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अनोखे गीत १ ,ऐ बेबी ऐ जी

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अनोखे गीत  ऐ बेबी ऐ बेबी ऐ जी ऐ बेबी ऐ जी इधर आओ आ गया घूम जाओ घूम गया मान जाओ मान गया कहो क्‍या खाओगे जलेबी ऐ बेबी ऐ जी ऐ बेबी ऐ जी इधर आओ आ गया घम जाओ घम गया मान जाओ मान गया कहो क्‍या खाओगे जलेगी रुत है रंगीली हवा भी है नशीली आ प्‍यारे रुत है रंगीली हवा भी है नशीली आ प्‍यारे मगर भूख मेरी मिटा तो ना सकेंगे नजारे मगर भूख मेरी मिटा तो ना सकेंगे नजारे इधर आओ आ गया बैठ जाओ बैठ गया उठ जाओ उठ गया कहो क्‍या खाओगे कलेजी ऐ बेबी देखो ते वों पंछी मधुर सी सदा में क्‍या बोले देखो ते वो पंछी मधुर सी सदा में क्‍या बोले भूखा है या प्‍यासा तड़प के बेचारा मुंह खोले भूखा है या प्‍यासा तड़प के बेचारा मुंह खोले इधर आओ आ गया रुक जाओ रुक गया झुक जाओ झुक गया अब कहो क्‍या खाओगे जलेबी ऐ बेबी हम तो तुम्‍हारे जी मेहमान बन के हाय मर गए हम तो तुम्‍हारे जी मेहमान बन के हाय मर गए बहुत शुक्रिया जी ये एहसान हम पे जो कर गए बहुत शुक्रिया जी ये एहसान हम पे जो कर गए इधर आओ नहीं आऊंगा घूम जाओ नहीं घूमुंगा मान जाओ नहीं मानूंगा भूखे ही क्‍या जाओंगे कुछ ले भी ऐ

फिल्म समीक्षा : मुक्काबाज़

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सामाजिक विसंगतियों पर जोरदार मुक्‍का -अजय ब्रह्मात्‍मज ‘मुक्‍काबाज़’ रिलीज हो चुकी है। देखने वालों में से अधिकांश ने देख भी ली होगी। फिल्‍म पर आ रही समीक्षकों की प्रतिक्रियाएं सकारात्‍मक हैं। फिल्‍म में वे बहुत कुछ पा रहे हैं। कुछ बातों से वे हैरान हैं। और कुछ बातों से परेशान भी हैं। हिंदी फिल्‍मों में धर्म,जाति,वर्ण व्‍यवस्‍था और भेदभाव की मानसिकता कहानी का हिस्‍सा बन कर कम ही आती है। एक दौर था,जब श्‍याम बेनेगल के नेतृत्‍व में तमाम फिल्‍मकार सामजिक विसंगतियों पर जरूरी फिल्‍में बना रहे थे। उसमें स्‍पष्‍ट प्रतिबद्धता दिखती थे। नारे और सामाजिक बदलाव की आकांक्षा की अनुगूंज सुनाई पड़ती थी। ऐसी कोशिशों में फिल्‍म की भारतीय मनोरंजक परंपरा और दर्शकों की आह्लादित संतुष्टि कहीं छूट जाती थी। कई बार लगता था कि सब कुछ किताबी हो रहा है। तब वक्‍त था। हम सिद्धातों से शरमाते नहीं थे। यह 21 वीं सदी है। पिछले तीन सालों से देश में दक्षिणपंथी सोच की सरकार है। उनके अघोषित मूक संरक्षण में अंधराष्‍ट्रवाद और भगवा सोच का जोर बढ़ा है। ऐसे परिदृश्‍य में मुखर ‘मुक्‍काबाज़’ का आना साहसी बात है। अनुराग

अनूराग कश्यप से बातचीत जनवरी 2018

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आंज रिलीज हुई मुक्‍काबाज़ पर अनुराग कश्‍यप से हुई बातचीत। यह बातचीत इसी पुस्‍तक से ली गई है। अनुराग ने इस पुस्‍तक में फिल्‍मों में आने को उत्‍सुक और इच्‍छुक प्रतिभाओं को हिदायतें और सलाह दी हैं। आप सभी के लिए यह पतली पुस्‍तक उपयोगी और प्रेरक हो.... अनुराग कश्‍यप मुक्‍काबाज़ के बारे में मुक्‍काबाज में राजनीति है –अनुराग कश्‍यप -अजय ब्रह्मात्‍मज   - आप के करिअर की यात्रा में यह फिल्‍म कहां ठहरती है ? 0 मेरे लिए यह फिल्‍म बहुत मायने रखती है। यह एक नई कोशिश है। बहुत सारी चीजों को बहुत ही सोच-समझ के फिल्‍म से दूर रखा है। मैा चाहता हूं कि फिल्‍म लोगों तक पहुंचे। आम दर्शकों तक पहुंचे। उसकी पहुंच बढ़े। सचेत रूप से यूए सर्टिफिकेट के हिसाब से फिल्‍म बनाई है। बहुत कुझ कहना भी चाहता हूं। बहुत जरूरी है यह देखना कि अभी हमारा जो सामाजिक-राजनीतिक ढांचा बन गया है,उसमें कोई भी कहीं भी किसी भी बात का बुरा मान जाता है। खड़ा हो जाता है। लड़ने लगता है। हम जिन दायरों और बंधनों को भूल चुके थे। खुल कर फिल्‍में बना रहे थे। वापस उन दायरों में डाल दिया गया है। जाति है,मजहब है और भी वर्ग