बदलापुर : उज्जड़ हिंसा की बाढ़ में एक अहिंसक - गजेन्द्र सिंह भाटी
गजेंद्र सिंह भाटी फिल्म जिस अफ्रीकी लोकोक्ति पर शुरू में खड़ी होती है कि कुल्हाड़ी भूल जाती है लेकिन पेड़ याद रखता है, उससे अंत में हट जाती है। यहीं पर ये फिल्म बॉलीवुड में तेजी से बन रही सैकड़ों हिंसक और घटिया फिल्मों से अलग हो जाती है। महानता की ओर बढ़ जाती है। पूरी फिल्म में मनोरंजन कहीं कम नहीं होता। कंटेंट, एक्टिंग, प्रस्तुतिकरण, थ्रिलर उच्च कोटि का और मौलिक लगता है। फिल्म को हिंसा व अन्य कारणों से एडल्ट सर्टिफिकेट मिला है तो बच्चे नहीं देख सकते। पारंपरिक ख़यालों वाले परिवार भी एक-दो दृश्यों से साथ में असहज हो सकते हैं। बाकी ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए। ऐसा सिनेमा उम्मीद जगाता है। नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने जैसा काम किया है वैसा शाहरुख, सलमान, अमिताभ, अक्षय अपने महाकाय करियर में नहीं कर पाए हैं। फिल्म का श्रेष्ठ व सिहरन पैदा करता दृश्य वो है जहां लायक रघु से कहता है, "मेरा तो गरम दिमाग था। तेरा तो ठंडा दिमाग था? तूने लोगों को मार दिया। हथौड़े से। वो भी निर्दोष। क्या फर्क रह गया...?’ यहां से फिल्म नतमस्तक करती है। कुछ चीप थ्रिल्स हैं जिन्हें भूल जाएं तो इस श्रेणी म