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संग-संग : विवेक ओबेराय-प्रियंका अल्‍वा ओबेराय

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-अजय ब्रह्मात्मज  फिल्म अभिनेता विवेक ओबेरॉय की पत्नी हैं प्रियंका अल्वा। दो साल पहले उनकी शादी हुई। प्रियंका गैरफिल्मी परिवार से हैं। दोनों की पहली मुलाकात में किसी फिल्मी संयोग की तरह रोमांस जगा और वह जल्दी ही शादी में परिणत हो गया। आरंभ में विवेक ओबेरॉय के प्रति प्रियंका थोड़ी सशंकित थीं कि फिल्म स्टार वास्तव में असली प्रेमी और पति के रूप में न जाने कैसा होगा? फिल्म सितारों के रोमांस और प्रेम के इतने किस्से गढ़े और पढ़े जाते हैं कि प्रियंका की आशंका को असहज नहीं माना जा सकता। इस मुलाकात में दोनों ने दिल खोलकर अपनी शादी, रोमांस और दांपत्य जीवन पर बातें की हैं।   विवेक : अमेरिका के फ्लोरेंस में एक सेतु है। उसका नाम है सांटा ट्रीनीटा, जिसे सामान्य अंग्रेजी में होली ट्रीनीटी कहेंगे। हिंदू धर्म में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की त्रिमूर्ति है। वैसे ही वह एक पवित्र त्रिमूर्ति सेतु है। हम पहली बार वहां मिले। उस सेतु ने हमे जोड़ दिया। सूर्यास्त के पहले हम दोनों बातें करने बैठे। यही कोई साढ़े पांच बजे का समय रहा होगा। इन्हें आते देखकर मन में एक अहंकार जागा कि यार मम्मी-पापा ने कहां फंसा द

संग-संग : ठहराव देती है शादी : सलीम आरिफ-लुबना सलीम

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-अजय ब्रह्मात्‍मज सलीम आरिफ और लुबना सलीम दोनों थिएटर की दुनिया में हैं। लखनऊ के सलीम ने दिल्ली स्थित राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से अभिनय का प्रशिक्षण लेने के बाद श्याम बेनेगल और डॉ. चंद्र प्रकाश द्विवेदी के साथ कॉस्टयूम और सेट डिजाइन पर काम किया। लुबना ने इप्टा के नाटकों से शुरुआत की और धारावाहिकों में भी मुख्य भूमिकाएं निभाई। संपर्क, पहचान और रिश्ता सलीम आरिफ: मैं श्याम बेनेगल का धारावाहिक भारत एक खोज कर रहा था तो लुबना की मम्मी मेरी को-डिजाइनर थीं। मैं इनके घर आता-जाता था। तब लुबना इप्टा के नाटक अंधे चूहे का रिहर्सल कर रही थीं। मेरे अम्मी-अब्बा से भी उनकी मुलाकात हुई। लुबना: मम्मी के कलीग थे सलीम। वह अकेले रहते थे। अकसर पापा उन्हें खाने को रोक लेते। मुझे अजीब लगता कि पापा एक यंग लडके से इतनी बात कैसे करते हैं। सलीम के अम्मी-अब्बा आए तो तय हुआ कि दावत होनी चाहिए। यह 1989 की बात है। तब मैं सेकंड ईयर में थी। एक महीने के बाद अम्मी का खत मेरे मम्मी-पापा के पास आया कि बिटिया हमें पसंद है। मेरे घर में सब चौंक गए। सलीम: अम्मी को लुबना व इनका परिवार काफी पसंद आया। मेरी शादी को लेकर वे सोच भी र

संग-संग : मनोज बाजपेयी-शबाना रज़ा बाजपेयी

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-अजय ब्रह्मात्मज मनोज बाजपेयी और शबाना रजा बाजपेयी पति-पत्नी हैं। लंबे प्रेम के बाद दोनों ने शादी की और अब एक बेटी आवा नायला के माता-पिता हैं। शबाना को हिंदी फिल्मप्रेमी नेहा नाम से जानते हैं। मनोज और शबाना का मौजूदा परिवेश फिल्मी है,लेकिन उनमें दिल्ली और बिहार बरकरार है। दोनों कई मायने में भिन्न हमसफर हैं ... मुलाकात और प्रेम का संयोग शबाना - दिल्ली के एक दोस्त डायरेक्टर रजत मुखर्जी हैं। उनसे मिलने मैं उस पार्टी में गई थी। उन्होंने जबरदस्ती मुझे बुला लिया था। मेरी ‘करीब’ रिलीज हो चुकी थी। मनोज की भी ‘सत्या’ रिलीज हो गई थी। मैंने अपनी बहन और बहनोई (तब उनकी शादी नहीं हुई थी) के साथ ‘सत्या’ देख ली थी। मनोज ने ‘करीब’ देख ली थी। मनोज - मैं ‘कौन’ की शूटिंग से लौटा था। उस फिल्म की शूटिंग केवल रातों में हुई थी। 9 -10 दिनों की रात-रात की शूटिंग से मैं थका हुआ था। मैं ठीक से सो नहीं पा रहा था। घर पहुंचा तो विशाल भारद्वाज का फोन आया कि रेखा (विशाल की पत्नी और गायिका)को पार्टी में जाना है, तू उसे लेकर चला जा। विशाल से दिल्ली की दोस्ती थी। वे कहीं और से पार्टी में आने वाले थे। इस तरह रेखा को लेक

संग-संग : चंद्रप्रकाश द्विवेदी-मंदिरा द्विवेदी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज दूरदर्शन के धारावाहिक चाणक्य से अपनी खास पहचान बना चुके डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने अमृता प्रीतम के उपन्यास पिंजर की भावभूमि पर फिल्म बनाई। उपनिषदों पर धारावाहिक उपनिषद गाथा उनका महत्वपूर्ण कार्य है। अभी वे काशीनाथ सिंह के उपन्यास काशी का अस्सी पर मोहल्ला अस्सी नाम की फिल्म के पोस्ट प्रोडक्शन में व्यस्त हैं। मंदिरा उनकी सहयोगी व पत्नी हैं। 13 साल पहले वे परिणय सूत्र में बंधे। विवाह के प्रति थोडा अलग दृष्टिकोण है इस दंपती का। सहमति-असहमति मंदिरा : मैं चाणक्य में इनकी असिस्टेंट थी। काम के प्रति इनका समर्पण मुझे अच्छा लगा। इतिहास में मेरी रुचि थी, लिहाजा इनकी सहायक बन गई। डॉ. द्विवेदी : मैंने चाणक्य के एडिटर राजीव खंडेलवाल से एक महिला असिस्टेंट खोजने को कहा था और इस तरह मंदिरा यूनिट में शामिल हुई। फिर मेरी जिंदगी में भी..। मंदिरा फिल्मी पृष्ठभूमि से आती हैं। इनके परिवार में लडकियों को आजादी रही है, जबकि मेरा परिवार गंवई माहौल वाला व घोर परंपरावादी है, जहां प्रेम विवाह की कल्पना मुश्किल थी। पहली बार मैंने ही प्रेम विवाह किया, जिसके लिए भाभियां आज भी ताना देती हैं कि मैं

संग-संग : कुछ सिमटी-कुछ बिखरी सी है जिंदगी हमारी -किरण राव और आमिर खान

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-अजय ब्रह्मात्‍मज आमिर खान-किरण राव की शादी सुर्खियों का हिस्सा रही है। दोनों निजी व व्यावसायिक जीवन का आनंद उठा रहे हैं। परस्पर समझदारी व भावनात्मक सुरक्षा उनके दांपत्य का संबल सूत्र है। उनसे हुई खास बातचीत। दोस्ती का आधार किरण : मेरी प्रेम कहानी 2003 में शुरू हुई। मैं आशुतोष गोवारीकर की फ‌र्स्ट असिस्टेंट डायरेक्टर थी। वह आमिर के साथ एड फिल्म बना रहे थे। हमारा सर्किल अलग था। मिलना-जुलना हुआ तो दोस्ती भी हुई। आमिर : रीना से मेरी शादी तब टूट चुकी थी। हम फिल्म लगान के समय मिले। हमारे बीच रोमैंटिक लिंकअप नहीं था। दोस्ती थी, जो बाद में रोमैंस और प्यार में बदली। किरण : यह प्यार हिंदी फिल्मों की तरह नहीं था। हालांकि आमिर के बारे में मुझे नहीं मालूम, लेकिन मैंने कई बार इन्हें पलट कर जरूर देखा। जब इनके साथ वक्त बिताया तो ये अच्छे लगे। सोचती थी, ये इतने संवदेनशील और डाउन टु अर्थ कैसे हैं? पहले तो यकीन ही नहीं हुआ। लगता था, ये तो हमारे जैसे ही हैं। मैं इनसे प्रेम करने लगी। आमिर : रीना जी से 16 वर्षो का संबंध टूटा था, लिहाजा मैं भीतर कहीं टूटा हुआ था। किसी से कोई वादा करने की हालत में नहीं था।

संग-संग : सुतपा सिकदर और इरफान खान के साथ

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-अजय ब्रह्मात्‍मज यह प्रेम कहानी है। यह सहजीवन है। यह आधुनिक दांपत्‍य है । इरफान खान और सुतपा सिकदर दिल्ली स्थित एनएसडी में मिले। साल था 1985 ... दिल्ली की सुतपा ने अपनी बौद्धिक रुचि और कलात्मक अभिरुचि के विस्तार के रूप में एनएसडी में दाखिला लिया था और इरफान खान जयपुर से न समा सके अपने सपनो को लिए दिल्ली आ गए थे। उनके सपनों को एनएसडी में एक पड़ाव मिला था। इसे दो विपरीत धु्रवों का आकर्षण भी कह सकते हैं , लेकिन अमूमन जीवन नैया में एक ही दिशा के दो यात्री सवार होते हैं। सुतपा और इरफान लंबे समय तक साथ रहने (लिविंग रिलेशन) के बाद शादी करने का फैसला किया और तब से एक-दूसरे के सहयात्री बने हुए हैं। मुंबई के मड इलाके में स्थित उनके आलीशान फ्लैट में दर-ओ-दीवार का पारंपरिक कंसेप्ट नहीं है। उन्होंने अपने रिश्ते के साथ घर में भी कई दीवारें हटा दी हैं। शुरूआत करें तो... इरफान - जब मैं जयपुर से दिल्ली जा रहा था तो मेरी मां चाहती थी कि मैं पहले शादी हो जाए। उन्होंने दबाव भी डाला कि निकहा कर लो , फिर चाहे जहां जाओ। मेरे मन में ऐसी कोई इच्छा नहीं थी। बहरहाल , एनएसडी आए तो पहली बार पता चला कि लड़कि