Posts

दरअसल : ऑन लाइन रिपोर्टिंग की चुनौतियां

Image
दरअसल …   ऑन लाइन रिपोर्टिंग की चुनौतियां -अजय ब्रह्मात्‍मज     हिंदी अखबारों के वेब पार्टल पर हिंदी फिल्‍मों से संबंधित खबरें रहती हैं। 8 से 10 शीर्षकों के अंतर्गत इन खबरों को जगह दी जाती है। कुछ फीचर और फिल्‍म रिव्‍यू भी होते हैं। सभी अखबार एक-दूसरे की नकल और होड़ में लगातार पिछड़ते जा रहे हैं। लगभग सभी अखबारों के पोर्टल पर एक सी खबरें होती हैं। ये खबरें मुख्‍य रूप से एजेंसी और पीआर विज्ञप्तियों से उठा ली जाती हैं। स्‍पष्‍ट है कि कोई विजन नहीं है। अलग होने का धैर्य किसी में नहीं है। तर्क दिया जाता है कि यही चल रहा है। सवाल पूछने पर दूसरे पोर्टल को दिखा दिया जाता है कि वहां भी तो यही हो रहा है। यानी अगर सभी की कमीजें गंदी हैं तो साफ कमीज पहनने की जरूरत क्‍या है ?           पिछली बार मैंने लिखा था कि अखबारर की सामग्रियों और प्रेस विज्ञप्तियों को ऑन लाइन जारी कर देने मात्र में ही ऑन लाइन जर्नलिज्‍म की इतिश्री मान ली जा रही है। अगर विकसित देशों के अखबारों के पार्टल के एंटरटेनमेंट सेक्‍शन देखें तो भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है। फिल्‍म के अनेक पहलू हैं। इन दिनों खबरों के नाम प

अब अंधा नहीं होता प्‍यार-पंकज दुबे

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज ‘ लूजर कहीं का ’ और ‘ ह्वाट अ लूजर ’ यों तो दो किताबे हैं,लेकिन पंकज दुबे की इन दोनों किताबों का कथ्‍य एक ही है। वह उनकी पहली कृति है। दरअसल,पंकज ने प्रयोग किया था। उन्‍होंने एक साथ हिंदी और इंग्लिश में एक ही किताब प्रकशित की। अब उनकी दूसरी(तीसरी और चौथी) किताब ‘ इश्कियापा ’ आ रही है। खुशमिजाज पंकज दुबे पिछली किताब की स्‍वीकृति से खुश हैं और उम्‍मीद करते हैं कि इस बार यह स्‍वीकृति संख्‍या और सराहना में बड़ी होगी।  -क्‍यों आ रही है ‘ इश्कियापा ’ ? 0 इश्‍क और बेवफाई पर बहुत कुछ लिखा गया है। दोनों के बीच का एक ग्रे एरिया है। मुझे लगा उस पर काम होना बाकी है। आसपास की जिंदगियों पर रिसर्च करने पर पाया कि सन् 1991 के बाद आर्थिक उदारीकरण के लागू होने पर प्‍यार के प्रति युवको का नजरिया बदला है। मूझे लगा कि इस पर लिखना चाहिए।  अब प्‍यार अंधा नहीं होता। इश्‍क में जब आप अपना आपा खो दें तो इश्कियापा के जोन में चले जाते हैं। - ‘ इश्कियापा ’ की थीम क्‍या है ? 0 मेरी किताब पटना और मुंबई में सेट है। इन दोनों को कनेक्‍ट करती है। यह लल्‍लन झा और स्‍वीटी पांडे क

औरतों पर ही आती है कयामत- इला बेदी दत्‍ता

Image
हथ लांयां कुमलान नी लाजवंती दे बूटे (ऐ सखि ये लाजवंती के पौधे हैं , हाथ लगाते ही कुम्हला जाते हैं।)  राजिन्‍दर सिंह बेदी की कहानी ‘ लाजवंती ’ की पहली और आखिरी पंक्ति यही है। पार्टीशन की पृष्‍ठभूमि की यह कहानी विभाजन की त्रासदी के साथ मानव स्‍वभाव की मूल प्रवृतियों की ओर भी इशारा करती है। यह सुदरलाल और लाजवंती की कहानी है। कभी राजिन्‍दर सिंह बेदी स्‍वयं इस कहानी पर फिल्‍म बनाना चाहते थे। ‘ देवदास ’ के दरम्‍यान दिलीप कुमार से हुई दोस्‍ती को आगे बढ़ाते हुए राजिन्‍दर सिंह बेदी उनके साथ इस फिल्‍म की प्‍लानिंग की थी। लाजवंती की भूमिका के लिए नूतन के बारे में सोचा गया था,लेकिन किसी वजह से वह फिल्‍म नहीं बन सकी। फिर अभी से 12-13 साल पहले उनकी पोती इला बेदी दत्‍ता ने फिल्‍म के बारे में सोचा। अजय देवगन से आरंभिक बातें हुई। तभी डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी की फिल्‍म ‘ पिंजर ’ आई और ‘ लाजवंती ’ की योजना पूरी नहीं हो सकी। अब वह इसे धारावाहिक के रूप में ला रही हैं। सितंबर के अंत में जीटीवी से इसका प्रसारण होगा। इला का अपने दादा जी की रचनाओं से परिचय थोड़ी देर से हुआ। उनके देहांत के समय

फिल्‍म समीक्षा : हीरो

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज पैकेजिंग और शोकेसिंग नए स्‍टारों की हीरो     1983 में सुभाष घई की फिल्‍म ‘ हीरो ’ आई थी। सिंपल सी कहानी थी। एक गुंडा टाइप लड़का पुलिस कमिश्‍नर की बेटी को अगवा करता है। लड़की की निर्भीकता और खूबसूरती उसे भती है। वह उससे प्रेम करने लगता है। लड़की के प्रभाव में वह सुधरने का प्रयास करता है। कुछ गाने गाता है। थोड़ी-बहुत लड़ाई होती है और अंत में सब ठीक हो जाता है। जैकी हीरो बन जाता है। उसे राधा मिल जाती है। ‘ था ’ और ‘ है ’ मैं फर्क आ जाता है। 2015 की फिल्‍म में 32 सालों के बाद भी कहानी ज्‍यादा नहीं बदली है। यहां सूरज है,जो राधा का अपहरण करता है। और फिर उसके प्रभाव में बदल जाता है। पहली फिल्‍म का हीरो जैकी था। दूसरी फिल्‍म का हीरो सूरज है। दोनों नाम फिल्‍म के एक्‍टर के नाम पर ही रखे गए हैं1 हिरोइन नहीं बदली है। वह तब भी राधा थी। वह आज भी राधा है। हां,तब मीनाक्षी शेषाद्रि राधा थीं। इस बार आथिया शेट्टी राधा बनी हैं।     तात्‍पर्य यह कि 32 सालों के बाद भी अगर कोई फिल्‍मी कहानी प्रासंगिक हो सकती है तो हम समझ सकते हैं कि निर्माता,निर्देशक और उनसे भी

दरअसल : ऑन लाइन नॉट फाइन

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज     कहते हैं विकसित देशों में तकनीकी सुविधाओं को मीडिया में जबरदस्‍त उपयोग होता है। उपयोग भारत में भी हो रहा है। फर्क यही है कि हम मौलिक सोच और योजना के तहत इसका उपयोग नहीं कर रहे हैं। हमेशा की तरह एक भेड़चाल इस भेड़चाल में सारे मीडिया घराने और नए स्‍टार्ट अप में ऑन लाइन पर जोर दिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि यही मीडिया का भविष्‍य है,इसलिए अभी से इसकी तैयारी हो जानी चाहिए। कुछ मीडिया घरानों में धड़ल्‍ले से नियुक्तियां हो रही हैं। उन्‍हें नई तकनीक से लैस किया जा रहा है। पत्रकारों को नवीनतम सुविधासंपन्‍न स्‍मार्ट फोन दिए जा रहे हैं। उन्‍हें रियल टाइम रिपोर्टिंग के लिए कथित रूप से प्रशिक्षित किया जा रहा है। सारा जोर इस पर है कि हम पीछे न रह जाएं।     आप किसी भी न्‍यूज पोर्टल को खोल कर देखें। खबरें पढ़ें। क्‍या कोई फर्क नजर आता है ? एक ही फर्क है कि खबरें न्‍यूजप्रिंट के बजाए अब स्‍क्रीन पर दिख रही हैं। बाकी शीर्षक से लकर खबरों तक सब कुछ जस का तस है। रोशन बैकग्राउंड पर छपे अक्षर छोटे पाइंट में भी पढ़े जा सकते हैं। मोबाइल पर ही खबरें,संपादकीय और अग्र

अपना जमाना याद रहता है -प्रीतम

Image
-अजय ब्रह्मात्मज कुछ समय के लिए आप गायब हो गए थे। कहां और क्यों? -फिल्म ‘धूम’ करने के बाद मैैंने ब्रेक लेने का तय किया। अप्रैल 2014 तक हाथ में लिया काम समेट लिया। सबसे पहले बच्‍चों को लेकर लंदन गया। छह महीने तक मैैंने कोई काम नहीं किया। लगातार काम करने के कारण काफी  बोर हो गया था। काम में ही एनर्जी नहीं मिल रही थी। इसलिए काम से ब्रेक लिया। उस समय कबीर खान ‘बजरंगी भाईजान’ कर रहे थे। अनुराग बसु भी ‘जग्गा जासूस’ की शूटिंग शुरु कर चुके थे। मुझे छुट्टी से लौट कर इन दोनों फिल्मों के लिए काम करना पड़ा। छुट्टी के दौरान मैैंने कई फिल्में छोड़ी। अगस्त 2013 के बाद मैैंने कोई काम नहीं लिया। बड़ी-छोटी जैसी भी फिल्मों के ऑफर मिले। मैैंने साफ मना कर दिया। -यहां हर आदमी को लगता है, दूसरे काम हमें मिलें। ऐसे में काम से बे्रक लेने की हिम्मत कहां से मिलती है? देखिए, मैैं वर्कोहलिक हूं। अपने प्रोफेशन से प्यार करता हूं। मैैं सारा दिन स्टूडियो  में काम करता रहता हूं। वर्कोहलिक इंसान को जब काम करने का मन नहीं होता ह,ै तो इसका मतलब  कोई तो प्रॅाब्लम  है। फिर मैैंने सोचा चलो देखते हैैं। थोड़ा आराम करते हैै

तलाश है खुद की ‘तमाशा’: इम्तियाज अली

Image
-अजय ब्रह्मात्मज     प्रेम, भावना और संबंध के संवेदनशील फिल्मकार इम्तियाज अली इन दिनों ‘तमाशा’ पूरी करने में व्यस्त हैं। तकनीकी बारीकियां हासिल करने की सुविधाएं बढऩे से फिल्म के पोस्ट प्रोडक्शन में भी निर्देशक की तल्लीनता बढ़ जाती है। रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण की ‘तमाशा’ में इम्तियाज अली ने प्रमुख किरदारों को बिल्कुल नए अंदाज में पेश किया है। 21 वीं सदी के दूसरे दशक की इस प्रेम कहानी में स्वयं की खोज के साथ समाज भी है। -क्या है ‘तमाशा’? ‘बाचीजा-ए-अतफाल है दुनिया मेरे आगे. होता है शब-ओ-रोज तमाशा मेरे आगे’ कह लें या ‘दुनिया रंगमंच है और हम एक्टर हैं। अपनी भूमिकाएं निभा रहे हैं।’ हमेशा यह एहसास होता है कि यह जिंदगी एक खेल है, तमाशा है। हमारे इर्द-गिर्द जो चल रहा है, वह सच है कि माया है, हमें पता नहीं। शायरों, कवियों, दार्शनिकों ने अपने-अपने समय पर हमें समझाने की कोशिश की है। ऐसा कहते हैं कि सारी दुनिया की कहानियां एक जैसी होती हैं।     मेरी फिल्म में शिमला का एक बच्चा है। उसकी कहानियों में रुचि है, वह पैसा चुरा कर कहानी सुनने एक किस्सागो के पास रहता है। शिमला में ही एक किस्साग

दरअसल : पुसान इंटरनेशनल फिल्‍म फेस्टिवल

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज     पिछले हफ्ते मीडिया में खबरें आईं कि हंसल मेहता की अलीगढ़,मोजेज सिंह की जुबान और कबीर खान की बजरंगी भाईजान दक्षिण कोरिया के पुसान इंटरनेशनल फिल्‍म फेस्टिवल में शामिल हो रही हैं। आदतन मीडिया ने अपने आलस्‍य में यह जानने की कोशिश नहीं की कि वहां और कौन सी फिल्‍में जा रही हैं। प्राप्‍त सूचनाओं के मुताबिक भारत से दस से अधिक फिल्‍में वहां जा रही हैं,जिनमें सत्‍यजित राय,मणि रत्‍नम से लेकर नीरज घेवन और मोजेज सिंह तक की फिल्‍में शामिल हैं। पुसान के 20वें फेस्टिवल की ओपनिंग फिल्‍म ‘ जुबान ’ भी भारत से है। निर्माता गुनीत मोंगा के लिए इसका निर्देशन मोजेज सिंह ने किया है। इसमें मुख्‍य भूमिकाएं विकी कौशल और सारा जेन डायस ने निभाई हैं।      पूर्व एशिया के देशों के शहरों और व्‍यक्तियों के नामों के उच्‍चारण और हिंदी वर्त्‍तनी को लेकर समस्‍याएं रही हैं। अब तकनीकी सुविधा से सभी नामों के सही उच्‍चारण जान लेने की आसानी के बावजूद कोई मेहनत नहीं करता। अंग्रेजी अक्षरों के नाम पर हिंदी में इसे बुसान लिखा जा रहा है। कोरियाई उच्‍चारण के अनुसार इसे हिंदी में पुसान लिखा