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फिल्‍म समीक्षा मिस्‍टर सिंह मिसेज मेहता

-अजय ब्रह्मात्‍मज प्रवेश भारद्वाज की फिल्म मिस्टर सिंह मिसेज मेहता हिंदी फिल्मों में बार-बार दिखाई जा चुकी विवाहेतर संबंध की कहानी को नए एंगल से कहती है। प्रवेश भारद्वाज विवाहेतर संबंधों पर कोई नैतिक या सामाजिक आग्रह लेकर नहीं चलते। खास परिस्थिति में चार किरदारों और उनके बीच के संबंधों को उन्होंने सहज और संवेदनशील तरीके से प्रस्तुत किया है। फिल्म की प्रस्तुति में कोई ताम-झाम नहीं है और न ही उनके किरदार जिंदगी से बड़े हैं। लंदन की व्यस्त और आपाधापी भरे जीवन में हम मिस्टर सिंह और मिसेज मेहता के अवैध संबंध से परिचित होते हैं। निर्देशक की रुचि उनके संबंधों में नहीं है। वे उनके लाइफ पार्टनर की जिंदगी में उतरते हैं। मिस्टर सिंह की पत्‍‌नी नीरा और मिसेज मेहता के पति अश्रि्वनी के दंश, द्वंद्व और दुविधा को प्रवेश ने काव्यात्मक तरीके से चित्रित किया है। अपने पति के विवाहेतर संबंध से आहत नीरा मिसेज मेहता के पति से मिल कर अपना दुख-दर्द बांटती है। दो आहत व्यक्तियों को एक-दूसरे की संगत में राहत मिलती है। वे करीब आते हैं और अनायास खुद को हमबिस्तर पाते हैं। नीरा बदले की भावना से ग्रस्त नहीं

फिल्‍म समीक्षा रावण

मनोरम दृश्य, कमजोर कथा -अजय ब्रह्मात्‍मज मणि रत्‍‌नम की रावण निश्चित ही रामायण से प्रेरित है। अभिषेक बच्चन रावण उर्फ बीरा, ऐश्वर्या राय बच्चन रागिनी उर्फ सीता और विक्रम देव उर्फ राम की भूमिका में हैं। बाकी पात्रों में भी रामायण के चरित्रों की समानताएं रखी गई हैं।मणि रत्‍‌नम इस फिल्म के अनेक दृश्यों में रामायण के निर्णायक प्रसंग ले आते हैं। पटकथा लिखते समय ही मानो हाईलाइट तय कर दिए गए हों और फिर उन घटनाओं के इर्द-गिर्द कहानी बुनी गई हो। इसकी वजह से उन दृश्यों में तो ड्रामा दिखता है, लेकिन आगे-पीछे के दृश्य क्रम खास प्रभाव नहीं पैदा करते। मणि रत्‍‌नम ने राम, सीता और रावण की मिथकीय अवधारणा में फेरबदल नहीं किया है। उन्होंने मुख्य पात्रों के मूल्य, सिद्धांत और क्रिया-कलापों को आज के संदर्भ में अलग नजरिए से पेश किया है। मणि रत्‍‌नम देश के शिल्पी फिल्मकार हैं। उनकी फिल्में खूबसूरत होती हैं और देश के अन देखे लोकेशन से दर्शकों का मनोरम मनोरंजन करती हैं। रावण में भी उनकी पुरानी खूबियां मौजूद हैं। हम केरल के जंगलों, मलसेज घाट और ओरछा के किले का भव्य दर्शन करते हैं। पूरी फिल्म मे

बेहोशी नशा खुश्‍बू क्‍या क्‍या न हमारी आंखों में

यह गीत आप 17 जून के बाद सुन सकते हैं। फिलहाल शायरी का मजा लें ... बेहोशी नशा खुश्‍बू क्‍या क्‍या न हमारी आंखों में उलझी हैं मेरी सांसें कुछ ऐसे तुम्‍हारी सांसों में मदहोशी का मंजर है कुछ मीठा गुलाबी सा बिजली सी लपकती है छूने से तुम्‍हारी सांसों में रह रह के धड़कता है एहसास तुम्‍हारा यह भीगे है पसीने में ठंडी सी जलन है सांसों में फुरसत से ही उतरेगा आंखों से तुम्‍हारा सुरूर इस पल तो महकती है बस खुश्‍बू तुम्‍हारी सांसों में गीत-अमिताभ वर्मा संगीत-उस्‍ताद शुजात हुसैन खान मिस्‍टर सिंह मिसेज मेहता का एक गीत

मनोज बाजपेयी और अनुराग कश्‍यप का साथ आना

-अजय ब्रह्मात्‍मज एक अर्से बाद.., या कह लें कि लगभग एक दशक बाद दो दोस्त फिर से साथ काम करने के मूड में हैं। मनोज बाजपेयी और अनुराग कश्यप साथ आ रहे हैं। उनकी मित्रता बहुत पुरानी है। फिल्म इंडस्ट्री में आने के पहले की दोनों की मुलाकातें हैं और फिर एक सी स्थिति और मंशा की वजह से दोनों मुंबई आने पर हमसफर और हमराज बने। अनुराग कश्यप शुरू से तैश में रहते हैं। नाइंसाफी के खिलाफ गुस्सा उनके मिजाज में है। छोटी उम्र में ही जिंदगी की कड़वी सच्चाइयों ने उन्हें इस कदर हकीकत से रूबरू करवा दिया कि वे अपनी सोच और फैसलों में आक्रामक होते चले गए। बेचैनी उन्हें हर कदम पर धकेलती रही और वे आगे बढ़ते गए। तब किसी ने नहीं सोचा था कि उत्तर भारत से आया यह आगबबूला अपने अंदर कोमल भावनाओं का समंदर लिए अभिव्यक्ति के लिए मचल रहा है। वक्त आया। फिल्में चर्चित हुई और आज अनुराग कश्यप की खास पहचान है। कई मायने में वे पायनियर हो गए हैं। इस पर कुछ व्यक्तियों को अचंभा हो सकता है, क्योंकि हम फिल्म इंडस्ट्री को सिर्फ चमकते सितारों के संदर्भ में ही देखते हैं। हमारी इसी सीमित और भ्रमित सोच का एक दुष्परिणाम यह भी है कि फिल्मों की

थोड़ी तो पागल हूं: सोनम कपूर

-अजय ब्रह्मात्‍मज  फिल्मों की संख्या और हिट-फ्लॉप के लिहाज से देखें तो सोनम कपूर के करियर में कोई उछाल नहीं दिखता, लेकिन फिल्म, परफार्मेस और फिल्म इंडस्ट्री में उनकी मौजूदगी पर गौर करें, तो पाएंगे कि सोनम का खास मुकाम है। वे सही वजहों से खबरों में रहती हैं और उनके प्रशंसकों की तादाद बढ़ती जा रही है। उनकी आई हेट लव स्टोरीज इसी महीने रिलीज होगी। फिर आएगी आयशा और फिर..। बातचीत सोनम से.. प्रेम कहानी के बारे में क्या कहेंगी? मुझे व्यक्तिगत तौर पर प्रेम कहानियां बहुत पसंद हैं। आई हेट लव स्टोरीज के मेरे किरदार सिमरन को भी लव स्टोरीज अच्छी लगती हैं। इमरान खान इस फिल्म में जे के रोल में हैं। उन्हें लव स्टोरीज अच्छी नहीं लगतीं। दोनों मिलते हैं। दोनों के बीच नोक-झोंक चलती है और फिर दोनों के बीच भारी कन्फ्यूजन होता है। आई हेट लव स्टोरीज किस बैकड्रॉप की कहानी है? फिल्मी बैकड्रॉप है। दोनों एक फिल्म डायरेक्टर के असिस्टेंट हैं। वह डायरेक्टर लव स्टोरीज के लिए मशहूर है। इमरान असिस्टेंट डायरेक्टर हैं और मैं आर्ट डायरेक्टर हूं। हम दोनों की सोच अलग है। ज्यादातर मामलों में हम दोनों एक तरह से सोचते ही नहीं।

राजनीति को फिल्म से अलग नहीं कर सकता: प्रकाश झा

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=अजय ब्रह्मात्मज हिप हिप हुर्रे से लेकर राजनीति तक के सफर में निर्देशक प्रकाश झा ने फिल्मों के कई पडाव पार किए हैं। उन्होंने डॉक्यूमेंट्री फिल्में भी बनाई। सामाजिकता उनकी विशेषता है। मृत्युदंड के समय उन्होंने अलग सिनेमाई भाषा खोजी और गंगाजल एवं अपहरण में उसे मांजकर कारगर और रोचक बना दिया। राजनीति आने ही वाली है। इसमें उन्होंने सचेत होकर रिश्तों के टकराव की कहानी कही है, जिसमें महाभारत के चरित्रों की झलक भी देखी जा सकती है। फिल्मों में हाथ आजमाने आप मुंबई आए थे? शुरुआत कैसे हुई? दिल्ली यूनिवर्सिटी से फिजिक्स ऑनर्स करते समय लगा कि सिविल सर्विसेज की परीक्षा दूं, लेकिन फिर बीच में ही पढाई छोडकर मुंबई आ गया। सिर्फ तीन सौ रुपये थे मेरे पास। जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स का नाम सुना था, वहां पढना चाहता था। यहां आकर कुछ-कुछ काम करना पडा और दिशा बदलती गई। मुंबई आते समय ट्रेन में राजाराम नामक व्यक्ति मिले, जो शुरू में मेरे लिए सहारा बने। वे कांट्रेक्टर थे। उनके पास दहिसर में सोने की जगह मिली। फिर जे. जे. स्कूल नहीं गए? वहां गया तो मालूम हुआ कि सेमेस्टर आरंभ होने में अभी समय है। मेरे पास कैमरा था। फोट

फिल्म समीक्षा:राजनीति

राजनीतिक बिसात की चालें -अजय ब्रह्मात्मज भारत देश के किसी हिंदी प्रांत की राजधानी में प्रताप परिवार रहता है। इस परिवार केसदस्य राष्ट्रवादी पार्टी के सक्रिय नेता हैं। पिछले पच्चीस वर्षो से उनकी पार्टी सत्ता में है। अब इस परिवार में प्रांत के नेतृत्व को लेकर पारिवारिकअंर्तकलह चल रहा है। भानुप्रताप के अचानक बीमार होने और बिस्तर पर कैद हो जाने से सत्ता की बागडोर केलिए हड़कंप मचता है। एक तरफ भानु प्रताप केबेटे वीरेन्द्र प्रताप की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हैं तो दूसरी तरफ भानुप्रताप के छोटे भाई चंद्र प्रताप को मिला नेतृत्व और उनके बेटे पृथ्वी और समर की कशमकश है। बीच में बृजलाल और सूरज कुमार जैसे उत्प्रेरक हैं। प्रकाश झा ने राजनीति केलिए दमदार किरदार चुने हैं। राजनीतिक बिसात पर उनकी चालों से खून-खराबा होता है। एक ही तर्कऔर सिद्धांत है कि जीत के लिए जरूरी है कि दुश्मन जीवित न रहे। प्रकाश झा की राजनीति मुख्य रूप से महाभारत के किरदारों केस्वभाव को लेकर आज के माहौल में बुनी गई कहानी है। यहां कृष्ण हैं। पांडवों में से भीम और अर्जुन हैं। कौरवों में से दुर्योधन हैं। और कर्ण हैं। साथ में कुंती हैं और

पुस्‍तक समीक्षा : सिनेमा भोजपुरी

-अजय ब्रह्मात्‍मज  भोजपुरी सिनेमा के ताजा उफान पर अभी तक पत्र-पत्रिकाओं में छिटपुट लेख लिखे जाते हैं। कुछ सालों पहले लाल बहादुर ओझा ने भोजपुरी सिनेमा के आविर्भाव और आरंभिक स्थितियों पर एक खोजपूर्ण लेख लिखा था। उसके बाद से ज्यादातर लेख सूचनात्मक ही रहे हैं। विश्लेषण की कमी से हम भोजपुरी सिनेमा की खूबियों और खामियों के बारे में अधिक नहीं जानते। आम धारणा है कि भोजपुरी फिल्मों में अश्लील और फूहड़ गाने होते हैं। सेक्स, रोमांस और डांस के नाम पर भोंडापन रहता है। भोजपुरी का गवंईपन लाउड और आक्रामक होता है। यह गरीब और मजदूर तबके के दर्शकों का सिनेमा है, जिसमें एस्थेटिक का खयाल नहीं रखा जाता। भोजपुरी फिल्मों के हीरो के तौर पर हम रवि किशन, मनोज तिवारी और निरहुआ को जानते हैं। इन तीनों की पब्लिक इमेज का भोजपुरी फिल्मों के दर्शकों पर जो भी असर हो, हिंदी सिनेमा के आम दर्शक उनमें भदेसपन देखते हैं। भोजपुरी फिल्मों की चर्चा होते ही भोजपुरी दर्शक और सिनेमाप्रेमी बचाव की मुद्रा में आ जाते हैं। उनके पास गर्व करने लायक तर्क नहीं होते। अविजित घोष की पुस्तक सिनेमा भोजपुरी इस हीन भाव को खत्म करती है। अविजित ने

दरअसल :सूचनाओं का व्‍यसन है ट्विटर

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-अजय ब्रह्मात्‍मज   पिछले दिनों अमिताभ बच्चन भी ट्विटर पर आ गए। उन्होंने अपना नाम सीनियर बच्चन रखा है। यह ठीक भी है, क्योंकि अभिषेक बच्चन पहले से ही जूनियर बच्चन के नाम से ट्विट कर रहे हैं। बच्चन पिता-पुत्र के साथ हिंदी फिल्मों के अनेक सितारे ट्विटर पर हैं। पापुलर सितारों में शाहरुख खान, सलमान खान, रितिक रोशन, अर्जुन रामपाल, शाहिद कपूर, प्रियंका चोपड़ा, मल्लिका शेरावत, गुल पनाग, लारा दत्ता, दीपिका पादुकोण आदि रेगुलर ट्विट करते हैं। यहां से इनके प्रशंसकों को सारी ताजा सूचनाएं मिलती रहती हैं। साथ ही सितारों को फीडबैक भी मिल जाता है। कम से कम उन्हें अंदाजा हो जाता है कि उनके प्रशंसक क्या सोच रहे हैं? शाहरुख खान ट्विट के मामले में सबसे बेहतर हैं। उनका विनोदी स्वभाव, बीवी-बच्चों से लगाव, दोस्तों से बर्ताव और मानवता के लिए सद्भाव सब कुछ 140 अक्षरों में अच्छी तरह व्यक्त हो जाता है। उनके संवाद में मैत्री भाव रहता है। वे कभी आतंकित नहीं करते और न ही अपने दर्शन से बोर करते हैं। माय नेम इज खान की रिलीज के समय उन्होंने ट्विट करना आरंभ किया और तब से हर महत्वपूर्ण जानकारी उन्होंने ट्विट के माध्यम स

रा.वन की जानकारी शाहरूख खान के ट्विटों से

- अजय ब्रह्मात्‍मज   फिल्म बनाना प्रेम करने की तरह है..फन ़ ़ ़एक्साइटिंग ़ ़ ़ सेक्सी ़ ़ ़ और आपको मालूम नहीं रहता कि आखिरकार वह क्या रूप लेगा? अगर फिल्म रा.वन हो तो इन सारे तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है और उसी अनुपात में बढ़ती है हमारी जिज्ञासा। शाहरुख खान की रा.वन निश्चित ही 2010 की महत्वाकांक्षी फिल्म होगी। अनुभव सिन्हा के निर्देशन में बन रही इस फिल्म के हीरो ़ ़ ़ ना ना 'सुपरहीरो' हैं शाहरुख खान। कहते हैं शाहरुख खान अपने बेटे आर्यन, उसके दोस्तों और उसकी उम्र के तमाम बच्चों के लिए इस फिल्म का निर्माण कर रहे हैं। वे देश के बच्चों को 'देसी सुपरहीरो' देना चाहते हैं। शाहरूख खान ट्विटर पर लिखते हैं कि जब वे छोटे बच्चे थे तो बड़ी बहन के टाइट्स के ऊपर अपना स्विमिंग सूट पहन कर गर्दन में तौलिया बांध कर उड़ने की कोशिश करते थे। उस समय वे निश्चित ही अपनी चौकी, खाट या पलंग से फर्श पर गिरे होंगे। चालीस सालों के बाद उनके बचपन की ख्वाहिश बेटे की इच्छा के बहाने उड़ने जा रही है। अनुभव सिन्हा के निर्देशन में विदेशी तकनीशियनों की मदद से यह मुमकिन हो रहा है। साल भर पहले तक अनुभव सिन्हा निश