हिंदी फिल्मों से गायब होते संवाद
- अजय ब्रह्मात्मज हिंदी फिल्म में संवादों की बड़ी भूमिका होती है। इसमें संवादों के जरिये ही चरित्र और दृश्यों का प्रभाव बढ़ाया जाता है। चरित्र के बोले संवादों के माध्यम से हम उनके मनोभाव को समझ पाते हैं। विदेशी फिल्मों से अलग भारतीय फिल्मों, खास कर हिंदी फिल्मों में संवाद लेखक होते हैं। फिल्म देखते समय आप ने गौर किया होगा कि संवाद का क्रेडिट भी आता है। हिंदी फिल्मों की तमाम विचित्रताओं में से एक संवाद भी है। हिंदी फिल्मों की शुरुआत से ही कथा-पटकथा के बाद संवाद लेखकों की जरूरत महसूस हुई। शब्दों का धनी ऐसा लेखक, जो सामान्य बातों को भी नाटकीय अंदाज में पेश कर सके। कहते हैं कि सामान्य तरीके से कही बातों का दर्शकों पर असर नहीं होता। इधर की फिल्मों पर गौर करें तो युवा निर्देशक फिल्मों को नेचुरल रंग देने और उसे जिंदगी के करीब लाने की नई जिद में हिंदी फिल्मों की इस विशेषता से मुंह मोड़ रहे हैं। फिल्मों में आमफहम भाषा का चलन बढ़ा है। इस भाषा में अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल बढ़ा है। पहले संवादों में शब्दों से रूपक गढ़े जाते थे। बिंब तैयार किए जाते थे। लेखकों की कल्पनाशीलता इन संवादों में अर्थ