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षमिताभ में अमिताभ के साथ धनुष

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-अजय ब्रह्मात्मज     धनुष की दूसरी हिंदी फिल्म ‘षमिताभ’ वास्तव में उनकी 28वीं फिल्म है। अभिनय के लिए 2011 में राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके धनुष तमिल फिल्मों के चर्चित और प्रतिष्ठित अभिनेता हैं। इसी साल तमिल में उनकी पांच फिल्में प्रदर्शित होंगी। 2002 से तमिल फिल्मों में सक्रिय धनुष का नाम वेंकटेश प्रभु कस्तूरी राजा है। तमिल के बाहर के दर्शकों ने उन्हें एकबारगी 16 नवंबर 2011 को जाना। उस दिन उनका गाया ‘ह्वाई दिस कोलावरी डी’ यूट्यूब के जरिए सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और पूरा देश उनकी धुन में गुनगुनाता नजर आया। यह उसी दिन तय हो गया था कि जल्दी से जल्दी कोई हिंदी फिल्मकार उन्हें अपनी फिल्म के लिए चुनेगा। आनंद राय ने उन्हें ‘रांझणा’ में बनारसी लडक़े का किरदार दिया तो सभी चौंके,लेकिन फिल्म देखने के बाद पता चला कि वे बनारस के तमिल परिवार के लडक़े कुंदन की भूमिका में थे। ‘रांझणा’ की कामयाबी से उन्हें हिंदी दर्शकों ने पहचाना। उसके बाद से लगातार उनकी अगली हिंदी फिल्म की खबरें आ रही थीं। एक बार फिर उन्होंने चौंकाया। इस बार उन्हें आर बाल्की के निर्देशन में बनी ‘षमिताभ’ में अमिताभ बच्चन के साथ काम

बांबे वेलवेट 15 मई 2015

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 अनुराग कश्‍यप की फिल्‍म बांबे वेलवेट 15 मई 2015 को रिलीज होगी। इस फिल्‍म के बारे में इन दिनों बहुत ज्‍यादा कयास लगाए जा रहे हैं। ज्‍यादातर कयास निगेटिव हैं। अनुराग समर्थक और विरोधी दोनों ही असमंजस में हैं। समर्थकों को लग रहा है कि अनुराग कश्‍यप  लंबे संघर्ष के बाद परिधि से केंद्र की तरफ तेजी से बढ़ने में बदल गए हैं। उनकी सोहबत बदली है। वे पुराने साथियों के लिए पहले की तरह समय नहीं निकाल पाते।  पुराने साथी उनकी इस प्रगति के साथ स्‍वयं को व्‍यवस्थित नहीं कर पा रहे हैं।  दूसरी तरफ पिरोधियों को उनकी प्रगति और ताकत नहीं सोहाती। वे अभी से भविष्‍यवाणियां कर रहे हैं कि अनुराग कश्‍यप की इस फिल्‍म से निर्माता को भारी नुकसान होगा। बगैर किसी आधार की उनकी इन भविष्‍यवाणियों से समर्थकों की शंकाएं बढ़ जाती हैं। नतीजा यह होता है कि बांबे वेलवेट के प्रदर्शन के बाक्‍स आफिस परिणामों की चिुता में व्‍यर्थ ही सभी घुलते जा रहे हैं। इस फिल्‍म में रणवीर कपूख्,करण जौहर और अनुष्‍का शर्मा यूनिक किरदारों को निभा रहे हैं। इस पीरियड फिल्‍म में वे सातवें दशक के किरदारों में हैं। कहा जा रहा है कि उन्‍होंने इन

कैरीकेचर नहीं है झिमली-हुमा कुरेशी

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- अजय ब्रह्मात्मज     हुमा कुरेशी को जानकारी थी कि श्रीराम राघवन जल्दी ही अपनी फिल्म आरंभ करने जा रहे हैं। इच्छा तो थी ही कि उनके साथ काम करने का मौका मिले। जल्दी ही उन्हें कॉल भी आ गया कि श्रीराम ने नैरेशन के लिए बुलाया है। इस कॉल से ही उत्साह बढ़ गया। हुमा बताती हैं,‘तब मुझे नहीं मालूम था कि क्या स्टोरी है? किस किरदार के लिए मुझे बुलाया जा रहा है। मैं गई। नैरेशन डेढ़-दो घंटे तक चला। सच्ची कहूं तो उस समय आधी बात समझ में नहीं आई। मैं तो इस उत्साह के नशे में थी कि उनके साथ फिल्म करूंगी। न्वॉयर फिल्म को अच्छी तरह समझते हैं। फिल्मों में आने के पहले उपकी ‘एक हसीना थी’ देखी थी। इस फिल्म ने मुझे सैफ अली खान का प्रशंसक बना दिया था। फिल्म का हीरो ग्रे शेड का था।’     हुमा और वरूण की फिल्में ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ और ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ एक ही साल रिलीज हुई थीं। दोनों विपरीत जोनर की फिल्में थीं। हुमा को पता चला कि वरूण ‘बदलापुर’ में ग्रे शेड का रोल कर रहे हैं। वह चौंकी। अपना विस्मय जाहिर करती हैं हुमा,‘मेरी समझ में नहीं आया कि क्यों चाकलेटी हीरो ऐसी फिल्म कर रहा है। नवाजुद्दीन सिद्दिकी के सा

हिंदी टाकीज 2 (4) प्रभावित करता रहा सिनेमा - धीरेन्‍द्र सिंह

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 एक अंतराल के बाद हिंदी टाकीज सीरिज में धीरेन्‍द्र सिंह के संस्‍मरण प्रस्‍तुत हैं। अगर आप भी आने संस्‍मरण्‍ा भेजना चाहते हैं तो लिखें chavannichap@gmail.com मेल भेजने की सूचना मुझे फेसबुक पर दे दें।  -धीरेन्‍द्र सिंह               १०१ साल हो गए हिंदी सिनेमा को और मैं इसकी निरंतरता में मात्र २७ साल शामिल रहा कुछ साल बाल अवस्था के थे सो सिनेमा से दूरी ही रही तब हमारे मनोरंजन के साधन अलग अलग तरह के थे   जैसे गोटियां खेलना, कबड्डी खेलना, क्रिकेट खेलना आदि. सिनेमा के १०० वर्ष पूरे होने पर एक फिल्म बनी थी 'बॉम्बे टॉकीज' जिसका अनुराग कश्यप निर्देशित भाग मुझे सबसे ज्यादा पसंद आया. जब हम छोटे हुआ करते थे तो हमारे घर में टीवी नहीं था मोहल्ले में एक ही रंगीन  टीवी    था   अयोध्या   जी के   यहां , जहाँ  मैंने पहली फिल्म देखी  थी 'हातिम  ताई' जिसमे जीतेन्द्र जी ने 'हातिम अल ताई' की भूमिका निभायी थी उन दिनों इस तरह की जादुई फ़िल्में देखने  का बहुत शौक होता  था इसी तर्ज़ का टीवी में एक शो आता था 'अलिफ लैला' जिसका हर एपिसोड देखना हमारे लिए ज़रूरी सा था

दरअसल : समीक्षकों की समस्याएं

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-अजय ब्रह्मात्मज     हर शुक्रवार को एक से अधिक फिल्में रिलीज होती हैं। महीने और साल में ऐसे अनेक शुक्रवार भी आते हैं,जब तीन से अधिक फिल्मों की रिलीज की घोषणा रहती है। हम समीक्षकों के लिए यह मुश्किल हफ्ता होता है। सोमवार से ही समीक्षकों की चिंता आरंभ हो जाती है। चिंता यह रहती है कि कैसे समय रहते हफ्ते की सारी फिल्में देख ली जाएं और उनके रिव्यू लिख दिए जाएं। वेब पत्रकारिता के आरंभ होने के साथ ही यह दबाव बढ़ गया था कि जल्दी से जल्दी फिल्मों के रिव्यू पोस्ट कर दिए जाएं। पहले जैसी मजबूरी नहीं रह गई थी कि अखबार सुबह आएगा,इसलिए शाम तक रिव्यू लिखे जा सकते हैं। फिल्मों के प्रिव्यू शो गुरुवार तक हो जाते थे। समीक्षकों के पास पर्याप्त समय रहता था। वे फिल्मों के संबंध में ढंग से विचार कर लेते थे। अपनी राय को निश्चित फॉर्म देते थे। रिव्यू भी रविवार को छपते थे,इसलिए फिल्मों के रिव्यू में जल्दबाजी की उक्तियां या सोद्देश्य उलटबांसियां नहीं होती थीं। अभी ऐसा लग सकता है कि तब सब कुछ धीमी गति से चलता रहा होगा। हां,गति धीमी थी,लेकिन दिशा स्पष्ट थी। इन दिनों तो फिल्में देख कर निकलो और आधे घंटे में रिव्य

समाज के सड़ांध का आईना है – ugly : मृत्युंजय प्रभाकर

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-मृत्युंजय प्रभाकर ‘ ugly ’ क्या है? यह सवाल पूछने से बेहतर है कि यह पूछा जाए कि क्या ‘ ugly ’ नहीं है? जिस समाज में हम रहते हैं उस समाज में हमारे आस-पास नजर दौडाएं तो ऐसा क्या है जो अपने ‘ ugly ’ रूप में हमारे सामने नहीं है? बात चाहे मानवीय संबंधो कि हो, सामाजिक संबंधों कि या आर्थिक संबंधों की, ऐसा कुछ भी नहीं है जो अपने विभीत्स रूप को पार नहीं कर गया हो. समाज और मनुष्य को बनाने और जोड़े रखने वाले सारे तंतु बुरी तरह सड चुके हैं और यही हमारे समय और दौर कि सबसे बड़ी हकीक़त है. ‘ प्यार ’ , ‘ दोस्ती ’ , ‘ माँ ’ , ‘ बाप ’ , ‘ संतान ’ जैसे भरी-भरकम शब्द अब खोखले सिद्ध हो गए हैं. जाहिर है समाज बदल रहा है, उसके मूल्य बदल रहे हैं इसलिए शब्दों के मायने भी बदल रहे हैं. शब्द पहले जिन मूल्यों के कारण भारी रूप धरे हुए थे वे मूल्य ही जब सिकुड़ गए हों तो उन शब्दों कि क्या बिसात बची है. अनुराग कश्यप निर्देशित फिल्म ‘ ugly ’ समाज के इसी सड़ांध को अपने सबसे विकृत रूप में सामने लाने का काम करती है.              अकादमिक दुनिया से लेकर बहुत सारी विचारधारात्मक बहसों के दौरान यह बात बार-बार सुनी और

सिर्फ भाई ने किया सपोर्ट - वरुण धवन

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-अजय ब्रह्मात्मज -‘बदलापुर’ हमें बिग बी के एरा वाली फिल्मों की याद दिलाएगी कि नायक को फ्लैशबैक में अपनों से दूर करने वाला शख्स दिखता था। नायक का खून खौलता और वह फिर बदला लेकर ही मानता था? आपने सही कहा, क्योंकि फिल्म के डायरेक्टर श्रीराम राघवन अमिताभ बच्चन के बहुत बड़े फैन हैं। इत्तफाकन बच्चन साहब की ढेर सारी फिल्में रिवेंज पर बेस्ड रही हैं, मगर ‘बदलापुर’ से हम रिवेंज ड्रामा का पैटर्न तोडऩा चाहते हैं। मिसाल के तौर पर आप अखबार में पढ़ते हो कि एक पति ने पड़ोसी से अफेयर की आशंका में अपनी पत्नी को चाकू से गोद दिया। या फलां अपराधी ने एक मासूम को एक-दो नहीं बीसियों बार तलवार या दूसरे धारदार हथियार से नृशंसतापूर्वक मारा। कोई इस किस्म की नफरत से कैसे लैस होता है, हमने उस बारे में फिल्म में पड़ताल करके बताया है। फिल्म का नायक रघु कुछ उसी तरीके से अपनी पत्नी के हत्यारों का खात्मा करता है। उसका तरीका सही है। फिल्म के अंत में हमने एक मोरल लेसन भी दिया है कि क्या ‘आंख के बदले आंख’ के भाव को न्यायोचित है। हर किरदार परतदार है। हम किसी को एकदम से राइट या रौंग करार नहीं दे सकते। -‘बदलापुर’ टाइट

संगीतपूर्ण एकपात्रीय नाटकों में दक्ष शेखर सेन

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-अजय ब्रह्मात्मज  शेखर सेन को हाल ही में राष्‍ट्रीय सम्‍मान और पद से सुशोभित किया गया। एक हफ्ते के अंदर उन्‍हें पद्मश्री सम्‍मान के साथ संगीत नाटक अकादेमी के अध्‍यक्ष पद के लिए भी चुना गया। संगीत और संस्‍कृति में निष्‍णात शेखर सेन खुद के लिए नई राह चुनी। वर्षों के प्रदर्शन और अभ्‍यास से वे इस विधा में दक्ष और पारंगत हो चुके हैं। उम्‍मीद है कि नई जिम्‍मेदारियों के तहत वे अपनी साधना के साथ अन्‍य साधकों के लिए भी सहायक होंगे। वे अलग हैं। वे गायक हैं और अभिनेता भी हैं। संगीत की उन्हें अच्छी समझ है। उन्होंने अपनी एकपत्रीय नाट्य प्रस्तुतियों में गायन,संगीत और अभिनय का रोचक मिश्रण किया है। तुलसी,कबीर,विवेकानंद,साहेब,सन्मति और सूरदास उनके एकपत्रीय नाटक हैं। पिछले 16 सालों में उन्होंने अभी तक 846 बार इन नाटकों का देश-विदेश में मंचन किया है। 1998 से आरंभ यह यात्रा अबाध गति से चलती जा रही है। इस बीच उन्हें अनेक भावनात्मक,आर्थिक और अन्य झंझावातों से भी गुजरना पड़ा,लेकिन प्रदर्शन का प्रवाह कभी नहीं ठिठका। गायन,संगीत और अभिनय की इस अनोखी प्रतिभा के धनी कलाकार का नाम है शेखर सेन। रापुर के अरु

कट्रीना कैफ का चुंबन

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अभिषेक कपूर की फिल्‍म फितूर की शूटिंग चल रही है। सबसे पहली खबर और तस्‍वीर कट्रीना कैफ के चुबन की आई है। हिंदी फिल्‍मों में चुंबन की चर्चाएं होती रहती हैं। यहां दो तस्‍वीरे हैं। पहली हिंदी फिल्‍मों के आरंभिक चुबन की और दूसरी कट्रीना कैफ और आदित्‍य कपूर की 'फितूर' से ....

अमिताभ बच्‍चन से बातचीत

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--स्मिता श्रीवास्तव/अमित कर्ण  भारतीय सिनेमा प्रयोग के दौर से गुजर रहा है। कहानियों में हो रहे प्रयोग दर्शकों और समीक्षकों को भा रहे। संभवत: पहली बार शीर्षक के साथ अनोखा प्रयोग किया गया है। यहां पर बात हो रही है आर. बाल्की की फिल्म ‘षमिताभ’ की। धनुष और अमिताभ बच्चन अभिनीत इस फिल्म का शीर्षक दोनों कलाकारों के नामों को जोडक़र बनाया गया है। भारतीय सिनेमा के इतिहास में संभवत: पहली मर्तबा कलाकारों के नाम पर शीर्षक रखा गया है। फिल्म छह फरवरी को रिलीज हो रही है। फिल्म और जीवन के अन्य पहलुओं पर अमिताभ बच्चन ने खुलकर बात की : -इधर लगातार आ रही आपकी फिल्मों में आपकागेटअप और लुक काफी अलग दिखा है। यह संयोग मात्र है या रोल च्वाइस में देखने को मिलता है? रोल च्वाइस में होता है। जैसी पटकथा लिखी जाती है उसी के अनुरूप निर्देशक हमें बताता है कि ऐसा लुक होना चाहिए। हम वही रूप धारण कर लेते हैं। -एक जमाने में यह शिकायत रहती थी कि हर फिल्म में अमित जी रहते हैं? वो जवानी का दौर था। अब उस तरह का काम हमें मिलने नहीं वाला है। उसमें रोमांटिक हीरो हुआ करते थे। थे। एक ही काम करना पड़ता था। हीरोइन को अपनी बांहों