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राजनीति को फिल्म से अलग नहीं कर सकता: प्रकाश झा

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=अजय ब्रह्मात्मज हिप हिप हुर्रे से लेकर राजनीति तक के सफर में निर्देशक प्रकाश झा ने फिल्मों के कई पडाव पार किए हैं। उन्होंने डॉक्यूमेंट्री फिल्में भी बनाई। सामाजिकता उनकी विशेषता है। मृत्युदंड के समय उन्होंने अलग सिनेमाई भाषा खोजी और गंगाजल एवं अपहरण में उसे मांजकर कारगर और रोचक बना दिया। राजनीति आने ही वाली है। इसमें उन्होंने सचेत होकर रिश्तों के टकराव की कहानी कही है, जिसमें महाभारत के चरित्रों की झलक भी देखी जा सकती है। फिल्मों में हाथ आजमाने आप मुंबई आए थे? शुरुआत कैसे हुई? दिल्ली यूनिवर्सिटी से फिजिक्स ऑनर्स करते समय लगा कि सिविल सर्विसेज की परीक्षा दूं, लेकिन फिर बीच में ही पढाई छोडकर मुंबई आ गया। सिर्फ तीन सौ रुपये थे मेरे पास। जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स का नाम सुना था, वहां पढना चाहता था। यहां आकर कुछ-कुछ काम करना पडा और दिशा बदलती गई। मुंबई आते समय ट्रेन में राजाराम नामक व्यक्ति मिले, जो शुरू में मेरे लिए सहारा बने। वे कांट्रेक्टर थे। उनके पास दहिसर में सोने की जगह मिली। फिर जे. जे. स्कूल नहीं गए? वहां गया तो मालूम हुआ कि सेमेस्टर आरंभ होने में अभी समय है। मेरे पास कैमरा था। फोट

फिल्म समीक्षा:राजनीति

राजनीतिक बिसात की चालें -अजय ब्रह्मात्मज भारत देश के किसी हिंदी प्रांत की राजधानी में प्रताप परिवार रहता है। इस परिवार केसदस्य राष्ट्रवादी पार्टी के सक्रिय नेता हैं। पिछले पच्चीस वर्षो से उनकी पार्टी सत्ता में है। अब इस परिवार में प्रांत के नेतृत्व को लेकर पारिवारिकअंर्तकलह चल रहा है। भानुप्रताप के अचानक बीमार होने और बिस्तर पर कैद हो जाने से सत्ता की बागडोर केलिए हड़कंप मचता है। एक तरफ भानु प्रताप केबेटे वीरेन्द्र प्रताप की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हैं तो दूसरी तरफ भानुप्रताप के छोटे भाई चंद्र प्रताप को मिला नेतृत्व और उनके बेटे पृथ्वी और समर की कशमकश है। बीच में बृजलाल और सूरज कुमार जैसे उत्प्रेरक हैं। प्रकाश झा ने राजनीति केलिए दमदार किरदार चुने हैं। राजनीतिक बिसात पर उनकी चालों से खून-खराबा होता है। एक ही तर्कऔर सिद्धांत है कि जीत के लिए जरूरी है कि दुश्मन जीवित न रहे। प्रकाश झा की राजनीति मुख्य रूप से महाभारत के किरदारों केस्वभाव को लेकर आज के माहौल में बुनी गई कहानी है। यहां कृष्ण हैं। पांडवों में से भीम और अर्जुन हैं। कौरवों में से दुर्योधन हैं। और कर्ण हैं। साथ में कुंती हैं और

'राजनीति' महाभारत से प्रेरित है : मनोज बाजपेयी

-अजय ब्रह्मात्‍मज राजनीति में रोल क्या है आप का? पॉलिटिकल फैमिली में पैदा हुआ है मेरा किरदार। बचपन से पावर देखा है उसने। उसके अलावा कुछ जानता भी नहीं और वही वह चाहता है। वह जानता है कि जो पोजिशन और पावर है, वह उसे ही मिलनी चाहिए। जिद्दी आदमी है, तेवर वाला आदमी है। कहीं न कहीं मैं ये कहूंगा कि बहुत ही धाकड़ खिलाड़ी भी है राजनीति में। तो वह चालाकी भी करता है। लेकिन जब विपत्ति आती है तो कहीं न कहीं अपने तेवर और जिद्दी मिजाज की वजह से उसका दिमाग काम नहीं कर पाता। वीरेन्द्र प्रताप सिंह नाम है। वीरू भैया के नाम से मशहूर है। खासियत क्या है? पॉलिटिकल रंग की अगर बात करें तो ़ ़ ़ जो राजनीति उसे विरासत में मिली है और जिसे छोड़ पाने में हमलोग बड़े ही असमर्थ हो रहे हैं, वीरू उस राजनीति की बात करता है। वह राजनीति अभी ढह रही है या चरमरा रही है। चरमराने के बाद डिप्रेशन आ रहा है लोगों में। उसी डिप्रेशन को वीरेन्द्र प्रताप सिंह रीप्रेजेंट करता है। वीरेन्द्र प्रताप सिंह को निभाने के लिए क्या कोई लीडर या कोई आयकॉन आपके सामने था? कोई आयकॉन सामने नहीं था। चूंकि बचपन से हम एक ऐसे परिवार और माहौल मे

स्‍टार प्रोफाइल : अजय देवगन

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-अजय ब्रह्मात्‍मज मुंबई के लोकप्रिय स्टारों के नाम डालकर इंटरनेट सर्च करें तो नतीजों से आप चौंक जाएंगे। कम लोगों को सर्च रिजल्ट पर यकीन होगा। थोड़ी देर के लिए आप भी हैरत में पड़ जाएंगे कि क्या सचमुच अजय देवगन अपनी पीढ़ी के सबसे व्यस्त अभिनेता हैं? उनकी अतिथि तुम कब जाओगे अभी रिलीज हुई है और पांच फिल्में कतार में हैं। उनमें से टुनपूर का सुपरहीरो और राजनीति पूरी हो चुकी है। बाकी तीन गरम हवा, वन्स अपऑन अ टाइम इन मुंबई और गोलमाल-3 निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं। लंबे समय के बाद अजय देवगन की एक्शन फिल्म दिसंबर में आरंभ हो जाएगी, जिसे उनके चहेते डायरेक्टर रोहित शेट्टी डायरेक्ट करेंगे। [काफी व्यस्त है शेड्यूल] बगैर शोरगुल और मीडिया हाइप के अजय देवगन अपने काम में मशगूल रहते हैं। शूटिंग ने इतना व्यस्त कर रखा है कि वे अपने ही घर में अतिथि की तरह आते हैं। पिछले दिनों तमिलनाडु के मदुरै शहर में गरम हवा के सेट पर उनसे मुलाकात हुई, बताने लगे, ''इस फिल्म की शूटिंग के बाद मुंबई लौटूंगा। वहां चंद दिनों की शूटिंग करने के बाद गोलमाल-3 के लिए गोवा चला जाऊंगा। इस बीच वन्स अप ऑन अ टाइम की बाकी

प्रकाश झा से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत

पहली सीढ़ीमैं प्रवेश भारद्वाज का कृतज्ञ हूं। उन्होंने मुझे ऐसे लंबे, प्रेरक और महत्वपूर्ण इंटरव्यू के लिए प्रेरित किया। फिल्मों में डायरेक्टर का वही महत्व होता है, जो किसी लोकतांत्रिक देश में प्रधानमंत्री का होता है। अगर प्रधानमंत्री सचमुच राजनीतिज्ञ हो तो वह देश को दिशा देता है। निर्देशक फिल्मों का दिशा निर्धारक, मार्ग निर्देशक, संचालक, सूत्रधार, संवाहक और समीक्षक होता है। एक फिल्म के दरम्यान ही वह अनेक भूमिकाओं और स्थितियों से गुजरता है। फिल्म देखते समय हम सब कुछ देखते हैं, बस निर्देशक का काम नहीं देख पाते। हमें अभिनेता का अभिनय दिखता है। संगीत निर्देशक का संगीत सुनाई पड़ता है। गीतकार का शब्द आदोलित और आलोड़ित करते हैं। संवाद लेखक के संवाद जोश भरते हैं, रोमांटिक बनाते हैं। कैमरामैन का छायांकन दिखता है। बस, निर्देशक ही नहीं दिखता। निर्देशक एक किस्म की अमूर्त और निराकार रचना-प्रक्रिया है, जो फिल्म निर्माण \सृजन की सभी प्रक्रियाओं में मौजूद रहता है। इस लिहाज से निर्देशक का काम अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। श्याम बेनेगल ने एक साक्षात्कार में कहा था कि यदि आप ईश्वर की धारणा में यकीन करते हों औ

प्रकाश झा से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत-2

पिछले से आगे... डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का यह रुझान तात्कालिक ही लगता है, क्योंकि आप फीचर फिल्मों की तरफ उन्मुख थे? उन दिनों फीचर फिल्म कोई दे नहीं रहा था। डॉक्यूमेंट्री में कम लागत और कम समय में कुछ कर दिखाने का मौका मिल जाता था। 1975 से 1980.81 तक मैं डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनाता रहा और सैर करता रहा। यहां फिल्में बनाता था। और पैसे जमा कर कभी इंग्लैंड, कभी जर्मनी तो कभी फ्रांस घूम आता था। विदेशों में जाकर थोड़ा काम कर आता था। कह सकते हैं कि छुटपुटिया काम ही करता रहा। 1979 में बैले डांसर फिरोजा लाली ... । उनके साथ वाक्या ये हुआ था कि वे बोलशेवे तक चली गई थीं। रॉयल एकेडमी में सीखा उन्होंने सिंगापुर में भी रहीं, लेकिन कभी लाइमलाइट में नहीं रहीं। उनके पिता पूरी तरह समर्पित थे बेटी के प्रति। मुझे बाप-बेटी की एक अच्छी कहानी हाथ लगी। मैंने उन पर डॉक्यूमेट्री शुरू कर दी। उसी सिलसिले में मुझे रूस जाना पड़ा। रूस में बोलवेशे से उनके कुछ फुटेज निकालने थे। फिर लंदन चला गया। उनकी फिल्म पूरी करने के लिए। उसमें मुझे काफी लंबा समय लग गया। थोड़ी लंबी डॉक्यूमेंट्री थी। पैसों की दिक्कत थी। इधर-उधर

प्रकाश झा से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत

शुरू से बताएं। फिल्मों में आने की बात आपने कब और क्यों सोची? मैं तो दिल्ली यूनिवर्सिटी में फिजिक्स ऑनर्स की पढ़ाई कर रहा था। उस समय अचानक लगने लगा कि क्या यही मेरा जीवन है? ग्रेजुएशन हो जाएगा, फिर आईएएस ऑफिसर बनकर सर्विसेज में चले जाएंगे। पता नहीं क्यो वह विचार मुझे पसंद नहीं आ रहा था। काफी संघर्ष dरना पड़ा उन दिनों परिवार की आशंकाएं थीं। उन सभी को छोड़-लतार कर... बीच में पढ़ाई छोड़ कर मुंबई आ गया। पैसे भी नहीं लिए पिताजी से... पिताजी से मैंने कहा कि जो काम आप नहीं चाहते मैं करूं, उस काम के लिए मैं आप से पैसे नहीं लूंगा। चलने लगा तो घर के सारे लोग उदास थे... नाराज थे। मेरे पास तीन सौ रूपये थे। मैं मुंबई आ गया... फिल्मो के लिए नहीं, पेंटिंग में रुचि थी मेरी। जे जे स्कूल ऑफ आर्ट्स का नाम सुना था। मैंने कहा कि वहीं जाऊंगा। वहां जाकर जीवन बनाऊंगा घर छोड़कर चला आया था। मंबई आने के बाद जीविका के लिए कुछ.कुछ करना पड़ा। ट्रेन में एक सज्जन मिल गए थे.राजाराम। आज भी याद है। दहिसर - मुंबई का बाहरी इलाका-में बिल्डिंग वगैरह बनाते थे। उनके पास यूपी जौनपुर के बच्चे रहते थे। वहीं हमको भी सोने की जगह मि

बया में 'पहली सीढ़ी' सीरिज़ में प्रकाश झा का इंटरव्यू

पहली सीढ़ी मैं प्रवेश भारद्वाज का कृतज्ञ हूं। उन्होंने मुझे ऐसे लंबे, प्रेरक और महत्वपूर्ण इंटरव्यू के लिए प्रेरित किया। फिल्मों में डायरेक्टर का वही महत्व होता है, जो किसी लोकतांत्रिक देश में प्रधानमंत्री का होता है। अगर प्रधानमंत्री सचमुच राजनीतिज्ञ हो तो वह देश को दिशा देता है। निर्देशक फिल्मों का दिशा निर्धारक, मार्ग निर्देशक, संचालक, सूत्रधार, संवाहक और समीक्षक होता है। एक फिल्म के दरम्यान ही वह अनेक भूमिकाओं और स्थितियों से गुजरता है। फिल्म देखते समय हम सब कुछ देखते हैं, बस निर्देशक का काम नहीं देख पाते। हमें अभिनेता का अभिनय दिखता है। संगीत निर्देशक का संगीत सुनाई पड़ता है। गीतकार का शब्द आदोलित और आलोड़ित करते हैं। संवाद लेखक के संवाद जोश भरते हैं, रोमांटिक बनाते हैं। कैमरामैन का छायांकन दिखता है। बस, निर्देशक ही नहीं दिखता। निर्देशक एक किस्म की अमूर्त और निराकार रचना-प्रक्रिया है, जो फिल्म निर्माण \सृजन की सभी प्रक्रियाओं में मौजूद रहता है। इस लिहाज से निर्देशक का काम अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। श्याम बेनेगल ने एक साक्षात्कार में कहा था कि यदि आप ईश्वर की धारणा में यकीन करते हों