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है सुकून विद्या बालन की जिंदगी में

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-अजय ब्रह्मात्मज     विद्या बालन की शादी हो चुकी है। वह अपने पति सिद्धार्थ राय कपूर के साथ जुहू में समुद्र किनारे के एक अपार्टमेंट में रहती हैं। घर बसाने के बाद वह घर सजा रही हैं। यह उनका अपना बसेरा है। इस बसेरे में सुकून है। अब वह यहीं रहती है। शादी के बाद जिंदगी बदल रही है। रूटीन बदल रहा है। मां-बहन की सिखायी सुनायी बातों के अर्थ अब खुल रहे हैं। किसी और के साथ होने से सोच बदलती है। और उसी के साथ रहने से बहुत कुछ बदल जाता है। आचार, व्यवहार, सोना, जागना, खाना-पीना और भी बहुत कुछ। अभी तक भारतीय समाज में लड़कियां ही अपना घर छोड़ती हैं। एक नए परिवार के साथ रिश्ते बनाती हैं। अगर नवदंपति ने स्वतंत्र और परिवार से अलग रिहाइश रखी तो भी लडक़े के परिवार से अधिक करीबी और भागीदारी होती है। धीरे-धीरे मायका छूट जाता है। लडक़ी एक नए परिवार में प्रत्यारोपित हो जाती है। आरंभिक उलझनों और सामंजस्य के बाद जीवन का नया अध्याय आरंभ होता है।     विद्या बालन के जीवन का नया अध्याय आरंभ हो चुका है। अब वह नए बसेरे से ही शूटिंग, इवेंट और मेलजोल के लिए निकलती हैं और फिर लौट कर यहीं आती हैं। कुंवारी जिंदगी बंद कमर

अफवाहें हंसने के लिए होती हैं- सोनाक्षी सिन्हा

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सोनाक्षी सिन्हा की ब्लॉकबस्टर सफलता का सीक्रेट जानने की रघुवेन्द्र सिंह ने कोशिश की 'रामायण' कभी केवल शत्रुघ्न सिन्हा का पता हुआ करता था. इस बंगले का नाम लेते ही लोग आपको उनके घर तक पहुंचा देते थे. मगर वक्त के साथ दो चीजें परिवर्तित हो चुकी हैं. पहली- अब बंगले के स्थान पर एक सात मंजिला आलीशान इमारत खड़ी हो चुकी है और दूसरी- अब इसमें केवल एक नहीं, बल्कि दो स्टार रहते हैं. जुहू स्थित 'रामायण' वर्तमान की लोकप्रिय अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा का भी पता बन चुका है. शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने बेटे लव, कुश और बेटी सोनाक्षी सिन्हा को एक-एक फ्लोर दे दिया है, जिसकी आंतरिक साज-सज्जा आजकल वे स्वेच्छा से करने में जुटे हैं. लिफ्ट के जरिए हम सातवें फ्लोर पर पहुंचते हैं, तो सोनाक्षी की करीबी दोस्त और मैनेजर भक्ति हमारा स्वागत करती हैं. कुछ ही पल के बाद सोनाक्षी हाजिर होती हैं और फिल्मफेयर हिंदी की तरक्की के बारे में चर्चा करती हैं. आपको याद दिला दें कि दबंग गर्ल और अब राउड़ी गर्ल सोनाक्षी सिन्हा फिल्मफेयर हिंदी की पहली कवर गर्ल थीं. अनौपचारिक बातचीत के बाद हमने सवाल

फिल्‍म समीक्षा : एक थी डायन

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यह किस्सा है। यह खौफ है। यह विभ्रम है। यह हॉरर फिल्म है। यह सब का मिश्रण है। क्या है 'एक थी डायन' एकता कपूर और विशाल भारद्वाज की प्रस्तुति एक थी डायन के निर्देशक कन्नन अय्यर हैं। इसे लिखा है मुकुल शर्मा और विशाल भारद्वाज ने। उन्होंने भारतीय समाज में प्रचलित डायन कथा को नया आयाम दिया है। मुख्यधारा के चर्चित कलाकारों को प्रमुख भूमिकाएं सौंप कर उन्होंने दर्शकों को भरोसा तो दे ही दिया है कि यह हिंदी में बनी आम हॉरर फिल्म नहीं है। हां,इसमें इमरान हाशमी हैं। उनके साथ कोंकणा सेन शर्मा,कल्कि कोइचलिन और हुमा कुरेशी भी हैं। संयोग ऐसा हुआ कि इस फिल्म का क्लाइमेक्स मैंने पहले देख लिया और फिर पूरी फिल्म देखी। इसके बावजूद फिल्म में रुचि बनी रही और मैं उस क्षण की प्रतीक्षा करता रहा जहां फिल्म चौंकाती है। अप्रत्याशित घटनाएं हमेशा रोचक और रोमांचक होती हैं। फिल्म जादू“र बोबो इमरान हाशमी के मैजिक शो से आरंभ होती है। बोबो को मतिभ्रम होता है कि उसे कोई अनदेखी शक्ति तंग कर रही है। तार्किक जादूगर अपने मनोवैज्ञानिक मित्र की मदद लेता है। प्निोसिस के जरिए अपने अतीत में पहुंचने पर उसे

धारा के खिलाफ इरफान - अनुप्रिया वर्मा

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अनुप्रिया वर्मा पीढ़ीगत सीमाओं के बावजूद उत्‍तरोत्‍तर तीक्ष्‍ण और सारगर्भित लिख रही हैं। यह लेख उनके ब्‍लॉग अनुख्‍यान से साधिकार चवन्‍नी के पाठकों कें लिए लिया गया है। कुछ लोग इसे प्रभात खबर में पढ़ चुके होंगे। आप पढ़ें और इस लेख की कमियां बताएं। कमियां न सूझें तो तारीफ जरूर करें। और हां उनके ब्‍लॉग अनुख्‍यान पर यहां से जा सकते हैं। पान सिंह तोमर के लिए वर्ष 2012 का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्टÑीय पुरस्कार पानेवाले इरफान की अदाकारी की पूरी दुनिया मुरीद है. एक ऐसे समय में जब सिनेमा का आंकलन 100 करोड़ क्लब के आधार पर किया जा रहा है. इरफान हिंदी सिनेमा की उस अल्पसंख्यक बिरादरी के सदस्य के तौर पर हमसे रूबरू होते हैं, जो यहां मुख्यत: कलात्मक कमिटमेंट के कारण टिके हैं. जो कला को सिर्फ पैसे कमाने का जरिया न मानकर अपने आप में उपलब्धि मानते हैं. इरफान की सफलता ऐसे सभी लोगों के लिए खुशी मनाने का मौका है, जो धारा के खिलाफ चलने में विश्वास रखते हैं. जो धारा में बहने नहीं बल्कि धारा बनने में यकीन करते हैं.धारा के खिलाफ नयी धारा गढ़ते इरफान पर यह आवरण कथा.  वर्ष 2012 में रिलीज हु

आलिया भट्ट

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आलिया भट्ट के प्रशंसकों के लिए उनके पिता महेश भट्ट की भेंट...उन्‍होंने आज सुबह ट्विट किया...Not in our wildest dream did we imagine that this 'Sumo wrestler' would transform herself into ALIA BHATT

पिता पुत्र की डबल कामयाबी

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-अजय ब्रह्मात्मज     हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के सबसे पुराने कपूर परिवार की चौथी पीढ़ी के रणबीर कपूर और करीना कपूर लोकप्रिय और सक्रिय हैं। प्रेम और शादी की व्यस्तताओं से करीना कपूर करिअर पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे सकीं तो उनकी पिछली कुछ फिल्मों का बाक्स आफिस प्रदर्शन बुरा हुआ। अभी वह प्रकाश झा की ‘सत्याग्रह’  कर रही हैं। उम्मीद है कि प्रकाश झा की रियलस्टिक सिनेमा में वह ‘चमेली’ और  ‘ओमकारा’ की तरह अपना वास्तविक प्रभाव दिखा सकेंगी। उनके चचेरे भाई रणबीर कपूर इन दिनों दर्शकों के दिलों की धडक़न बने हुए हैं। अभिनय, अपीयरेंस, व्यवहार, बातचीत और विनम्रता से उन्होंने सभी को आकर्षित कर रखा है। अच्छी बात है कि वे अपनी भूमिकाओं में निरंतर प्रयोग कर रहे हैं। ‘रॉकस्टार’ के बाद ‘बर्फी’ की विविधता से उन्होंने प्रशंसा और पुरस्कार दोनों बटोरे। हालांकि ‘बर्फी’ में कुछ विदेशी फिल्मों के दृश्यों की नकल से विवाद उठा, लेकिन रणबीर कपूर के परफारमेंस में किसी को कभी नहीं दिखाई दी।     रणबीर कपूर और करीना के पिता ऋषि कपूर और रणधीर कपूर अपने समय के लोकप्रिय अभिनेता रहे हैं। ऋषि कपूर ने अभिनय जारी रखा। रणधीर कपूर थो

हम दोनों हैं जुदा-जुदा... हुमा कुरैशी - साकिब सालिम

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रघुवेन्‍द्र सिंह के ब्‍लॉग अक्‍स से चवन्‍नी के पाठकों के लिए साधिकार... हुमा कुरैशी अपने छोटे भाई साकिब सालिम को तंग करने का एक भी मौका नहीं गंवातीं, तो साकिब भी उनकी टांग खींचने के लिए तैयार रहते हैं. बहन-भाई की शैतानियों की कहानियां बता रहे हैं रघुवेन्द्र सिंह भाई-बहन को साथ एक फिल्म में कास्ट करना हो, तो कैसी स्क्रिप्ट होनी चाहिए? आप सोचते रहिए... हुमा कुरैशी और साकिब सालिम ने तो सोच लिया है. ''भाई-बहन की ही कहानी होनी चाहिए और अगले पांच मिनट के बाद बहन की फोटो दीवार पर टंगी होनी चाहिए." यह कहकर साकिब ठहाका लगाते हैं. ''हां, क्योंकि अगर मैं उससे ज्यादा देर तक फिल्म में रही, तो तुम्हारा रोल खा जाऊंगी." अपने छोटे भाई की बात का जवाब देकर हुमा भी हंस पड़ती हैं और वे नई कहानी का सुझाव देती हैं, ''भाई-बहन रोड ट्रिप पर जाते हैं... " और ''भाई बहन को मार देता है..." शरारती साकिब हुमा की बात को बीच में ही काट देते हैं और फिर भाई-बहन की खिलखिलाती हंसी गूंजने लगती है. आप समझ गए होंगे कि हुमा और साकिब के बीच किस तरह का रि

हिंदी फिल्‍मों का पंजाबीपन

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  हिंदी फिल्म का नायक यदि ' चरण स्पर्श ' या ' पिताजी पाय लागूं ' कहते हुए पर्दे पर दिखे तो ज्यादातर दर्शक हंस पड़ेंगे। वहीं नायक जब पर्दे पर ' पैरी पौना बाउजी Ó कहता है तो हम विस्मित नहीं होते। यह हमें स्वाभाविक लगता है। दरअसल , हिंदी फिल्मों में पंजाब की निरंतर मौजूदगी से हम पंजाबी लहजे , संगीत और संवाद के आदी हो गए हैं। हिंदी फिल्मों का बड़ा हिस्सा पंजाबी संस्कृति और प्रभाव से आच्छादित है। कभी करीना कपूर का जब वी मेट में पंजाबी स्टाइल देश भर की लड़कियों का जुनून बन गया तो कभी गदर में तारा सिंह की भूमिका में सनी देओल बने गबरू जवानों का पैमाना। यही नहीं , देश में सबसे ज्यादा चलने वाली फिल्म का रिकार्ड भी दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे   के नाम है , जो विशुद्ध रूप से पंजाबी-एनआरआई समीकरण पर आधारित फिल्म थी।   चाहे वह विकी डोनर , बैंड बाजा बारात , पटियाला हाउस , खोसला का घोंसला , दो दूनी चार जैसी मल्टीप्लेक्स फिल्में हों ; सिंह इज किंग , दिल बोले हडि़प्पा , यमला पगला दीवाना , सन आफ सरदार जैसी शुद्ध मसाला मूवीज या माचिस और पिंजर जैस

फिल्‍मों की कास्टिंग और मुकेश छाबड़ा

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कैमरे के पीछे सक्रिय विभागों में कास्टिंग एक महत्‍वपूर्ण विभाग है। पहले इसे स्‍वतंत्र विभाग का दर्जा और सम्‍मान हासिल नहीं था। पिछले पांच सालों में परिदृश्‍य बदल गया है। कोशिश है कि चवन्‍नी के पाठक इस के बारे में विस्‍तार से जान सकें।  कास्टिंग परिद्श्‍य -अजय ब्रह्मात्मज     फिल्म निर्माण में इस नई जिम्मेदारी को महत्व मिलने लगा है। इधर रिलीज हो रही फिल्मों में कास्टिंग डायरेक्टर के नाम को भी बाइज्जत क्रेडिट दिया जाता है। हाल ही में रिलीज हुई ‘काय पो छे’ की कास्टिंग की काफी चर्चा हुई। इसके मुख्य किरदारों की कास्टिंग नई और उपयुक्त रही। सुशांत सिंह राजपूत, अमित साध, अमृता पुरी, राज कुमार यादव और मानव कौल आदि मुख्य किरदारों में दिखे। सहायक किरदारों में भी परिचित चेहरों के न होने से एक ताजगी बनी रही। कास्टिंग डायरेक्टर के महत्व और भूमिका को अब निर्देशक और निर्माता समझने लगे हैं।     हालांकि अभी भी निर्माता-निर्देशक स्टारों के चुनाव में कास्टिंग डायरेक्टर के सुझाव को नजरअंदाज करते हैं। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के स्ट्रक्चर में स्टार के पावरफुल और निर्णायक भूमिका (डिसाइडिंग फैक्टर) में होने

फिल्‍म समीक्षा : नौटंकी साला

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  फूहड़ और फार्मूला कामेडी की हमें आदत पड़ चुकी है। फिल्मों में हंसने की स्थितियां बनाने के बजाए लतीफेबाजी और मसखरी पर जोर रहता है। सुने-सुनाए लतीफों को लेकर सीन लिखे जाते हैं और उन्हें ही संवादों में बोल दिया जाता है। ऐसी फिल्में हम देखते हैं और हंसते हैं। इनसे अलग कोई कोशिश होती है तो वह हमें नीरस और फीकी लगने लगती है। 'नौटंकी साला' प्रचलित कामेडी फिल्मों से अलग है। नए स्वाद की तरह भाने में देरी हो सकती है या फिर रोचक न लगे। थोड़ा धैर्य रखें तो थिएटर से निकलते समय एहसास होगा कि स्वस्थ कामेडी देख कर निकल रहे हैं, लेकिन 'जंकफूड' के इस दौर में 'हेल्दी फूड' की मांग और स्वीकृति थोड़ी कम होती है। रोहन सिप्पी ने एक फ्रांसीसी फिल्म की कहानी का भारतीयकरण किया है। अधिकांश हिंदी दर्शकों ने वह फिल्म नहीं देखी है, इसलिए उसका उल्लेख भी बेमानी है। यहां राम परमार (आयुष्मान खुराना) है। वह थिएटर में एक्टर और डायरेक्टर है। एक रात शो समाप्त होने के बाद अपनी प्रेमिका के साथ डिनर पर जाने की जल्दबाजी में उसके सामने आत्महत्या करता मंदार लेले (कुणाल र