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पुस्‍तक समीक्षा : सिनेमा भोजपुरी

-अजय ब्रह्मात्‍मज  भोजपुरी सिनेमा के ताजा उफान पर अभी तक पत्र-पत्रिकाओं में छिटपुट लेख लिखे जाते हैं। कुछ सालों पहले लाल बहादुर ओझा ने भोजपुरी सिनेमा के आविर्भाव और आरंभिक स्थितियों पर एक खोजपूर्ण लेख लिखा था। उसके बाद से ज्यादातर लेख सूचनात्मक ही रहे हैं। विश्लेषण की कमी से हम भोजपुरी सिनेमा की खूबियों और खामियों के बारे में अधिक नहीं जानते। आम धारणा है कि भोजपुरी फिल्मों में अश्लील और फूहड़ गाने होते हैं। सेक्स, रोमांस और डांस के नाम पर भोंडापन रहता है। भोजपुरी का गवंईपन लाउड और आक्रामक होता है। यह गरीब और मजदूर तबके के दर्शकों का सिनेमा है, जिसमें एस्थेटिक का खयाल नहीं रखा जाता। भोजपुरी फिल्मों के हीरो के तौर पर हम रवि किशन, मनोज तिवारी और निरहुआ को जानते हैं। इन तीनों की पब्लिक इमेज का भोजपुरी फिल्मों के दर्शकों पर जो भी असर हो, हिंदी सिनेमा के आम दर्शक उनमें भदेसपन देखते हैं। भोजपुरी फिल्मों की चर्चा होते ही भोजपुरी दर्शक और सिनेमाप्रेमी बचाव की मुद्रा में आ जाते हैं। उनके पास गर्व करने लायक तर्क नहीं होते। अविजित घोष की पुस्तक सिनेमा भोजपुरी इस हीन भाव को खत्म करती है। अविजित ने

दरअसल :सूचनाओं का व्‍यसन है ट्विटर

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-अजय ब्रह्मात्‍मज   पिछले दिनों अमिताभ बच्चन भी ट्विटर पर आ गए। उन्होंने अपना नाम सीनियर बच्चन रखा है। यह ठीक भी है, क्योंकि अभिषेक बच्चन पहले से ही जूनियर बच्चन के नाम से ट्विट कर रहे हैं। बच्चन पिता-पुत्र के साथ हिंदी फिल्मों के अनेक सितारे ट्विटर पर हैं। पापुलर सितारों में शाहरुख खान, सलमान खान, रितिक रोशन, अर्जुन रामपाल, शाहिद कपूर, प्रियंका चोपड़ा, मल्लिका शेरावत, गुल पनाग, लारा दत्ता, दीपिका पादुकोण आदि रेगुलर ट्विट करते हैं। यहां से इनके प्रशंसकों को सारी ताजा सूचनाएं मिलती रहती हैं। साथ ही सितारों को फीडबैक भी मिल जाता है। कम से कम उन्हें अंदाजा हो जाता है कि उनके प्रशंसक क्या सोच रहे हैं? शाहरुख खान ट्विट के मामले में सबसे बेहतर हैं। उनका विनोदी स्वभाव, बीवी-बच्चों से लगाव, दोस्तों से बर्ताव और मानवता के लिए सद्भाव सब कुछ 140 अक्षरों में अच्छी तरह व्यक्त हो जाता है। उनके संवाद में मैत्री भाव रहता है। वे कभी आतंकित नहीं करते और न ही अपने दर्शन से बोर करते हैं। माय नेम इज खान की रिलीज के समय उन्होंने ट्विट करना आरंभ किया और तब से हर महत्वपूर्ण जानकारी उन्होंने ट्विट के माध्यम स

रा.वन की जानकारी शाहरूख खान के ट्विटों से

- अजय ब्रह्मात्‍मज   फिल्म बनाना प्रेम करने की तरह है..फन ़ ़ ़एक्साइटिंग ़ ़ ़ सेक्सी ़ ़ ़ और आपको मालूम नहीं रहता कि आखिरकार वह क्या रूप लेगा? अगर फिल्म रा.वन हो तो इन सारे तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है और उसी अनुपात में बढ़ती है हमारी जिज्ञासा। शाहरुख खान की रा.वन निश्चित ही 2010 की महत्वाकांक्षी फिल्म होगी। अनुभव सिन्हा के निर्देशन में बन रही इस फिल्म के हीरो ़ ़ ़ ना ना 'सुपरहीरो' हैं शाहरुख खान। कहते हैं शाहरुख खान अपने बेटे आर्यन, उसके दोस्तों और उसकी उम्र के तमाम बच्चों के लिए इस फिल्म का निर्माण कर रहे हैं। वे देश के बच्चों को 'देसी सुपरहीरो' देना चाहते हैं। शाहरूख खान ट्विटर पर लिखते हैं कि जब वे छोटे बच्चे थे तो बड़ी बहन के टाइट्स के ऊपर अपना स्विमिंग सूट पहन कर गर्दन में तौलिया बांध कर उड़ने की कोशिश करते थे। उस समय वे निश्चित ही अपनी चौकी, खाट या पलंग से फर्श पर गिरे होंगे। चालीस सालों के बाद उनके बचपन की ख्वाहिश बेटे की इच्छा के बहाने उड़ने जा रही है। अनुभव सिन्हा के निर्देशन में विदेशी तकनीशियनों की मदद से यह मुमकिन हो रहा है। साल भर पहले तक अनुभव सिन्हा निश

दरअसल:मेनस्ट्रीम सिनेमा में नार्थ-ईस्ट के किरदार

-अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले दिनों एक फिल्म आई थी बदमाश कंपनी। यशराज फिल्म्स के लिए इसे परमीत सेठी ने निर्देशित किया था। फिल्म का विषय पुराना था, लेकिन उसकी प्रस्तुति नई थी। हीरो के भटकने और फिर सुधरने की फिल्में हम सातवें और आठवें दशक में खूब देखते थे। खासकर संयुक्त परिवार के विघटन और न्यूक्लियर फैमिली के विकास के दौर में ऐसी ढेर सारी फिल्में आई। शहरों के विकास के साथ माइग्रेशन बढ़ा और पारिवारिक रिश्तों के नए समीकरण बने। सामाजिक संरचना के इस संक्रमण काल में हमारे हीरो भी संकट के शिकार हुए। अब संक्रमण नए किस्म का है। उपभोक्तावाद और बाजार के दबाव में उद्यमशीलता बढ़ी है, लेकिन बाकी सरोकार छीज गए हैं। अब व्यक्ति स्वयं की चिंता में रहता है और चाहता है कि उसकी मेहनत का फल उसे ही मिले। समाज में आ रहे बदलाव के इस भाव को ही परमीत सेठी ने फिल्मी शॉर्टकट में दिखाया था। बदमाश कंपनी में एक खास बात भी थी। इस के चार प्रमुख किरदारों में से एक जिंग को सिक्किम का बताया गया था। गौर करें, तो हिंदी फिल्मों के नायक और सहयोगी किरदार मुख्य रूप से पंजाब के होते हैं या फिर उनकी कोई पहचान ही नहीं होती। उनका सरनेम हट

फिल्‍म समीक्षा:काइट्स

-अजय ब्रह्मात्‍मज  रितिक रोशन बौर बारबरा मोरी की काइट्स के रोमांस को समझने के लिए कतई जरूरी नहीं है कि आप को हिंदी, अंग्रेजी और स्पेनिश आती हो। यह एक भावपूर्ण फिल्म है। इस फिल्म में तीनों भाषाओं का इस्तेमाल किया गया है और दुनिया के विभिन्न हिस्सों के दर्शकों का खयाल रखते हुए हिंदी और अंग्रेजी में सबटाइटल्स दिए गए हैं। अगर आप उत्तर भारत में हों तो आपको सारे संवाद हिंदी में पढ़ने को मिल जाएंगे। काइट्स न्यू एज हिंदी सिनेमा है। यह हिंदी सिनेमा की नई उड़ान है। फिल्म की कहानी पारंपरिक प्रेम कहानी है, लेकिन उसकी प्रस्तुति में नवीनता है। हीरो-हीरोइन का अबाधित रोमांस सुंदर और सराहनीय है। काइट्स विदेशी परिवेश में विदेशी चरित्रों की प्रेमकहानी है। जे एक भारतवंशी लड़का है। वह आजीविका के लिए डांस सिखाता है और जल्दी से जल्दी पैसे कमाने के लिए नकली शादी और पायरेटेड डीवीडी बेचने का भी धंधा कर चुका है। उस पर एक स्टूडेंट जिना का दिल आ जाता है। पहले तो वह उसे झटक देता है, लेकिन बाद में जिना की अमीरी का एहसास होने के बाद दोस्ती गांठता है। प्रेम का नाटक करता है। वहीं उसकी मुलाकात नताशा से होती ह

सिर्फ़ नाम की "हाऊसफ़ुल"-अजय कुमार झा

यह पोस्‍ट अजय कुमार झा ने लिखी है।उनके शब्‍दों में.... फ़िल्म समीक्षा लिख रहे हैं ............अरे भाई प्रौफ़ेशनली नहीं जी ....बस फ़िल्म देख ली ...तो भेजा इतन फ़ुंका कि सोचा अब दूसरों के पैसे तो बच जाएं .........सो एक समीक्षा तो लिख ही दें ..जिसने पढ ली उसके तो पैसे बच ही जाएंगे .......कम से कम ....रुकिए थोडी  देर... हाजिर है  समीक्षा.... आज दर्शक यदि मल्टीप्लेक्स में सिनेमा देखने जाता है तो कम से कम इतना तो चाहता ही है कि जो भी पैसे टिकट के लिए उसने खर्च किए हैं वो यदि पूरी तरह से न भी सही तो कम से कम पिक्चर उतनी तो बर्दाश्त करने लायक हो ही कि ढाई तीन घंटे बिताने मुश्किल न हों । साजिद खान ने जब हे बेबी बनाई थी तो उसकी बेशक अंग्रेजी संस्करण के रीमेक के बावजूद उसकी सफ़लता ने ही बता दिया था कि दर्शकों को ये पसंद आई । और कुछ अच्छे गानों तथा फ़िल्म की कहानी के प्रवाह के कारण फ़िल्म हिट हो गई । साजिद शायद इसे ही एक सैट फ़ार्मूला समझ बैठे और कुछ अंतराल के बाद , उसी स्टार कास्ट में थोडे से बदलाव के साथ एक और पिक्चर परोस दी । मगर साजिद दो बडी भूलें कर बैठे इस पिक्चर के निर्माण में , पहली रही कमजोर पटक

दरअसल:क्यों पसंद आई हाउसफुल?

-अजय ब्रह्मात्‍मज  हाउसफुल रिलीज होने के दो दिन पहले एक प्रौढ़ निर्देशक से फिल्म की बॉक्स ऑफिस संभावनाओं पर बात हो रही थी। पड़ोसन, बावर्ची और खट्टा मीठा जैसी कॉमेडी फिल्मों के प्रशंसक प्रौढ़ निर्देशक ने अंतिम सत्य की तरह अपना फैसला सुनाया कि हाउसफुल नहीं चलेगी। यह पड़ोसन नहीं है। इस फिल्म को चलना नहीं चाहिए। 30 अप्रैल को फिल्म रिलीज हुई, महीने का आखिरी दिन होने के बावजूद फिल्म को दर्शक मिले। अगले दिन निर्माता की तरफ से फिल्म के कलेक्शन की विज्ञप्तियां आने लगीं। वीकएंड में हाउसफुल ने 30 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया। अगर ग्लोबल ग्रॉस कलेक्शन की बात करें, तो वह और भी ज्यादा होगा। बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के इस आंकड़े के बाद भी हाउसफुल का बिजनेस शत-प्रतिशत नहीं हो सका। हां, दोनों साजिद (खान और नाडियाडवाला) फिल्म की रिलीज के पहले से आक्रामक रणनीति लेकर चल रहे थे। उन्होंने फिल्म का नाम ही हाउसफुल रखा और अपनी बातचीत, विज्ञापन और प्रोमोशनल गतिविधियों में लगातार कहते रहे कि यह फिल्म हिट होगी। आप मानें न मानें, लेकिन ऐसे आत्मविश्वास का असर होता है। आम दर्शक ही नहीं, मीडिया तक इस आक्रामक प्रचार के चपेट

स्‍वागत है साउथ के सुपरस्‍टार विक्रम का 'रावण' में

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-अजय ब्रह्मात्‍मज हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में एक्टर डबल-ट्रिपल रोल निभाते रहे हैं। संजीव कुमार ने नया दिन नयी रात में नौ रोल तो कमल हासन ने दसावतार में दस रोल निभाए। अब साउथ के सुपरस्टार विक्रम नए किस्म का रिकार्ड बना रहे हैं। विक्रम ने रावण के हिंदी और तमिल दोनों संस्करणों में काम किया है, लेकिन दोनों भाषाओं में दो अलग किरदार निभाए हैं। वे हिंदी संस्करण में देव की भूमिका में नजर आएंगे तो तमिल संस्करण में बीरा के रूप में चौंकाएंगे। संभवत: विश्व सिनेमा में पहली बार किसी अभिनेता को इस किस्म की दोहरी भूमिका निभाने का मौका मिला है। मणि रत्नम दोनों ही भाषाओं में रावण की शूटिंग साथ-साथ कर रहे थे। उन्होंने देव और बीरा के रूप में विक्रम को बड़ी चुनौती दी थी। विक्रम इस चुनौती पर खरे उतरे हैं। दोनों भाषाओं में रावण देखने के बाद ही दर्शक विक्रम की प्रतिभा के आयामों से परिचित हो सकेंगे। लगभग बीस सालों से दक्षिण भारत की तमिल, तेलुगू, मलयालम की फिल्मों में छोटी-बड़ी भूमिकाएं निभा रहे विक्रम को हिंदी फिल्मों के दर्शक पहली बार रावण में देखेंगे। मणि रत्नम की नजर में वे बहुत पहले से अटके थे। वे 1994 म

फिल्म समीक्षा:बम बम बोले

-अजय ब्रह्मात्मज प्रियदर्शन के निर्देशकीय व्यक्तित्व के कई रूप हैं। वे अपनी कामेडी फिल्मों की वजह से मशहूर हैं, लेकिन उन्होंने कांजीवरम जैसी फिल्म भी निर्देशित की है। कांजीवरम को वे दिल के करीब मानते हैं। बम बम बोले उनकी ऐसी ही कोशिश है। यह ईरानी फिल्मकार माजिद मजीदी की 1997 में आई चिल्ड्रेन आफ हेवन की हिंदी रिमेक है। प्रियदर्शन ने इस फिल्म का भारतीयकरण किया है। यहां के परिवेश और परिस्थति में ढलने से फिल्म का मूल प्रभाव बदल गया है। पिनाकी और गुडि़या भाई-बहन हैं। उनके माता-पिता की हालत बहुत अच्छी नहीं है। चाय बागान और दूसरी जगहों पर दिहाड़ी कर वे परिवार चलाते हैं। गुडि़या का सैंडल टूट गया है। पिनाकी उसे मरम्मत कराने ले जाता है। सैंडिल की जोड़ी उस से खो जाती है। दोनों भाई-बहन फैसला करते हैं कि वे माता-पिता को कुछ नहीं बताएंगे और एक ही जोड़ी से काम चलाएंगे। गुडि़या सुबह के स्कूल में है। वह स्कूल से छूटने पर दौड़ती-भागती निकलती है, क्योंकि उसे भाई को जूते देने होते हैं। भाई का स्कूल दोपहर में आरंभ होता है। कई बार गुडि़या को देर हो जाती है तो पिनाकी को स्कूल पहुंचने में देर होती है। जूते खर

दरअसल:क्यों पसंद आई हाउसफुल?

-अजय ब्रह्मात्‍मज  हाउसफुल रिलीज होने के दो दिन पहले एक प्रौढ़ निर्देशक से फिल्म की बॉक्स ऑफिस संभावनाओं पर बात हो रही थी। पड़ोसन, बावर्ची और खट्टा मीठा जैसी कॉमेडी फिल्मों के प्रशंसक प्रौढ़ निर्देशक ने अंतिम सत्य की तरह अपना फैसला सुनाया कि हाउसफुल नहीं चलेगी। यह पड़ोसन नहीं है। इस फिल्म को चलना नहीं चाहिए। 30 अप्रैल को फिल्म रिलीज हुई, महीने का आखिरी दिन होने के बावजूद फिल्म को दर्शक मिले। अगले दिन निर्माता की तरफ से फिल्म के कलेक्शन की विज्ञप्तियां आने लगीं। वीकएंड में हाउसफुल ने 30 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया। अगर ग्लोबल ग्रॉस कलेक्शन की बात करें, तो वह और भी ज्यादा होगा। बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के इस आंकड़े के बाद भी हाउसफुल का बिजनेस शत-प्रतिशत नहीं हो सका। हां, दोनों साजिद (खान और नाडियाडवाला) फिल्म की रिलीज के पहले से आक्रामक रणनीति लेकर चल रहे थे। उन्होंने फिल्म का नाम ही हाउसफुल रखा और अपनी बातचीत, विज्ञापन और प्रोमोशनल गतिविधियों में लगातार कहते रहे कि यह फिल्म हिट होगी। आप मानें न मानें, लेकिन ऐसे आत्मविश्वास का असर होता है। आम दर्शक ही नहीं, मीडिया तक इस आक्रामक प्रचार के चपेट