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सिनेमालोक ; पुरस्कृत फिल्मों का हो प्रदर्शन

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सिनेमालोक पुरस्कृत फिल्मों का हो प्रदर्शन - अजय ब्रह्मात्मज 65 वे नेशनल  फिल्म अवार्ड की घोषणा हो चुकी है। पुरस्कारों में  इस बार हिंदी फिल्मों और उनके कलाकारों व तकनीशियनों की संख्या काम रही। दादा साहेब फाल्के और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के दो पुरस्कार मरणोपरांत दिए गए। इन्हें लेकर कोई विवाद नहीं है , लेकिन यह सवाल तो उठा ही कि ऐसा क्यों हुआ ? श्रीदेवी के मामले में कुछ लोग इसे उनकी आकस्मिक मौत से उपजी सहानुभूति की भावना बता रहे हैं। इसी तरह विनोद खन्ना के नाम पर आपत्ति नहीं होने के बावजूद भाजपा से उनकी नज़दीकी वजह तो बन ही गयी है। शेखर कपूर की अध्यक्षता में गठित नेशनल फिल्म अवार्ड की जूरी की सराहना भी की जा रही कि उन्होँने हिंदी की लोकप्रियता से परे जाकर देश की दूसरी भाषाओँ की फिल्मों पर गौर किया और उन्हें पुरस्कृत किया। कुछ फिल्मों को देख कर स्वयं अध्यक्ष दंग रह गए। उन्होँने बयान दिया कि हिंदी फिल्मो के लिए उन फिल्मों की क्रिएटिविटी बड़ी चुनौती बनेगी। फिल्मों के लोकप्रिय पुरस्कारों से अलग नेशनल पुरस्कारों का महत्व है। एक तो यह राष्ट्रीय  पुरस्कार है। चंद कमियों के बाव

फिल्म समीक्षा : अक्टूबर

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फिल्म समीक्षा : अक्टूबर - अजय ब्रह्मात्मज अव्यक्त प्रेम की मासूम फिल्म मुस्कुराहट सी खिली रहती है आँखों में कहीं और पलकों पे उजाले से झुके रहते हैं होंठ कुछ कहते नहीं, काँपते होंठों पे मगर कितने ख़ामोश से अफ़साने रुके रहते हैं गुलज़ार के इस गीत का मर्म 'अक्टूबर ' देखते हुए गहराई से समझ आता है।  अस्पताल में जब डॉ घोष दस कहने पर शिउली की पुतलियां बाएं और दाएं घूमती हैं तो कोमल भावनाओं की लहर उठती है। दिल भीग जाता है। कंठ में हलचल होती है। आँखें नम हो जाती हैं।  शूजीत सरकार और जूही चतुर्वेदी की जोड़ी हर नई फिल्म मैं हमारे सामाजिक जीवन कि एक नई झांकी लेकर  है।  इस बार उन्होंने दिल्ली की पृष्ठभूमि में एक अद्भुत प्रेम कहानी रची है।  हम मान बैठे हैं कि  आज की पीढ़ी प्रेम और  प्रेमजन्य संबंधों के प्रति संवेदनशील नहीं है।  वह रिश्तो को निभाने के प्रति गंभीर नहीं रहटी।  उसके अप्रोच और व्यवहार में तात्कालिकता रहती है।  जीवन की आपाधापी में ोग प्रेम भाव के लिए ठहरती नहीं है।  इसकी वजह से पारस्परिक संबंध बनने से पहले ही दरकने और टूटने लगते हैं। इन दिनों व्यक्त

दरअसल : भारत में ईरानी फिल्‍मकार माजिद मजीदी

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दरअसल... भारत में ईरानी फिल्‍मकार माजिद मजीदी -अजय ब्रह्मात्‍मज माजिद मजीदी की फिल्‍म ‘बियांड द क्‍लाउड्स’ रिलीज हो रही है। इस फिल्‍म में करण जौहर की शशांक खेतान निर्देशित ‘धड़क’ के नायक ईशान खट्टर हैं। ईशान खट्टर शाहिद कपूर के सहोदर भाई हैं। दोनों की मां एक हैं नीलिमा अजीम। अभी माजिद मजीदी की फिल्‍म ‘बियांड द क्‍लाउड्स’ में ईशान खटटर की वजह से मीडिया और दर्शकों की रुचि बढ़ गई है,क्‍योंकि करण जौहर उन्‍हें जान्‍हवी कपूर के साथ नए सिरे से लांच कर रहे हैं। पिछले साल गोवा के इंटरनेशनल फिल्‍म फेस्टिवल में यह आपनिंग फिल्‍म थी,लेकिन तब इसकी कोई चर्चा नहीं हो पाई थी। माजिद मजीदी ईरान के सुप्रसिद्ध निर्देशक हैं। उनकी फिल्‍में अनेक इंटरनेशनल पुरस्‍कारों से नवाजी जा चुकी हैं। लगभ बीस साल पहले आई ‘चिल्‍ड्रेन ऑफ हेवन’(1997) और ‘द कलर ऑफ पैराडाइज’(1999) उनकी बहुचर्चित और पुरस्‍कृत फिल्‍में हैं। ईरान में रहते हुए उन्‍होंने इंटरनेशनल ख्‍याति हासिल की। उन्‍हें विदेशों से निर्देशन के ऑफर आते रहे। 15 साल पहले सन् 2003 के इंटरव्‍यू में उन्‍होंने साफ शब्‍दों में कहा था कि वे देश के बाहर जाकर

सिनेमालोक : अनिश्‍चय की बेचैनी

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सिनेमालोक अनिश्‍चय की बेचैनी -अजय ब्रह्मात्‍मज फिलहाल सलमान खान मुंबई लौट आए हैं। अगले कुछ दिनों में वे अपनी फिल्‍मों की शूटिंग में व्‍यस्‍त हो जाएंगे। फिर से उनकी फिल्‍में सैकड़ों करोड़ों की कमाई करेंगी। माना जाता है कि उनकी कोई भी फिल्‍म कम से कम 500 करोड़ का कारोबार करती है। बॉक्‍स आफिस से इतर बेचे गए अधिकारों से आमदनी बढ़ती है। फिर भी एक बेचैनी बरकरार है। यह बेचैनी उस अनिश्‍चय की है,जो सलमान खान के मामले में पिछले 20 सालों से उनके साथ चल रही है। इस बीच उनके केस को कवर कर रहे फिल्‍म और मीडिया के अनेक पत्रकार बदल गए या रिटायर हो गए। इसके पहले संजय दत्‍त के मामले में भी 1993 के केस का फैसला 2013 में हो पाया। संजय दत्‍त को सजा हुई। सलमान खान को सजा हुई,लेकिन वे जमानत पर अगली तारीख तक के लिए छूट गए हैं। अगली बार क्‍या होगा ? अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता। कोर्ट तथ्‍य और गवाहियों के आधार पर अंतिम फैसला दे तो सलमान खान के परिवार और प्रशंसकों को राहत मिले। स्‍वयं सलमान खान भी अंतर्द्वंद्व से बाहर निकलें और सुकून से काम करें। इस बार जेल से छूटने और मुंबई आने के बाद जब वे प्र

फिल्‍म लॉन्‍ड्री : इरफान और मनोज बाजपेयी : कहानी 'आउटसाइडरों' की

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फिल्‍म लॉन्‍ड्री इरफान और मनोज बाजपेयी : कहानी 'आउटसाइडरों' की -अजय ब्रह्मात्‍मज शुक्रवार 6 अप्रैल को हिंदी में दो फिल्‍में रिलीज हुईं। ‘ब्‍लैकमेल’ और ‘मिसिंग’...दोनों फिल्‍मों में एक बात समान थी। दोनों फिल्‍मों के नायक व मुख्‍य अभिनेता रंगमंच से आए अभिनेता हैं। दोनों हिंदी फिल्‍मों के लिए ‘आउटसाइडर’ हैं। हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री की सोच और शर्तों के हिसाब से दोनों ‘हीरो मैटेरियल’ नहीं माने जाते। फिर भी अपनी जिद्द,लगन और मेहनत से उन्‍होंने हिंदी फिल्‍मों के पर्दे पर मुख्‍य और महत्‍वपूर्ण किरदारों को निभाया और खास मुकाम हासिल किया। बतौर नायक उन्‍होंने अनेक फिल्‍में कर ली हैं। उन्‍होंने खुद के लिए सम्‍मानजनक जगह बनाई है और हिंदी फिल्‍मों में आने के आकांक्षी प्रतिभाओं के प्रेरक बने हैं। दोनों अभिनेता के साथ निर्माता भी बन चुके हैं। यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। वे दृढ़ कदमों के साथ लगातार आगे बढ़ रहे हैं। संक्षेप में दोनों का सफर लगभग एक सा रहा है। दोनों अपने राज्‍यों से दिल्‍ली आए। दिल्‍ली में रंगमंच का शिक्षण और प्रशिक्षण लेने के बाद उन्‍होंने अपने प्रदर्शन से