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दरअसल : किसे परवाह है बच्‍चों की

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-अजय ब्रह्मात्‍मज वैसे भी वर्तमान सरकार को पिछली खास कर कांग्रेसी सरकारों की आरंभ की गई योजनाएं अधिक पसंद नहीं हैं। उन योजनाओं को बदला जा रहा है। जिन्‍हें बदल नहीं सकते,उन्‍हें नया नाम दिया जा रहा है। लंबे समय तक 14 नवंबर बाल दिवस के रूप में पूरे देश में मनाया जाता रहा है। 14 नवंबर देश के पहले प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू का जन्‍मदिन है। चूंकि बचचों से उन्‍हें अथाह प्रेम था,इसलिए उनके जन्‍मदिन को बाल दिवस का नाम दिया गया। 40 की उम्र पार कर चुके व्‍यक्तियों को याद होगा कि स्‍कूलों में बाल दिवस के दिन रंगारंग कार्यक्रम होते थे। बच्‍चों के प्रोत्‍साहन और विकास के लिए खेल और सांस्‍कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे। कह सकते हैं कि तब बच्‍चों के लिए मनोरंजन के विकल्‍प कम थे,इसलिए ऐसे कार्यक्रमों में बच्‍चों और उनके अभिभावकों की अच्‍छी भागीदासरी होती थी। इस साल 14 नवंबर आया और गया। देश के अधिकांश नागरिकों का समय बाल दिवस के पहले कतारों में बीत गया। वे अपनी गाढ़ी कमाई के पुराने पड़ गए नोटों को बदलवाने में लगे थे। उन्‍हें अपने बच्‍चों की सुधि नहीं रही। कमोबेसा सिनेमा में भी यही

फिल्‍म समीक्षा : रॉक ऑन 2

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रॉक ऑन 2 पहली से कमतर -अजय ब्रह्मात्‍मज हिंदी फिल्‍मों में सीक्‍वल पिछली या पुरानी फिल्‍मों से कम ही जुड़ते हैं। ‘ रॉक ऑन 2 ’ और ‘ रॉक ऑन ’ में अनेक चीजें जुड़ी हुई हैं। मुख्‍य किरदारों में आदि,जो और केडी हैं। पिछली फिल्‍म के बाद उनके रास्‍ते अलग हो चुके हैं। दोनों फिल्‍मों में आठ सालों का अंतर है। इस अंतर को रियल मान लें तो पिछले आठ सालों में   आदि मुंबई छोड़ कर मेघालय में बस गया है। वह वहां के एक गांव में कोऑपरेटिव सिस्‍टम से विकास के काम में लगा है। जो ने एक पॉश क्‍लब खोल लिया है और रियलिटी शो में जज बनता है। केछी अभी तक म्‍यूजिक के धंधे में है। केडी चाहता है कि फिर से सारे दोस्‍त मिलें और अपने बैंड ‘ मैजिक ’ को रिवाइव करें। आदि के जन्‍मदिन पर सभी दोस्‍म मेघालय में मिलते हैं। वहां फिर से बैंड को रिवाइव करने की बात उठती है। आदि राजी नहीं होता। बैकस्‍टोरी सामने आती है कि वह पश्‍चाताप में जल रहा है। उसे लगता है कि युवा म्‍यूजिशियन राहुल शर्मा ने उसके नजरअंदाज करने की वजह से ही जान ली। इस बीच एक हादसा और कई संयोग होते हैं। पिछली फिल्‍म से नई फिल्‍म को जोड़ने के लिए लेखक

फिल्‍म समीक्षा : चार साहिबजादे : द राइज ऑफ बंदा सिंह बहादुर

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बंदा बहादुर की शौर्य गाथा चार साहिबजादे : द राइज ऑफ बंदा सिंह बहादुर -अजय ब्रह्मात्‍मज सिखों के इतिहास में उनके 10 वें गुरू गोविद सिंह का खास स्‍थान है। उन्‍होंने अपने निधन से पहले यह घोषणा की थी कि उनके बाद कोई देहधारी गुरू नहीं होगा। उन्‍होंने धार्मिक ग्रंथ को गुरू ग्रंथ साहिब का दर्जा दिया था। उन्‍होंने ही पंज प्‍यारे को सिखों की कमान सौंपी थी। पंज प्‍यारों की देख ’ रेख में बंदा सिंह बहादुर ने मुगलों के खिलाफ जंग छेड़ी और सिखों की राजनीतिक प्रतिष्‍ठा हासिल की। एनीमेश फिल्‍म ‘ चार साहिबजादे : द राइज ऑफ बंदा सिंह बहादुर ’ मुख्‍य रूप से उनकी जीवनगाथा है। दो साल पहले हैरी बावेजा ने गुरू गोविंद सिंह के चारों बेटों की शहादत पर ‘ चार साकहबजादे ’ फिल्‍म बनाई थी। ‘ चार साहिबजादे : द राइज ऑफ बंदा सिंह बहादुर ’ उसकी की अगजी कड़ी है। नई फिल्‍म में गुरू गोविंद सिंह और उनके बेटों के संदर्भ से ही बंदा सिंह बहादुर की कहानी आगे बढ़ती है। लक्ष्‍मण दास ने कठोर तपस्‍या से ऋषि माधे दास नाम अर्जित किया था। वे तंत्र-मंत्र में दीक्षित थे। गुरू गोविंद सिंह ने नांदेड़ प्रवास के दौरा

फिल्‍म समीक्षा : डोंगरी का राजा

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डोंगरी का राजा -अजय ब्रह्मात्‍मज डोंगरी मुंबई की एक बस्‍ती है। अंडरवर्ल्‍ड के सरगनाओं के लिए कुख्‍यात यह बस्‍ती सदियों पुरानी है। अंग्रेजों के समय बसाई गई इस बस्‍ती का इतिहास 400 साल से अधिक का है। आजादी के बाद के दिनों में हाजी मस्‍तान,करीम लाला,दाउद इब्राहिम,छोटा शकील,अरूण गवली और रामा नाईक की वजह से यह बस्‍ती अंडरवर्ल्‍ड गतिविधियों का प्रमुख केंद्र मानी जाती है। हादी अली अबरार की फिल्‍म ‘ डोंगरी का राजा ’ टायटल की वजह से जिज्ञासा बढ़ाती है। पहला अनुमान यही होता है कि यह निश्चित ही अंडरवर्ल्‍ड की कहानी होगी। ‘ डोंगरी का राजा ’ अंडरवर्ल्‍ड की पृष्‍ठभूमि में एक प्रेमकहानी है। इस प्रेमकहानी के प्रमुख किरदारों को दो नए कलाकारों ने निभाया है। गशमीर महाजन और रिचा सिन्‍हा ने राजा और रितू की भूमिकाओं में हैं। राजा इस फिल्‍म का नायक है। वह डोंगरी के अंडरवर्ल्‍ड सरगना मंसूर अली का शार्प शूटर है। मंसूर अली की बीवी उसे अपने बेटे की तरह मानती है और मंसूर अली भी उसे पसंद करता है। युवा और ईमानदार पुलिस अधिकारी सिद्धांत उसे गिरफ्तार करने में असफल रहता है,क्‍योंकि मंसूर और राजा के खिल

दरअसल : इस बार फिल्‍म बाजार

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-अजय ब्रह्मात्‍मज सन् 2007 में एनएफडीसी ने गवा में आयेजित इंटरनेशनल फिल्‍म फेस्टिवल के दौरान फिल्‍म बाजार का आयोजन आरंभ किया था। आरंभिक आशंका के बाद इसने अभियान का रूप ले लिया है। दक्षिण एशिया में इस स्‍तर का कोई फिल्‍म बाजार आयेजित नहीं होता। 2015 में 38 देशों के 1152 प्रतिनिधियों ने इसमें हिस्‍सा लिया,जिनमें 242 विदेशों से आए थे। अभी कई देशों से डिस्‍ट्रीब्‍यूटर,प्रोड्यूसर और फेस्टिवल क्‍यूरेटर फिल्‍म बाजार में आते हैं। यहां युवा फिल्‍मकारों को दिशा मिलती है। उनके लिए संभावनाएं बढ़ती हैं। फिल्‍म बाजार के प्रयास से ही पिछले कुछ सालों की चर्चित और पुरस्‍कृत फिल्‍में बन पाईं। हाल ही में मामी और टोक्‍यो में पुरस्‍कृत अलंकृता श्रीवास्‍तव की फिल्‍म ‘ लिपस्टिक अंडर माय बुर्का ’ ने यहीं से प्रयाण किया था। पिछले सालों में ‘ लंचबॉक्‍स ’ , ’ चौथी कूट ’ , ’ कोर्ट ’ और ‘ तिली ’ जैसी फिल्‍मों को यहीं से उड़ान मिली। फिल्‍म बाजार भारत के युवा फिल्‍मकारों के लिए क्रिएटिव संधिस्‍थल बन गया है। हर साल सैकड़ों युवा उद्यमी फिल्‍मकार यहां पहुंचते हैं और फिल्‍मों के ट्रेंड और बाजार से वाकिफ ह

पहली बार अकेला हूं - अनुभव सिन्‍हा

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-अजय ब्रह्मात्‍मज पंद्रह सालों के बाद अनुभव सिन्‍हा फिर से ‘ तुम बिन ’ लेकर आ रहे हैं। इसे वे फ्रेंचाइज कहते हैं। पिदली फिल्‍म के चार ततवों को लकर उन्‍होंने – तुम बिन 2 ’ तैयार की है। उन्‍होंने यहां इस फिल्‍म के बारे में बातें कीं... - ‘ तुम बिन ’ और ‘ तुम बिन 2 ’ के बीच के पंद्रह सालों में देश,समाज ओर फिल्‍मों में बहुत कुछ बदल चुका है। आप क्‍या फर्क महसूस कर रहे हैं ? 0 मैं इस तरह से देख और सोच नहीं पाता। मुझे नहीं लगता कि किसी भी निर्देशक में इतनी सलाहियत होती है कि वह दर्शकों को भांप सकें। इतना डिटेल अध्‍ययन तो मार्केटिंग के लोग कंज्‍यूमर प्रोडक्‍ट के लिए करते हैं। आप आज कौन हैं और आप की कहानी क्‍या है... ये दोनों मिल कर फिल्‍म तय करते हैं। सामाजिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्‍य पर नजर रहती है। सामाजिक और पारिवारिक संबंध किस रूप में बदले हैं ? मैंने ज्‍यादा गौर नहीं किया है। मुझे एक कहानी जंची,लिखना शुरू किया और एक स्क्रिप्‍ट तैयार हो गई। मैाने नहीं सोचा कि आज का यूथ क्‍या सोच रहा है ? -यूथ ही तो ‘ तुम बिन 2 ’ जैसी फिल्‍मों का दर्शक होगा ? 0 यूथ क्‍या पसंद

फिल्‍म समीक्षा - महायोद्धा राम

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रावण के नजरिए से महायोद्धा राम -अजय ब्रह्मात्‍मज हिंदी में एनीमेशन फिल्‍में कम बनती हैं। एलीमेशन को मुख्‍य रूप से कार्टून और विज्ञापनों तक सीमित कर दिया गया है। कुछ सालों पहले एक साथ कुछ फिल्‍में आई थीं। उन्‍हें भी बच्‍चों को ध्‍यान में रख कर बनाया गया था। यही बात ‘ महायोद्धा राम ’ के बारे में भी कही जा सकती है। रोहित वैद के निर्देशन में बनी इस एनीमेशन फिल्‍म में राम की कहानी है। रामलीला देख चुके और रामचरित मानस पढ़ चुके दर्शकों को यह एनीमेशन फिल्‍म देखते हुए उलझन हो सकती है। एक तो लेखक ने ‘ महायोद्धा राम ’ की कहानी रावण के नजरिए से लिखी है। फिल्‍म देखते हुए प्रसंग और घटनाओं के चित्रण में रावण की साजिश दिखाई गई है। राम के बाल काल से लेकर अंतिम युद्ध तक रावण की क्रिया और राम की प्रतिक्रिया है। रावण को पहले ही दृश्‍य में राक्षस बता दिया जाता है और राम को अवतार बताया गया है। राक्षस किसी भी तरह अवतार के इहलीला समाप्‍त करना चाहता है। रामकथा के क्रम और कार्य व्‍यापार में भी तब्‍दीली की गई है। किरदारों के एनीमेशन स्‍वरूप गढ़ने में कल्‍पना का अधिक सहारा नहीं लिया गया है।

दरअसल : रोमांटिक फिल्‍मों की कमी

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दरअसल... रोमांटिक फिल्‍मों की कमी -अजय ब्रह्मात्‍मज कभी हिंदी फिल्‍मों का प्रमुख विषय प्रेम हुआ करता था। प्रेम और रोमांस की कहानियां दर्शकों को भी अच्‍छी लगती थीं। दशकों तक दर्शकों ने इन प्रेम कहानियों को सराहा और आनंदित हुए। आजादी के पहले और बाद की फिल्‍मों में प्रेम के विभिन्‍न रूपों को दर्शाया गया। इन प्रेम कहानियों में सामाजिकता भी रहती थी। गौर करें तो आजादी के बाद उभरे तीन प्रमुख स्‍टारों दिलीप कुमार,देव आनंद और राज कपूर ने अपनी ज्‍यादार फिल्‍मों में प्रेमियों की भूमिकाएं निभाईं। हां,वे समाज के भिन्‍न तबकों का प्रतिनिधित्‍व करते रहे। इस दौर की अधिकांश फिल्‍मों में प्रेमी-प्रेमिका या नायक-नायिका के मिलन में अनेक कठिनाइयां और बाधाएं रहती थीं। प्रेमी-प्रेमिका का परिवार,समाज और कभी कोई खलनायक उनकी मुश्किलें बढ़ा देता था। दर्शक चाहते थे कि उनके प्रेम की सारी अड़चनें दूर हों और वे फिल्‍म की आखिरी रील तक आते-आते मिल रूर लें। इन तीनों की अदा और रोमांस को अपनाने की कोशिश बाद में आए स्‍टारों ने की। कुछ तो जिंदगी भर किसी न किसी की नकल कर ही चलते रहे। धर्मेन्‍द्र जैसे एक्‍टर न

किरदारों के साथ जीना चाहता हूं -जॉन अब्राहम

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-अजय ब्रह्मात्‍मज जॉन अब्राहम की ‘ फोर्स 2 ’ एसीपी यशवर्द्धन की कहानी है। यह फिल्‍म पिछली ’ फोर्स ’ से आगे बढ़ती है। एसीपी यशवर्द्धन की मुश्किलें बढ़ चुकी है। समय के साथ वे नई चुनौतियों के समक्ष हैं। इस फिल्‍म में एक्‍शन भी ज्‍यादा है। ’ फोर्स 2 ’ के बारे में जॉन अब्राहम की बातें... फिल्‍म में देशभक्ति की झलक डेढ़ साल पहले जब हम ने ‘ फोर्स 2 ’ के बारे में सोचा तो मैा कैप्‍टन कालिया की स्‍टोरी से काफी प्रेरित हुआ था। वे भारतीय जासूस थे। मैंने यही कहा कि ऐसी और भी कहानियां होंगी। तब यही विचार बना था कि ऐसी कहानियों से ‘ फोर्स 2 ’ का विस्‍तार करें। इस बार वह देश को बचाने की कोशिश में लगा है। हमारी फिल्‍म सच्‍ची घटनाओं से प्रेरित है। पिछली फिल्‍म से ज्‍यादा बड़ी और विश्‍वसनीय फिल्‍म है। अभी हाल में उरी अटैक में हमारे जवान शहीद हुए। अचानक ‘ फोर्स2 ’ प्रासंगिक फिल्‍म बन गई है। कोई कल्‍पना ही नहीं कर सकता था कि ऐसा कुछ होगा। हम ने देशभक्ति की भावना के साथ यह फिल्‍म बनाई है। हम इधर-उधर की  बातें नहीं कर रहे हैं। देश की रक्षा में सेना और सरकार की भूमिका भी दिखेगी।

अजय देवगन से विस्‍तृत बातचीत - 1

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अजय देवगन से यह विस्‍तृत बातचीत 'शिवाय' की रिलीज के पहले हो गई थी। इसके कुछ अंश प्रकाशित हुए। इतनी लंबी बातचीत एक साथ पोस्‍ट कर पाना सहज नहीं है। देर करने से अच्‍छा है कि इसे धारावाहिक के तौर पर प्रकाशित कर दें...आज प्रस्‍तुत है पहला अंश। -अजय ब्रह्मात्‍मज -सबसे पहले शिवाय के बारे में आप जो पहले बताना चाह रहे हो? ०- शिवाय के कांसेप्ट के बारे में आपको फिल्म के वक्त पता चलेगा।   मैं इस फिल्म के बारे में कहना चाहूंगा कि इस स्केल की फिल्म पहले हिंदुस्तान में नहीं बनी है। ऐसा एक्शन कभी देखने को नहीं मिला है। हमारा आइडिया सिर्फ ऐसा एक्शन करना नहीं है। आइडिया यह है कि एक्‍शन के साथ पारिवारिक ड्रामा और इमोशनल ड्रामा हो। इसके लिए आपको अपने कंफर्ट जोन से निकलना पड़ता है। क्योंकि आप इतनी फिल्में कर चुके होते हैं। और इतनी फिल्में बन चुकी होती हैं। एक बात होती है कि कोई कोशिश   नहीं करना चाहता है। यह अलग बात है कि मेहनत तो सभी करते हैं। इसमें शुन्‍य से 20 डिग्री नीचे के तापमान पर हमें शूट करना था।ऐसी लोकेशन पर शूटिंग करना, जहां पर आप आसानी से पहुंच नहीं सकते हो। ऐसी जगहों