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बलराज साहनी और मंटो

यह सारगर्भित लेख आदरणीय शेष नारायण सिंह के ब्‍लॉग जंतर मंतर से चवन्‍नी के पाठकों के लिए लिया गया है। उन्‍होंने सहमत के एक कार्यक्रम के अवसर पर इसे लिखा था। आज के कलाकारों और लेखकों के संदर्भी में इसे पढ़ें।  बलराज साहनी और मंटो का ज़िक्र किये बिना बीसवीं सदी के जनवादी आन्दोलन के बारे में बात पूरी नहीं की जा सकती है .बलराज साहनी ने इस देश को गरम हवा जैसी फिल्म दी .कहते हैं कि एम एस सत्थ्यूके निर्देशन में बनी फिल्म ,गरम हवा में बंटवारे के दौर के असली दर्द को जिस बारीकी से रेखांकित किया गया वह वस्तुवादी कलारूप का ऊंचे दर्जे का उदाहरण है . बलराज साहनी को उनकी फिल्मों के कारण आमतौर पर एक ऐसे कलाकार के रूप में जाना जाता है जिनका फिल्मों के बाहर की दुनिया से बहुत वास्ता नहीं था . लेकिन यह बिलकुल अधूरी सच्चाई है . बलराज साहनी बेशक बहुत बड़े फिल्म अभिनेता थे लेकिन एक बुद्धिजीवी के रूप में भी उनका स्तर बहुत ऊंचा है . बलराज साहनी ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का पहला कन्वोकेशन भाषण दिया था। बाद के वर्षों में विश्वविद्यालय में दाखिला लेने वाले छात्रों को सीनियर छात्रों की ओर से

क्यों अभिनेता बने बलराज साहनी ?

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कहना मुश्किल है कि अगर हंस में बलराज साहनी की कहानी छाप गयी होती तो वे फिल्मों में अभिनय के क्षेत्र में सक्रिय होते या नही?चवन्नी मानता है कि फिल्मों में उनका आना एक लिहाज से अच्छा ही रहा.हमें एक स्वभावाविक अभिनेता मिल और कई खूबसूरत फिल्में मिलीं.हाँ,अगर वह कहानी अस्वीकृत नही हुई होती तो शायद एक अच्छा लेखक भी मिलता.और यह अलग मिसाल होती जब दो भाई बडे साहित्यकार होते.बलराज साहनी कि फिल्मी आत्मकथा भी किसी साहित्य से कम नही है.किसी प्रकाशक को चाहिए कि इसे पुनः प्रकाशित करे.बलराज साहनी के अभिनेता बनने का निर्णय उन्ही के शब्दों में पढें: विलायत से वापस आकर मैंने अंग्रजी साम्राज्य का निडरता से खुल्लम-खुल्ला विरोध करना शुरू कर दिया था. यहां तक कि मेरे दोस्त कभी-कभी मेरा ध्यान डिफेंस आफ इंडिया रूल्स की ओर भी दिलाते थे. पर इसका यह मतलब नहीं कि मैं सब.कुछ छोड़.छाड़कर स्वतन्त्रता-आन्दोलन में कूदने के लिए तैयार हो चुका था. मेरी यह प्रिक्रिया केवल मेरा अहंकार था. विलायत जाकर मैं अपने.आपको अंग्रेजों के बराबर समझने लगा था. इस अहंकार के सम्बंध में उस समय की एक और तस्वीर मेरे सामने आती है. विलायत जान

बलराज साहनी की नज़र में फिल्मों की पंजाबियत

चवन्नी यह बात जोर-शोर से कहता रहा है कि हिन्दी फिल्मों में पंजाब और पंजाबियत का दबदबा है.कुछ लोग इसे चवन्नी की उत्तर भारतीयता से जोड़ कर देखते हैं.आप खुद गौर करें और गिनती करें कि अभी तक जितने हीरो हिन्दी फिल्मों में दिखे हैं ,वे कहाँ से आये हैं.आप पाएंगे कि ज्यादातर हीरो पंजाब से ही आये हैं.बलराज साहनी भी इस तथ्य को मानते हैं। बलराज साहनी की पुस्तक मेरी फिल्मी आत्मकथा के पृष्ठ २४ पर इसका उल्लेख हुआ है.बलराज साहनी के शब्द हैं: और यह कोई अनहोनी बात भी नहीं थी. पंजाब प्राचीन काल से ही आर्यों, युनानी, तुर्की और अन्य गोरी हमलावर कौमों के लिए भारत का प्रवेश-द्वार रहा है। यहां कौमों और नस्लों का खूब सम्मिश्रण हुआ है। इसी कारण इस भाग में आश्चर्यचकित कर देने की सीमा तक गोरे, सुन्दर लोग देखने में आते हैं. इसकी पुष्टि करने के लिए केवल इतना ही कहना पर्याप्त है कि पंजाब सदैव से हीरो-हीरोइनों के लिए फिल्म-निर्माताओं की तलाशगाह रहा है. दिलीप कुमार, राजकपूर, राजकुमार, राजिन्दर कुमार, देव आनन्द, धर्मेन्द्र, शशि कपूर, शम्मी कपूर, तथा अन्य कितने ही हीरो इसी ओर के लोग हैं. इस लिहाज से हमारा पिंडी-पिशौर त