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दरअसल : हिंदी फिल्‍मों के हिंदी पोस्‍टर

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-अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले हफ्ते गुरूवार को ‘ निल बटे सन्‍नाटा ’ का हिंदी पोस्‍टर मुझे ह्वाट्स ऐप के जरिए मिला। इसे अश्विनी अरूयर तिवारी ने निर्देशित किया है। और स्‍वरा भास्‍र मुक्ष्‍य भूमिका में हैं। इसे आनंद एल राय ने भेजा था। सचमुच बेहद खुशी हुई। इस फिल्‍म का फर्स्‍ट लुक पोस्‍टर आया था तो मैंने उसे ट्विट करते हुए लिखा था...उम्‍मीद करता हूं कि इसका पोस्‍टर हिंदी में भी आएगा। हर फिल्‍म के फर्स्‍ट लुक पोस्‍अर के समय मैं निर्माता,निर्देशक,स्‍टार और कारपोरेट हाउस से गुजारिश करता हूं कि वे अपनी फिल्‍मों के पोस्‍टर हिंउी में भी ले आएं। शायद ही कभी किसी के कानों पर जूं रेंगती है। बहुत पहले विपुल शाह ने ‘ सिंह इज किंग ’ का पोस्‍टर मेरे कहने पर हिंदी में छपवाया था। एकमात्र विशाल भारद्वाज की फिल्‍मों के पोस्‍टर आरंभ से ही हिंदी में आ जाते हैं। बाकी फिल्‍मों की रिलीज के समय हिंदी प्रदेशों के भीतरी इलाकों के लिए मजबूरन हिंदी में पोस्‍अर छपवाते हैं। अभी मल्‍टीप्‍लेक्‍स संस्‍कृति के बाद मान लिया गया है कि मल्‍टीप्‍लेक्‍स में आने वाले दर्शक अंगेजी में ही पोस्‍टर देखना और पढ़ना चाहते हैं।

दिल से बनना चाहता हूं हैंडसम - जॉन अब्राहम

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अजय ब्रह्मात्मज  जॉन अब्राहम की एक अलग पहचान है। अपनी फिल्‍मों से धीरे-धीरे उन्‍होंने यह खाय पहचान हासिल ीि है। उनकी 'रॉकी हैंडसम' अगले हफ्ते रिलीज हो रही है। उसी मौके पर यह खास बातचीत हुई।  - आपकी होम प्रोडक्शन फिल्मों का चुनाव अलग तरीके का रहता है। आप बाहरी बैनर की फिल्में अलग तरह की करते हैं। यह कैसे संभव हुआ ?  0 मैं बहुत क्लियर था। मैं जैसी फिल्में देखने की चाहत रखता था वह भारत में नहीं बनती थी। मैं निर्माता इस वजह से ही बना कि जैसी फिल्में देखने की तमन्ना रखता हूं उन्हें खुद बना सकूं। वही कोशिश की। मैंने अलहदा फिल्मों को तरजीह दी। मैंने कॅामर्स और कंटेंट का भी ध्यान रखा। कंटेंट का अर्थ सिफ फिल्म में संदेश देना नहीं है। मद्रास कैफे यूथ के लिए थी। राजनीति संबंधित थी। आज की युवा पीढ़ी राजीव गांधी से परिचित नहीं है। मैं चाहता था कि लोग उनके बारे में जाने। हालांकि विकी डोनर में संदेश था। बतौर निर्माता चाहूंगा कि मेरी फिल्मों को लोग सराहें। एक्टर होने के नाते मैंने काफी गलतियां की हैं। निर्माता के तौर पर मैं वह गलतियां नहीं करना चाहता हूं। एक्टर होने क

यह रिश्‍ता क्‍या कहलाता है : हांगकांग में सितारों की मस्‍ती

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हांगकांग से लौट कर अजय ब्रह्मात्‍मज सभी जानते हैं कि स्‍टार प्‍लस का शो ’ यह रिश्‍ता क्‍या कहलाता है ’ काफी लोकप्रिय है। पिछले सात सालों से चल रहा यह शो रिश्‍तों के उतार-चढ़ाव और संबंधों के मोड़ की वजह से दर्शकों के बीच प्रिय है। पॉपुलर टीवी शो की खासियत है कि उसके कलाकारों को दर्शक पहचानते हें। उनके लिए वह परिवार का ऐसा सदस्‍य होता है,जो उनकी जिंदगी का हिस्‍सा बन चुका होता है। कभी वह रियल जिंदगी में सामने आ जाए तो सहसा यकीन नहीं होता कि नैातिक और अक्षरा ऐसे कैसे टहल सकते हैं ? क्‍या वे भी उनकी तरह मौज-मस्‍ती और घूमने-फिरने में यकीन रखते हैं ? पिछले हफ्ते हांगकांग में ‘ यह रिश्‍ता क्‍या कहलाता है ’ की शूटिंग के दौरान कुछ ऐसे ही अनुभवों से साबका पड़ा। हांगकांग का ओशियन पार्क भव्‍य और विशाल है। यहां आधुनिक पार्क के सभी तेज रफ्तार झूले और पानी में छई छप्‍प छई करते बोट और घिरनियां हैं। हांगकांग शहर के बाहरी इलाके में बनाए गए ओशियन पार्क तक अभी मैट्रो नहीं पहुंचा है,लेकिन हांगकांग और मेनलैंड चाइना से घूमने के शौकीन यहां 11 बजे से पहले आकर कतार लगा देते हैं। चीनी नैन-न

सबसे ऊपर हैं रिश्‍ते- अर्जुन कपूर

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-अजय ब्रह्मात्‍मज अर्जुन कपूर ने अपने किरदार के साथ कई प्रयोग किए हैं। आर बाल्की की ‘ की एंड का ’ में वह हाउस हसबैंड बने हैं। यह यूनिक आइडिया है। अपने सफर और फिल्म को लेकर उन्होंने बात की :बातें अभी और हैं... - आपके साथ के फैक्टर कारगर रहा है। खतरों के खिलाड़ी...केकेके। उसके बाद ‘ की एंड का ’ के एंड के ... 0 हां मेरी को-स्टार करीना कपूर खान हैं। उसमें भी केकेके फेक्टर है। मैं हमेशा से ही बोलता हूं कि इस फिल्‍म में करीना का ‘ का ’ और बाल्की का ‘ की ’ । मैं ‘ एंड ’ हूं। ‘ की ’ और ‘ का ’ वे दोनों हैं। मुझे नहीं पता कि यह के फेक्टर मेरे लिए काम करेगा या नहीं। लेकिन मुझे ‘ की एंड का ’ करने में बहुत मजा आया। ठीक वैसा ही ‘ खतरों के खिलाड़ी ’ का अनुभव रहा। मैं तो सिर्फ इतना ही कहूंगा कि मुझे दोनों से ही पॉजीटिव एनर्जी मिली। - अक्सर लोग फिल्म या फिर खुद के नाम में कोई खास अक्षर जोड़ते हैं। आप इसमें कितना यकीन रखते हैं ? 0 कोई मुझे नाम बदलने को कहे तो भी नहीं करुंगा। मेरी मां ने मुझे पुखराज की अंगूठी दी थी।(दिखाते हुए)मैं इसे हमेशा पहनता हूं। मेरे लिए यह उनकी याद है

फिल्‍म समीक्षा : तेरा सुरुर

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हिमेश की गायकी और डबलिन की खूबसूरती तेरा सुरूर अजय ब्रह्मात्‍मज निश्चित ही हिमश रेशमिया अपनी खूबियों के बारे में जानते हैं। वे अपनी फिल्‍मों में उन खूबियों को पर्याप्‍त स्‍पेस और फोकस के साथ पेश करते हें। उनकी फिल्‍मों की सजावट खूबसूरत और आकर्षक रहती है। ‘ तेरा सुरूर ’ में वे दर्शकों को डबलिन के लोकेशन पर ले जाते हैं। डबलिन के विहंगम दृश्‍यों(एरियल शॉट) से शहर की खूबसूरती की मनोरम झलक मिलती है। हम इस शहर में विभिन्‍न बहानों से बार-बार हिमेश रेशमिया को देखते हैं। कभी वे गा रहे होते हैं। कभी सोच रहे होते हैं। और कभी एक्‍शन कर रहे होते हैं। कैमरा उन्‍हें खोज ही लेता है। सब कुछ अच्‍छी तरह से दिखाने के लिए फिल्‍म में स्‍लो मोशन का भरपूर इस्‍तेमाल किया गया है। हम हिमेश रेशमिया की बदली कद-काठी,हीरोइन फराह करीमी की सुदरता,मां शरनाज पटेल की ममता और शेखर कपूर,कबीर बेदी,नसीरूद्दीन शाह की मौजूदगी से अभिभूत होते हैं। संदर्भ के लिए यह हिंदी फिल्‍मों की जूनियर आर्टिस्‍ट मां के बेटे रघु की कहानी है। बचपन में परिस्थितियों के कारण वह अपराधी बन जाता है। जेल से निकलन

फिल्‍म समीक्षा : ग्‍लोंबल बाबा

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फिल्‍म रिव्‍यू धर्म का धंधा ग्‍लोबल बाबा -अजय ब्रह्मात्‍मज सूर्य कुमार उपाध्‍याय की कथा और विशाल विजय कुमार की पटकथा लेकर मनोज तिवारी ने प्रासंगिक फिल्‍म बनाई है। पिछलें कुछ सालों में बाबाओं की करतूतों की सुर्खियां बनती रही हैं। हमें उनके अपराधों और कुकृत्‍यों की जानकारियां भी मिलती रही है। मनोज तिवारी ने ‘ ग्‍लोबल बाबा ’ को उत्‍तर प्रदेश की कथाभूमि और पृष्‍ठभूमि दी है। यों ऐसी कहानियां और घटनाएं किसी भी प्रदेश में पाई जा सकती हैं। यह चिलम पहलवान की कहानी है। संगीन अपराधी पुलिस की गिरफ्त से भाग जाता है। वह अपनी पहचान बदलता है और मौनी बाबा के सहयोग से कुंभ के मेले के दौरान नई वेशभूषा और पहचान धारण करता है। दोनों जल्‍दी ही ग्‍लोबल बाबा का आश्रम स्‍थापित करते हैं। धर्मभीरू समाज में उनकी लोकप्रियता बढ़ती है और वे स्‍थानीय नेता व गृह मंत्री के लिए चुनौती के रूप में सामने आते हैं। पूरी फिल्‍म नेता और बाबा के छल-फरेब के बीच चलती है। केवल टीवी रिपोर्टर ही इस दुष्‍चक्र में सामान्‍य नागरिक है,जिसका दोनों ही पक्ष इस्‍तेमाल करते हैं। फिल्‍म में आए समाज का कोई स्‍पष्‍ट चेहरा नहीं

दरअसल : विदेशों में पॉपुलर टीवी कलाकार

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- अजय ब्रह्मात्मज हाल ही में स्टार प्लस के शो   ' ये रिश्ता क्या कहलाता है ' की शूटिंग के सिलसिले में होनकोंग जाने का मौका मिला। इन दिनों टीवी शो भी शूटिंग के लिए अपने कलाकारों को लेकर विदेश जाने लगे हैं। उद्देश्य यही रहता है कि दर्शकों को विदेश की पृष्ठभूमि देखने को मिले। इसी बहाने दर्शक भी अपनी बैठक में बैठे - बैठे ही विदेशों की सैर कर लेते हैं। दशकों पहले जब हमारी दुनिया आज की तरह ग्लोबल नहीं हुई थी तो हिंदी फिल्मों की शूटिंग विदेशों में की जाती थी। दर्शकों को लुभाने और थिएटर में लाने का यह फार्मूला बहुत पॉपुलर हुआ था। बाद में तो पूरा परिदृश्य बदल गया। यश चोपड़ा   ने अलग तरह से विदेशों की छटा परोसी। उनके बाद तो निर्माताओं में विदेशी लोकेशन में देशी इमोशन दिखाने की होड़ लग गयी। क्या टीवी के साथ भी यही हो रहा है ? हमें ख्याल रखना होगा की जब किसी टीवी शो के कलाकार विदेश जाएँ तो कहानी भी वहां जाए। वहां के स्थानीय