Posts

पेद्रो अलमोदोवार

Image
द टेलीग्राफ में पेद्रो अलमोदोवार की नई फिल्‍म 'द स्किन आई लिव इन' के सिलसिले में डेविड ग्रिटेन ने यह प्रोफाइल और बातचीत लिखी है। पेद्रो अलमोदोवार के प्रशंसकों और उनके बारे में कम या नहीं जानने वालों के लिए मैं इसे वहां से कट-पेस्‍ट कर रहा हूं। Pedro Almodóvar interview for The Skin I Live In Over three decades, Pedro Almodóvar has almost single-handedly brought Spain’s film industry to world attention. He talks about his latest release. By David Gritten My visit to the filmmaker Pedro Almodóvar in Madrid e

फिल्म समीक्षा : आरक्षण

Image
प्रभाकर आनंद का गांधीवादी संघ र्ष -अजय ब्रह्मात्‍मज प्रकाश झा की आरक्षण कई कारणों से उल्लेखनीय फिल्म है। हिप हिप हुर्रे से लेकर राजनीति तक की यात्रा में प्रकाश झा की सोच और शैली में आए विक्षेप के अध्ययन में आरक्षण का महत्वपूर्ण पड़ाव होगा। यहां से प्रकाश झा का एक नई दिशा की ओर मुड़ेंगे। आरक्षण भारतीय समाज केएक ज्वलंत मुद्दे पर बनी मुख्यधारा की फिल्म है। इसने सामाजिक मुद्दों से उदासीन समाज और दर्शकों को झकझोर दिया। वे आरक्षण शब्द और उसके निहितार्थ से परिचित हुए हैं। अगर मीडिया में आरक्षण फिल्म के बहाने ठोस बहस आरंभ होती तो सोच-विचार को नए आयाम मिलते, लेकिन हम फिजूल विवादों में उलझ कर रह गए। बहरहाल, आरक्षण प्रकाश झा की पहली अहिंसात्मक फिल्म है। प्रभाकर आनंद का व्यक्तित्व गांधी से प्रभावित है। हालांकि फिल्म में कहीं भी गांधी का संदर्भ नहीं आया है और न उनकी तस्वीर दिखाई गई है, लेकिन प्रभाकर आनंद का संघर्ष गांधीवाद के करीब है। अपने सिद्धांतों पर अटल प्रभाकर आनंद स्वावलंबी योद्धा के रूप में उभरते हैं। क्या इसी वजह से हमें वैष्णव जन की हल्की धुन भी सुनाई पड़ती है? यह अतिरेक न लगे तो उनकी प

बांग्लादेश में हिंदी फिल्में

-अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले दिनों आई एक खबर को भारतीय मीडिया ने अधिक तूल नहीं दिया। चूंकि खबर बांग्लादेश से आई थी और बांग्लादेश भारतीय मीडिया के लिए बिकाऊ नहीं है, इसलिए इस खबर पर गौर नहीं किया गया। खबर भारतीय फिल्मों से संबंधित थी। 45 सालों के बाद बांग्लादेश में भारतीय फिल्मों पर लगी पाबंदी हटी है। वहां की एक संस्था ने 12 भारतीय फिल्में इंपोर्ट की है, जिनमें से 3 बांग्ला और 9 हिंदी फिल्में हैं। भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के लिए भी यह बड़ी खबर नहीं बन सकती थी, क्योंकि पश्चिमी देशों से हो रहे करोड़ों डॉलर के व्यापार के सामने बांग्लादेश में 12 फिल्मों के व्यवसाय का आंकड़ा कहां टिकता है। चलिए थोड़ा पीछे लौटते हैं। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) और पश्चिमी पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों पर पाबंदी लगा दी गई थी। आक्रोश और विद्वेष में लिए गए इस फैसले की वास्तविकता हम समझ सकते हैं। दो साल पहले की पाकिस्तान यात्रा में वहां की फिल्म इंडस्ट्री के नुमाइंदों और फिल्म पत्रकारों से हुई बातचीत से मुझे यह स्पष्ट संकेत मिला था कि भारतीय फिल्मों खासकर हिंदी फिल्मों पर

ऑन स्‍क्रीन ऑफ स्‍क्रीन : बहुरुपिया का माडर्न अवतार आमिर खान

Image
चाचा नासिर खान ने पूत के पांव पालने में ही देख लिए होंगे, तभी तो यादों की बारात में उन्होंने अपने बेटे मंसूर खान के बजाय आमिर खान को पर्दे पर पेश किया। बाद में उसी आमिर को उन्होंने कयामत से कयामत तक में बतौर हीरो हिंदी दर्शकों को भेंट किया। इस फिल्म के डायरेक्टर मंसूर खान थे। पहली फिल्म के लिए चुने जाने का भी एक किस्सा है। आमिर कॉलेज में थे। शौक था कि नाटकों में काम करें, लेकिन किसी भी डायरेक्टर को वे इस योग्य नहीं लगते थे। विफलता की कसक आखिरकार महेन्द्र जोशी ने उन्हें मराठी नाटक के एक समूह दृश्य के लिए चुना और मिन्नत करने पर एक पंक्ति का संवाद भी दे दिया। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। मैं दोस्तों के साथ सबसे पहले रिहर्सल पर पहुंचता था और सबके जाने के बाद निकलता था। हम रोज रिहर्सल करते थे। इसी बीच शिव सेना ने एक दिन मुंबई बंद का आह्वान किया। अम्मी ने उस दिन घर से निकलने नहीं दिया। अगले दिन रिहर्सल पर जवाबतलब हुआ। मेरे जवाब से असंतुष्ट होकर महेन्द्र जोशी ने मुझे नाटक से निकाल दिया। मैं रोनी सूरत लिए बाहर आ गया। बाहर बैठा बिसूर रहा था कि मेरा दोस्त निरंजन थाडे आया। उसने पूछा, क्या कर रहे

आई एम कलाम-शिवम नारायण

कलाम एक ऐसे बच्‍चे की कहानी है। जो पढ़ नहीं सकता। उसकी मां उसे एक ढ़ाबे पे छोड़ के चली जातीहै। वहां भी कलाम बहुत अच्‍छे काम करता है और कलाम जो चीज को देखता है उसे कभी भूलता नहीं चाहे वह जड़ीबुटियां हो या चाय बनाना। एक दिन कलाम एक राजा के बेटे से दोस्‍ती करता है। कलाम उसे हिन्‍दी सिखाता है और हुकुम का बेटा उसे इंगलिश। इससे ये पता चलता है कि कमाल में कितनी इच्‍छा है पढ़ने की। एक दिन कलाम राष्‍ट्रपति जी अब्‍दुल कलाम जी को टीवी पर देखता है और उसे लगता है कि पढ़ने की कोई उमर नहीं होती और कलाम उनके जैसे बनना चाहता है। पर मुझे पूरी फिल्‍म में कलाम के बोलने का तरीका सबसे अच्‍छा लगा। शिवम नारायण की उम्र 9 साल है। उनसे shivam.narayan14@gmail.com पर बात कर सकते हैं।

फिल्‍म समीक्षा : आई एम कलाम

Image
अच्छी फिल्मों का कोई फार्मूला नहीं होता, फिर भी एक उनमें एक तथ्य सामान्य होता है। वह है विषय और परिवेश की नवीनता। निर्देशक नीला माधव पांडा और लेखक संजय चौहान ने एक निश्चित उद्देश्य से आई एम कलाम के बारे में सोचा, लिखा और बनाया, लेकिन उसे किसी भी प्रकार से शुष्क, दस्तावेजी और नीरस नहीं होने दिया। छोटू की यह कहानी वंचित परिवेश के एक बालक के जोश और लगन को अच्छी तरह रेखांकित करती है। मां जानती है कि उसका बेटा छोटू तेज और चालाक है। कुछ भी देख-पढ़ कर सीख जाता है, लेकिन दो पैसे कमाने की मजबूरी में वह उसे भाटी के ढाबे पर छोड़ जाती है। छोटू तेज होने केसाथ ही बचपन की निर्भीकता का भी धनी है। उसकी एक ही इच्छा है कि किसी दिन वह भी यूनिफार्म पहनकर अपनी उम्र के बच्चों की तरह स्कूल जाए। उसकी इस इच्छा को राष्ट्रपति अबदुल कलाम आजाद के एक भाषण से बल मिलता है। राष्ट्रपति कलाम अपने जीवन के उदाहरण से बताते हैं कि लक्ष्य, शिक्षा, मेहनत और धैर्य से कुछ भी हासिल किया जा सकता है। कर्म ही सब कुछ है। उस दिन से छोटू खुद को कलाम कहने लगता है। उसकी दोस्ती रजवाड़े केबालक रणविजय सिंह से होती है। दोनों एक-दूसर

फिल्‍म समीक्षा : चला मुसद्दी आफिस आफिस

Image
पापुलर सीरियल ऑफिस ऑफिस को फिल्म बनाने की कोशिश में राजीव मेहरा सिरे से नाकाम रहे हैं। सक्षम अभिनेताओं और पापुलर सीरियल के इस बुरे हश्र पर ऑफिस ऑफिस सीरियल केदर्शकों को गलानि हो सकती है। लगता है कि सीरियल को फिल्म में रूपांतरित करने पर अधिक विचार नहीं किया गया। ऑफिस ऑफिस मुसद्दी लाल नामक कॉमन मैन की कहानी है, जो अपनी जिंदगी में नित नई मुश्किलों का सामना करता है। भ्रष्ट समाज और तंत्र में लगातार सताए जाने के बाद भी वह थका और हारा नजर नहीं आता। एक बात समझ में नहीं आती कि ऐसे समझदार और व्यावहारिक मुसद्दी लाल का बेटा इतना नालायक कैसे हो गया है? फिल्म में मुसद्दी लाल की समस्याएं कचोटती नहीं हैं। हां, हंसने के दो-चार प्रसंग हैं और उन प्रसंगों में हंसी भी आती हैं। पर उनसे फिल्म का आनंद पूरा नहीं होता। हेमंत पांडे, मनोज पाहवा, देवेन भोजानी, संजय मिश्रा और आसावरी जोशी को अलग-अलग किरदारों में दिखाने का प्रयोग सीरियल के मिजाज में है, लेकिन फिल्म में तब्दील करते समय उन किरदारों पर अधिक मेहनत नहीं की गई है। रेटिंग- * एक स्टार

आरक्षण की दुधारी तलवार-प्रकाश झा

Image
यह लेख आज दैनिक जागरण के संपादकीय पृष्‍ठ पर प्रकाशित हुआ है।आप इस पर प्रतिक्रया करें और अपनी राय दें।फिल्‍म देखने के पहले या बाद में...जैसी आप की मर्जी.... एक अरब से अधिक आबादी वाले देश भारत में विश्व के किसी भी देश से अधिक नौजवान हैं। लगता तो ऐसा है जैसे हम देश के भविष्य के बारे में नहीं सोच रहे हैं। युवा ही देश का भविष्य हैं। अगर हम युवाओं को शिक्षित नहीं करेंगे तो हम देश का भविष्य बर्बाद कर देंगे। इसके अलावा, नौकरियों को लेकर अंधी दौड़ जारी है। उत्साहवर्धक बात यह है कि अब रोजगार पाने के लिए प्रोफेशनल कोर्सो पर ध्यान दिया जा रहा है, किंतु इसके बावजूद स्याह पक्ष यह भी है कि हम बड़े इतिहासकार और वैज्ञानिक नहीं पैदा कर पा रहे हैं। अकादमिक शोध और वैज्ञानिक उन्नयन धीमे-धीमे पिछड़ रहा है। ऑक्सफोर्ड में किसी शोधार्थी से पूछें कि क्या वह भारत में वैसी जिंदगी जी सकता है जैसी ऑक्सफोर्ड में जी रहा है, तो उसका उत्तर होगा-नहीं। सीधी सी बात यह है कि हमारे देश में शोध और शिक्षण के लिए उचित स्थान ही नहीं है। आरक्षण के माध्यम से समाज के पिछड़े और वंचित वर्गो

सैटेलाइट राइट से मिल रहे हैं पैसे

-अजय ब्रह्मात्मज कुछ साल पहले तक फिल्मों के संगीत का बाजार चढ़ा हुआ था। म्यूजिक कंपनियां फिल्मों के म्यूजिक राइट के लिए अधिकाधिक रकम दे रही थीं। याद होगा कि सिर्फ म्यूजिक के आधार पर ही आशिकी जैसी फिल्म बनी थी और टी सीरीज फिल्म निर्माण में उतर आया था। बाद में तो सभी म्यूजिक कंपनियों ने फिल्म निर्माण में कदम रखा। उन्हें लगता था कि म्यूजिक राइट के लिए मोटी रकम दे ही रहे हैं तो कुछ और रुपए लगा कर निर्माता ही बन जाएं। धीरे-धीरे फिल्मों में म्यूजिक का असर कम हुआ। दरअसल, फिल्मों का बाजार हमेशा बदलता रहता है। उसी के आधार पर उसका निवेश और व्यापार भी बदलता है। पिछले कुछ सालों में फिल्मों के सैटेलाइट राइट से निर्माताओं को मोटी रकम मिलने लगी है। इसकी शुरुआत जब वी मेट और गजनी जैसी फिल्मों से हुई। कलर्स चैनल नया-नया आया था। उसने जब वी मेट के सैटेलाइट राइट लेने के बाद उसका लगातार प्रसारण किया। पॉपुलर फिल्म को घरों में देखने के लिए दर्शक लौटे और फिल्म ट्रेड का एक नया ट्रेंड विकसित हुआ। गजनी के सैटेलाइट राइट की ऊंची कीमत ने सभी को चौंका दिया था। पिछले साल प्रकाश झा की राजनीति का सैटेलाइट राइट 25 करोड़

क्विंटिन टरनटिनो से बातचीत

बाफ्ता के एक सेशन में टरनटिनो से हुई बातचीत...इस बातचीत में आप संक्षेप में टरनटिनो के जीवन,उनकी फिल्‍मों और उनके निर्देशन की शैली के बारे में उनसे जान सकेंगे....टरनटिनो खुद को आर्केस्‍ट्रा कंडक्‍टर मानते हैं और दर्शकों की प्रतिक्रिया को आर्केस्‍ट्रा कहते हैं....वे दर्शकों की प्रतिक्रिया को कंडक्‍ट करते हैं। उन्‍हें हंसने और डरने के लिए कहते हैं...वे इस माध्‍यम के उस्‍ताद हैं....रिजर्वायर डॉग्‍स से लेकर किल बिल और इनग्‍लोयिस बास्‍टर्ड तक हम ने उनकी प्रतिभा देखी है...हिंदी के अनेक युवा फिल्‍मकार उनसे प्रभावित हैं...खास कर विशाल भारद्वाज....यहां देखें उनसे बातचीत...नीचे की लिंक पर क्लिक करें.... http://youtu.be/P9wKVjWKHdo