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फिल्‍म समीक्षा : कहानी 2 : दुर्गा रानी सिंह

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फिल्‍म रिव्‍यू फिसला है रोमांच कहानी 2 : दुर्गा रानी सिंह -अजय ब्रह्मात्‍मज सुजॉय घोष चार सालों से ज्‍यादा समय बीत गया। मार्च 2012 में सीमित बजट में सुजॉय घोष ने ‘ कहानी ’ निर्देशित की थी। पति की तलाश में कोलकाता में भटकती गर्भवती महिला की रोमांचक कहानी ने दर्शकों को रोमांचित किया था। अभी दिसंबर में सुजॉय घोष की ‘ कहानी 2 ’ आई है। इस फिल्‍म का पूरा शीर्षक ‘ कहानी 2 : दुर्गा रानी सिंह ’ है। पिछली फिल्‍म की कहानी से इस फिल्‍म को कोई संबंध नहीं है। निर्माता और निर्देशक ने पिछली ‘ कहानी ’ की कामयाबी का वर्क ‘ कहानी 2 ’ पर डाल दिया है। यह वर्क कोलकाता,सुजॉय घोष और विद्या बालन के रूप में नई फिल्‍म से चिपका है। अगर आप पुरानी फिल्‍म के रोमांच की उम्‍मीद के साथ ‘ कहानी 2 ’ देखने की योजना बना रहे हैं तो यह जान लें कि यह अलहदा फिल्‍म है। इसमें भी रोमांच,रहस्‍य और विद्या हैं,लेकिन इस फिल्‍म की कहानी बिल्‍कुल अलग है। यह दुर्गा रानी सिंह की कहानी है। दुर्गा रानी सिंह का व्‍याकुल अतीत है। बचपन में किसी रिश्‍तेदार ने उसे ‘ यहां-वहां ’ छुआ था। उस दर्दनाक अनुभव से वह अभी तक नह

दरअसल : वर्चुअल रियलिटी

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दरअसल... वर्चुअल रियलिटी -अजय ब्रह्मात्‍मज पिछलें दिनों गोवा में आयोजित फिल्‍म बाजार में वर्चुअल रियलिटी के प्रत्‍यक्ष एहसास के लिए एक कक्ष रखा गया था। फिल्‍म बाजार में आए प्रतिनिधि इस कक्ष में जाकर वर्चुअल रियलिटी का अनुभव ले सकते थे। कुछ सालों से ऑडियो विजुअल मीडियम की यह नई खोज सभी को आकर्षित कर रही है। अभी प्रयोग चल रहे हैं। इसे अधिकाधिक उपयोगी और किफायती बनाने का प्रयास जारी है। यह तकनीक तो कुछ महीनों या सालों में अासानी से उपलब्‍ध हो जाएगी। अब जरूरत है ऐसे कल्‍पनाशील लेखकों की जो इस तकनीक के हिसाब से स्क्रिप्‍ट लिख सकें। अभी तक मुख्‍य रूप से इवेंट या समारोहों के वीआर(वर्चुअल रियलिटी) फुटेज तैयार किए जा रहे हैं। मांग और मौजूदगी बढ़ने पर हमें कंटेंट की जरूरत पड़ेगी। वर्चुअल रियलिटी 360 डिग्री और 3डी से भी आगे का ऑडियो विजुअल अनुभव है। वर्चुअल रियलिटी का गॉगल्‍स या चश्‍मे की तरह का खास उपकरण आंखों पर चड़ा लेने और ईयर फोन कान पर लगा लेने के बाद हम अपने परिवेश से कट जाते हैं। हमारी आंखों के सामने केवल दृश्‍य होते हैं और कानों में आवाजें...किसी भी स्‍थान पर बैठे रहने के

दरअसल : सितारों के बच्‍चे

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दरअसल... सितारों के बच्‍चे -अजय ब्रह्मात्‍मज हम यह मान कर चलते हैं कि फिल्‍म इंडस्‍ट्री में सितारों और अन्‍य सेलिब्रिटी के बच्‍चे बड़ चैन व आराम से रहते होंगे। सुख-सुविधाओं के बीच पल रहे उनके बच्‍चों को किसी प्रकार की तकलीफ नहीं होगी। जरूरत की सारी चीजें उन्‍हें मिल जाती होंगी और उनकी ख्‍वाहिशें हमेशा पूरी होती होंगी। ऐसा है भी और नहीं भी है। मां-बाप की लोकप्रियता की वजह से इन बच्‍चों की परवरिश समान आर्थिक समूह के बच्‍चों से अलग हो जाती है। बचपन से ही उन्‍हें यह एहसास हो जाता है कि उनके मां-बाप कुछ खास हैं। सोशल मीडिया और मीडिया के कारण छोटी उम्र में ही उन्‍हें पता चल जाता है कि वे अपने सहपाठियों और स्‍कूल के दोस्‍तों से अलग हैं। ऐसे बचपन के अनुभव के बाद स्‍टार बने कलाकारों ने निजी बातचीत में स्‍वीकार किया है कि हाई स्‍कूल तक आते-आते उनके दोस्‍तों का व्‍यवहार बदल जाता है। वे या तो दूरी बना लेते हैं या उनकी अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं। दोनों ही स्थितियों में सितारों के बच्‍चे समाज से कट जाते हैं। उनका बचपन नार्मल नहीं रह जाता। वे दूसरे सितारों के बच्‍चों के साथ नकली और दिखावटी

फिल्‍म समीक्षा : डियर जिंदगी

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फिल्‍म समीक्षा डियर जिंदगी -अजय ब्रह्मात्‍मज हम सभी की जिंदगी जितनी आसान दिखती है,उतनी होती नहीं है। हम सभी की उलझनें हैं,ग्रंथियां हैं,दिक्कतें हैं...हम सभी पूरी जिंदगी उन्‍हें सुलझाते रहते हैं। खुश रहने की कोशिश करते हैं। अनसुलझी गुत्थियों से एडजस्‍ट कर लेते हैं। बाहर से सब कुछ शांत,सुचारू और स्थिर लगता है,लेकिन अंदर ही अंदर खदबदाहट जारी रहती है। किसी नाजुक क्षण में सच का एहसास होता है तो बची जिंदगी खुशगवार हो जाती है। गौरी शिंदे की ‘ डियर जिंदगी ’ क्‍यारा उर्फ कोको की जिंदगी में झांकती है। क्‍यारा अकेली ऐसी लड़की नहीं है। अगर हम अपने आसपास देखें तो अनेक लड़कियां मिलेंगी। वे सभी जूझ रही हैं। अगर समय पर उनकी भी जिंदगी में जहांगीर खान जैसा ‘ दिमाग का डाक्‍टर ’ आ जाए तो शेष जिंदगी सुधर जाए। हिंदी फिल्‍मों की नायिकाएं अब काम करने लगी हैं। उनका एक प्रोफेशन होता है। क्‍यारा उभरती सिनेमैटोग्राफर है। वह स्‍वतंत्र रूप से फीचर फिल्‍म शूट करना चाहती है। उसे रघुवेंद्र से आश्‍वासन मिलता है। संयोग कुछ ऐसा बनता है कि वह स्‍वयं ही मुकर जाती है। मानसिक दुविधा में वह अनिच्‍छा के सा

फिल्‍म समीक्षा : मोह माया मनी

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फिल्‍म समीक्षा महानगरीय माया मोह माया मनी -अजय ब्रह्मात्‍मज मुनीष भारद्वाज ने महानगरीय समाज के एक युवा दंपति अमन और दिव्‍या को केंद्र में रख कर पारिवारिक और सामाजिक विसंगतियों को जाहिर किया है। अमन और दिव्‍या दिल्‍ली में रहते हैं। दिव्‍या के पास चैनल की अच्‍छी नौकरी है। वह जिम्‍मेदार पद पर है। अमन रियल एस्‍टेट एजेंट है। वह कमीशन और उलटफेर के धंधे में लिप्‍त है। उसे जल्‍दी से जल्‍दी अमीर होना है। दोनों अपनी जिंदगियों में व्‍यस्‍त है। शादी के बाद उनके पास एक-दूसरे के लिए समय नहीं है। समय के साथ मुश्किलें और जटिलताएं बढ़ती हैं। अमन दुष्‍चक्र में फंसता है और अपने अपराध में दिव्‍या को भी शामिल कर लेता है। देखें तो दोनों साथ रहने के बावजूद एक-दूसरे से अनभिज्ञ होते जा रहे हैं। महानगरीय परिवारों में ऐसे संबंध दिखाई पड़ने लगे हैं। कई बार वे शादी के कुछ सालों में ही तलाक में बदल जाते हैं या फिर विद्रूप तरीके से किसी कारण या स्‍वार्थ की वजह से चलते रहते हैं। मुनीष भारद्वाज ने वर्तमान उपभोक्‍ता समाज के दो महात्‍वाकांक्षी व्‍य‍क्तियों की एक सामान्‍य कहानी ली है। उन्‍होंने नए प्रसं

इम्तियाज अली से विस्‍तृत बातचीत

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-अजय ब्रह्मात्‍मज जमशेदपुर में हमारे घर में फिल्म देखने का रिवाज था , पर बच्चों का फिल्म देखना अच्छा नहीं समझा जाता था। थोड़ा सा ढक छिपकर लोग फिल्म देखा करते थे। मेरे माता - पिता को फिल्मों का शौक था। वह लोग अपने माता - पिता से छिपकर फिल्म देखने जाया करते थे। मेरी पैदाइश के बाद भी वह दोनों स्कूटर पर बैठकर फिल्म देखने जाया करते थे। मेरे ख्याल से वह एक सम्मोहन था , जैसा की हर बच्चे को होता है। मैं भी फिल्मों के प्रति बचपन में सम्मोहित था। मैं बड़ा होने पर पटना गया , तब भी फिल्मों को लेकर वही माहौल रहा। आज भी मेरे निजी घर में फिल्म मैगजीन नहीं आती है। लेकिन देखा गया है कि जिस चीज के लिए मना किया जाएं , उसके प्रति सम्मोहन बढ़ता ही जाता है। हमारे परिवार में एक रिश्तेदार थे। उनके जमशेदपुर में सिनेमा हॅाल थे , जहां के लाइनमैन और दरबान हम लोगों को जानते थे। हम लोग बिना घर में किसी को बताए , सिनेमा हॉल में चले जाते थे। मुझे य