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दरअसल : कहानी और एक्शन मात्र नहीं है सिनेमा

-अजय ब्रह्मात्मज     पटना में विधु विनोद चोपड़ा की ‘एकलव्य’  देख रहा था। इस फिल्म में उन्होंने कुछ दृश्य अंधेरे और नीम रोशनी में शूट किए थे। इन दृश्यों के पर्दे पर आते ही दर्शक शोर करने लगे... ठीक से दिखाओ। प्रोजेक्शन ठीक करो। कुछ दिख ही नहीं रहा है। दृश्य की सोच के मुताबिक पर्दे पर कुछ दिखता नहीं था। संपूर्ण दृश्य संयोजन में विधु विनोद चोपड़ा फिल्म के मुख्य कलाकार अमिताभ बच्चन की खासियत दिखाना चाहते थे। इसी फिल्म के समय विधु विनोद चोपड़ा ने बयान दिया कि चवन्नी छाप दर्शकों के लिए फिल्में नहीं बनाता। मेरी फिल्मों के रसास्वादन के लिए दर्शकों को समझदार होना पड़ेगा।     विधु विनोद चोपड़ा के इस अहंकार में हमारे फिल्म देखने की परंपरा की सच्चाई छिपी है। मल्टीप्लेक्स और मॉडर्न थिएटर आने के पहले देश से ज्यादातर दर्शक चलती-फिरती तस्वीरों को किसी भी रूप में देखने से सिनेमा के आनंद से खुश हो जाते थे। ब्लैक एंड व्हाइट टीवी, सरकार के प्रचार अभियान में दिखायी गयीं 18 एमएम की फिल्में, बाद में वीडियो और पायरेटेड डीवीडी से देखी गयी फिल्में... इन सभी अनुभवों में दर्शकों का पूरा ध्यान केवल एक्शन और कहान

ऑन द सेट्स: रांझणा

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सोनम कपूर और धनुष के साथ आनंद एल राय फिल्म रांझणा के कुछ गंभीर दृश्यों की शूटिंग फिल्मसिटी में कर रहे थे. उनके सेट से कुछ खूबसूरत यादें लेकर लौटे हैं रघुवेन्द्र सिंह कहानी कुंदन (धनुष) और जोया (सोनम कपूर) की प्रेम कहानी है रांझणा. यह बनारस की गलियों में रची-बसी है. कुंदन का बचपन का प्यार है जोया, लेकिन वह उससे अपने प्यार का इजहार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया. जोया पढ़ाई के लिए दिल्ली चली जाती है. जेएनयू में उसकी मुलाकात अकरम (अभय देओल) से होती है और फिर वह राजनीति में उतर जाती है. इस त्रिकोणीय प्रेम कहानी में दोस्ती और राजनीति का हल्का रंग भी है.  फिल्मसिटी में बसी दिल्ली रांझणा यूं तो बनारस के शुद्ध वातावरण में बसी एक प्रेम कहानी है, लेकिन इस प्रेम कहानी का एक बहुत गंभीर पहलू भी है. जिसके तार दिल्ली की राजनीति से जुड़ते हैं. इस राजनीति में उतरकर जोया कुछ खोती है, तो कुछ पाती है. उसने क्या खोया है और क्या पाया है, यह तो आपको यह फिल्म देखने के बाद पता चलेगा, लेकिन मुंबई की फिल्मसिटी में आनंद एल राय कुछ ऐसे दृश्यों की शूटिंग कर रहे हैं, जिनमें सोनम कपूर और

छोटे शहरों में ही मेरे किरदारों को सांस मिलती है-आनंद राय

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छोटे शहरों में ही मेरे किरदारों को सांस मिलती है-आनंद राय -अजय ब्रह्मात्मज     आनंद राय की अगली फिल्म ‘रांझणा’ में ए आर रहमान का संगीत है। गीत इरशाद कामिल ने लिखे हैं। अभी तक जारी हुए तीन गानों में श्रोताओं को बनारस की लय,्र मधुरता और गेयता दिख रही है। आनंद राय ने इस फिल्म की प्लानिंग के समय ही गीत और संगीत के बारे में सोच लिया था। फिल्म की जरूरत को ध्यान में रखते हुए उन्होंने ‘तनु वेडस मनु’ की म्यूजिकल टीम को नहीं दोहराया। आनंद राय एआर रहमान के साथ काम का हतप्रभ और खुश हैं। आरंभ में फिल्म में छह गानों की बात सोची गई थी, लेकिन आनंद राय कहते हैं, ‘रहमान सर के साथ काम करते हुए मैंने पाया कि आप गिन कर गाने नहीं रख सकते। मैं उनके साथ थीम की बात करता हूं तो वह भी गाने का रूप ले लेता है। फिल्म में वैसे छह गाने दिखाई पड़ेंगे, लेकिन अलबम में आठ गाने और दो थीम हैं। रहमान सर के आने के साथ हर फिल्म म्यूजिकल हो जाती है।’      ‘रांझणा’ के प्रोमो के आने के साथ ‘मोहल्ला अस्सी’ के निर्देशक डॉ . चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने कहा था, ‘अब मेरी फिल्म की नवीनता खत्म हो गई। बनारस के रंग और ढंग को ‘रांझणा’ ने

फिल्‍म समीक्षा : फुकरे

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-अजय ब्रह्मात्मज मृगदीप सिंह लांबा की फिल्म 'फुकरे' अपने किरदारों की वजह से याद रहती है। फिल्म के चार मुख्य किरदार हैं-हनी (पुलकित सम्राट), चूचा (वरुण), बाली (मनजीत सिंह) और जफर (अली जफर)। इनके अलावा दो और पात्र हमारे संग थिएटर से निकाल आते हैं। कॉलेज के सिक्युरिटी इंचार्ज पंडित जी (पंकज त्रिपाठी) और भोली पंजाबन (रिचा चड्ढा)..ये दोनों 'फुकरे' के स्तंभ हैं। इनकी अदाकारी फिल्म को जरूरी मजबूती प्रदान करती है। बेरोजगार युवकों की कहानी हिंदी फिल्मों के लिए नई नहीं रह गई है। पिछले कुछ सालों में अनेक फिल्मों में हम इन्हें देख चुके हैं। मृगदीप सिंह लांबा ने इस बार दिल्ली के चार युवकों को चुना है। निठल्ले, आवारा और असफल युवकों को दिल्ली में फुकरे कहते हैं। 'फुकरे' में चार फुकरे हैं। उनकी जिंदगी में कुछ हो नहीं रहा है। वे जैसे-तैसे कुछ कर लेना चाहते हैं। सफल और अमीर होने के लिए वे शॉर्टकट अपनाते हैं, लेकिन अपनी मुहिम में खुद ही फंस जाते हैं। उनकी मजबूरी और बेचारगी हंसाती है। पंडित जी की मक्कारी और भोली पंजाबन की तेजाबी चालाकी फुकरों की जिंदगी को और भी हास्

फिल्‍म समीक्षा : अंकुर अरोड़ा मर्डर केस

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-अजय ब्रह्मात्मज फिल्म के टायटल से स्पष्ट है कि निर्माता-निर्देशक एक घटना को बगैर लाग-लपेट के पेश करना चाहते हैं। सुहैल तातारी ने सच्ची घटनाओं पर आधारित अनेक रियलिस्टिक टीवी शो का निर्देशन किया है। उनके लिए यह काम बहुत मुश्किल नहीं रहा होगा। इस बार उन्हें लगभग दो घंटे में एक प्रभावपूर्ण कहानी दिखानी थी। अपने उद्देश्य में वे सफल रहे हैं। इस फिल्म में कथित मनोरंजन नहीं है, क्योंकि रोमांस और कॉमेडी नहीं है। यह फिल्म उदास करती है। अवसाद बढ़ा देती है। मेडिकल क्षेत्र में डाक्टर की लापरवाही और पैसों के खेल से हम सभी परिचित हैं। स्वास्थ्य सेवा लाभप्रद व्यवसाय बन चुका है। डॉ ़ अस्थाना (के के मेनन) अपने पेशे में दक्ष हैं, लेकिन व्यावसायिक मानसिकता के कारण वे अनेक जरूरतों को नजरअंदाज करते हैं। उनकी प्रतिभा का कायल रोमेश (अर्जुन माथुर) अपनी गर्लफ्रेंड रिया (विशाखा सिंह) के साथ सीखने के उद्देश्य से उनके अस्पताल में इंटर्नशिप लेता है। आरंभिक दृश्यों की भिडं़त में ही स्पष्ट हो जाता है कि डॉ ़ अस्थाना की पोल रोमेश ही खोलेगा। अस्पताल में दाखिल अंकुर अरोड़ा का एक सामान्य ऑपरेशन डॉ ़

सपनों से बंधी ख्वाहिशों की पोटली का बोझ

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-अजय ब्रह्मात्मज     पिछले हफ्ते जिया खान की आत्महत्या पर बहुत कुछ लिखा और बोला गया। अभी तक तहकीकात जारी है। आत्महत्या के कारणों का पता चल जाए तो भी अब जिया वापस नहीं आ सकती। भावावेश में लिया गया जिया का फैसला खतरनाक और खौफनाक स्थितियों को उजागर करता है। बाहर से दिख रही हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की रोशनी के पीछे घुप्प अंधेरा है। इस अंधेरे की जमीन खुरदुरी और जानलेवा है। पता नहीं चलता कि कब पांव लहूलुहान हो गए या आप किसी सुरंग की ओर मुड़ गए। जिया ने मौत की सुरंग में कदम रखा।     हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कामयाबी बेतहाशा खुशी देती है। अचानक लगने लगता है कि आप आसमान में चल रहे हैं, पर गुलजार के शब्दों में इस आसमानी चाल में सितारे पांव में चुभते हैं। एहसास ही नहीं होता कि कब दोस्तों और रिश्तेदारों का संग-साथ छूट गया। अचानक रोने या शेयर करने का मन करता है तो कोई कंधा या सहारा नहीं मिलता। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के तौर-तरीकों से वाकिफ व्यक्तियों को अधिक तकलीफ नहीं होती। उन्हें संभलने या संभालने में देर नहीं लगती। उनक लिए नई राहें खुल जाती हैं। आउटसाइडर यानी बाहर से आई महत्वाकांक्षी प्रतिभाओं के

‘सत्याग्रह’ में पॉलिटिकल जर्नलिस्ट हूं मैं-करीना कपूर

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-अजय ब्रह्मात्मज     आम धारणा है कि शादी के बाद फिल्म अभिनेत्रियों को नई फिल्मों के ऑफर नहीं मिलते। उन्हें घर पर रहना पड़ता है। कुछ सालों पहले की इस सच्चाई को हाल-फिलहाल में शादीशुदा हुई अभिनेत्रियों ने झुठला दिया है। विद्या बालन ‘घनचक्कर’ पूरी करने के बाद ‘शादी के साइड इफेक्टस’ की शूटिंग कर रही हैं। हाल ही में निर्णायक मंडल के सदस्य के तौर पर उन्होंने कान फिल्म फेस्टिवल में हिस्सा लिया। करीना कपूर भी व्यस्त हैं। उन्होंने प्रकाश झा की ‘सत्याग्रह’ की शूटिंग पूरी कर ली है। फिलहाल वह धर्मा प्रोडक्शन की ‘गोरी तेरे प्यार में’ की शूटिंग कर रही हैं। कमर्शियल के साथ-साथ उद्देश्यपरक और सामाजिक फिल्मों में करीना कपूर की मौजूदगी से हम परिचित हैं। उन्होंने ‘चमेली’, ‘देव’, ‘ओमकारा’ और ‘हीराइन’ जैसी फिल्मों में काम किया है। प्रकाश झा की ‘सत्याग्रह’ इसी तरह की उनकी अगली फिल्म है। इस फिल्म में वह एक बार फिर अजय देवगन के साथ दिखेंगी। - प्रकाश झा के साथ काम करने का कैसा अनुभव रहा? 0 अच्छा रहा। मैंने सभी एक्टिव डायरेक्टर के साथ काम किया है। कुछ ऐसा संयोग रहा कि प्रकाश झा के साथ कभी काम करने क

पापुलर उत्तराधिकारी रणबीर कपूर

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-अजय ब्रह्मात्मज     मालूम नहीं कल ‘ये जवानी है दीवानी’ का हश्र क्या होगा? रिलीज के पहले से यह फिल्म चर्चा में है। रणबीर कपूर के ‘बदतमीज दिल’ और ‘बलम पिचकारी’ गाने हिट हो चुके हैं। माना जा रहा है कि रणबीर कपूर के हाथों में एक विजेता फिल्म है। फिल्म का बिजनेस 100 करोड़ होगा कि नहीं? यह सवाल आजकल हर चर्चित फिल्म को घेर लेता है। रणबीर कपूर को अभी न तो 100 करोड़ की चिंता है और न यह फिक्र है कि सितारों की होड़ में वे कहां हैं? उन्हें अगले बड़े स्टार के तौर पर सभी स्वीकार कर चुके हैं। खानत्रयी के बाद रितिक रोशन ने कुछ फिल्मों में जलवा दिखाया , लेकिन वे पापुलर उत्तराधिकारी नहीं बन सके। हालांकि पूरी संभावना है कि ‘कृष’ के सीक्वेल से उनकी धमाकेदार वापसी होगी। वे एक बार फिर से लोकप्रियता के शीर्ष पर होंगे। उनके बाद अगर किसी हीरो ने साबित करने के साथ संभावना दिखाई है तो वे रणबीर कपूर ही हैं।     ‘ये जवानी है दीवानी’ रणबीर कपूर के साथ धर्मा प्रोडक्शन की दूसरी फिल्म है। इसके निर्देशक अयान मुखर्जी हैं। अयान मुखर्जी और रणबीर कपूर की भी यह दूसरी फिल्म है। रणबीर कपूर अपनी सलाहियत और व्यवहार से प्रो

फिल्‍म समीक्षा : यमला पगला दीवाना 2

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आदरणीय धरम जी,  अभी-अभी 'यमला पगला दीवाना 2' देख कर लौटा हूं। मैं मर्माहत और दुखी हूं। इस फिल्म की समीक्षा लिखना बड़ी चुनौती है। फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसके बारे में कुछ सकारात्मक लिखा जा सके। 'यमला पगला दीवाना 2' इस दशक की एक कमजोर फिल्म है। अफसोस की बात है कि यह देओल परिवार से आई है। इस फिल्म में आप की बहू लिंडा और पोते करण का भी सृजनात्मक योगदान है। इस पारिवारिक उद्यम से अपेक्षाएं बढ़ गई थीं। मुझे उम्मीद थी कि कम से कम 'यमला पगला दीवाना' जैसी दीवानगी और मस्ती तो दिखेगी। इस फिल्म ने निराश किया। इस फिल्म से बेहतरीन कोशिश भी समीर कर्णिक की। दशकों से मेरी तरह करोड़ों दर्शक आप की फिल्में देखते हुए बड़े हुए हैं। याद करने बैठें तो आप की अनगिनत फिल्मों की मनोरंजक खुमारी आज भी तारी है। निश्चित ही हिंदी फिल्मों में आप के योगदान को ढंग से रेखांकित नहीं किया गया है। अभी तक आपका देय आप को नहीं मिला है, लेकिन 'यमला पगला दीवाना 2' जैसी फिल्में आप के मेरे जैसे दर्शकों और प्रशंसकों को आहत करती हैं। चुभती है 'यमला पगला दीवाना 2' जैसी मु

‘हाईवे’ के हमसफर वीरा और महावीर

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-अजय ब्रह्मात्मज     ‘हाईवे’ के हमसफर हैं वीरा त्रिपाठी और महावीर भाटी। दोनों अलग मिजाज के हैं, लेकिन इस सफर में साथ हैं। कुछ मजबूरियां हैं कि उनके रास्ते जुदा नहीं हो सकते। साथ-साथ चलते हुए उन्होंने देश के छह राज्यों के रास्ते नापे हैं। वे अनेक शहरों, कस्बों और गांवों से गुजर रहे हैं। दिल्ली की वीरा त्रिपाठी आभिजात्य परिवार की अमीर लडक़ी है। समझने की बात तो दूर रही,अभी उसने ठीक से दुनिया देखी ही नहीं है। दूसरी तरफ महावीर भाटी है। वह गूजर है। आपराधिक पृष्ठभूमि के महावीर को दुनिया के सारे गुर मालूम हैं। वह चालाक और दुष्ट भी है। दो विपरीत स्वभाव के किरदारों की रहस्यमय यात्रा की कहानी है ‘हाईवे’। इसे इम्तियाज अली डायरेक्ट कर रहे हैं और  निर्माता हैं साजिद नाडियाडवाला।     वीरा त्रिपाठी और महावीर भाटी से हमारी मुलाकात पहलगाम में हो गई। पहलगाम से 16 किलोमीटर दूर है अरू घाटी। अरू घाटी में उपर पहाडिय़ों पर दोनों के मौजूद होने की खबर मिली थी। स्थानीय गाइड और सहायकों की मदद से घोड़े पर सवार होकर ऊपर पहुंचना था। दो दिन पहले बारिश हो जाने से फिसलन बढ़ गई थी। कीचड़ तो पूरे भारत में बेहिसाब मिलती ह