Posts

Showing posts with the label दरअसल

दरअसल : सरहद पार के गांव बफा से सरहदी को बुलावा

Image
दरअसल सरहद पार के गांव बफा से सरहदी को बुलावा - अजय ब्रह्मात्मज ‘ कभी-कभी ,’ चांदनी ’,’ सिलसिला ’ और ’ कहो...न प्यार है ’ जैसी फिल्मों के लेखक और क्लासिक फिल्म ‘ बाजार ’ के लेखक-निर्देशक सागर सरहदी इन दिनों बहुत खुश हैं। उन्हें बुलावा आया है। उन्हें अपने मूल पैतृक निवास बफा से बुलावा आया है। बफा पाकिस्तान के मनेशरा ज़िले का एक खूबसूरत गांव है। इसी गांव में सागर सरहदी का जन्म हुआ। 1947 में विभाजन के बाद उनके परिवार को अपनी जान की हिफाजत के लिए उस गांव को छोड़ना पड़ा था। उनका परिवार कश्मीर के रास्ते दिल्ली पहुंचा था। और फिर अपने बड़े भाई के साथ वह मुंबई आ गए थे। भाई जितने संजीदा और ज़िम्मेदार …. सागर उतने ही लापरवाह और आवारा। बुरी संगत , बुरी आदतें। संयोग ऐसा हुआ कि आवारगी के उन दिनों में उनकी मुलाक़ात इप्टा के रंगकर्मियों और शायरों से हो गयी। कैफी आज़मी और दूसरे कम्युनिस्ट और प्रगतिशील कलाकारों और शायरों की सोहबत में सागर भी लिखने लगे और अपना नाम गंगा सागर तलवार से बदल कर सागर सरहदी कर लिया। बहरहाल , जिस गांव से 71 साल पहले उन्हें निकलना पड़ा था। आज वही गांव उन्हें सम

दरअसल : पानी के लिए लड़ते किरदार

Image
दरअसल पानी के लिए लड़ते किरदार - अजय ब्रह्मात्‍मज विक्रमादित्य मोटवानी का सुपरहीरो भावेश जोशी मुंबई के वाटर माफिया को के खिलाफ खड़ा होता होता है। भावेश जोशी 21 वीं का सजग युवक है , जो मुंबई में रहता है। वह अपने आसपास के भ्रष्टाचार और समाज के स्वार्थी व्यक्तियों के आचरण से उक्त चूका है। उसे कोई रास्ता नहीं सूझता तो वह नक़ाब पहन कर उन्हें बेनक़ाब करने की मुहीम पर निकलता है। यह सिस्टम से नाराज़ आज के यवक की कहानी है। विक्रमादित्य अपनी पीढ़ी के संवेदनशील फ़िल्मकार हैं। इस बार वे किरदारों के परस्पर मानवीय रिश्तों और उनकी उलझनों से निकल कर समाज से जूझते और टकराते किरदार को सुपरहीरो के तौर पर पेश कर रहे हैं। यथार्थ कठोर और जटिल हो तो साहित्य और फिल्मों में फंतासी का सहारा लिया जाता है। ज़िन्दगी में नामुमकिन लग रही मुश्किलों को फंतासी से सुलझाने का क्रिएटिव प्रयास किया जाता है। विक्रमादित्य का विषय आज की मुंबई और मुंबई की रोज़मर्रा की समस्याएं हैं। उनमें पानी एक विकट समस्या है। ख़बरों और फिल्मों के जरिये महानगरों में पर्याप्त पानी के लिए तरसते नागरिकों की व्यथा हम देखते रहे हैं। हम मे

दरअसल : संजू की ज़िंदगी का नया ‘प्रस्थान’

Image
दरअसल संजू की ज़िंदगी का नया ‘ प्रस्थान ’ - अजय ब्रह्मात्मज खबर आई है कि संजय दत्त माँ नरगिस दत्त के जन्मदिन 1 जून से अपने होम प्रोडक्शन की नई फिल्म की शूटिंग आरम्भ करेंगे। सात सालों   के बाद उनके करियर का यह नया ‘ प्रस्थान ’ होगा।   उनकी इस फिल्म का निर्देशन मूल तेलुगू ‘ प्रस्थानम ’ के निर्देशक देवा कट्टा ही करेंगे। इस नई शुरुआत के लिए संजय दत्त को बधाई और यह ख़ुशी की बात है कि उन्होंने इसके लिए माँ का जन्मदिन ही चुना। इसी महीने माँ नरगिस के पुण्य दिवस के मौके पर उन्होंने एक ट्वीट किया था कि ‘ मैं जो भी हूँ , तुम्हारी वजह से हूँ।   मैं तुम्हारी कमी महसूस करता हूँ। ’ माँ के प्रति उमड़े उनके प्यार की क़द्र होनी चाहिए। सचमुच संजय आज जो भी हैं , उसमें नरगिस दत्त की परवरिश और लाड-प्यार का बड़ा योगदान है। राजकुमार हिरानी की फिल्म ‘ संजू ’ में माँ-बेटे के सम्बन्ध को देखना रोचक होगा। उनके निर्देशन में मनीषा कोइराला ने अवश्य नरगिस के लाड , चिंता और तकलीफ को परदे पर उतारा होगा। संजय दत्त पर छिटपुट रूप से इतना कुछ लिखा जा चुका है कि माँ-बेटे के बीच की भावनात्मक उथल-पुथल औ

दरअसल : नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी की ‘मंटो’

Image
दरअसल नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी की ‘ मंटो ’ - अजय ब्रह्मात्मज भारत से कुछ फ़िल्मकार , पत्रकार और समीक्षक मित्र कान फिल्म फेस्टिवल गए हैं। उनकी राय , टिपण्णी और समीक्षा पर यकीन करें तो नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी की ‘ मंटो ’ इस साल की बहुप्रतीक्षित फिल्म होगी। यह फिल्म कान फिल्म फेस्टिवल के ‘ उन सर्टेन रिगार्ड ’ खंड के लिए चुनी गयी है। इस फिल्म की निर्देशक नंदिता दास हैं। कान फिल्म फेस्टिवल की क्रिएटिव पवित्रता और वस्तुनिष्ठता बची हुई है। दुनिया भर के बेहतरीन फ़िल्में यहाँ देखने को मिल जाती हैं। यह पता चल जाता है कि इस साल का इंटरनेशनल सिनेमा सीन कैसा रहेगा ? वहां दिखाई जा चुकी फ़िल्में कुछ महीनों के बाद घूमती हुई देश के विभिन्न शहरों में आयोजित फिल्म फेस्टिवल में पहुंचेंगी। मैं ‘ मंटो ’ को नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी की फिल्म कह रहा हूँ। उन्होंने ही फिल्म में शीर्षक भूमिका निभाई है। कह सकते हैं कि किरदारों पर भी कलाकारों के नाम लिखे होते हैं। 2005 से सआदत हसन मंटो के जीवन पर फिल्म बनाने की कोशिशें जारी हैं। अनेक निर्देशकों ने सोचा। कुछ कलाकारों ने तैयारी की। बात आयी-गयी और फ़िल्में