंच जाता है। ऐसे व्यक्तियों का जीवन दुख में बीतता है। ऐश्वर्या राय की खिलखिलाहट उनकी मौजूदगी की आहट देती है। करीब से देख रहे लोग मानेंगे कि जिंदगी और करियर के उतार-चढ़ाव के बावजूद उनके व्यक्तित्व में निरंतर निखार आया है। एक आशंका थी कि बच्चन परिवार में आने के बाद उनकी खिलखिलाहट की खनक खो सकती है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। आज भी वे भोर की उजास की तरह मुग्ध करती हैं। अपनी हंसी से लोगों का मन शीतल करती हैं। कह सकते हैं कि उनकी खिलखिलाहट की खनक बढ़ी है। वृंदा राय और कृष्णराज राय की बेटी हैं ऐश्वर्या राय। मध्यवर्गीय परिवार की परवरिश और आरंभिक हिंदी मीडियम की पढ़ाई ने उनके व्यक्तित्व को गढ़ा है। हाल ही में सभी ने देखा कि वे अपने पिता की सेवा के लिए हिंदुजा अस्पताल में नजर आई, तो श्वसुर के लिए मायके से सूप बनाकर ले गई। उन्होंने बेटी और बहू क