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फिल्‍म समीक्षा : ह्वाट द फिश

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-अजय ब्रह्मात्‍मज 'व्हाट द फिश' केवल डिंपल कपाड़िया की फिल्म नहीं है। फिल्म के प्रचार में यह धोखा गढ़ा गया है। वह केंद्रीय चरित्र जरूर हैं, लेकिन फिल्म में अनेक चरित्र आते-जाते हैं। 'व्हाट द फिश' ऐसी डायरी है, जिसके पन्ने हवा में फड़फड़ा रहे हैं। कभी कोई पृष्ठ खुल जाता है, कभी कोई। तारतम्य बिठाना मुश्किल होता है। आखिरकार पूरी कहानी जुड़ती है तो हम ठगा महसूस करते हैं, क्योंकि एक रोचक विषय को अयोग्य लेखन और निर्देशन से अरुचिकर बना दिया गया है। मौसी को अपनी पैरॉट फिश और मनी प्लांट प्रिय है। महीने भर के लिए घर से बाहर जा रही मौसी इन दोनों को दाना डालने और सींचने की जिम्मेदारी भतीजी को देकर जाती हैं। भतीजी अपने ब्वॉयफ्रेंड को जिम्मेदारी सौंपती है और फिर यह जिम्मेदारी हर चरित्र के साथ आगे सरकती जाती है। किरदारों को अतीत और भविष्य से काट कर सिर्फ वर्तमान में रखा गया है। उनके बारे में ज्यादा न जानने से अपरिचय भाव बना रहता है। नए कलाकारों ने अपनी भूमिकाओं में स्वतंत्र मेहनत की है। यह मेहनत उनके परफारमेंस तक ही सीमित रहती है। कड़ी से कड़ी जुड़ती जाती है, लेकिन व

ऑन सेट : रनिंगशादी डॉट कॉम : बेगानी शादी में दीवाने

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ऑन सेट बेगानी शादी में दीवाने -अजय ब्रह्मात्मज     पटियाला के गुरुबख्श कॉलोनी की एक गली में गहमागहमी है। दोमंजिले मकान के अहाते में खड़ी सफेद एंबेस्डर के पास मामा जी अपनी लैम्ब्रेटा स्कूटर के किक मार रहे हैं। पुराना स्कूटर स्टार्ट ही नहीं हो रहा है। उन्हें एडवर्टाइज(ऐड) बनाने के लिए जाना है। तभी सामने से उनका भांजा भरोसे अपने दोस्तों के साथ एक ऑटो से उतरता है। मामा उसे देख कर चौंकते हैं और झेंपते हुए कहते हैं, ‘बेटे तुमने बता दिया होता तो मैं तुझे लेने आ जाता।’ वे अपने सफेद एंबेस्डर की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं कि यह सफेद हाथी यूं ही खड़ा रहता है। भरोसे मामा की बातों की सच्चाई जानता है। वह हंसता हुआ पूछता है, ‘मामा, आप स्कूटर क्यों नहीं बदल देते?’ फिर खुद ही कहता है,चलिए धक्के मार देता हूं। अपने मेहमान दोस्तों के साथ भरोसे स्कूटर को धक्का लगाता है।     यह निर्माता शूजीत सरकार और निर्देशक अमित राय की फिल्म ‘रनिंगशादी डॉट कॉम’ का एक दृश्य है। इन दिनों पटियाला में इसके बचे दृश्यों की शूटिंग चल रही है। बातचीत में पता चलता है कि वास्तव में पटियाला में शूट किया जा रहा सीन पटना के किसी

दरअसल : शहर और फिल्मों का रिश्ता

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-अजय ब्रह्मात्मज     घूमने-फिरने के शौकीन जानते हैं कि ‘लोनली प्लैनेट’ अत्यंत विश्वसनीय और अनुभवसिद्ध जानकारियां देता है। दुनिया में आप कहीं भी जा रहे हों, अगर आपने ‘लोनली प्लैनेट’ का सहारा लिया है तो यकीन करें कि बजट होटल, बजट रेस्तरां और बजट सफर कर सकते हैं। ‘लोनली प्लैनेट’ की जानकारियां अद्यतन और परखी हुई होती हैं। उनकी नयी किताब ‘फिल्मी एस्केप्स’ का विषय बहुत रोचक है। जूही सकलानी ने इसे अपने शोध के आधार पर लिखा है।     ‘फिल्मी एस्केप्स’ में देश के बीस शहरों और राज्यों के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। कश्मीर, गुजरात, केरल, गोवा, लद्दाख जैसे राज्यों के अलावा दिल्ली, आगरा, लखनऊ, वाराणसी, शिमला, कसौली, नैनीताल, अमृतसर, उदयपुर, जैसलमेर, मुंबई, कोलकाता, दार्जीलिंग और ऊटी के बारे में जूही सकलानी ने लिखा है। उन्होंने हर शहर और राज्य में हुई उल्लेखनीय फिल्मों की शूटिंग का हवाला दिया है। साथ ही में उस शहर के होटल और रेस्तरां की सूचना के साथ दर्शनीय स्थानों का विवरण प्रस्तुत किया है। संक्षेप में यह पुस्तक वर्णित शहरों और राज्यों के संबंध में रोचक सूचनाएं देती है। चूंकि उन शहरों और रा

An entertainer should help build the moral fibre of society- Aamir Khan

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- Baradwaj Rangan A week before Aamir Khan was to inaugurate 11th Chennai International Film Festival, he consented to a curtain-raiser interview – and on a warm Thursday afternoon, I found myself waiting in his new sea-facing office in Bandra. The space doesn’t look finished yet, and from the things lying around no clear theme is visible. An oil painting is propped in a corner, various faces of the star from his films, all against a bright red background. There are scattered books – The Savage Detectives by Roberto Bolaño, Captain Pantoja and the Special Service by Mario Vargas Llosa. There are board games – Risk , The Settlers of Catan . On the floor are several clapperboards, foremost among them the one for Rang De Basanti . There are DVDs – the 007 collection, a boxed set of Satyamev Jayate . A royal blue crystal ash tray lies on the centre table, and beside it, a box of Jackson Maruti tissues, from which a single tissue flops over like a Labrador’s ear. Elsewhe

धूम 3 में है बेइंतहा इमोशन : आमिर खान

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-अजय ब्रह्मात्मज/अमित कर्ण आमिर खान अपनी फिल्मों से मैसेज व मनोरंजन का परफेक्ट मिश्रण लोगों को देते हैं। आमिर अब साल के आखिर में लोगों को बहुप्रतीक्षित सौगात ‘धूम 3’ दे रहे हैं। इसे संयोग ही कहें कि फिल्म का स्केल यशराज और आमिर खान के अद्वितीय कॉम्बिनेंशन से आसमानी हो गया है। उन्हें खुद के कद का मुकम्मल एहसास है। वे फिल्म दर फिल्म नए अनुभवों से अमीर(इनलाइटेन) होने की कोशिश कर रहे हैं।      हिंदी फिल्मों के संदर्भ में आमिर ‘धूम’ सीरिज और ‘धूम 3’ की खास बात बताते हैं, ‘धूम’ सीरिज परफेक्ट मनोरंजन की श्योर-शॉट गारंटी देती है। लार्जर दैन लाइफ किरदार पेश करती है। जबरदस्त थ्रिल, खूबसूरत कैमरा वर्क और उम्दा गाने सुनने को मिलेंगे। ‘धूम 3’ ने पिछली दोनों किश्तों से अलग काम किया है। इसमें बेइंतहा इमोशन है। इसकी कहानी बहुत जज्बाती है। इस बात ने मुझे भी स्क्रिप्ट की तरफ अट्रैक्ट किया। मुझे लगता है कि यह फिल्म सभी उम्र वर्ग और सोच के लोगों के लिए है। यह हर किसी को अपील करेगा। इसकी क्षमता बहुत ज्यादा है। वह दर्शकों की उम्मीदों पर कितना खड़ा उतर पाती है, वह देखने वाली बात होगी। यह मेरे 25 साल के क

फिल्‍म समीक्षा : आर...राजकुमार

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-अजय ब्रह्मात्‍मज प्रभु देवा निर्देशित 'वांटेड' से ऐसी फिल्मों की शुरुआत हुई थी। ढेर सारे हवाई एक्शन, हवा में लहराते कलाकार, टूटी-फूटी चीजों का स्लो मोशन में बिखरना और उड़ना, बदतमीज हीरो, बेजरूरत के नाच-गाने और इन सब में प्रेम का छौंक, प्रेमिका के प्रति नरम दिल नायक ..दक्षिण के प्रभाव में बन रही ऐसी फिल्मों की लोकप्रियता और कमाई ने हिंदी की पॉपुलर फिल्मों का फार्मूला तय कर दिया है। प्रभुदेवा निर्देशित 'आर ..राजकुमार' इसी कड़ी की ताजा फिल्म है। इस बार शाहिद कपूर को उन्होंने एक्शन हीरो की छवि दी है। मासूम, रोमांटिक और भोले दिखने वाले शाहिद कपूर को खूंटी दाढ़ी देकर रफ-टफ बनाया गया है। एक्शन के साथ डांस का भड़कदार तड़का है। शाहिद कपूर निश्चित ही सिद्ध डांसर हैं। श्यामक डावर के स्कूल के डांसर शाहिद कपूर को प्रभु देवा ने अपनी स्टाइल में मरोड़ दिया है। एक्शन और डांस दोनों में शाहिद कपूर की जी तोड़ मेहनत दिखती है। ऐसी फिल्मों के प्रशंसक दर्शकों को 'आर .. राजकुमार' मनोरंजक लग सकती है, लेकिन लोकप्रियता की संभावना के बावजूद इस फिल्म की सराहना नहीं की जा सकती। फि

फिल्‍म समीक्षा : क्‍लब 60

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  संजय त्रिपाठी की 'क्लब 60' मुख्य किरदार तारीक के दृष्टिकोण से चलती है। तारीक और सायरा (फारुख शेख और सारिका) के जीवन में एक बड़ा वैक्यूम आ गया है। समय के साथ सायरा संभल जाती हैं, लेकिन तारीक लंबे समय तक अपने गम से उबर नहीं पाते। ऐसे में उनकी मुलाकात मस्तमौला मनुभाई से हो जाती है। 'मान न मान, मैं तेरा मेहमान' मुहावरे को चरितार्थ करते मनुभाई की आत्मीयता से उन्हें पहले खीझ होती है। तारीक और सायरा सी एकांत जिंदगी में न केवल मनुभाई प्रवेश करते हैं, बल्कि उन्हें अपने साथ 'क्लब 60' तक ले जाते हैं। 'क्लब 60' साठ की उम्र पार कर चुके नागरिकों का एक क्लब है, जहां वे अपने खाली समय को खेल और मेलजोल में बिताते हैं। मनसुख भाई के साथ हम 'क्लब 60' के सदस्यों से मिलते हैं। इन सदस्यों में मनसुखानी, सिन्हा, ढिल्लन, और जफर भी हैं। इनकी दोस्ती की धुरी है मनसुख भाई। उनके पहुंचते ही क्लब में रवानी आ जाती है। धीरे-धीरे पता चलता है कि सभी की जिंदगी में गम हैं। वे अपने-अपने गमों को धकेल कर खुश रहने की कोशिश करते हैं। सबकी अपनी आदतें हैं

रणदीप हुडा : उलझे किरदारों का एक्‍टर

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-अजय ब्रह्मात्मज     रणदीप हुडा इम्तियाज अली की ‘हाईवे’ में रफ गूजर युवक महावीर भाटी की भूमिका निभा रहे हैं। ‘हाईवे’ रोड जर्नी फिल्म है। उनके साथ आलिया भट्ट हैं। इस फिल्म की शुटिंग 6 राज्यों में अनछुए लोकेशन पर हुई है।     दिल्ली से हमारी यात्रा शुरू हुई थी और दिल्ली में ही खत्म हुई। इस बीच हमने छह राज्यों को पार किया। अपनी जिंदगी में मैंने देश का इतना हिस्सा पहले नहीं देखा था। हम ऐसी सूनी और एकांत जगहों पर गए हैं,जहां कभी पर्यटक नहीं जाते। फिल्म में हमारा उद्देश्य लोगों से दूर रहने का है। इम्तियाज ने इसी उद्देश्य के लिए हमें इतना भ्रमण करवाया है। लोकेशन पर पहुंचने में ही काफी समय निकल जाते थे। शूटिंग कुछ ही दृश्यों की हो पाती थी।     यह पिक्चर जर्नी की है। इसमें किरदारों की बाहरी (फिजिकल) जर्नी के साथ-साथ भीतरी (इटरनल) जर्नी है। फिल्म के शुरू से अंत तक का सफर जमीन पर थोड़ा कम है। अंदरुनी यात्रा बहुत लंबी है। इस फिल्म में मैं दिल्ली के आस-पास का गूजर हूं, जो मेरे अन्य किरदारों के तरह ही परेशान हाल है। शायद निर्देशकों को लगता है कि मैं उलझे हुए किरदारों की आंतरिक कशमकश को अच्छी तरह

दरअसल : थिएटर शिष्टाचार

-अजय ब्रह्मात्मज     भारत में सिनेमा के 100 साल हो गए। तमाम सेमिनारों, बहस-मुबाहिसों और चर्चाओं में भारतीय सिनेमा के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया गया। थिएटर पर चर्चा नहीं हुई। फिल्मों के रसास्वादन में थिएटर की बड़ी भूमिका होती है। भारत में रसास्वादन की प्रक्रिया में थिएटर के योगदान और अवदान पर कभी गंभीर विमर्श नहीं हुआ। इधर मल्टीप्लेक्स आने के बाद इस पर तो चर्चा होती है कि इसके प्रभाव में सिनेमा बदल रहा है, लेकिन कभी किसी ने थिएटर शिष्टाचार पर कुछ नहीं लिखा। विदेशों में अवश्य शिष्टाचार का अभियान चला है। हाल ही में प्रख्यात पॉप सिंगर मडोना एक फिल्म शो में सिर्फ टेक्स्ट मैसेज भेज रही थीं। साथ के दर्शक की आपत्ति के बावजूद उन्होंने ऐसा किया तो उस थिएटर चेन के मालिक ने अपने सभी थिएटरों में उनके माफी मांगने तक प्रवेश निषिद्ध कर दिया। मडोना ने माफी मांगी या नहीं? या ऐसे फैसले से वह अप्रभावित रहीं? इसकी जानकारी तो नहीं मिली, लेकिन यह खबर स्वयं ही रोचक, महत्वपूर्ण और अनुकरणीय है।     इधर सोशल मीडिया नेटवर्क पर अच्छी फिल्में देख कर लौटे कई दर्शकों ने पड़ोसी दर्शकों के बेजा व्यवहार का उल्लेख कि

बहुपयोगी संवाद माध्यम है सोशल मीडिया

-अजय ब्रह्मात्मज संचार माध्यमों के विकास , प्रसार और बढ़ती भूमिकाओं को स्वीकार और अंगीकार करने के बावजूद सात साल पहले तक किसी ने कल्पना नहीं की थी कि सोशल मीडिया का अंतर्जाल हमारी सोच , समझ , दृष्टिकोण , विचार और राजनीति को इस कदर प्रभावित करेगा। सोशल मीडिया नेटवर्क ने सभी यूजर्स को अभिव्यक्ति का सशक्त उपकरण दे दिया है। इसकी विशेषता पारस्परिकता है। इसमें स्वतंत्रता अंतर्निहित है। अगर आप मोबाइल और कंप्यूटर के जरिए इंटरनेट से जुड़े हुए हैं तो अपनी सुविधा और रुचि से सारे संसार से संपर्क बनाए रख सकते हैं अर्द्धशिक्षित भारतीय समाज में सोशल मीडिया की महत्व और भूमिका के संबंध में फिलहाल सर्व सहमति नहीं है। कभी यह अत्यंत उपयोगी और आवश्यक माध्यम प्रतीत होता है तो कभी हर तरफ शोर मचने लगता है कि इस से समाज का नुकसान हो रहा है। हर नए माध्यम और आविष्कार की तरह सोशल मीडिया अभी परीक्षण और परिणाम के दौर से ही गुजर रहा है। अंतरराष्ट्रीय मापदंड और आंकड़ों की तुलना में अभी भारत में इंटरनेट यूजर्स की संख्या आबादी के अनुपात में कम है , लेकिन सिर्फ संख्या की बात करें तो यह कई देशों की जनसंख्या से