Posts

खोया खोया चांद मार्फत काला बाजार-पवन झा

अभी शैतान रिलीज हुई है। इसमें 'खोया खोया चांद' ट्रैक काफी पसंद किया जा रहा है। इसके पहले सुधीर मिश्र ने 'खोया खोया चांद' शीर्षक से फिल्‍म निर्देशित की थी। जयपुर के फिल्‍म पंडित पवन झा ने कल ट्विटर पर इस गाने और काला बाजार के बारे में रोचक जानकारियां दीं। उन जानकारियों को चवन्‍नी ज्‍यों के त्‍यो शेयर कर रहा है। p1j Pavan Jha People going ga-ga over Khoya Khoya Chand in # shaitan . The original song penned by Shailendra has a very interesting story of its origin 7 hours ago Favorite Retweet Reply p1j Pavan Jha Shailendra penned Khoya Khoya Chand on a matchbox in a couple of minutes at late midnight walking on Juhu Beach impromptu # Shaitan 7 hours ago Favorite Retweet Reply p1j Pavan Jha Shailendra was not meeting SDB as was heavily occupied 4 the recording, SDB sent Pancham 2 get song frm Shailendra who was wrkng 4 Jaikishan 7 hours ago Favorite Retweet Reply p1j Pavan Jha When Pancham met Shailendra he said the song is not ready. Pancham told its urgent

फिल्म के प्रिव्यू और रिव्यू

-अजय ब्रह्मात्‍मज हिंदी सिनेमा का संकट कई रूपों में सामने आता है। इन दिनों प्रिव्यू और रिव्यू पर बहस चल रही है। फिल्मकारों और फिल्म समीक्षक के बीच कभी प्रेम तो कभी तनातनी की खबरें आती रहती हैं। इन दिनों दिल्ली और मुंबई दो प्रमुख सेंटर हैं फिल्मों के प्रिव्यू और रिव्यू के। दोनों सेंटर के रिव्यूअर को उनके अखबार के हिसाब से अघोषित दर्जा दे दिया गया है। उसे लेकर भी आरोप और शिकायतें रहती हैं। पहले एक सामान्य तरीका था कि निर्माता फिल्म समीक्षकों को रिलीज के दो-तीन दिन पहले या कम से कम गुरुवार को फिल्म दिखा देते थे। फिल्म समीक्षक अपनी समीक्षाएं रविवार को प्रकाशित करते थे। बाद में समीक्षाओं का प्रकाशन रविवार से शनिवार और फिर शनिवार से शुक्रवार को खिसक कर आ गया। कुछ फिल्म समीक्षक तो पहले देखी हुई फिल्मों की समीक्षा बुधवार और कभी-कभी सोमवार को भी ऑन लाइन करने लगे हैं। ऐसी समीक्षाओं में आम तौर पर समीक्षक फिल्मों की प्रशंसा करते हैं और उन्हें अमूमन चार स्टार देते हैं। निर्माता या फिल्मकार की यही मंशा रहती है कि ऐसे रिव्यू से फिल्म के प्रति आम दर्शकों की सराहना बढ़े और वे एक बेहतर फिल्म की उम्मीद प

'लगान' से बढ़ी प्रयोग की हिम्‍मत-आमिर खान

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज बतौर एक्टर मैं अपनी हर फिल्म को सौ फीसदी अहमियत देता हूं। इसके बावजूद लगान मेरे लिए खास और अहम फिल्म है। यह मेरे होम प्रोडक्शन की पहली फिल्म है। मैंने पिता और चाचा को करीब से देखा था। फिल्म निर्माण के नुकसान से परिवार की मुश्किलों को मैं समझता था। मैंने तय कर रखा था कि मुझे कभी निर्माता नहीं बनना है। अपने पुराने इंटरव्यू में मैंने साफ कहा था कि मैं कभी निर्माता नहीं बनूंगा, लेकिन लगान की स्क्रिप्ट ने मुझे निर्माता बनने पर विवश कर दिया। आशुतोष गोवारीकर ने मुझे एक्टर के तौर पर यह कहानी सुनाई थी। मुझे स्क्रिप्ट बहुत पसंद आई। मैंने आशु को सलाह दी कि तू मेरा नाम लिए बगैर निर्माताओं को स्क्रिप्ट सुना। अगर किसी को स्क्रिप्ट पसंद आए तो ही बताना कि इसमें आमिर है। फिल्म इंडस्ट्री के माइंडसेट को मैं अच्छी तरह समझता था। आशुतोष का कॅरियर दो फ्लाप फिल्मों का था। मुझे भी डर था कि निर्माता उस पर बेवजह दबाव डाल सकते हैं। मुझे स्क्रिप्ट इतनी पसंद थी कि मैं उसमें किसी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं चाहता था। प्रोड्यूसर न मिलने पर मैंने उसकी भूमिका निभा ली। लगान के लिए हां कहने में पुरानी पीढ़ी

कोशिश करूंगा दोबारा-रितिक रोशन

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज अपनी ईमानदारी से वह सबको कर देते हैं कायल और जिंदगी के अनुभवों से फूंकते हैं अभिनय में प्राण। रितिक रोशन से मुलाकात के अंश.. असफलताएं आत्मविश्लेषण का मौका देती हैं। रितिक रोशन के संदर्भ में बात करें तो काइट्स और गुजारिश की असफलताओं ने उन्हें अधिक मैच्योर और दार्शनिक बना दिया है। उनकी बातों में पहले भी आध्यात्मिकता और दर्शन का पुट रहता था, लेकिन बढ़ती उम्र और अनुभव ने उन्हें अधिक सजग कर दिया है। पापा ने तो रोका था रितिक ने कभी दूसरों के माथे पर ठीकरा नहीं फोड़ा। काइट्स की असफलता के लिए वे सिर्फ खुद को जिम्मेदार मानते हैं। वे कहते हैं, ''पापा ने समझाया था कि तुम लोग गलत कर रहे हो। हिंदी फिल्मों का दर्शक केवल हिंदी समझता है, लेकिन मुझे तब लग रहा था कि अगर मेरा किरदार अंग्रेजी में बात करे तो वह ईमानदार होगा।'' वह विस्तार से समझाते हैं, ''अपने किरदार को ईमानदारी से जीने के चक्कर में मैं यह गलती कर बैठा। अनुराग और पापा ने पूरी फिल्म हिंदी में सोची थी। पहले ही दिन शूट करते समय मुझे लगा कि मैं लास वेगास में रहता हूं और एक स्पैनिश लड़की के संपर्क में आय

फिल्‍म समीक्षा : शैतान

Image
कगार की शहरी युवा जिंदगी -अजय ब्रह्मात्‍मज शहरी युवकों में से कुछ हमेशा कगार की जिंदगी जीते हैं। उनकी जिंदगी रोमांचक घटनाओं से भरी होती है। वे अपने जोखिम से दूसरों को आकर्षित करते हैं। ऐसे ही युवक दुनिया को नए रूपों में संवारते हैं। सामान्य और रुटीन जिंदगी जी रहे युवकों को उनसे ईष्र्या होती है, क्योंकि वे अपने संस्कारों की वजह से किसी प्रकार का जोखिम लेने से डरते हैं। उनकी बेचैनी और उत्तेजना से ही दुनिया खूबसूरत होती है। कगार की जिंदगी में यह खतरा भी रहता है कि कभी फिसले तो पूरी तबाही ... विजय नांबियार की फिल्म शैतान ऐसे ही पांच युवकों की कहानी है। उनमें कुछ अमीर हैं तो कुछ मिडिल क्लास के हैं। सभी के जीवन में किसी न किसी किस्म की रिक्तता है, जिसे भरने के लिए वे ड्रग, दारू, सेक्स और पार्टी में लीन रहते हैं। विजय नांबियार की शैतान और अनुराग कश्यप की पहली फिल्म पांच में हालांकि सालों का अंतर है, फिर भी कुछ समानताएं हैं। इन समानताओं ने ही दोनों को जोड़ा होगा। फिल्म बिरादरी के अस्वीकार ने दोनों को निर्माता और निर्देशक के तौर पर नजदीक किया है। अनुराग कश्यप कगार पर जी रहे लोगों की घुप्प अंधे

होश उड़ा देगी शैतान-अनुराग कश्‍यप

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज अनुराग कश्यप की 'उड़ान' कांस तक पहुंची थी। उनकी दूसरी फिल्म 'दैट गर्ल इन येलो बूट्स' विभिन्न फिल्म फेस्टिवल्स में दिखाई जा चुकी है। भारत में उसकी रिलीज के पहले ही शैतान आ रही है।श्‍ैतान आज के शहरी युवकों पर केंद्रित थ्रिलर फिल्‍म है।अनुराग से बातें करना हमेशा रोचक रहता है। उनके जवाबों में हिंदी सिनेमा के भविष्‍य की झलकियां मिलती हैं।:- 'शैतान' बनाने का विचार कहां से आया? 'शैतान' के निर्देशक विजय कल्कि से मिलने मेरे घर आया करते थे। कल्कि ने मुझे इस फिल्म के बारे में बताया था।मैं भी इंटरेस्‍टेड था कि ऐसी फिल्‍म बननी चाहिए। फिर एक दिन पता चला कि निर्देशक विजय नांबियार के प्रोड्यूसर ने हाथ खड़े कर दिए। मुझे फिल्म की स्क्रिप्ट बहुत अच्छी लगी थी, इसलिए मैं पैसे लगाने को तैयार हो गया। मैंने विजय को पहले ही बता दिया था कि मेरी फिल्म बड़े पैमाने की नहीं होगी। मैं बिग बजट फिल्म बनाने की स्थिति में नहीं हूं। आपके इर्द-गिर्द ढेर सारे युवा फिल्मकार दिखाई पड़ते हैं। क्या सभी को ऐसे ही मौके देंगे? उनसे मुझे एनर्जी मिलती है। उनकी फिल्में देख कर और उनक

ऑन स्‍क्रीन ऑफ स्‍क्रीन : कामयाबी के साथ अभिषेक बच्चन की कदमताल नहीं बैठ पाई है

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज रोहन सिप्पी की फिल्म दम मारो दम की सीमित कामयाबी ने अभिषेक बच्चन की लोकप्रियता का दम उखडने से बचा लिया। फिल्म ट्रेड में कहा जा रहा था कि यदि फिल्म न चली तो अभिषेक का करियर ग्राफ गिरेगा। हर शुक्रवार को फिल्म रिलीज होने के साथ ही सितारों के लिए जरूरी होता है कि वे लगातार या थोडे-थोडे अंतराल पर अपनी सफलता से साबित करते रहें कि वे दर्शकों की पसंद पर अभी बने हुए हैं। दर्शकों की पसंद मापने का कोई अचूक पैमाना नहीं है। लेकिन माना जाता है कि जब किसी सितारे की मांग घटती है तो उसकी फिल्मों व विज्ञापनों की संख्या भी कम होने लगती है। इस लिहाज से अभिषेक अभी बाजार के पॉपुलर उत्पाद हैं। आए दिन उनके विज्ञापनों के नए संस्करण टीवी पर नजर आते हैं। पत्र-पत्रिकाओं के कवर पर उनकी तस्वीरें छपती हैं। अभी वे प्लेयर्स की शूटिंग के लिए रूस गए हैं। वहां से लौटने के बाद रोहित शेट्टी के निर्देशन में बन रही फिल्म बोल बचन शुरू होगी। इसमें उनके साथ अजय देवगन होंगे। फिर धूम-3 की अभी से चर्चा है, क्योंकि एसीपी जय दीक्षित को इस बार धूम-3 में आमिर खान को पकडना है। मुमकिन है कि अभिषेक के करियर की श्रद्धांज

आरक्षण ने बदल दिया है ताना-बाना-प्रकाश झा

Image
सामाजिक मुद्दों पर राजनीतिक फिल्म बनाने के लिए विख्यात प्रकाश झा की नई फिल्म 'आरक्षण' 12 अगस्त को रिलीज होगी। उनसे बातचीत के अंश.. आरक्षण के बारे में क्या कहेंगे, खासकर फिल्म के संदर्भ में.. देश में इस मुद्दे पर बहस चलती रही है और पक्ष-विपक्ष में तर्क दिए जाते रहे हैं? यह एक सत्य है, जिसे समाज को पूरी संवेदना के साथ अंगीकार करना होगा। 20वीं सदी के आखिरी दो दशकों में आरक्षित समाज के प्रभाव से देश के सामाजिक समीकरण और राजनीति में बदलाव आया है। इस दौर में एक तरफ देश विकसित हो रहा था और दूसरी तरफ शिक्षा का व्यवसायीकरण आरंभ हो चुका था। शिक्षा के व्यवसायीकरण को आरक्षण से जोड़ना क्या उचित है? नौकरी से पहले शिक्षण संस्थानों में ही आरक्षण का असर हुआ है। अब लोग वैकल्पिक शिक्षा पर इसलिए ध्यान दे रहे हैं कि उन्हें ऐसी नौकरियों के लिए कोशिश ही न करनी पड़े, जिसमें आरक्षण की मुश्किल आए। पूरे देश में मैनेजमेंट स्कूल खुल रहे हैं। आईआईएम से लेकर छोटे शहरों तक में मैनेजमेंट स्कूल चल रहे है। शिक्षा जगत से गुरु-शिष्य की परंपरा खत्म हो चुकी है। अब शिष्य क्लाइंट है और गुरु सर्विस प्रोवाइडर। आरक्षण के