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हिंदी टाकीज 2(11) : आज नदी पार वाले गांव में पर्दा वाला सिनेमा लगेगा - जनार्दन पांडेय

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परिचय जनार्दन पांडेय एक आम सिनेमा दर्शक है। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में पला-बढ़ा। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में स्नातक करने के बाद हिन्दुस्तान हिन्दी दैनिक से जुड़ा। उसके बाद अमर उजाला डॉट कॉम से जुड़ा। वहां तीन साल काम करने के बाद अब अपनी वेबसाइट www.khabarbattu.com में कार्यरत।   सिनेमा में नशा है, जो मुझे चढ़ता है। जी होता है, एक के बाद एक तब देखता रहूं, जब तक दिमाग और आंखें जवाब न दे जाएं। लेकिन नशा तो आखिर में नशा है, बुरा ही माना जाएगा। चाहे किसी बात का हो। मम्मी ने पीट-पीट कर समझाया पर मैं समझा नहीं। मेरा घर उत्तर प्रदेश के उस जिले में हैं जो यूपी को मध्य प्रदेश-झारखंड से जोड़ता है। मेरा गांव एक संपूर्ण गांव है। किसी एक के घर में कोई घटना-दुघर्टना होती है पूरे गांव के ‌लिए अगले 10 दिनों तक वही मुद्दा होता है। राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की मौत की खबर 6 दिन बाद पहुंचती है। पठानकोट में हमला हुआ तो छनते-छनते यह खबर दो-चार दिन बाद पहुंचती है। और इसके मायने यही निकाले जाते हैं कि पूछो 'राहुल के पापा ठीक हैं न वो भी बॉर्डर पर हैं

दरअसल : स्‍वागत 2017,अलविदा 2016

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दरअसल... स्‍वागत 2017,अलविदा 2016 -अजय ब्रह्मात्‍मज 2016 समाप्‍त होते-होते नीतेश तिवारी की ‘ दंगल ’ ने हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री पर छाए शनि को मंगल में बदल दिया। इस फिल्‍म के अपेक्षित कारोबार से सभी खुश हैं। माना जा रहा है कि ‘ दंगल ’ का कारोबार पिछले सारे रिकार्ड को तोड़ कर एक नया रिकार्ड स्‍थापित करेगा। ‘ दंगल ’ की कामयाबी दरअसल उस ईमानदारी की स्‍वीकृति है,जो आमिर खान और उनकी टीम ने बरती। कभी सोच कर देखें कि कैसे एक निर्देशक,स्‍टार और फिल्‍म के निर्माता मिल कर एक ख्‍वाब सोचते हैं और सालों उसमें विश्‍वास बनाए रखते हैं। ‘ दंगल ’ के निर्माण में दो साल से अधिक समय लगे। आमिर खान ने किरदार के मुताबिक वजन बढ़ाया और घटाया। हमेशा की तरह वे अपने किरदार के साथ फिल्‍म निर्माण के दौरान जीते रहे। उनके इस समर्पण का असर फिल्‍म यूनिट के दूसरे सदस्‍यों के लिए प्रेरक रहा। नतीजा सभी के सामने है। ‘ दंगल ’ साल के अंत में आई बेहतरीन फिल्‍म रही। इसके साथ 2016 की कुछ और फिल्‍मों का भी उल्‍लेख जरूरी है। हर साल रिलीज हुई 100 से अधिक फिल्‍मों में से 10-12 फिल्‍में ऐसी निकल ही आती हैं,जिन्‍हें

दरअसल : प्रचार का ‘रईस’ तरीका

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दरअसल, प्रचार का ‘ रईस ’ तरीका - अजय बह्मात्‍मज कुछ समय पहले शाह रुख खान ने अगले साल के आरंभ में आ रही अपनी फिल्‍म ‘ रईस ’ का ट्रेलर एक साथ 3500 स्‍क्रीन में लांच किया। आप सोच सकते हैं कि इसमें कौन सी नई बात है। यों भी फिल्‍मों की रिलीज के महीने-डेढ़ महीने पहले फिल्‍मों के ट्रेलर सिनेमाघरों में पहुंच जाते हैं। मीडिया कवरेज पर गौर किया हो तो ट्रेलर लांच एक इवेंट होता है। बड़ी फिल्‍मों के निर्माता फिल्‍म के स्‍टारों की मौजूदगी में यह इवेंट करते हैं। प्राय: मुंबई के किसी मल्‍टीप्‍लेक्‍स में इसका आयेजन होता है। फिर यूट्यूब के जरिए या और सिनेमाघरों में दर्शक उन्‍हें देख पाते हैं। इन दिनों कई बार पहले से तारीख और समय की घोषण कर दी जाती है और ट्रेलर सोशल मीडिया पर ऑन लाइन कर दिया जाता है। इस बर लांच के समय देश के दस शहरों के सिनेमाघरों में आए दर्शकों ने उनके साथ इटरैक्‍ट किया। आमिर खान और शाह रुख खान अपनी फिल्‍मों के प्रचार के नायाब तरीके खोजते रहते हैं। वे अपने इन तरीकों से दर्शकों और बाजार को अचंभित करते हैं। उनकी फिल्‍मों के प्रति जिज्ञासा बढ़ती है और उनकी फिल्‍में हिट

बस अभी चलते रहो -तापसी पन्‍नू

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बस अभी चलते रहो -तापसी पन्‍नू -अजय ब्रह्मात्‍मज हिंदी सिनेमा में अभिनय और एक्शन से बाकी अभिनेत्रियों के मुकाबले अलग पहचान बना रही हैं तापसी पन्नू। 'बेबी7 और 'पिंक7 के लिए तारीफ बटोर चुकीं तापसी 'नाम शबाना' में टाइटल रोल के साथ नजर आने वालीं हैं। उन्होंने अजय ब्रह्मात्मज से शेयर किए अपने अनुभव... अभी क्या चल रहा है? 'नाम शबाना5 की शूटिंग चल रही है। साथ ही भगनानी की 'मखनाÓ की भी आधी शूटिंग हो चुकी है। 'मखना- में मैं साकिब सलीम के साथ कर रही हूं। इसकी निर्देशक अमित शर्मा की पत्नी आलिया सेन हैं। वो बहुत बड़ी एड फिल्ममेकर हैं। उन्होंने मेरी म्यूजिक वीडियो साकिब के साथ बनाई थी। हमारी केमेस्ट्री हम दोनों को पसंद आई तो सोचा कि उन्हीं के साथ फिल्म भी कर लेते हैं। दोनों फिल्मों की शूटिंग आगे-पीछे चल रही है। 'मखना7 किस तरह की फिल्म होगी? यह पंजाबी लव स्टोरी है। दिल्ली के किरदार हैं पर वैसी दिल्ली बिल्कुल नहीं है, जैसी 'पिंकÓ में दिखाई थी। इसमें मैं अलग तरह की दिल्ली लड़की बनी हूं। मतलब उस टाइप की नहीं जैसी मैं हूं। बहुत अपोज

सपनों को समर्पित है ‘दंगल’ : नीतेश तिवारी

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सपनों को समर्पित है ‘दंगल’ : नीतेश तिवारी राष्‍ट्रीय फिल्म पुरस्‍कार विजेता नीतेश तिवारी अब महावीर फोगाट और उनकी बेटियों की बायोपिक ‘दंगल’ लेकर आए हैं। फिल्म निर्माण और उसकी थीम के अन्‍तर्भाव क्या हैं, पढिए उनकी जुबानी:- -अजय ब्रह्मात्‍मज / अमित कर्ण   -यूं हतप्रभ हुए आमिर खान आमिर खान गीता-बबीता और महावीर फोगाट की कहानी तो जानते थे। वह भी ‘सत्‍यमेव जयते’ के जमाने से। ऐसे में उन्हें कहानी से चौंकाना मुश्किल काम था। वे हम लोगों की अप्रोच से इंप्रेस हुए। हमने इरादतन एक गंभीर विषय को ह्यूमर के साथ पेश किया। वह इसलिए कि इससे हम ढाई घंटे तक दर्शकों को बांधे रख सकते हैं। वह चीज आमिर सर को पसंद आई। उन्होंने कहा कि हास-परिहास   वे प्रभावित हुए हैं। किस्सागोई के इस तरीके से एक साथ ढेर सारे लोगों तक पहुंचा जा सकता है। -अनकहे-अनसुने किस्सों का पुलिंदा हमने एक तो गीता-बबीता और महावीर फोगाट के ढेर सारे अनकहे व अनसुने किस्से बयान किए हैं। दूसरा यह कि लोग यह अंदाजा नहीं लगा पाएंगे कि हम उनकी गाथा को किस तरह कह रहे हैं। मेरी नजरों में ‘क्या कहना’ के साथ-साथ ‘कैसे कहना’ भी अहम

दरअसल : ’कयामत से कयामत तक’ की कहानी

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दरअसल.... ’ कयामत से कयामत तक ’ की कहानी -अजय ब्रह्मात्‍मज 29 अप्रैल 1988 को रिलीज हुई मंसूर खान की फिल्‍म ‘ कयामत से कयामत तक ’ का हिंदी सिनेमा में खास स्‍थान है। नौवां दशक हिंदी सिनेमा के लिए अच्‍छा नहीं माना जाता। नौवें दशक के मध्‍य तक आते-आते ऐसी स्थिति हो गई थी कि दिग्‍गजों की फिल्‍में भी बाक्‍स आफिस पर पिट रही थीं। नए फिल्‍मकार भी अपनी पहचान नहीं बना पा रहे थे। अजीब दोहराव और हल्‍केपन का दोहराव और हल्‍केपन का दौर था। फिल्‍म के कंटेट से लेकर म्‍यूजिक तक में कुछ भी नया नहीं हो रहा था। इसी दौर में मंसूर खान की ‘ कयामत से कयामत तक ’ आई और उसने इतिहास रच दिया। इसी फिलम ने हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री को आमिर खान जैसा अभिनेता दिया,जो 29 सालों के बाद भी कामयाब है। हमें अगले हफ्ते उनकी अगनी फिल्‍म ‘ दंगल ’ का इंतजार है। दिल्‍ली के फिल्‍म लेखक गौतम चिंतामणि ने इस फिलम के समय,निर्माण और प्रभाव पर संतुलित पुस्‍तक लिखी है। हार्पर का‍लिंस ने इसे प्रकाशित किया है। गौतम लगातार फिल्‍मों पर छिटपुट लेखन भी किया करते हैं। उन्‍होंने राजेश खन्‍ना की जीवनी लिखी है,जिसमें उनके एकाकीपन को

हिंदी टाकीज 2(10) : बचपन सिनमा और सनी देओल : राजा सहेब

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राजा साहेब मैंने फिल्ममेकिंग की पढाई की है डिजिटल अकेडमी सॆ ।पिछले 3 साल सॆ मुम्बई में हूँ ।डाइरेक्शन में काम ढूंढ़ता हूँ । कुछ छोटी फिल्मों में अस्सिस्टेंट डाइरेक्टर भी रहा ।खुद की एक शॉर्ट फ़िल्म भी बनाई है encounter नाम सॆ youtube पर है ।सिनेमा में गहरी रुचि है ।लेखन अच्छा लगता है । बचपन ,सिनेमा और सनी देओल   स्वेल्बेस्टर स्तेल्लोंन   और आर्नोल्ड स्च्वान्ज़ेगेर कौन है ? क्या करता है?   हमें पता   ना था | सालों बाद में , नाम सुनने को मिला | मगर पता लगाना उतना ही मुश्किल जितना की इनका नाम उच्चारण करना | हम गाँव के देशी लोग थे | गोरे चेहरे (विदेशी) तब   हमारे दिमाग में घुसते नहीं थे ,ना ही कोई   कोशिश भी करता था |   तब हमारे , हम लोग का अपना सुपर हीरो ,हीमैन इत्यादि सिर्फ़ सनी देओल था | हम इससे काफी खुश थे | सबसे ताक़तवर ,साहसी और ज़िगर वाला साथ में कभी कभी बेहद मज़ाकिया और मासूम | वो ज़माना वीडियो होम सिस्टम (वीएच्एस) का था |कुछ संपन्न घरों में ही वीसीआर   या वीसीपी (वीडियो केसेट प्लेयर/ रेकॉर्डर ) पाया जाता   वो भी जिनका घर बाज़ार में होता ,ज़ी टी .वी देखने का सौभाग्य भी इन

दरअसल : लोकप्रिय स्‍टार और किरदार

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दरअसल... लोकप्रिय स्‍टार और किरदार -अजय ब्रह्मात्‍मज हाल ही में गौरी शिंदे निर्देशित ‘ डियर जिंदगी ’ रिलीज हुई है। इस फिल्‍म को दर्शकों ने सराहा। फिल्‍म में भावनात्‍मक रूप से असुरक्षित क्‍यारा के किरदार में आलिया भट्ट ने सभी को मोहित किया। उनकी उचित तारीफ हुई। ऐसी तारीफों के बीच हम किरदार के महत्‍व को नजरअंदाज कर देते हैं। हमें लगता है कि कलाकार ने उम्‍दा परफारमेंस किया। कलाकारों के परफारमेंस की कद्र होनी चाहिए,लेकिन हमें किरदार की अपनी खासियत पर भी गौर करना चाहिए। दूसरे,कई बार कलाकार किरदार पर हावी होते हैं। उनकी निजी छवि और लोकप्रियता किरदार को आकर्षक बना देती है। किरदार और कलाकार की पसंदगी की यह द्वंद्वात्‍मकता हमारे साथ चलती है। कभी कलाकार अच्‍दा लगता है तो कभी कलाकार। हम सभी जानते और मानते हैं कि सलमान खान अत्‍यंत लो‍कप्रिय अभिनेता हैं। समीक्षक उनकी और उनकी फिल्‍मों की निंदा और आलोचना करते रहे हैं,लेकिन इनसे उनकी लो‍कप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। एक बार बातचीत के क्रम में जब मैंने उनसे ही उनकी लोकप्रियता को डिकोड करने के लिए कहा तो उन्‍होंने मार्के की बात कह

फिल्‍म समीक्षा : कहानी 2 : दुर्गा रानी सिंह

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फिल्‍म रिव्‍यू फिसला है रोमांच कहानी 2 : दुर्गा रानी सिंह -अजय ब्रह्मात्‍मज सुजॉय घोष चार सालों से ज्‍यादा समय बीत गया। मार्च 2012 में सीमित बजट में सुजॉय घोष ने ‘ कहानी ’ निर्देशित की थी। पति की तलाश में कोलकाता में भटकती गर्भवती महिला की रोमांचक कहानी ने दर्शकों को रोमांचित किया था। अभी दिसंबर में सुजॉय घोष की ‘ कहानी 2 ’ आई है। इस फिल्‍म का पूरा शीर्षक ‘ कहानी 2 : दुर्गा रानी सिंह ’ है। पिछली फिल्‍म की कहानी से इस फिल्‍म को कोई संबंध नहीं है। निर्माता और निर्देशक ने पिछली ‘ कहानी ’ की कामयाबी का वर्क ‘ कहानी 2 ’ पर डाल दिया है। यह वर्क कोलकाता,सुजॉय घोष और विद्या बालन के रूप में नई फिल्‍म से चिपका है। अगर आप पुरानी फिल्‍म के रोमांच की उम्‍मीद के साथ ‘ कहानी 2 ’ देखने की योजना बना रहे हैं तो यह जान लें कि यह अलहदा फिल्‍म है। इसमें भी रोमांच,रहस्‍य और विद्या हैं,लेकिन इस फिल्‍म की कहानी बिल्‍कुल अलग है। यह दुर्गा रानी सिंह की कहानी है। दुर्गा रानी सिंह का व्‍याकुल अतीत है। बचपन में किसी रिश्‍तेदार ने उसे ‘ यहां-वहां ’ छुआ था। उस दर्दनाक अनुभव से वह अभी तक नह

दरअसल : वर्चुअल रियलिटी

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दरअसल... वर्चुअल रियलिटी -अजय ब्रह्मात्‍मज पिछलें दिनों गोवा में आयोजित फिल्‍म बाजार में वर्चुअल रियलिटी के प्रत्‍यक्ष एहसास के लिए एक कक्ष रखा गया था। फिल्‍म बाजार में आए प्रतिनिधि इस कक्ष में जाकर वर्चुअल रियलिटी का अनुभव ले सकते थे। कुछ सालों से ऑडियो विजुअल मीडियम की यह नई खोज सभी को आकर्षित कर रही है। अभी प्रयोग चल रहे हैं। इसे अधिकाधिक उपयोगी और किफायती बनाने का प्रयास जारी है। यह तकनीक तो कुछ महीनों या सालों में अासानी से उपलब्‍ध हो जाएगी। अब जरूरत है ऐसे कल्‍पनाशील लेखकों की जो इस तकनीक के हिसाब से स्क्रिप्‍ट लिख सकें। अभी तक मुख्‍य रूप से इवेंट या समारोहों के वीआर(वर्चुअल रियलिटी) फुटेज तैयार किए जा रहे हैं। मांग और मौजूदगी बढ़ने पर हमें कंटेंट की जरूरत पड़ेगी। वर्चुअल रियलिटी 360 डिग्री और 3डी से भी आगे का ऑडियो विजुअल अनुभव है। वर्चुअल रियलिटी का गॉगल्‍स या चश्‍मे की तरह का खास उपकरण आंखों पर चड़ा लेने और ईयर फोन कान पर लगा लेने के बाद हम अपने परिवेश से कट जाते हैं। हमारी आंखों के सामने केवल दृश्‍य होते हैं और कानों में आवाजें...किसी भी स्‍थान पर बैठे रहने के