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धन्यवाद पाकिस्तान

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-अजय ब्रह्मात्‍मज सूचना आई है कि पाकिस्तान के अधिकारियों ने पेशावर स्थित दिलीप कुमार के पुश्तैनी घर को खरीद लिया है। वे इसे राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर रहे हैं। इरादा है कि दिलीप कुमार के पुश्तैनी घर को म्यूजियम का रूप दे दिया जाए, ताकि स्थानीय लोग अपने गांव की इस महान हस्ती को याद रख सकें और देश-विदेश से आए पर्यटक एवं सिनेप्रेमी दर्शन कर सकें। पेशावर अभी पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में है। वहां के मंत्री इफ्तिखार हुसैन ने दिलीप कुमार के घर को संरक्षित करने में दिलचस्पी दिखाई है। उन्होंने पिछले साल दिसंबर में ही घोषणा की थी कि दिलीप कुमार और राज कपूर के घरों को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संरक्षित किया जाएगा। पाकिस्तानी अधिकारियों की इस पहल का स्वागत किया जाना चाहिए। भारत सरकार को सबक भी लेना चाहिए। भारतीय सिनेमा के सौ साल होने जा रहे हैं, लेकिन हमारे पास ऐसा कोई राष्ट्रीय संग्रहालय नहीं है जहां हम पॉपुलर कल्चर की विभूतियों से संबंधित सामग्रियों का अवलोकन कर सकें। पूना स्थित फिल्म अभिलेखागार की सीमित भूमिका है। उसके बारे में हमारे फिल्मकार भी नहीं जानते। वे अपनी फिल्मों से संबोधित

जुड़े गांठ पड़ जाए

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-अजय ब्रह्मात्‍मज अभी पिछले दिनों शिरीष कुंदर ने ट्विट किया है कि झगड़े के बाद हुई सुलह से कुछ रिश्ते ज्यादा मजबूत हो जाते हैं, लेकिन मानव स्वभाव शब्दों के संविधान से निर्देशित नहीं होता। रहीम ने सदियों पहले कहा है, रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाये, टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गांठ पड़ जाये..। यह गांठ और खलिस शिरीष कुदर, फराह खान और मुमकिन है कि शाहरुख खान के मन में भी बनी रहे। शाहरुख और फराह की दोस्ती बहुत पुरानी है। दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे के सेट पर सरोज खान से अनबन होने पर शाहरुख ने फराह को अपने गाने की कोरियोग्राफी के लिए बुलाया था। दिन पलटे। फराह सफल कोरियोग्राफर हो गईं। फिर शाहरुख ने ही उनकी बढ़ती ख्वाहिशों को पर दिए और मैं हूं ना डायरेक्ट करने का मौका दिया। शाहरुख के प्रोडक्शन को पहली बार फायदा हुआ, लेकिन उससे बड़ा फायदा फराह का हुआ। सफल निर्देशक के तौर पर उन्होंने दस्तक दी और शाहरुख के प्रोडक्शन की अगली फिल्म ओम शांति ओम से उनकी योग्यता मुहर लग गई। इसी बीच शिरीष का फराह के जीवन में प्रवेश हुआ। दोनों का विवाह हुआ और इसके गवाह रहे साजिद खान, साजिद नाडियाडवाला और शाहरुख। शा

फिल्म समीक्षा : एक मैं और एक तू

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डायनिंग टेबल ड्रामा -अजय ब्रह्मात्‍मज करण जौहर निर्माता के तौर पर एक्टिव हैं। कुछ हफ्ते पहले उनकी अग्निपथ रिलीज हुई। एक्शन से भरी वह फिल्म अधिकांश दर्शकों को पसंद आई। इस बार वे रोमांटिक कामेडी लेकर आए हैं। वसंत का महीना प्यार और रोमांस का माना जाता है। अब तो 14 फरवरी का वेलेंटाइन डे भी मशहूर हो चुका है। इस मौके पर वे करीना कपूर और इमरान खान के डेट रोमांस की फिल्म एक मैं और एक तू किशोर और युवा दर्शकों को ध्यान में रखकर ले आए हैं। करण जौहर की ऐसी फिल्मों की तरह ही इसका लोकेशन भी विदेशी है। वेगास से आरंभ होकर यह फिल्म नायक-नायिका के साथ मुंबई पहुंचती है और डायनिंग टेबल ड्रामा के साथ समाप्त होती है। और हां,इस फिल्म के निर्देशक शकुन बत्रा हैं। अचानक मुलाकात, हल्की सीे छेडछाड़, साथ में ड्रिंक और फिर अनजाने में हुई शादी बता दें कि कहानी में लड़का थोड़ा दब्बू और लड़की बिंदास है। यूं इस फिल्म की अन्य महिला किरदार भी यौन ग्रंथि की शिकार दिखती हैं। मुमकिन है विदेशों में लड़कियां यौन संबंधों को लेकर अधिक खुली और मुखर हों। राहुल और रियाना अनजाने में हुई अपनी शादी रद्द करवाने के चक्कर में दो हफ्ते म

प्रेम-रोमांस : विनाइथंडी वरुवाया ( वीटीवी )

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शालिनी मलिक ने तमिल फिल्‍म विनाइथंडी वरुवाया ( वीटीवी ) के बारे में लिखा है। शालिनी मास कम्‍युनिकेशन की पढ़ाई कर रही हैं। उनसे shalini14chaudhry@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं। यहाँ पर विदेशी फिल्मों के बीच मैं एक भारतीय फिल्म विनाइथंडी वरुवाया ( वीटीवी ) की चर्चा करना चाहूंगी। वेलेंनटाइन डे से तीन दिन बाद एक फिल्म आ रही है एक दीवाना था,जिसमें प्रतीक और एमी जैक्‍सन दिखेंगे। मूलरुप से तमिल भाषा की यह फिल्म विनाइथंडी वरुवाया ( वीटीवी ) अब तक तीन भाषाओं में बन चुकी है, हर भाषा में अलग भाव व्यक्त करती.... पर कहते है कि जो बात असल में होती है वह नकल में नही आती। फिल्म वही है कहानी भी वही है पर जो बात वीटीवी की जेसी (नायिका) में है ,वह निराली है। आप इस जेसी और कार्तिक (नायक) की कहानी में खो जाते है। जैसा कि फिल्म का नाम है विनाइथंडी वरुवाया जिसका अर्थ है क्या तुम आसमानों को पार करोगी और आओगी... फिल्म के नाम में उसकी पूरी कहानी सिमटी हुई है। कहानी एक कट्टर ईसाई प रिवार की लड़की जेसी और तमिल हिन्दू लड़के कार्तिक के प्यार की है। कार्तिक का प्यार बंदिशो को बहा ले जाता है,पर जेसी अपने प्य

दुष्‍ट भी दिख सकते हैं ऋषि कपूर

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-अजय ब्रह्मात्‍मज तारीफ देती है खुशी और खुशी से खिलती हैं बांछें। बांछें खिली हों तो आप की उम्र छह साल हो कि ऋषि कपूर की तरह साठ साल ... वह आप की चाल में नजर आते हैं। उम्र की वजह से बढ़ा वजन भी पैरों पर भार की तरह नहीं लगता। आप महसूस करें ना करें ... दुनिया का नजरिया बदल जाता है। अचानक आप के मोबाइल नंबर की खोज होने लगती है और आप सभी को याद आ जाते हैं। ' अग्निपथ ’ की रिलीज के अगले दिन ही ऋषि कपूर के एक करीबी से उनका नंबर मिला। मैंने इच्छा जाहिर की थी कि बात करना चाहता हूं , क्योंकि रऊफ लाला कि किरदार में ऋषि कपूर ने चौंकाने से अधिक यकीन दिलाया कि अनुभवी अभिनेता किसी भी रंग और रंगत में छा सकता है। एक अंतराल के बाद ऋषि कपूर को यह तारीफ मिली। दोस्त तो हर काम की तारीफ करते हैं। इस बार दोस्तों के दोस्तों ने फोन किए और कुछ ने पल दो पल की मुलाकात की याद दिलाकर दोस्ती गांठ ली। बड़े पर्दे का जादू सिर चढ़ कर बोलता है और अपनी तरफ आकर्षित करता है। बांद्रा के पाली हिल में ऋषि कपूर का बसेरा है। बेटे रिद्धिमा की शादी हो गई है और बेटा रणबीर हिंदी फिल्मों का ' रॉकस्टार ' बना ह

ज्ञान का प्रवाह है उपनिषद गगा

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-अजय ब्रह्मात्‍मज दूरदर्शन पर 11 मार्च से आरंभ होगा डॉ. चद्रप्रकाश द्विवेदी लिखित और निर्देशित 'उपनिषद गगा' का प्रसारण। इस धारावाहिक के कथ्य, शिल्प और प्रस्तुति के बारे में बता रहे हैं डॉ. चद्रप्रकाश द्विवेदी भारत की आध्यात्मिक धरोहर उपनिषद को मैं भारत की आध्यात्मिक धरोहर मानता हूं। उस समय के चितकों जिन्हें हमलोग ऋषि कहते हैं, उन्हें मैं सामाजिक वैज्ञानिक कहता हूं। उनके विचारों में भारत एक भौगोलिक इकाई के रूप में नहीं रहता। वे समग्र विश्व समुदाय पर विमर्श करते हैं। उनके चितन में सघर्ष-द्वंद्व की समाप्ति और सपूर्ण मानव जाति के सुख के विषय होते थे। पूरे ब्रह्माण्ड में वे एक ऐसी कल्पना को ढूंढ रहे हैं, जिससे उसकी एकात्मता को सिद्ध किया जा सके। यह एकात्मता उनकी कल्पना है या यथार्थ है, इस सदर्भ में ऋषियों का समग्र चितन और चितन के कारण मानवता के समक्ष खड़े प्रश्नों के उत्तार ढूंढने की कोशिश ही वेदात है। वेदात के बाद तमाम लोगों ने उस पर भाष्य और कई चीजें लिखीं, जो एक वृहद प्राचीन भारतीय साहित्य बना। यह साहित्य समय के साथ लुप्त हो रहा है। चिन्मय मिशन की क्रिएटिव विग चिन्मय क्रिएशन ने इ

सिनेमा के सौ साल: स्टूडियो,स्टार और कारपोरेट सिस्टम

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-अजय ब्रह्मात्‍मज फिल्म निर्माण टीमवर्क है। माना जाता है कि इस टीम का कप्तान निर्देशक होता है , क्योंकि वह अपनी सोच-समझ से फिल्म के रूप में अपनी दुनिया रचता है। ऊपरी तौर पर यही लक्षित होता है , लेकिन फिल्म व्यवसाय के जानकारों से बात करें तो नियामक शक्ति कुछ और होती है। कभी कोई व्यक्ति तो कभी कोई संस्था , कभी स्टूडियो तो कभी स्टार , कभी कारपोरेट तो कभी डायरेक्टर... समय , परिस्थिति और व्यवसाय से पिछले सौ सालों के भारतीय सिनेमा में हम इस बदलाव को देख सकते हैं। फालके और उनके व्यक्तिगत प्रयास दादा साहेब फालके ने पहली भारतीय फिल्म का निर्माण किया। सभी जानते हैं कि इस फिल्म के लिए उन्हें अपनी पत्नी के गहने गिरवी रखने पड़े थे। गहने , घर , संपत्ति गिरवी रख कर धन उगाहने का सिलसिला कमोबेश आज भी चलता रहता है। लेकिन फिल्म इंडस्ट्री को उद्योग का दर्जा मिलने और बीमा कंपनियों के आने से आर्थिक जोखिम कम हुआ है। बहरहाल , फालके के जमाने में फिल्मों को व्यवसाय की दृष्टि से फायदेमंद नहीं माना जाता था। फालके के समय के फिल्म निर्माण को कॉटेज इंडस्ट्री के तौर पर देख सकते हैं। फालके समेत इस दौर के नि

इस अवार्ड वेला में

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-अजय ब्रह्मात्‍मज हिंदी फिल्मों के पॉपुलर अवार्ड का सिलसिला चालू है। देश-विदेश में इनके आयोजन हो रहे हैं। स्क्रीन और जी सिने अवार्ड के विजेता मुस्करा रहे हैं। इस स्तंभ के छपने तक फिल्मफेअर अवार्ड समारोह का आयोजन हो चुका रहेगा। पॉपुलर अवार्ड में फिल्मफेअर सबसे पुराना है। इसकी पहले जैसी साख तो अब नहीं, लेकिन पुराना होने का लाभ इसे मिलता है। जून में आईफा अवार्ड के आयोजन तक छोटे-बड़े दर्जन भर अवार्ड समारोह हो चुके होंगे। इनमें बेशर्मी से पुरस्कार बांटे जाएंगे। बांटना शब्द इन पुरस्कारों की सटीक क्रिया है। अन्यथा आप इन अवार्ड समारोहों के विजेताओं के नाम से कैसे सहमत होंगे? सैटेलाइट चैनलों के आने के बाद सारे पुरस्कार समारोहों ने इवेंट का रूप ले लिया है। आयोजकों की कोशिश रहती है कि सारे लोकप्रिय सितारे कुछ घंटों के लिए ही सही, लेकिन उस शाम समारोह की शोभा बढ़ा दें। इससे इवेंट की दर्शकता बढ़ती है। भले ही शाहरुख खान कोई नीच मजाक कर रहे हों या हरकत.., फिल्म के संवादों से लेकर इवेंट के संभाषणों तक में श्लील-अश्लील का फर्क समाप्त हो गया है। फिल्मों में किरदार अश्लील संवाद या अपशब्द बोलते हैं तो वह प

अनुष्का शर्मा को भविष्य की चिंता नही

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युवा अभिनेत्रियों की शाश्वत मुश्किल है कि हर प्रकार की सफलता हासिल करने के बाद भी वे खुश नहीं हो पातीं। मन में क्षोभ और लोभ रहेगा तो वह चेहरे से भी जाहिर होगा। अभिनय की दुनिया में आए सभी व्यक्तियों को अनुष्का से मुस्कराहट का मंत्र लेना चाहिए। मॉडलिंग में दिलचस्पी मूलत: उत्तराखंड की अनुष्का शर्मा की पढाई-लिखाई बंगलौर में हुई। किशोर उम्र में ही मॉडलिंग में उनकी रुचि बनी। वह रैंप पर उतरीं। पहचान बनी तो मॉडलिंग करने लगी। आरंभ में लाइमलाइट में आने पर भी फिल्मों में आने का इरादा नहीं था। संयोग से एक बार फिल्म जगत में आ गई तो अब अनुष्का का जाने का इरादा भी नहीं है। अनुष्का अछी तरह जानती हैं कि वह एक ऐसी इंडस्ट्री में अपनी पहचान हासिल करने की कोशिश में हैं, जहां एक फिल्म की असफलता भी नेपथ्य में भेज देती है। यह कहना जल्दबाजी होगी कि अनुष्का ने दर्शकों और निर्देशकों की नजरों में रहने का गुर सीख लिया है। 2008 से अभी तक के करियर में समान संख्या में हिट और फ्लॉप फिल्में दे चुकी अनुष्का को भविष्य की अधिक चिंता नहीं है। अभी उनके पास यश चोपडा और विशाल भारद्वाज की फिल्में हैं। मिली खास पहचान अनुष्का की

ऑन स्‍क्रीन ऑफ स्‍क्रीन : रिश्तों के इर्द-गिर्द घूमती हैं करण जौहर की फिल्में

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-अजय ब्रह्मात्‍मज युवा फिल्मकारों में करण जौहर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के प्रतिनिधि चेहरे हैं। अपने व्यक्तित्व और फिल्मों से उन्होंने खास जगह हासिल की है। हिंदी फिल्मों की शैलीगत विशेषताओं को अपनाते हुए उसमें नए लोकप्रिय तत्व जोडने का काम उन्होंने बहुत खूबसूरती से किया है। वे एक साथ शर्मीले और मुखर हैं, संकोची और बेधडक हैं। स्पष्ट और गूढ हैं। खुशमिजाज और गंभीर हैं। विरोधी गुणों और पहलुओं के कारण वे एक ही समय में जटिल और सरल नजर आते हैं। व्यक्तित्व के इस द्वैत की वजह से उनमें अद्भुत आकर्षण है। वे यूथ आइकन हैं। वे देश के एकमात्र लोकप्रिय निर्देशक हैं, जिनकी लोकप्रियता और स्वीकृति किसी स्टार से कम नहीं है। सुरक्षित माहौल की परवरिश लोकप्रियता और स्वीकृति के इस मुकाम तक पहुंचने में करण जौहर की लंबी यात्रा रही है। यह यात्रा सिर्फ उम्र की नहीं है, बल्कि अनुभवों की सघनता सामान्य व्यक्ति को सलेब्रिटी बनाती है। करण जौहर ने खुद को गमले में लगे सुंदर पौधे की तरह ढाला है, जो धरती और मिट्टी से जुडे बिना भी हरा-भरा और खिला रहता है। महानगरों के सुरक्षित माहौल में पले-बढे सलेब्रिटी की आम समस्या है कि वे