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सिनेमालोक : हिंदी फिल्मों के ‘आउटसाइडर’

सिनेमालोक हिंदी  फिल्मों के ‘आउटसाइडर’ -अजय ब्रह्मात्मज कुछ सालों पहले कंगना रनोट ने स्पष्ट शब्दों में ‘नेपोटिज्म’ और ‘मूवी माफिया’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया था तो फिल्म इंडस्ट्री के ताकतवर पैरोकारों ने खुले मंच पर उनका मखौल उड़ाया. आम दर्शकों के बीच भी इसे उनकी व्यक्तिगत भड़ास माना गया. फिल्म इंडस्ट्री बदस्तूर मशगूल रही और सब कुछ रूटीन तरीके से चलता रहा. पिछले सप्ताह 14 जून को सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या से जुड़े पहलुओं के संदर्भ में ‘नेपोटिज्म’ शब्द तेजी से उभरा है. अभी बाहर का यह शोर फिल्म इंडस्ट्री के गलियारे में भी गूंज रहा है. ‘मी टू’ के आरोपों से सजग हुई फिल्म इंडस्ट्री ज्यादा सावधान हो गई है. गौर करें तो फिल्म इंडस्ट्री में ‘नेपोतिज्म’ का चलन नया नहीं है. पहले पहुंच और सिफारिश के नाम पर रिश्तेदारों को मौके मिलते रहे हैं. आठवें और नौवें दशक में तो फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हुए पहली पीढ़ी के अभिनेता-अभिनेत्रियों ने अपनी संतानों को समारोह के साथ लांच किया. उनमें से कुछ आज भी फिल्म इंडस्ट्री पर राज कर रहे हैं. इसे स्वाभाविक मान कर स्वीकार कर लिया गया था. बाहर से आए

सिनेमालोक : बुझ गया एक सितारा

सिनेमालोक  बुझ गया एक सितारा  -अजय ब्रह्मात्मज  कॉलेज के दिनों में शौकिया तौर पर डांस का प्रैक्टिस आरंभ हुआ. डांस करने के जादुई प्रभाव से विस्मित होकर वह लीन होते गए. श्यामक डावर के इंस्टीट्यूट में दाखिला ले लिया. उनकी लगन और परफॉर्मेंस को देखकर श्यामक डावर ने उन्हें अपने ट्रूप में शामिल कर लिया. साथ में हुए कुछ परफॉर्मेंस में सुशांत सिंह राजपूत ने उन्हें इस कदर मोहित किया कि उन्होंने उनको मुंबई जाने और फिल्मों में प्रतिभा आजमाने की सलाह दे दी. सुशांत ने दिल्ली में शाह रुख खान और मनोज बाजपेयी के प्रशिक्षक रहे बैरी जॉन से एक्टिंग के गुर सीखे. फिर मुंबई आ गए. कम लोग जानते और लिखते हैं कि मुंबई आने के बाद सुशांत सिंह राजपूत ने नादिरा बब्बर के नाट्य ग्रुप ‘एकजुट’ के साथ काम किया. वहां उन्होंने कुछ नाटकों में हिस्सा लिया और खुद को मांजते रहे. उन्हीं दिनों एक नाटक के परफॉर्मेंस में एकता कपूर के एक सहयोगी ने उन्हें देखा और एकता कपूर से मिलने के लिए बुलाया.  उन्हें ‘किस देश में है मेरा दिल’ के लिए चुन लिया गया. अभिनय की  की ख्वाहिश को एक दिशा मिल गई और फिर ‘पवित्र रिश्ता’ में मानव के किरदार ने

सिनेमालोक : परतदार और समकालीन दस्तावेज है ‘चोक्ड:पैसा बोलता है’

सिनेमालोक परतदार और समकालीन दस्तावेज है ‘चोक्ड:पैसा बोलता है’ -अजय ब्रह्मात्मज पिछले हफ्ते अनुराग कश्यप की फिल्म ‘चोक्ड:पैसा बोलता है’ ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज हुई. फिलहाल निर्माता-निर्देशकों ने फिल्मों के रिलीज के लिए ओटीटी का रास्ता चुन लिया है. इस तथ्य से मल्टीप्लेक्स मालिक नाराज हैं. उनकी नाराजगी एक तरफ... समस्या यह है कि ‘कोरोना काल’ में पूर्णबंदी और उसके बाद की बरती जा रही सावधानियों का ख्याल रखते हुए फिल्मों की आउटडोर गतिविधियां ठप हो गई हैं. ऐसी स्थिति में तैयार फिल्मों को लंबे समय तक रिलीज से रोकना मुमकिन नहीं है. विकल्प की तलाश थी. इसी वजह से चोक्ड:पैसा बोलता है’ के बाद इस हफ्ते शूजीत सरकार की ‘गुलाबो सिताबो’ रिलीज की कतार में है. परंपरा के मुताबिक ओटीटी प्लेटफार्म पर भी फिल्में शुक्रवार को ही रिलीज की जा रही है. अनुराग कश्यप की ‘चोक्ड:पैसा बोलता है’ परतदार फिल्म है. यह फिल्म एक साथ कई स्तरों पर चलती है. कुछ का विस्तार करती है तो कुछ का केवल संकेत देती है. यह दंपति की कहानी है, जिनका एक 8 साल का बेटा है. पत्नी बैंक में काम करती है और पति फिर से काम की तलाश में है.

सिनेमालोक : इंडस्ट्री में आई ख़ुशी की लहर

सिनेमालोक इंडस्ट्री में आई ख़ुशी की लहर -अजय ब्रह्मात्मज ढाई महीने तो हो ही गए. 19 मार्च से फिल्म संबंधी सारी गतिविधियां थप हैं. लाइट कैमरा एक्शन की आवाज नहीं सुनाई पड़ी. सब कुछ पॉज पर है. पिछले एक पखवाड़े से फिल्म इंडस्ट्री की संस्थाएं मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से शूटिंग की अनुमति की अपील कर रही हैं. कुछ मुलाकातों और वीडियो चैट के बाद आखिरकार राज्य सरकार ने शूटिंग के लिए सहमति जाहिर की है. साथ ही 16 पृष्ठों का दिशानिर्देश भी जारी किया है. शूटिंग के लिए तैयार यूनिटों को इसका पालन करना पड़ेगा. सबसे पहले तो इलाके के जिलाधिकारी से शूटिंग की अनुमति लेनी होगी. उसके बाद दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन करना होगा. किसी प्रकार की कोताही कलाकारों और तकनीशियनों के लिए भारी मुसीबत खड़ी कर देगी. निश्चित ही दिशानिर्देशों के पालन में हर फिल्म यूनिट का खर्च बढेगा. ऐसे में बड़े प्रोडक्शन हाउस अपनी निर्माणाधीन फिल्मों की बची-खुची शूटिंग पूरी कर लेंगे और जल्दी से जल्दी पोस्ट प्रोडक्शन पूरा कर रिलीज की तैयारी करेंगे. छोटे और मझोले निर्माताओं की आर्थिक दिक्कतें बड़ी हो गई हैं. ऐसा लग रहा है कि जल्द

सिनेमालोक : फिल्मकारों की बढ़ी चुनौतियाँ

सिनेमालोक फिल्मकारों की बढ़ी चुनौतियाँ -अजय ब्रह्मात्मज अगले महीने से विधिवत फिल्में ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आनी शुरू हो जाएगी. 5 जून को अनुराग कश्यप निर्देशित ‘चोक्ड-पैसा बोलता है’ आएगी और उसके बाद 12 जून को शूजीत सरकार निर्देशित ‘गुलाबो सिताबो’ दिखेगी. इन दोनों फिल्मों के बाद अनु मेनन निर्देशित ‘शकुंतला देवी’ का नंबर है. स्पष्ट संकेत है कि फिल्म निर्माता नई फिल्मों के लिए ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आने में हिचकना बंद कर रहे हैं. अभी तक फिल्में पहले सिनेमाघरों में रिलीज होती थीं. उसके बाद टीवी, सेटेलाइट और दूसरे प्रसारण और वितरण के लिए उनके अधिकार बेचे जाते थे. बड़ी फिल्मों को हमेशा से मुंहमांगी राशि मिलती रही है. बाकी छोटी और मझोली फिल्मों का भाव उनके बॉक्स ऑफिस परफॉर्मेंस के हिसाब से तय किया जाता था. इस प्रक्रिया में कई बार दर्शकों के बीच स्वीकृत और प्रशंसित छोटी फिल्मों को अच्छी कीमत मिल जाती थी और कभी-कभी बड़ी फिल्मों को भारी नुकसान उठाना पड़ता था. ओटीटी प्लेटफॉर्म के चलन में आने के बाद बिजनेस के तौर-तरीके बदलेंगे. ‘न्यू नार्मल’ में फिल्मों के मूल्य तय करने का पैमाना बॉक्स ऑफिस नही

सिनेमालोक : संभावना और आशंका दोनों सच हो गईं

सिनेमालोक  संभावना और आशंका दोनों सच हो गईं (कोरोना काल में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री) -अजय ब्रह्मात्मज संभावना और आशंका दोनों सच हो गयीं.. लॉकडाउन की सरकारी घोषणा से पहले ही देश के सिनेमाघर बंद होने लगे थे. सबसे पहले केरल, उसके बाद जम्मू और फिर दिल्ली के सिनेमाघरों के बंद होने के बाद तय हो गया था कि पूरे देश के सिनेमाघर देर-सवेर बंद होंगे. सिनेमाघर दर्शकों और फिल्मों के बीच का वह प्लेटफार्म है, जहां दोनों मिलते हैं. दर्शकों का मनोरंजन होता है. मल्टीप्लेक्स और फिल्म निर्माता मुनाफा कमाते हैं. मल्टीप्लेक्स का पूरा कारोबार सिर्फ और सिर्फ मुनाफे पर टिका होता है. मल्टीप्लेक्स के मालिक कस्बों और शहरों के पुराने सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर चित्रा, मिलन, एंपायर आदि जैसे सिनेमाघरों के मालिक नहीं हैं. याद करें तो बीसवीं सदी के सिनेमाघरों के मालिकों के लिए फिल्म का प्रदर्शन कारोबार के साथ-साथ उनका पैशन भी हुआ करता था. फ़िल्में देखने-दिखने में उनकी व्यक्तिगत रूचि होती थी. 21 वीं सदी में सब कुछ बदल चुका है. 20 सालों के विस्तार और विकास के बाद ‘कोरोना काल’ में मल्टीप्लेक्स के मुनाफे का मार्ग ऐसा

सिनेमालोक : मल्टीप्लेक्स की गुहार और धौंस

सिनेमालोक मल्टीप्लेक्स की गुहार और धौंस -अजय ब्रह्मात्मज कोविड- 19 का सबसे पहला असर सिनेमाघरों पर दिखा था. केरल और जम्मू के सिनेमाघरों के बंद होने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी सिनेमाघरों को बंद करने के आदेश दे दिए थे. उसके बाद तो एक-एक कर सभी राज्यों ने सिनेमाघर बंद किए और फिर पूर्णबंदी की घोषणा हो गई. सिनेमाघर बंद हैं और नई फिल्में रिलीज नहीं हो सकतीं. इस बार ईद का मुबारक मौका भी फिल्म इंडस्ट्री को नहीं मिल पाएगा. सलमान खान और अक्षय कुमार की फिल्में ईद पर आने के लिए जूझ रही थीं. पूर्णबंदी के हालात में इन फिल्मों की रिलीज के कोई आसार नहीं हैं. फिल्म इंडस्ट्री में घबराहट फैल रही है. पिछले कुछ समय से सुगबुगाहट जारी है. रिलीज के लिए तैयार फिल्मों के निर्माता ओटीटी प्लेटफॉर्म के अधिकारियों से बातें कर रहे हैं. कुछ फिल्मों के प्रसारण की समझदारी अंतिम चरण में है. इसकी भनक लगते ही मल्टीप्लेक्स के मालिक सक्रीय और सचेत हो गए हैं. उन्होंने संयुक्त विज्ञप्ति जारी की है. पहले तो वे गुहार कर रहे थे. फिल्म निर्माताओं से उनका आग्रह था कि वे धैर्य से काम लें और इंतजार

सिनेमालोक : एक थीं रेणुका देवी

सिनेमालोक एक थीं रेणुका देवी -अजय ब्रह्मात्मज   अलीगढ़ के पापा मियां(शेख अब्दुल्ला) की बेटी खुर्शीद की तमन्ना थी कि वह फिल्मों में काम करें. संयोग कुछ ऐसा बना कि उनकी तमन्ना पूरी हो गई, दरअसल, हुआ यूं कि दसवीं की पढ़ाई के बाद जब खुर्शीद ने आगे पढ़ने से इंकार कर दिया तो तालीम के पैरोकार पापा मियां को बहुत कोफ़्त हुई. उन्होंने खुर्शीद की पढ़ाई में कोई रुचि नहीं देखी तो फिर जल्दी में शादी कर दी. खुर्शीद के शौहर अकबर मिर्जा यूपी में पुलिस की नौकरी में थे. इस बीच खुर्शीद के बड़े भाई मोहसिन बॉम्बे टॉकीज में हिमांशु राय के साथ काम कर रहे थे. उन्होंने बहन से हिमांशु राय और उनकी अभिनेत्री पत्नी देविका रानी की तारीफ की. खुर्शीद ने हिम्मत कर उन्हें अपनी ख्वाहिश लिखी और साथ में तस्वीर भी डाल दी. कुछ दिनों में जवाब आ गया, लेकिन खत शौहर के हाथ लगा. खुर्शीद ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उनके शौहर उनके ख़त खोल लिया करते थे. हिमांशु राय के यहां से आई चिट्ठी भी उन्होंने खोलकर पढ़ ली थी. उन्होंने बीवी से पूछा, तुमने हिमांशु राय को चिट्ठी लिखी थी? इस सवाल में उलाहना नहीं थी. खुर्शीद ने हाँ कहा और

सिनेमालोक : फिल्म प्रभाग का खज़ाना

सिनेमालोक फिल्म प्रभाग का  खज़ाना -अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों कुछ नया देखने की कोशिश में ‘फिल्म प्रभाग’ के साइट पर जाने का मौका मिला. हिंदी नाम से अधिक पाठक वाकिफ नहीं होंगे. हम सभी इसे ’फिल्म्स डिवीज़न’ के नाम से ज्यादा जानते हैं. किसी जमाने में यह अत्यंत सक्रिय संस्था थी. अब यह हर दूसरे साल शार्ट और डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का फेस्टिवल करती है. इसके अलावा इसके प्रांगण में ‘भारतीय फिल्मों का राष्ट्रीय संग्रहालय’ भी मौजूद है, जिसका उद्घाटन पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था. इस साइट के मुताबिक... ‘भारत के फिल्म्स डिवीजन की स्थापना 1948 में एक नए स्वतंत्र राष्ट्र की ऊर्जा को स्पष्ट रूप से क्रियाशील करने के लिए की गई थी. छह दशकों से अधिक समय से संगठन ने फिल्म पर देश की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक कल्पना और वास्तविकताओं का रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए अथक प्रयास किया है. इसने भारत में फिल्म निर्माण की संस्कृति को प्रोत्साहित करने, बढ़ावा देने में सक्रिय रूप से काम किया है जो व्यक्तिगत दृष्टि और सामाजिक प्रतिबद्धता का सम्मान करता है.’ .देश के आम नागरिक और फिल्म निर्मा

सिनेमालोक : वैचारिक और रोचक ‘चाणक्य’

सिनेमालोक वैचारिक और रोचक ‘चाणक्य’ -अजय ब्रह्मात्मज   पिछले दिनों दूरदर्शन ने ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ के साथ अनेक पुराने धारावाहिकों का प्रसारण आरंभ किया. ये धारावाहिक नौवें दशक के उत्तरार्ध और पिछली सदी के अंतिम दशक में दूरदर्शन से पहली बार प्रसारित हुए थे. इनमें ही ‘चाणक्य’ का भी प्रसारण आरंभ हुआ है. ‘चाणक्य’ के लेखक, निर्देशक और अभिनेता डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी हैं. प्रसारण के समय यह धारावाहिक अत्यंत चर्चित और फिर विवादित भी हुआ था. विवाद बढ़ा और ऐसा बढ़ा कि इसे जल्दी से जल्दी समेटना पड़ा. 47 एपिसोड ही आ पाए. इस धारावाहिक को देख चुके और देख रहे दर्शक महसूस करेंगे कि कहानी अचानक समाप्त हो जाती है. यूं लगता है कि लेखक अपनी पूरी बात नहीं कर पाया. बहरहाल, डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी मूलतः राजस्थान के सिरोही के निवासी हैं. उनके पिता संस्कृत के अध्यापक थे. अनेक भाई-बहनों के साथ डॉ. द्विवेदी का परिवार मुंबई में रहता था. निम्न मध्यवर्गीय परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन अध्यापक पिता ने सभी बच्चों की पढ़ाई पर पूरा ध्यान दिया. डॉ. द्विवेदी की रुचि विज्ञान के साथ-साथ संस्

सिनेमालोक : हर तरह की फ़िल्में लिखने में सिद्धहस्त जावेद सिद्दीकी

सिनेमालोक हर तरह की फ़िल्में लिखने में सिद्धहस्त जावेद सिद्दीकी -अजय ब्रह्मात्मज कोरोना वायरस के प्रकोप की वजह से 14 मार्च को निश्चित फिल्मों का एक पुरस्कार समारोह मुंबई में नहीं हो सका. इस बार 8 भाषाओं में पांच (फिल्म, निर्देशक, अभिनेता, अभिनेत्री और लेखक) श्रेणियों के साथ फिल्मों में असाधारण योगदान के लिए भी प्रतिभाओं को सम्मानित करना था. समारोह नहीं हो पाने की स्थिति में इन पुरस्कारों से अधिकांश दर्शक और फिल्मप्रेमी वाकिफ नहीं हो सके. संक्षेप में फिल्म समीक्षकों की राष्ट्रीय संस्था फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड हर साल शॉर्ट फिल्म और फीचर फिल्मों के लिए पुरस्कार देती है. 2019 के लिए दूसरे साल में 8 भाषाओं की श्रेष्ठ फिल्म और प्रतिभाओं पर विचार किया गया. अगले साल भाषाओं की संख्या बढ़ सकती है. कोशिश है कि यह अखिल भारतीय पुरस्कार के तौर पर स्वीकृत हो. बहरहाल, फिल्मों में असाधारण योगदान के लिए इस साल लेखक जावेद सिद्दीकी के नाम पर सभी समीक्षक एकमत हुए थे. जावेद सिद्दीकी ने अभी तक 80 से अधिक फिल्में लिखी हैं, लेकिन उनके प्रचार प्रिय नहीं होने की वजह से फिल्मों के दर्शक उनके बारे में वि

सिनेमालोक : फिल्म ‘मंडी’ का मजार

सिनेमालोक फिल्म ‘मंडी’ का मजार -अजय ब्रह्मात्मज श्याम बेनेगल की फिल्म ‘मंडी’ में शबाना आज़मी और उनकी मंडली को शहर से निकलकर वीराने में अपना कोठा बनाना पड़ा था. कोठा बनने के बाद शहर के लोगों को ही आने-जाने लगते हैं और वह इलाका गुलज़ार हो जाता है. फिल्म देखी हो तो आपको याद होगा कि ‘मंडी’ में एक मजार भी था. बाबा खड़ग शाह का मजार. उस मजार का एक दिलचस्प किस्सा है. सालों पहले एक इंटरव्यू में श्याम बेनेगल ने यह किस्सा खुद सुनाया था. हुआ यों कि ‘मंडी’ का सेट जिस स्थान पर लगाया गया था, वह वास्तव में पाकिस्तान चले गए एक मुसलमान परिवार की खाली जमीन थी. वह खाली जमीन मुसलमान परिवार के जाने के बाद स्थानीय रेड्डी परिवार के कब्जे में थी. उन्होंने ने ही श्याम बेनेगल को वह ज़मीं फिल्म का सेट लगाने के लिए दी थी. सेट लगना शुरू हुआ तो श्याम बेनेगल और उनके कला निर्देशक नीतीश राय ने कोने की एक ढूह को मजार का रूप दे दिया. फिल्म के हिसाब से बने सेट के लिए वह मजार माकूल था. कुछ जोड़ ही रहा था. ‘मंडी’ का यह मजार मलाली पहाड़ी तलहटी के पास की जमीन पर बना था. मलाली पहाड़ी बहुत ही पवित्र मानी जाती है, क्यों

सिनेमालोक : मनाएं फॅमिली फिल्म फेस्टिवल

सिनेमालोक मनाएं फॅमिली  फिल्म फेस्टिवल -अजय ब्रह्मात्मज अनेक राज्यों में सिनेमाघर बंद कर दिए गए हैं. कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए केंद्र सरकार की पहल पर राज्य सरकारों ने एहतियातन यह कदम उठाया है. कोशिश है कि भीड़ इकट्ठी ना हो और लोग एक=दूसरे के संपर्क में ना आएं. इसी के तहत सिनेमाघरों को बंद रखने के आदेश दिए गए हैं. आम नागरिकों(दर्शकों) की सेहत के मद्देनजर सरकारों के इस जरूरी कदम का स्वागत होना चाहिए. फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखने के शौकीन दर्शकों के लिए यह मुश्किल घड़ी है. हम सभी जानते हैं कि फिल्में देश में मनोरंजन का सबसे सस्ता साधन हैं और सिनेमाघर इन फिल्मों के प्रदर्शन का माध्यम हैं. सिनेमाघरों के बंद होने से फिलहाल थिएटर में जाकर फिल्म देखना मुमकिन नहीं   होगा. सचमुच इस वक्त दर्शकों को मनोरंजन का विकल्प खोजना होगा. कामकाज ठप है. बाहर निकलना बंद है. ऐसे में घर में बैठे-बैठे और भी बोरियत होगी. अभी तो पहला हफ्ता ही है. हालांकि अभी तक यह आदेश 31 मार्च तक ही है, लेकिन कोरोलाग्रस्त मरीजों की बढ़ती संख्या देखते हुए कहा जा सकता है कि अप्रैल महीने में भी सिनेमाघर बंद रह सकते