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जन्‍मदिन विशेष - जब ट्रक से लाना पड़ा दिलीप कुमार और सायरा बानो का पोट्रेट

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दिलीप कुमार के करीबी रहे पीटर मार्टिस ने दी रोचक जानकारी...   -अजय ब्रह्मात्‍मज       एच एस रवेल की फिल्‍म ‘ संघर्ष ’ (1968) बन रही थी। उसमें पहले साधना थीं। उन्‍हें हटा कर बाद में वैजयंती माला को लिया गया था। मेरी पहली मुलाकात वहीं हुई थी । मेरी नजदीकी स्‍क्रीन के समय बढ़ी। तब उदयतारा नायर संपादक थीं। उदय तारा जी दिलीप साहब के बहुत करीब थीं। उनकी वजह से मेरा भी संबंध बढ़ा। मैं जब भी ज्स्‍क्रीन के लिए उन्‍हें फोन करता था तो वे स्‍वयं आते थे फोन पर और हमारी बहुत लंबी बातें होती थीं। मैं फोटोग्राफी भी करता था।      दिलीप साहब और मेरी फोटोग्राफी का एक संस्‍मरण है। उनकी शादी की 25 वीं सालगिरह थी। स्‍क्रीन के लिए उस अवसर का फोटो लेना था। मुझे असाइनमेंट मिल गया। दिलीप साहब और सायराबानो दोनों मेरे   नाम से सहमत थे। वह फोटोग्राफ स्‍क्रीन में छपा। वह फोटोग्राफ उन्‍हें इतना पसंद आया कि उन्‍होंने कहा कि लाइफ साइज फोटो   चाहिए। उसे लाइफ साइज इनलार्ज करवाने के लिए मैं मित्‍तर बेदी और विशाल भेंडे के पास गया। उनके पास उसकी सुविधा नहीं थी। फिर दादर का एक स्‍टील फोटोग्राफर मिला। उसने

दरअसल : फिल्‍मों का सालाना बाजार

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-अजय ब्रह्मात्‍मज        गोवा में हर साल इंटरनेशनल फिल्‍म फस्टिवल आयोजित होता है। पिछले आठ सालों से इसी दौरान फिल्‍म बाजार भी आयोजित हो रहा है। एनएफडीसी की देखरेख में इसका आयोजन होता है। एनएफडीसी की चेयरपर्सन नीना लाठ गुप्‍ता(पढ़ें इंटरव्‍यू) ने अपनी टीम के सहयोग से इसे खास मुकाम पर पहुंचाया है। यहां अब देश-विदेश के वितरक,निर्माता और फिल्‍मकार जमा होने लगे हैं। विभिन्‍न श्रेणियों में आई फिल्‍मों को सभी देखते और समझते हैं। उनमें रुचि दिखाते हैं। पसंद आने पर खरीदते हैं,निवेश करते हैं और संभावित फिल्‍मकारों को अभिव्‍यक्ति का मंच देते हैं।     फिल्‍म बाजार में देश के फिलमकार अपनी योजनाओं के लिए संभावित निर्माता से लकर सहयोगी तक पा सकते हें। वि‍भिन्‍न अवस्‍था में पहुंची फिल्‍मों को लेकर आ सकते हैं। यहां वे अपनी फिल्‍मों के बाजार और खरीददार को टटोल सकते हैं। फिल्‍म के विचार से लेकर तैयार फिल्‍म तक के फिल्‍मकार यहां मौजूद थे। कोई अभी सोच रहा है तो किसी को फिल्‍म पूरी करने के लिए कुछ फंड चाहिए। किसी को फिल्‍म बेचनी है तो कोई इंटरनेशनल फिल्‍म फेस्टिवल की संभावनाएं तलाश कर रहा है।

अलग है मेरा तरीका -रणवीर सिंह

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-अजय ब्रह्मात्मज अभिनेता रणवीर सिंह की अदाकारी में लगातार निखार आ रहा है। संजय लीला भंसाली के संग वे साल की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ लेकर आ रहे हैं। - क्या बाजीराव ने मस्तानी से मोहब्बत की है? जी हां, बाजीराव ने मस्तानी से मोहब्बत की है, अय्याशी नहीं। वह बार-बार ऐसा कहता रहता है, क्योंकि कई लोग ऐसे हैं, जो उनकी मुहब्बत के खिलाफ हैं। लिहाजा वह चाहता है कि लोग उनके रिश्ते को समझें व उसका सम्मान करें। -संजय लीला भंसाली के व इतिहास के बाजीराव में कितना अंतर है? या फिर दोनों को एक जैसा ही रखा गया है? एक किताब है ‘पेशवा घराण्याचां इतिहास’। उसमें दर्ज कहानी को संजय सर ने खूबसूरती से दर्शाया है। फिल्म उस किताब पर आधारित है। बाजीराव और मस्तानी के बारे में जो व्याख्या वहां की गई है, उसे ही फिक्शन की शक्ल दी गई है। वे यह नहीं कह रहे हैैं कि दोनों के रिश्तों की कशमकश असल में भी वैसी ही रही होगी, जैसा फिल्म में है। -बाजीराव आपके लिए क्या हैैं? मैैंने स्कूल में केवल शिवाजी महाराज के इतिहास के बारे में पढ़ा था। पेशवा बाजीराव के बारे में पूर्ण विवरण नहीं दिया गया था। उनके बारे में ज

हर चेहरे पर हो मुस्‍कान-रोहित शेट्टी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज     रोहित शेट्टी को अतिवादी प्रतिक्रियाएं मिलती हैं। कुछ उनके घोर प्रशंसक हैं तो कुछ कटु आलोचक हैं। इन दोनों से अप्रभावित रोहित शेट्टी अपनी पसंद की फिल्‍में डायरेक्‍ट करते रहते हैं। ‘ दिलवाले ’ की रिलीज के पहले उन्‍होंने अपनी शैली और फिल्‍म के बारे में विस्‍तार से बातचीत की। - आप के प्रशंसक चाहते हैं कि आप अपनी शैली की फिल्‍में बनाते रहें। उनके इस आग्रह के बारे में क्‍या कहेंगे ? 0 आफिस के बाहर निकलते ही सार्वजनिक स्‍थानों पर मुझे अपनी फिल्‍मों के दर्शक और प्रशंसक मिलते हैं। ‘ खतरों के खिलाड़ी ’ के बाद लोग मुझे पहचानने लगे हैं। वे मुझे यही कहते हैं कि मस्‍त फिल्‍में होती हैं आप की। आप वही बनाते रहो। इनमें बच्‍चे , बुजुर्ग और औरतें होती हैं। उन्‍हें वही देखना है। इन तीनों ग्रुप के लोग   सोशल मीडिया साइट पर नहीं हैं। मैं उनके लिए ही फिल्‍में बनाता हूं। देश में उनकी तादाद बहुत ज्‍यादा है। अगर मैं उनके चेहरे पर स्‍माइल ला सकूं तो इससे बड़ी बात क्‍या होगी। यही मेरा एजेंडा , मोटिव और एम है। कोशिश रहती है कि मेरी फिल्‍मों में वल्‍गैरिटी न हो।मां-बेटी , बा

कोई फिल्म नहीं है इम्तियाज़ की तमाशा -शोभा शमी

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शोभा शमी भोपाल की रहने वाली हैं. इंदौर दिल्ली से पढ़ाई पूरी करने के बाद फिलहाल पेशे से पत्रकार हैं. दैनिक भास्कर, अमर उजाला में काम करने के बाद फिलहाल का ठिकाना नेटवर्क 18 है. कई रुचियों में एक सिनेमा है. बातूनी और घुमक्कड़ . लिखना और लाइफ, फिलॉसफी, प्रेम जैसे विषयों पर लम्बी बातचीत करना पसन्द है. चाहे फिल्म की कहानी हो या लम्बाई, सिनेमेटोग्राफी हो या एडिटिंग.  बहुत ही आसानी से कहा जा सकता है कि ये भी कोई फिल्म है? और बात भी तो यही है कि 'तमाशा' असल में फिल्म है ही नहीं! इम्तियाज़ कि ये फिल्म  दरअसल हम सब के भीतर का 'तमाशा' है.  ये एक किरदार है. एक जूझ है. एक पूरी फिलॉसफी.  और इस तमाशे को सिर्फ सिनेमाहॉल में बैठकर नहीं देखा जा सकता. उसके लिए उस जगह जाना होगा जो दिल और दिमाग के बीच कि एक जगह है. जिसके लिए पहले खुद का एक दुनियादार नकाब उतारना होगा और स्वीकार करना होगा कि फिल्म उसी तरह के अँधेरे में है जैसी कई बार या लगातार हमारी ज़िन्दगी.  तमाशा एक दमदार फिल्म है. और वो खास है क्योंकि वो एक ऐसे किरदार के बारे में बात करती है जो हम सब के भीतर मौ

फिल्‍म समीक्षा : एंग्री इंडियन गॉडेसेस

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दुनिया औरतों की -अजय ब्रह्मात्‍मज     हिंदी फिल्‍मों में पुरुष किरदारों के भाईचारे और दोस्‍ती पर फिल्‍में बनती रही हैं। यह एक मनोरंजक विधा(जोनर) है। महिला किरदारों के बहनापा और दोस्‍ती की बहुत कम फिल्‍में हैं। इस लिहाज से पैन नलिन की फिल्‍म ‘ एंग्री इंडियन गॉडेसेस ’ एक अच्‍छी कोशिश है। इस फिल्‍म में सात महिला किरदार हैं। उनकी पृष्‍ठभूमि अलग और विरोधी तक हैं। कॉलेज में कभी साथ रहीं लड़कियां गोवा में एकत्रित होती हैं। उनमें से एक की शादी होने वाली है। बाकी लड़कियों में से कुछ की शादी हो चुकी है और कुछ अभी तक करिअर और जिंदगी की जद्दोजहद में फंसी हैं। पैन नलिन ने उनके इस मिलन में उनकी जिंदगी के खालीपन,शिकायतों और उम्‍मीदों को रखने की कोशिश की है।     फिल्‍म की शुरुआत रोचक है। आरंभिक मोटाज में हम सातों लड़कियों की जिंदगी की झलक पाते हैं। वे सभी जूझ रही हैं। उन्‍हें इस समाज में सामंजस्‍य बिठाने में दिक्‍कतें हो रही हैं,क्‍योंकि पुरुष प्रधान समाज उनकी इच्‍छाओं को कुचल देना चाहता है। तरजीह नहीं देता। फ्रीडा अपनी दोस्‍तों सुरंजना,जोअना,नरगिस,मधुरिता और पैम को अपनी शादी के मौके पर

फिल्‍म समीक्षा : हेट स्‍टोरी 3

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बदले की कामुक कहानी -अजय ब्रह्मात्‍मज     तीन साल पहले विवेक अग्निहोत्री के निर्देशन में आई ‘ हेट स्‍टोरी ’ से बदले की ऐसी कहानी गढ़ी गई,जिसमें सेक्‍स और अंग प्रदर्शन की पर्याप्‍त संभावनाएं थीं। तीन सालों में तीसरी हेट स्टोरी आ रही है। ऐसी संभावना है कि आगे भी इस फ्रेंचाइजी की फिल्‍में बनती रहेंगी। लेखक विक्रम भट्ट और निर्देशक विशाल पांड्या ने इस बार हेट स्‍टोरी को अलग विस्‍तार दिया है। कह सकते हैं कि उन्‍होंने कहानी तो बदली है,लेकिन सेक्‍स की चाशनी रहने दी है। ‘ हेट स्‍टोरी3 ’ भी पहले की फिल्‍मों की तरह आम दर्शकों के लिए बनाई गई है,जिन्‍हें कभी चवन्‍नी छाप या स्‍टाल के दर्शक कहते थे। अब न तो चवन्‍नी रही और न स्टाल,लेकिन दर्शक आज भी मौजूद हैं। अब वे मल्‍टीप्‍लेक्‍स और सिंगल स्‍क्रीन में समान रूप से ऐसी फिल्‍मों के मजे लेते हैं। आदित्‍य दीवान और उनकी बीवी सिया एक अस्‍पताल के उद्घाटन में पहुंचे हैं। यह अस्‍पताल उद्योगपति आदित्‍य दीवान के बड़े भाई विक्रम दीवान के नाम पर है। वहां सिया के इंटरव्‍यू से पता चलता है कि वह पहले बड़े भाई विक्रम की प्रेमिका थी। उसने अब छोटे

तमाशा : चलो कुछ ऐसी फिल्में बनाते हैं जो हीरो की न होकर अपनी हों- रोहित मिश्र

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रोहित मिश्र पेशे से पत्रकार हैं। पिछले नौ सालों में सहारा, दैनिक भास्कर और अमर उजाला ग्रुप के साथ रहे। फिलहाल अमर उजाला नोएडा में कार्यरत हैं। अपने को इस गलतफहमी में लगातार डाले रखते कि वे फिल्मों में भी दखल रखते हैं। शुक्रवार की शाम नाम का एक ब्लॉग भी चलाते हैं,जो फिलहाल कामचोरियों के चक्कर में रुका हुआ सा है। एक व्यंग्य संग्रह अपने अंतिम पड़ाव पर प्रकाशनाधीन। उन्‍होंने सिनेमा में कुछ एकेडमिक काम भी.किया है।... चलो कुछ ऐसी फिल्में बनाते हैं जो हीरो की न होकर अपनी हों आपको हिंदी सिनेमा की कोई ऐसी फिल्म याद है जो नायक की ग्रंथि पर बात करती है? और उसके औसत होने पर भी? हीरो को उसकी प्रेमिका इसीलिए छोड़ती है क्योंकि उसे लगता है कि उसका हीरो तो औसत है, शहर के फुटपाथों पर ब्रीफकेश लेकर चलता हुआ कोई भी आम आदमी। मुझे ऐसी कोई फिल्म नहीं याद। मैंने तो फिल्मों में नायकों को महान काम करते और पापियों का संहार करते ही देखा है। हीरोइन तो उतने भर से खुश रही है। इस बीच नायक महान काम करते हुए नायिका के साथ डुएट गाने भी गाता है। मनोरंजन न कर पाने की तोहमत झेल रही 'तमाशा'

तमाशा : एक में पाया सपना,दूजे ने बस प्रेम -प्रदीप अवस्‍थी

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प्रदीप ने अपने परिचय मेंं बस इतना ही लिखा है.... मूलतः रामपुर(उत्तर प्रदेश ) का रहने वाला | इंजीनियरिंग में स्नातक,दिल्ली में रहकर थिएटर में अभिनय और लेखन | अभी मुंबई में लेखन और अभिनय में सक्रीय |  फिलहाल हम इसी से काम चलाएंगे। तमाशा देखकर निकला तो उलझन में डूबा रहा | इम्तियाज़ की फ़िल्में पसंद आती रहीं हैं,तो इस बार ऐसा क्या हुआ कि बाहर निकल कर उत्साह की जगह निराशा थी | जहाँ सब तमाशा की तारीफ़ में डूबे थे,किसको और कैसे बताऊँ कि फ़िल्म मुझे अच्छी नहीं लगी | यह जैसे ख़ुद में अपराध-बोध जैसा था | फिर सिलसिलेवार सोचना शुरू किया तो पाया कि फ़िल्म कई बातें सिर्फ़ ऊपर-ऊपर से करती है और निकल आती है | या तो यह इम्तियाज़ की ज़िद है कि मैं कहानी दोहराऊँगा और उसे कुछ अलग रँग देकर पेश करूँगा और साबित करूँगा कि एक ही कहानी अलग-अलग तरह से दिखाने पर भी वह सफल फ़िल्म हो सकती है | इस की भूमिका वे फ़िल्म के शुरूआती बीस मिनट में बाँधते हैं | यह जैसे फ़िल्म शुरू होने से पहले उनका उद्घोष है कि दुनिया में सारी कहानियाँ एक ही तो हैं,तब फिर मुझपर यह इल्ज़ाम क्यों ? यहीं वे अपनी कहानी के लिए एक बचाव ढूँढते न

दरअसल : जैसी बहे बयार पीठ जब तैसी कीजै

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-अजय ब्रह्मात्‍मज     अभी तो वक्‍त बहुत संगीन है। हर बात के कई कोण है। अगर वे किसी के दृष्टिकोण से टकरा जाएं तो मुश्किलें आसानी से बढ़ जाती हैं। यों लगता है कि सोशल मीडिया पर एक्टिव हर व्‍यक्ति समय,व्‍यक्ति और समाज से खार खाए बैठा है। जरा सी भिन्‍न बात सुनाई या दिखाई भर पड़ जाएं तो वे चीर-फाड़ के लिए तैयार हो जाएं। असहिष्‍णुता इतनी बढ़ गई है कि कोई भी दूसरे को बर्दाश्‍त नहीं करना चाहता। पूरे माहौल में तनाव है। कहा जा रहा है कि सभी को लोकप्रिय सोच और भावनाओं का खयाल रखना चाहिए। ऐसी कोई बात नहीं करनी चाहिए कि दूसरे आहत हों। दिक्‍कत यह है कि हर बात के कई आयाम होते हैं। अगर दूसरों के विरोध और नाखुशी से बचना है तो खामोश ही रहना होगा।      पिछलें दिनों एक इंटरव्‍यू में दिए आमिर खान के जवाब से हुए हंगामे ने तिल को ताड़ और राई को पहाड़ बनाने का नमूना पेश किए। बचपन में मां सुनाती थी कि कौआ कान ले गया सुनने मात्र से कैसे कोई अपने कान छूने और देखने के बदले कौवे के पीछे भागा। आमिर खान के प्रसंग में यही हुआ। उन्‍होंने अपनी भावना शेयर की,लेकिन उनके आलोचक पिल पड़े और सभी ने उनकी बात को रा