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औन स्‍क्रीन ऑफ स्‍क्रीन : पुरजोर वाहवाही नहीं मिली रानी मुखर्जी को

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बॉर्डर पर तैनात सैनिकों से मिलकर लौट रही मीरा हवाई जहाज से अपनी सीट पर खुद को व्यवस्थित कर रही है, तभी एक प्रशंसक ऊल-जलूल सवाल करता है। मीरा उसे आडे हाथों लेती है और जवाब में जो बोलती है, उससे न केवल वह व्यक्ति, बल्कि सिनेमा घर में बैठे दर्शक भी अवाक रह जाते हैं। एक बहस चलती है कि क्या ऐसे संवाद की जरूरत थी? रानी मुखर्जी ने तब कहा था कि उस किरदार के लिए ऐसा करना जरूरी था। मुझे लगता है कि यह संवाद स्क्रिप्ट का हिस्सा नहीं रहा होगा। शूटिंग के दौरान राजकुमार गुप्ता ने रानी मुखर्जी के व्यवहार और अंदाज को नोटिस किया होगा। उन्होंने यह संवाद तत्काल जोडा होगा और रानी ने इसे बोलने में कोई आनाकानी नहीं की होगी। रानी मुखर्जी किसी सोते या फव्वारे की तरह अचानक फूटती हैं। उनके चेहरे पर आ रहे भावों में व्यतिक्रम होना एक विशेषता है। अनौपचारिक बातचीत में भी वह विराम लेकर एकदम से नई बात कह देती हैं और फिर वहीं टिकी नहीं रहतीं। संभव है आप भौंचक रह जाएं। छोटी सी बात का फसाना बन जाता है आप कभी मिले हैं रानी मुखर्जी से? गांव-घर में ऐसी लडकियों को मुंहफट कहते हैं। उम्र के साथ वह अब थोडी शालीन और औपचारिक हो ग

दिल से करती हूं अपना काम: जिजेली मोंटेरो

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-अजय ब्रह्मात्‍मज दो फिल्मों के बाद जिजेली मोंटेरो हिंदी फिल्मों केदर्शकों के लिए अपरिचित नहीं रहीं। लव आज कल और आलवेज कभी-कभी में दिखीं जिजेली मूलत: ब्राजील की हैं। उनका ज्यादातर समय अभी भारत में गुजरता है। मॉडलिंग और ऐक्िटग दोनों में एक साथ सक्रिय जिजेली के लिए िफलहाल सबसे बडी चुनौती हिंदी है। वह स्पष्ट कहती हैं कि अगर हिंदी फिल्मों में काम करना है तो हिंदी सीखनी ही होगी। हिंदी में कुछ बोलने का आग्रह करने पर विदेशी लहजे में हिंदी शब्दों का उच्चारण करती हुई वह पूछती हैं, क्या बोलूं? बताएं कि मुंबई कैसी लगती है और अभी कैसा मौसम है? इस सवाल पर वह खामोश हो जाती हैं और फिर एकबारगी किसी सोते की तरह आवाज फूटती है, बहुत अच्छी लागती है बांबे। मौसम में बारिस है। थोडा प्रॉब्लम होता है, बट नो प्रॉब्लम शब्दों और अभिव्यक्ति की इस वर्जिश पर हम दोनों हंसने लगते हैं। मासूम खूबसूरती जिजेली की सौम्यता ने सभी को प्रभावित किया। फिल्म लव आज कल देखकर निकले सभी दर्शकों के मन में एक ही सवाल था कि हरलीन कौर कौन है? पंजाबी कुडी हरलीन कौर की कमसिन और मासूम खूबसूरती से सभी दंग थे। तब किसी को एहसास नहीं था कि इस

दिख रहा है ‘बोल’ का असर - हुमैमा मलिक

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-अजय ब्रह्मात्‍मज शोएब मंसूर की पाकिस्तानी फिल्म ‘ बोल ’ में हुमैमा मलिक ने जैनब की भूमिका निभायी है। जैनब अपने पिता से बगावत करती है। वह परिवार और परिवेश की परंपरा पर कुछ सवाल उठाती है। शोएब मंसूर की ‘ बोल ’ भारत में 31 अगस्त को रिलीज हो रही है। सप्तरंग ने इस पाकिस्तानी अदाकारा से खास बातचीत की। - शोएब मंसूर की फिल्म ‘ बोल ’ का पाकिस्तान में क्या रेस्पांस रहा है। यह फिल्म अब भारत में रिलीज हो रही है। 0 मुझे बहुत खुशी है कि हमारी फिल्म भारत में रिलीज हो रही है। शोएब मंसूर ने बेहद उम्दा फिल्म बनायी है। इस फिल्म ने पहले हफ्ते में ही ‘ माई नेम इज खान ’ और ‘ दबंग ’ के रिकार्ड तोड़े। पाकिस्तान फिल्म इंडस्ट्री के हालात बहुत अच्छी नहीं है। फिर भी अच्छा लगता है कि एक फिल्म आती है और आप को उसमें लीड एक्टर का काम मिलता है। इस फिल्म को आडिएंस का जबरदस्त रेस्पांस मिला है। प्रीमियर के बाद मैं निकली तो वहां मौजूद लोग मुझे नहीं , पर्दे पर दिखी जैनब को छूना चाहते थे। अपनी सिंपैथी दिखा रहे थे। - जैनब बहुत ही रैडिकल और बोल्ड किरदार है। वह अपने अब्बा के खिलाफ जाती है और फैमिली के हक में बड़े फैसल

फिल्‍म समीक्षा : दैट गर्ल इन येलो बूट्स

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साहसी एडल्ट फिल्म -अजय ब्रह्मात्मज ब्रिटेन से आई रूथ को अपने पिता की तलाश है। उसे यकीन है कि उसके पिता मुंबई या पुणे में हैं। सिर्फ एक चिट्ठी के सहारे पिता की तलाश में भटकती रूथ सतह के नीचे की मुंबई का दर्शन करा जाती है। यह मुंबई गंदी, गलीज, भ्रष्ट और अनैतिक है। हिंदी फिल्मों में अपराध और अंडरव‌र्ल्ड की फिल्मों में भी हम मुंबई को इस रूप में नहीं देख पाए हैं। अगर आप कथित सभ्य और शालीन दर्शक हैं तो आप को उबकाई आ सकती है। गुस्सा आ सकता है अनुराग कश्यप पर ...आखिर अनुराग कश्यप क्या दिखाना और बताना चाहते हैं? 21वीं सदी के विद्रोही और अपारंपरिक फिल्मकार अनुराग कश्यप की फिल्में सचमुच फील बैड फिल्में हैं। इन्हें देखकर सुखद रोमांच नहीं होता। सिहरन होती है। व्यक्ति और समाज दोनों ही किस हद तक विकृत और भ्रष्ट हो गए हैं? अनुराग कश्यप ने शिल्प और कथ्य दोनों स्तरों पर कुछ नया रचने की कोशिश की है। उन्हें कल्कि समेत अपने सभी कलाकारों का भरपूर सहयोग मिला है। फिल्म देखते समय भ्रम हो सकता है कि कहीं हम कोई स्टिंग ऑपरेशन तो नहीं देख रहे हैं। भाव और संबंध की विकृति संवेदनाओं को छलनी करती है। अपने क

फिल्‍म समीक्षा : बॉडीगार्ड

फिल्‍म समीक्षा : बॉडीगार्ड

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सलमान खान शो -अजय ब्रह्मात्मज सिद्दिकी मलयालम के मशहूर निर्देशक हैं। उनकी फिल्में खूब पसंद की जाती हैं। प्रियदर्शन ने उनकी कई फिल्मों का हिंदी रिमेक किया है। इस बार सिद्दिकी की शर्त थी कि उसी को हिंदी में रिमेक का अधिकार देंगे, जो उन्हें इसे हिंदी में निर्देशित करने देगा। नतीजा सामने है। सिद्दिकी और सलमान खान ने मिलकर बॉडीगार्ड को हिंदी दर्शकों के लिए फिर से रचा है। इस फिल्म में पूरी तरह से सलमान खान के प्रशंसक दर्शकों का खयाल रखा गया है और हिंदी सिनेमा के मेलोड्रामा का छौंक लगाया गया है। इस छौंक में करीना कपूर काम आ गई हैं। बॉडीगार्ड सामान्य एक्शन फिल्म नहीं है। यह एक्शन की जबदरस्त फैंटेसी है। रियल लाइफ में ऐसा मुमकिन नहीं है। रील पर अवश्य ही रजनीकांत के साथ ऐसी फैंटेसी क्रिएट की जाती रही है। सलमान खान अकेले ही दर्जनों पर भारी हैं। दुश्मनों की गोलीबारी उन पर बूंदाबादी लगती है। इस फिल्म के एक्शन के लिए हैरतअंगेज से आगे का कोई शब्द खोजना होगा। सिंगल लाइन स्टोरी है बॉडीगार्ड लवली सिंह को दिव्या की सेक्युरिटी की ड्यूटी मिलती है। उसे परेशान करने की कोशिश में दिव्या उससे प्रेम

फिल्‍म समीक्षा : बोल

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-अजय ब्रह्मात्‍मज पाकिस्तान से आई परतदार कहानी पाकिस्तानी फिल्मकार शोएब मंसूर की खुदा के लिए कुछ सालों पहले आई थी। आतंकवाद और इस्लाम पर केंद्रित इस फिल्म में शोएब मंसूर ने साहसी दृष्टिकोण रखा था। इस बार उनकी फिल्म बोल पाकिस्तानी समाज में प्रचलित मान्यताओं की बखिया उधेड़ती है और संवेदनशील तरीके से औरतों का पक्ष रखती है। बोल की कहानी परतदार है, इसलिए और भी पहलू जाहिर होते हैं। हिंदी फिल्मों जैसी निर्माण की आधुनिकता बोल में नहीं है, लेकिन अपने मजबूत विषय की वजह से फिल्म बांधे रखती है। पार्टीशन के समय हकीम साहब का परिवार भारत से पाकिस्तान चला जाता है। वहां उन्हें पाकिस्तान छोड़ आए किसी हिंदू की हवेली में पनाह मिलती है, जिसमें दीवारों और छतों पर हिंदू मोटिफ की चित्रकारी है। हकीम साहब ने बेटे की लालसा में बीवी को बच्चा जनने की मशीन बना रखा है। उनकी चौदह संतानों में से सात बेटियां बचती हैं। रूढि़वादी हकीम साहब अपनी बेटियों को पर्दानशीं रखते हैं। उनकी अगली संतान उभयलिंगी पैदा होती है। बदनामी के डर से वे उसे किन्नरों को नहीं देते। उसे हवेली के एककमरे में बंद कर पाला जाता है। बड़ी बेटी जैनब को अ

गंदा काम नहीं है एडल्ट फिल्म बनाना-अनुराग कश्यप

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-अजय ब्रह्मात्मज लगभग एक साल पहले वेनिस और टोरंटो फिल्म फेस्टिवल में दिखायी जा चुकी अनुराग कश्यप की फिल्म ‘दैट गर्ल इन यलो बूट्स’ 2 सितंबर को एक साथ भारत और अमेरिका में रिलीज हो रही है। - आपकी फिल्म तो बहुत पहले तैयार हो गई थी। फिर रिलीज में इतनी देरी क्यों हुई? 0 मैं ‘दैट गर्ल इन यलो बूट्स’ को इंटरनेशनल स्तर पर रिलीज करना चाह रहा था। हमें वितरक खोजने में समय लगा। अब मेरी फिल्म 30 प्रिंट के साथ अमेरिका में रिलीज हो रही है। इस लिहाज से यह मेरी सबसे बड़ी फिल्म है। दक्षिण यूरोप, फिनलैंड, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, कोरिया आदि देशों में भी यह रिलीज होगी। मेरा ध्यान अमेरिका और भारत पर था कि दोनों देशों में मेरी फिल्म एक साथ रिलीज हो। - किस तरह की फिल्म है यह? 0 अलग किस्म की थ्रिलर फिल्म है। इंग्लैंड से एक लडक़ी अपने पिता की तलाश में भारत आयी हुई है। वह किसी रेलीजियस कल्ट में था। यहां आने के बाद वह अंडरवल्र्ड, मसाज पार्लर की दुनिया में बिचरती है। उसे लगता है कि उसके पिता वहां मिलेंगें। हमारे समाज में ये चीजें बेहद एक्टिव हैं, लेकिन हमलोग हमेशा इंकार करते हैं। पिता से मिलने के चार दिन पहले से

हार्दिक मार्मिक बातें सितारों की

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-अजय ब्रह्मात्‍मज इन दिनों फिल्मी सितारे आए दिन टीवी पर नजर आते हैं। वे खुद ही अपनी फिल्मों के बारे में बता रहे होते हैं या फिल्म पत्रकारों की जरूरी जिज्ञासाओं के घिसे-पिटे जवाब दे रहे होते हैं। मैं नहीं मानता कि पत्रकारों के सवाल एक जैसे या घिसे-पिटे होते हैं। सच बताएं, तो ज्यादातर फिल्म स्टार एहसान करने के अंदाज में इंटरव्यू देते हैं। वे गौर से सवाल भी नहीं सुनते और पहले से रटे या तैयार किए जवाबों को दोहराते रहते हैं। यही कारण है कि किसी भी फिल्म की रिलीज के समय हर चैनल, अखबार और पत्रिकाओं में फिल्म स्टार एक ही बात दोहराते दिखाई-सुनाई पड़ते हैं। मामला इतना मतलबी हो चुका है कि वे फिल्म से अलग या ज्यादा कोई भी बात नहीं करना चाहते। प्रचारकों और पीआर कंपनियों पर दबाव रहता है कि कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा इंटरव्यू निबटा दो। नतीजा सभी के सामने होता है। उनके इंटरव्यू सुन, पढ़ या देख कर न तो फिल्म की सही जानकारी मिलती है और न उनकी पर्सनल जिंदगी या सोच के बारे में ज्यादा कुछ पता चलता है। इंटरव्यू देने का रिवाज किसी रूढि़ की तरह चल रहा है। अब तो पत्रकारों की रुचि भी स्टारों के रवैए के क

शुक्रिया दर्शकों का...लौट आया हूं मैं-सलमान खान

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-अजय ब्रह्मात्मज सलमान खान की छवि लापरवाह, मनमौजी और बिगड़ैल स्टार की है। सोचा भी नहीं जा सकता था कि वे नियत समय पर इंटरव्यू के लिए हाजिर हो जाएंगे। पिछले कई मौकों पर उन्होंने लंबा इंतजार करवाया है। लिहाजा, जब उनके सहायक ने पूछा कि आप कहां हैं... सलमान खान आ चुके हैं तो मेरे चौंकने की बारी थी। पहुंचा तो देखा कि सलमान खान ताबड़तोड़ समोसे खाए जा रहे हैं। आश्चर्य हुआ और सहसा सवाल किया मैंने ... ‘समोसे तो सेहत के लिए और खास कर फिल्म स्टार के सेहत के लिए ठीक नहीं माने जाते हैं और आप ...’ मुंह का कौर खत्म करते-करते सलमान को सीधा सा जवाब आया, ‘सर, भूख लगी हो तो आदमी कुछ भी खा ले और उससे कोई नुकसान नहीं होता। मैं तो सब कुछ खाता हूं।’ पता चला कि उन्होंने एक खास फूड चेन का बर्गर मंगवा रखा था। वह आने में देर हुई तो वे खुद को रोक नहीं सके ... इस बीच बर्गर आया और बातें आरंभ हुई। ‘वांटेड’ और ‘दबंग’ के बाद सलमान खान अलहदा जोश में हैं। दर्शकों से उनका सीधा कनेक्ट बन चुका है। कहा जा रहा है कि सिनेमाघरों से विस्थापित हो चुके दर्शकों का ‘दबंग’ ने पुनर्वास किया। उन्हें फिर से सिनेमाघरों की सीटें दीं। य