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फिल्‍म समीक्षा -फाइंडिंग फैनी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज    सबसे पहले यह हिंदी की मौलिक फिल्म नहीं है। होमी अदजानिया निर्देशित फाइंडिंग फैनी मूल रूप से इंग्लिश फिल्म है। हालांकि यह हॉलीवुड की इंग्लिश फिल्म से अलग है, क्योंकि इसमें गोवा है। गोवा के किरदारों को निभाते दीपिका पादुकोण और अर्जुन कपूर हैं। इन्हें हम पसंद करने लगे हैं। यह इंग्लिश मिजाज की भारतीय फिल्म है, जिसे अतिरिक्त कलेक्शन की उम्मीद में हिंदी में डब कर रिलीज कर दिया गया है। इस गलतफहमी में फिल्म देखने न चले जाएं यह हिंदी की एक और फिल्म हैं। हां, अगर आप इंग्लिश मिजाज की फिल्में पसंद करते हैं तो जरूर इसे इंग्लिश में देखें। भाषा और मुहावरों का वहां सटीक उपयोग हुआ है। हिंदी में डब करने में मजा खो गया है और प्रभाव भी। कई दृश्यों में तो होंठ कुछ और ढंग से हिल रहे हैं और सुनाई कुछ और पड़ रहा है। यह एक साथ इंग्लिश और हिंदी में बनी फिल्म नहीं है। इन दिनों हॉलीवुड की फिल्में भी डब होकर हिंदी में रिलीज होती हैं, लेकिन उनमें होंठ और शब्दों को मिलाने की कोशिश रहती है। फाइंडिंग फैनी में लापरवाही झलकती है। गोवा के एक गांव पाकोलिम में फाइंडिंग फैनी की किर

फिल्‍म समीक्षा : क्रीचर

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-अजय ब्रह्माात्‍मज    एक जंगल है। आहना अपने अतीत से पीछा छुड़ा कर उस जंगल में आती है और एक नया बिजनेस आरंभ करती है। उसने एक बुटीक होटल खोला है। उसे उम्मीद है कि प्रकृति के बीच फुर्सत के समय गुजारने के लिए मेहमान आएंगे और उसका होटल गुलजार हो जाएगा। निजी देख-रेख में वह अपने होटल को सुंदर और व्यवस्थित रूप देती है। उसे नहीं मालूम कि सकी योजनाओं को कोई ग्रस भी सकता है। होटल के उद्घाटन के पहले से ही इसके लक्षण नजर आने लगते हैं। शुरु से ही खौफ मंडराने लगता है। विक्रम भट्ट आनी सीमाओं में डर और खौफ से संबंधित फिल्में बनाते रहे हैं। उनमें से कुछ दर्शकों को पसंद आई हैं। इन दिनों विक्रम भट्ट इस जोनर में कुछ नया करने की कोशिश में लगे हैं। इसी कोशिश का नतीजा है क्रीचर। विक्रम भट्ट ने देश में उपलब्ध तकनीक और प्रतिभा के उपयोग से 3डी और वीएफएक्स के जरिए ब्रह्मराक्षस तैयार किया है। उन्होंने इसके पहले भी अपनी फिल्मों में भारतीय मिथकों का इस्तेमाल किया है। इस बार उन्होंने ब्रह्मराक्षस की अवधारणा से प्रेरणा ली है। ब्रह्मराक्षस का उल्लेख गीता और अन्य ग्रंथों में मिलता है। हिंदी के विख

दरअसल : 'फाइंडिंग फैनी' के संकेत

-अजय ब्रह्मात्मज     होमी अदजानिया की अर्जुन कपूर और दीपिका पादुकोण अभिनीत 'फाइंडिंग फैनी' के प्रचार में कहीं नहीं कहा जा रहा है कि यह अंग्रेजी फिल्म है। इसमें पंकज कपूर, डिंपल कपाडिय़ा और नसीरुद्दीन शाह जैसे दिग्गज कलाकार भी हैं। फिल्म के कुछ गाने हिंदी में आए। यह संभ्रम ैपैदा हो रहा है कि यह हिंदी फिल्म ही है। दरअसल, यह अंग्रेजी फिल्म है। इसमें हिंदी फिल्मों के पॉपुलर चेहरे हैं। इसे हिंदी में डब किया जाएगा, जैसे 'डेल्ही बेल को किया गया था। 'फाइंडिंग फैनी के हंसी-मजाक और महौल में गोवा की गंध है और भाषा मुख्य रूप से अंग्रेजी और कोंकणी रखी गई है। फिल्म के निर्देशक होमी अदजानिया का दावा है कि वे इस फिल्म से भारतीय फिल्मों का प्रचलित ढांचा तोड़ेंगे। स्पष्ट शब्दों में कहें तो वे फिल्मों की भाषा अंग्रेजी करना चाहते हैं। अपनी इस जरूरत के लिए वे हिंदी फिल्मों के पॉपुलर सितारों का उपयोग कर रहे हैं।     क्या 'फाइंडिंग फैनी' की सफलता से मुंबई में अंग्रेजी फिल्मों के निर्माण का चलन बढ़ेगा? अगर चलन बढ़ा तो फिल्म इंडस्ट्री के युवा लेखकों, निर्देशकों और कलाक

आशुतोष गोवारिकर ले आएंगे ‘एवरेस्ट’

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-अजय ब्रह्मात्मज     आशुतोष गोवारिकर टीवी पर आ रहे हैं। 1987 से 1999 के बीच कुछ धारावाहिकों और फिल्मों में अभिनय करने के बाद आशुतोष गोवारिकर ने ‘लगान’ फिल्म के निर्देशन से बड़ी सफलता हासिल की। ‘लगान’ से पहले वह ‘पहला नशा’ और ‘बाजी’ जैसी चालू फिल्में निर्देशित कर चुके थे। ‘लगान’ के बाद उन्होंने ‘स्वदेस’ और ‘जोधा अकबर’ जैसी फिल्में निर्देशित कीं। उनकी पिछली दो फिल्में ज्यादा नहीं चलीं। फिलहाल उन्होंने रितिक रोशन के साथ ‘मोहनजोदाड़ो’ की घोषणा की है। इसकी शूटिंग अक्टूबर में आरंभ होगी। अक्टूबर में ही उनके निर्देशन में बन रहे टीवी शो ‘एवरेस्ट’ का प्रसारण आरंभ होगा।     टीवी शो ‘एवरेस्ट’ की कहानी है। वह अपने पिता के सपनों को पूरा करने के लिए एक एडवेंचर पर निकलती है। शो की जानकारी देते हैं आशुतोष गोवारिकर,‘यह 21 साल की एक लडक़ी की कहानी है,जिसे आज पता चला है कि उसके पिता नहीे चाहते थे कि उसका जन्म हो। उनकी समझ में बेटियां बेटों के मुकाबले में कमतर होती हैं। बेटा होता तो वह मेरे सपने पूरा करता। वह अपने पिता से बेइंतहा प्यार करती है,लेकिन इस जानकारी से हतप्रभ रह जाती है। वह अपने पिता से न

खुशकिस्मत हूं मैं - फवाद खान

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-अजय ब्रह्मात्मज फवाद खान कुछ ऐसे दुर्लभ सितारों में हैं, जिनके प्रति पहली फिल्म से ही इतनी उत्सुकता बनी है। इसके पहले कपूर खानदान के रणबीर कपूर के प्रति लगभग ऐसी जिज्ञासा रही थी। फवाद के लिए यह इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि वह पाकिस्तानी मूल के एक्टर हैं। लाहौर में रचे-बसे फवाद ने माडलिंग और गायकी के बाद शोएब मंसूर की फिल्म ‘खुदा के लिए’ से एक्ंिटग की शुरुआत की। चंद साल पहले उन्हें मुंबई से एक फिल्म का आफर मिला था, लेकिन तब दोनों देशों के संबंध बिगडऩे की वजह से फवाद का भारत आ पाना संभव नहीं हो पाया था। ‘देर आयद दुरुस्त आयद’ मुहावरे के तर्ज पर फवाद 2014 में शशांक घोष की फिल्म ‘खूबसूरत’ में सोनम कपूर के साथ आ रहे हैं। फिल्म की रिलीज के पहले जिदंगी चैनल पर आए उनके टीवी ड्रामा ‘जिंदगी गुलजार है’ ने उनके लिए लोकप्रियता की कालीन बिछा दी है। भारत में फवाद के प्रशंसक बढ़ गए हैं। अपनी इस लोकप्रियता से फवाद भी ताज्जुब में हैं और बड़ी चुनौती महसूस कर रहे हैं।     -‘खूबसूरत’ आने के पहले आपकी लोकप्रियता का जबरदस्त माहौल बना हुआ है। बतौर पाकिस्तानी एक्टर आप किसे किस रूप में एं'वाय कर रहे

जिद्दी धुन के धनी संजय लीला भंसाली

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-अजय ब्रह्मात्मज     हाल-फिलहाल में करण जौहर ने एक चैट शो में संजय लीला भंसाली का जिक्र आने पर मुंह बिचकाया तो सलमान खान ने सूरज बडज़ात्या के साथ चल रही एक बातचीत तें कहा कि संजय को सूरज जी से सीखना चाहिए कि कैसे ठंडे मन से काम किया जा सकता है। इन दोनों प्रसंगों का उल्लेख करने के बाद जब संजय लीला भंसाली की प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की गई तो उन्होंने खामोशी बरती। हां,इतना जरूर कहा कि समय आने पर कुछ कहूंगा। जवाब दूंगा। संजय लीला भंसाली के बारे में विख्यात है कि वे तुनकमिजाज हैं। सेट पर कुछ भी उनकी सोच के खिलाफ हो तो वे भडक़ जाते हैं और फिर उनकी डांट-डपट आरंभ हो जाती है। लोगों से मुलाकात में भी उनके चेहरे पर सवालिया भाव रहते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि वे खीझे हुए हैं और मुंह खोला तो कुछ कटु ही बोलेंगे। संजय लीला भंसाली अपने प्रति फैली इस धारणा को तोडऩा नहीं चाहते। हालांकि वे इधर काफी बदल गए हैं। उम्र के साथ संयत हो गए हैं। दूसरों की सुनते हैं और उनके पाइंट ऑफ व्यू को समझने की कोशिश करते हैं। उनमें आए बदलाव का सीधा उदाहरण अन्य निर्देशकों के साथ आई उनकी फिल्में हैं। उन्होंने राघव डार के साथ

फिल्‍म समीक्षा : मैरी कॉम

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-अजय ब्रह्मात्‍मज                    मैरी कॉम के जीवन और जीत को समेटती ओमंग कुमार की फिल्म 'मैरी कॉम' मणिपुर की एक साधारण लड़की की अभिलाषा और संघर्ष की कहानी है। देश के सुदूर इलाकों में अभाव की जिंदगी जी रहे किशोर-किशोरियों के जीवन-आंगन में भी सपने हैं। परिस्थितियां बाध्य करती हैं कि वे उन सपनों को भूल कर रोजमर्रा जिंदगी को कुबूल कर लें। देश में रोजाना ऐसे लाखों सपने प्रोत्साहन और समर्थन के अभाव में चकनाचूर होते हैं। इनमें ही कहीं कोई कोच सर मिल जाते हैं,जो मैंगते चंग्नेइजैंग मैरी कॉम की जिद को सुन लेते हैं। उसे प्रोत्साहित करते हैं। अप्पा के विरोध के बावजूद मां के सपोर्ट से मैरी कॉम बॉक्सिंग की प्रैक्टिस आरंभ कर देती है। वह धीरे-धीरे अपनी चौकोर दुनिया में आगे बढ़ती है। एक मैच के दौरान टीवी पर लाइव देख रहे अप्पा अचानक बेटी को ललकारते हैं। फिल्म की खूबी है कि भावनाओं के इस उद्रेक में यों प्रतीत होता है कि दूर देश में मुकाबला कर रही मैरी कॉम अप्पा की ललकार सुन लेती है। वह दोगुने उत्साह से आक्रमण करती है और विजयी होती है। फिल्म देखने से पह

दरअसल : आलिया भट्ट की इमेज बिल्डिंग

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-अजय ब्रह्मात्मज     हम एक ऐसे समाज में रह रहे हैं,जहां साधारण को विशेष और विशेष को अतिसाधारण मानने और समझने का दौर चल रहा है। महेश भट्ट की सुपुत्री आलिया भट्ट फिल्मों में कैमरे के आगे आ चुकी हैं। अभी तक आई उनकी हर फिल्म सफल रही है। उन्हें सराहना भी मिली है। नई पीढ़ी की अभिनेत्रियों में अपनी अदायगी से ज्यादा ताजगी की वजह से उन्हें पसंद किया जा रहा है। बतौर अभिनेत्री अभी उन्हें मुश्किल भूमिकाएं नहीं मिली हैं। हर नई अभिनेत्री आरंभ की कुछ फिल्मों में अपने कच्चेपन के बावजूद स्वाभाविक लगती हैं। उसकी अकेली वजह यही है कि उन भूमिकाओं में हम उन्हें पहली बार देखते समय कुछ नयापन महसूस करते हैं। सामान्य लडक़े-लडक़ी को भी सजा-संवार कर पर्दे पर पेश कर दें तो वह अभिभूत करेगा या करेगी। यकीन न हो तो आप अपनी जवानी की तस्वीरे देख लें। उनमें आप किसी अभिनेता-अभिनेत्री से कम नहीं लगते। नवोदित प्रतिभाओं की परीक्षा चौथी-पांचवीं फिल्म से आरंभ होती है। तब उन्हें किरदार के अनुरूप ढलना होता है। उस समय तक अपने स्वाभाविक अंदाज में वे किरदार में दिखना बंद कर देते हैं। उन्हें सचमुच अभिनय करना पड़ता है।     कुछ समय

सिखाने में आता है आनंद -आनंद मिश्रा

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-अजय ब्रह्मात्मज     हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में देश-विदेश से रोजाना हजारों युवक-युवती पर्दे पर आने की ललक से मुंबई पहुंचते हैं। यों तो मान लिया गया है कि आज की इंडस्ट्री में अभिनेता या अभिनेत्री बनने के लिए हिंदी-उर्दू की जानकारी अनिवार्य नहीं रह गई है। उदाहरण में कट्रीना कैफ समेत अनेक नाम गिना दिए जाते हैं। आनंद मिश्र सालों से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में प्रवेश कर रही प्रतिभाओं को हिंदी पढ़ाने का काम कर रहे हैं। उनकी राय में,‘दुनिया भर से प्रतिभाएं आ रही हैं यहां। इधर अभिनेत्रियों की संख्या बढ़ गई है। वे सभी हिंदी सीखना चाहती हैं। पढऩा और बोलना चाहती हैं। उनमें हिंदी के प्रति आकर्षण है। मेरा अनुभव रहा है कि विदेशों से आई बालाएं हिंदी सीखने में अधिक मेहनत करती हैं। भारत की अभिनेत्रियों को गलतफहमी है कि उन्हें हिंदी आती ही है।’     यह धारणा गलत नहीं है कि हिंदी फिल्मों से हिंदी गायब होती जा रही है। आनंद मिश्र अपने अनुभव से बतााते हैं,‘इधर शायद ही कोई स्क्रिप्ट मुझे हिंदी में मिली हो। कंप्यूटर और स्क्रिप्ट के सॉफ्टवेयर की वजह से अंग्रेजी का चलन बढ़ा है। रोमन में नुख्ता,ंिबंदी और लहज

तस्‍वीरों में मैरी काॅम

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