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दरअसल : सारागढ़ी का युद्ध

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दरअसल... सारागढ़ी का युद्ध -अजय ब्रह्मात्‍मज तीन दिन पहले करण जौहर और अक्षय कुमार ने ट्वीट कर बताया कि वे दोनों ‘ केसरी ’ नामक फिल्‍म लेकर आ रहे हैं। फिल्‍म के निर्देशक अनुराग सिंह रहेंगे। यह फिल्‍म ‘ बैटल ऑफ सारागढ़ी ’ पर आधारित होगी। चूंकि सारागढ़ी मीडिया में प्रचलित शब्‍द नहीं है,इसलिए हिंदी अखबारों में ‘saragarhi’ को सारागरही लिखा जाने लगा। फिल्‍म इंडस्‍ट्री में भी अधिकांश इसे सारागरही ही बोलते हैं। मैं लगातार लिख रहा हूं कि हिंदी की संज्ञाओं को अंग्रेजी के साथ हिंदी में भी लिखा जाना चाहिए। अन्‍यथा कुछ पीढि़यों के बाद इन शब्‍दों के अप्रचलित होने पर सही उच्‍चारण नहीं किया जाएगा। देवनागरी में लिखते समय लोग ‘ सारागरही ’ जैसी गलतियां करेंगे। दोष हिंदी के पत्रकारों का भी है कि वे हिंदी का आग्रह नहीं करते। अंग्रेजी में आई विस्‍प्तियों का गलत अनुवाह या प्यिंतरण कर रहे होते हैं। बहरहाल,अक्षय कुमार और करण जौहर के आने के साथ ‘ सारागढ़ी का युद्ध ’ पर फिल्‍म बनाने की तीसरी टीम मैदान में आ गई है। करण जौहर की अनुराग सिंह निर्देशित फिल्‍म का नाम ‘ केसरी ’ रखा गया है। इसके

सात सवाल : विनीत कुमार सिंह

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विनीत कुमार सिंह अजय ब्रह्मात्‍मज सात सवाल विनीत कुमार सिंह की फिल्म ‘मुक्काबाज’ का गुरुवार को मुंबई में आयोजित मुंबई फिल्‍म फेस्टिवल में एशिया प्रीमियर हुआ। इससे पहले फिल्‍म को टोरंटो इंटरनेशनल फिल्‍म फेस्टिवल में प्रदर्शित किया जा चुका है। वर्ष 1999 से हिंदी सिनेमा में सक्रिय विनीत उसमें श्रवण की केंद्रीय भूमिका में दिखेंगे। फिल्‍म के निर्देशक अनुराग कश्‍यप हैं। विनीत से हुई बातचीत के अंश :   1- यहां तक के सफर में आपने काफी धैर्य और उम्मीद कायम रखी। इन्हें कैसे कायम रख पाए ? मैं वह काम करना चाहता था, जिसमें सहज रहूं। साथ ही उसे करने में मुझे आनंद की प्राप्ति हो। डॉक्टर बनने के लिए मैंने काफी मेहनत की थी। तब जाकर फल मिला था। अभिनय करने पर खुशी की अनुभूति स्‍वत: हुई। मैं उससे थकता नहीं हूं। शूटिंग के दौरान घर जाने के लिए घड़ी नहीं देखता। यकीन था कि यहां पर मेहनत करुंगा तो बेहतर पाऊंगा। पापा ने भी हमेशा कहा कि हारियो न हिम्मत बिसारियो न हरिनाम। यानी जो हिम्मत नहीं हारता है उसे रास्ते मिल जाते हैं। इन्‍ही सब वजहों से धैर्य कायम रहा। 2- आपके अभिनय के सफर की शुरुआ

रोज़ाना : मामी हो चुका है नामी

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रोज़ाना मामी हुआ चुका है नामी -अजय ब्रह्मात्‍मज आज से दस साल पहले इफ्फी (इंटरनेशनल फिल्‍म फेस्टिवल ऑफ इंडिया) के वार्षिक आयोजन के लिए देश भर के सिनेप्रेमी टूट पड़ते थे। उन दिनों केंद्रीय फिल्‍म निदेशालय का यह यह आयोजन एक साल दिल्‍ली और अगले साल दूसरे शहरों में हुआ करता था। गोवा में इफ्फी का स्‍थायी ठिकाना बना और उसके बाद यह लगामार अपना प्रभाव खोता जा रहा है। अभी देश में अनेक फिल्‍म फेस्टिवल आयोजित हो रहे हैं। उनमें से एक मामी(मुंर्अ एकेडमी आॅफ मूविंग इमेजेज) है। इस साल 19 वां फिल्‍म फेस्टिवल आयोजित हो रहा है। इस आयोजन के लिए देश भर के सिनेप्रेमी मुंबई धमक रहे हैं। दोदशक पहले मुंबई के फिल्‍म इंडस्‍ट्री की हस्तियों और सिनेप्रेमियों को फिल्‍म फस्टिवल का खयाल आया। इफ्फी में नौकरशाही की दखल और गैरपेशवर अधिकारियों की भागीदारी से नाखुश सिनेप्रेमियों और फिल्‍मकारों का इसे पूर्ण समर्थन मिला। उन्‍हें यह एहसास भी दिलाया गया कि यह फेस्टिवल सिनेमा के जानकारों की देखरेख में संचालित होता है। उसका असर दिखा। फिल्‍मों के चयन से लेकर विदेशी फिल्‍मकारों और कलाकारों की शिरकत में दुनिया के न

रोज़ाना - पचहत्‍तर के अमिताभ बच्‍चन

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दरअसल... 75 के अमिताभ   बच्‍चन -अजय ब्रह्मात्‍मज अगले शुक्रवार से पहले अमिताभ बच्‍चन 75 के हो जाएंगे। उनका जन्‍म 11 अक्‍टूबर 1942 को हुआ था। दो दिनों पहले उभरते और पहचान बनाते एक्‍टर इश्‍त्‍याक खान से मुलाकात हुई। उन्‍होंने पिछले दिन अमिताभ बच्‍चन के साथ एक ऐड की शूटिंग की थी। जिज्ञासावश मैंने पूछा कि कैसा अनुभव रहा और उनके बारे में क्‍या कहना चाहेंगे ? इश्‍त्‍याक ने तपाक से जवाब दिया, ’ इस उम्र में इतना काम कर चुकने के बाद भी सेट पर उनकी तत्‍परता चकित करती है। उन्‍होंने क्‍या-क्‍या नहीं कर लिया है,लेकिन उस ऐड में भी उनकी संलग्‍नता से लग रहा था कि वह उनका पहला काम हो। वही उत्‍साह और समर्पण...हम जैसे एक्‍टर अनेक कारणों से अपनी एकाग्रता खो देते हैं। अमिताभ बच्‍चन 75 के उम्र में किसी प्रकार की चूक से बचना चाहते हैं। ‘ अमिताभ बच्‍चन की इस खासियत को सभी दोहराते हैं। सेट पर वे खाने-पीने,आराम करने,मेकअप करने और जरूरी एक्‍सरसाइज करने के अलावा अपने वैन में नहीं बैठते। उनके हाथों में स्क्रिप्‍ट रहती है। वे अपनी पंक्तियों को दोहराते रहते हैं। कोएक्‍टर के साथ रिहर्सल करने में र

बाबूजी के बेटे - अजय ब्रह्मात्‍मज

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अमिताभ बच्चन से हुई यादगार साहित्यक बातचीत :   - अजय ब्रह्मात्‍मज अमिताभ बच्चन अपने बाबूजी की बातों का उल्लेख करते समय सिर्फ एक कवि के बेटे होते हैं। उन्हें अपनी विशाल छवि याद नहीं रहती। बाबूजी की रचनाओं के प्रति उनके कौतूहल और गर्व को उनके ब्लॉग और ट्वीट में पढ़ा जा सकता है।   वर्ष 2008 की बात है। उनके बाबूजी हरिवंश राय बच्चन की जन्म शताब्दी का साल था। अचानक ख्याल आया कि क्यों न उनके बाबूजी हरिवंश राय बच्चन के बारे में बातें की जाएं। मैंने आग्रह के संदेश के साथ इंटरव्यू का विषय भी बता दिया। पूरी बातचीत उनके कवि और साहित्यकार बाबूजी हरिवंश राय बच्चन के बारें में होंगी। वह सहर्ष तैयार हो गए । स्थान , समय और तारीख निश्चित हो गई।   हालांकि वह भी औपचारिक मुलाकात थी,लेकिन मैं परेशान था कि फिल्म इंडस्ट्री के ख्यातिलब्ध कद्दावर स्टार को इस मुलाकात में मैं क्या भेंट कर सकता हूं ? ऊहापोह और असमंजस के बीच मैंने तय किया कि जेएनयू में अपने सीनियर और मित्र गोरख पांडे की कविता ‘ समझदारों का गीत ’ ले चलूं। दो पृष्ठों की इस कविता में गोरख पांडे ने कथित समझदारों के विरोधा

रोज़ाना : निर्देशक बनने की ललक

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रोज़ाना निर्देशक बनने की ललक -अजय ब्रह्मात्‍मज फिल्‍मों में निर्देशक को ‘ कैप्‍टन ऑफ द शिप ’ कहते हैं। निर्देशक की सोच को ही फिल्‍म निर्माण से जुड़े सभी विभागों के प्रधान अपनाते हैं। वे उसमें अपनी दक्षता और योग्‍यता के अनुसार जोड़ते हैं। उनकी सामूहिक मेहनत से ही निर्देशक की सोच साकार होकर फिल्‍म के रूप में सामने आती है। निर्देशक की सोच नियामक भूमिका निभाती है। फिल्‍म निर्माण से जुड़े सभी कलाकार और तकनीशियन एक न एक दिन निर्देशक बनने का सपना रखते हैं। उन सभी में यह ललक बनी रहती है। इन दिनों यह ललक कुछ ज्‍यादा ही दिख रही है। पहले ज्‍यादातर व्‍यक्तियों की दिशा और सीमा तय रहती थी। वे सभी अपनी फील्‍ड में महारथ हासिल कर उसके उस्‍ताद बने रहते थे। हां,तब भी कुछ क्रिएटिव निर्देशक बनते थे। गौर करे तो पाएंगे कि उन सभी को कुछ खास कहना होता था। कोई ऐसी फिल्‍म बनानी होती थी,जो चलन में ना हो। बाकी सभी अपनी फील्‍ड में ध्‍यान देते थे। पसंदीदा निर्देशक के साथ आजीवन काम करते रहते थे। महबूब खा,बिमल राय,राज कपूर और बीआर चोपड़ा जैसे दिग्‍गजों की टीम अंत-अंत तक साथ में का म करती रही। अभी किसी

फिल्‍म समीक्षा : शेफ

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फिल्‍म समीक्षा रिश्‍तों की नई परतें शैफ -अजय ब्रह्मात्‍मज यह 2014 में आई हालीवुड की फिल्‍म ‘ शेफ ’ की हिंदी रीमेक है। रितेश शाह,सुरेश नायर और राजा कृष्‍ण मेनन ने इसका हिंदी रुपांतरण किया है। उन्‍होंने विदेशी कहानी को भारतीय जमीन में रोपा है। मूल फिल्‍म देख चुके दर्शक सही-सही बता सकेगे कि हिंदी संस्‍करण्‍ में क्‍या छूटा है या क्‍या जोड़ा गया है ? हिंदी में बनी यह फिल्‍म खुद में मुकम्‍मल है। रोशन कालरा चांदनी चौक में बड़े हो रहे रोशन कालरा के नथुने चांदनी चौक के छोले-भठूरों की खुश्‍बू से भर जाते थे तो वह मौका निकाल कर रामलाल चाचा की दुकान पर जा धमकता था। उसने तय कर लिया था कि वह बड़ा होकर बावर्ची बनेगा। पिता को यह मंजूर नहीं था। नतीजा यह हुआ कि 15 साल की उम्र में रोशन भाग खड़ा हुआ। पहले अमृतसर और फिर दूसरे शहरों से होता हुआ वह अमेरिका पहुंच जाता है। वहां गली किचेन का उसका आइडिया हिंट हो जाता है। सपनों का पीछा करने में वह तलाकशुदा हो चुका है। उसका बेटा अपनी मां के साथ रहता है,जिससे उसकी स्‍काइप पर नियमित बात होती है। गली किचेन की एक छोटी सी घटना में उसे अपनी नौकरी

रोज़ाना : खलनायक बना प्रेमी

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रोज़ाना खलनायक बना प्रेमी -अजय ब्रह्मात्‍मज रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण का प्रेम छिपा नहीं है। दोनों फिल्‍मी पार्टियों और अंतरंग मित्रों के इवेंट में एक साथ नजर आते हैं। वे अपनी अंतरंगता जाहिर करने में भी नहीं झिझकते। दीपिका पादुकोण ऐसे अवसरों पर शांत और सौम्‍य दिखती हैं,जबकि रणवीर सिंह अपनी छवि के अनुरूप उत्‍कट और उत्‍साही प्रेमी के रूप में आकर्षित करते हैं। दोनों अपने करिअर के उठान पर हैं। वे सधी गति से आगे बढ़ रहे हैं। संजय लीला भंयसाली की ‘ पद्मावती ’ में वे तीसरी बार एक साथ नजर आएंगे। फर्क यह रहेगा कि इस बार प्रेमी के आवेश में होने के बावजूद वे खलनायक के रोल में रहेंगे। संजय लीला भंसाली की ही ‘ रामलीला-गोलियां की रासलीला ’ और ‘ बाजीराव मस्‍तानी ’ में हम उन्‍हें उद्दाम प्रेमी के रूप में देख चुके हैं। दोनों ही फिल्‍मों में उनकी जोड़ी पसंद की गई। देखा गया है कि पर्देपर नायक-नायिका की भूमिका निभा रहे निजी जीवन में एक-दूसरे के करीब या प्रेमी हों तो उनके बीच की केमिस्‍ट्री फिल्‍म के दृश्‍यों में बिखरी दिखती है। ऐसी अनेक जोडि़यों की फिल्‍मों के नाम गिनाए जा सकते हैं।

रोज़ाना : वरुण धवन की भाषा और आवाज

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रोज़ाना वरुण धवन की भाषा और आवाज -अजय ब्रह्मात्‍मज फिलहाल अपनी पीढ़ी के अभिनेताओं में वरुण धवन सबसे आगे निकलते नजर आ रहे हैं। उनकी पिछली फिल्‍म ‘ जुड़वां 2 ’ ने जबरदस्‍त बिजनेस किया है। सोमवार तक के चार दिनों में इस फिल्‍म ने 75 करोड़ से अधिक का कलेक्‍शन कर वरुण धवन के स्‍टारडम को ठोस आधार दे दिया है। 2012 में आई ‘ स्‍टूडेंट ऑफ द ईयर ’ से अभी तक के पांच सालों में वरुण धवन ने वैरायटी फिल्‍में दी हैं। उनकी फिल्‍में सफल भी हो रही हैं। इसी पांच साल में उन्‍होंने एक फ्रेंचाइजी ‘ ....दुल्‍हनिया ’ फिल्‍म भी कर ली है। जल्‍दी ही वे शुजित समरकार और सशराज फिल्‍म्‍स की फिल्‍मों में भी नजर आएंगे। कह सकते हैं कि वे इन दिनों बड़े बैनरों और बेहतरीन डायरेक्‍टर के साथ फिल्‍में कर रहे हैं। पिछले हफ्ते आई फिल्‍म में हम ने उन्‍हें सलमान खान और गोविंदा के मिक्‍स अवतार में देखा। गौर करें तो उनके पिता डेविड धवन ने गोविंदा और सलमान खान के साथ हिंदी फिलमों की कामेडी का नई दिशा दी थी। उसमें एक नयापन तो था। और फिर दोनों सिद्धहस्‍त कलाकारों की कॉमिक टाइमिंग और द्विअर्थी संवादों के खास दर्शक

रोज़ाना : नसीरुद्दीन शाह का नजरिया

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रोज़ाना नसीरुद्दीन शाह का नजरिया -अजय ब्रह्मात्‍मज कई बार नसीरूद्दीन शाह का इंटरव्‍यू पढ़ते और सुनते समय ऐसा लगता है कि एक असाधारण एक्‍टर औसत सी फिल्‍म इंडस्‍ट्री में फंस गया है। वह बेमन से सारे काम कर रहा है। हिदी फिल्‍मों के साथ उनका रिश्‍ता सहज नहीं है। उन्‍हें फिल्‍म इंडस्‍ट्री की अधिकांश बातें और रवायतें अच्‍छी नहीं लगतीं। वे मौका मिलते ही शिकायती ल‍हजे में गलतियां गिनाने और कमियां बताने लगते हैं। उन्‍हें पढ़ते-सुनते समय एहसास जागता है कि आखि सब कुछ इतना गलत और कमतर है तो वे यहां क्‍यों फंसे हुए हैं ? क्‍यों साधारण और कई बार घटिया भूमिकाओं की फिल्‍में करते हैं ? आठवें दशक मेंश्‍याम बेनेगल केनेतृत्‍व में जारी और प्रशंसित पैरेलल सिनेमा हिंदी फिल्‍मों केइतिहास का उल्‍लेखनीयहिस्‍सा रहा है। इसदौर में अनके यथार्थवादी फिल्‍मकार आए,जिन्‍होंने मेनस्‍ट्रीम सिनेमा केकमर्शियल स्‍टारों के पैरेलल दमदार कलाकारों को लेकर भावपूर्ण और सारगर्भित फिल्‍में बनाईं। नसीरूद्दीन शाह,शबाना आजमी,स्मिता पाटिल और ओम पुरी उस दौर के प्रमुख कलाकार रहे। उनकी सफलता और पहचान ने थिएटर में सक्रि