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सिनेमालोक दीपिका-रणवीर की शादी

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सिनेमालोक दीपिका-रणवीर की शादी -अजय ब्रह्मात्मज दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह की शादी की ट्विटर पर की गयी संयुक्त घोषणा ने मीडिया की संडे की शांति में खलबली मचा दी. धडाधड अपडेट होने लगे और उनकी पंक्तियों को दोहराया और उद्धृत किया जाने लगा.हाल-फिलहाल में शादी की घोषणा कर रही किसी फिल्म स्टार जोड़ी ने पहली बार हिंदी में भी अपना सन्देश जारी किया.इस बात के लिए हिंदी फिल्मों के दोनों स्टार बधाई के पात्र हैं.ठीक है कि वर्तनी और व्याकरण की कुछ गलतियाँ हैं.जैसे कि दीपिका का नाम ही दीपीका लिखा गया है.फिर भी जिस इंडस्ट्री में अंग्रेजी का बोलबाला है,वहां पॉपुलर स्टार की ऐसी पहल के दूरगामी प्रभाव होते हैं. बताते हैं कि 2012 में संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘गोलियों की रासलीला राम-लीला ’ की शूटिंग के दरम्यान दोनों करीब आये.संजय लीला भंसाली की अगली दो फिल्मों में वे फिर से साथ रहे.शूटिंग के दिनों के लम्बे साथ में दोनों एक-दूसरे को अच्छी तरह समझ सके.पहली फिल्म की रिलीज के बाद से ही दोनों की नजदीकियां नज़र आने लगी थीं , लेकिन शुरू में इसे रणवीर सिंह का हाइपर अंदाज माना गया.रणवीर मौके-बेमौके अप

संडे नवजीवन : राष्ट्रवाद का नवाचार

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संडे नवजीवन राष्ट्रवाद का नवाचार -अजय ब्रह्मात्मज सर्जिकल स्ट्राइक की दूसरी वर्षगांठ पर हिंदी फिल्म ‘उरी – द सर्जिकल स्ट्राइक’ का टीजर आया. इस फिल्म में विकी कौशल प्रमुख नायक की भूमिका में है. 1 मिनट 17 सेकंड के टीजर में किसी संय अधिकारी की अनुभवी.आधिकारिक और भारी आवाज़ में वाइस् ओवर है. बताया जाता है कि ‘हिंदुस्तान के आज तक के इतिहास में हम ने किसी भी मुल्क पर पहला वार नहीं किया. 1947,61,75,99... यही मौका है उनके दिल में डरर बिठाने का. एक हिन्दुस्तानी चुप नहीं बैठेगा. यह नया हिंदुस्तान है. यह हिंदुस्तान घर में घुसेगा और मारेगा भी.’ वरिष्ठ अधिकारी की इस अधिकारिक स्वीकारोक्ति और घोषणा के बीच जवान ‘अहिंसा परमो धर्मः’ उद्घोष दोहराते सुनाई पड़ते हैं. सभी जानते हैं कि पाकिस्तान ने 18 सितम्बर 2016 को कश्मीर के उरी बेस कैंप में घुसपैठ की थी और 19 जवानों की हत्या कर दी थी. भारत ने डर बिठाने की भावना से सर्जिकल स्ट्राइक किया था. इस सर्जिकल स्ट्राइक को देश की वर्तमान सरकार ने राष्ट्रीय गर्व और शोर्य की तरह पेश कर अपनी झेंप मिटाई थी. गौर करें तो इस संवाद में पाकिस्तान का नाम नहीं लिया ग

सिनेमालोक : लाहौर के दूसरे प्राण भी नहीं रहे

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सिनेमालोक लाहौर के दूसरे प्राण भी नहीं रहे -अजय ब्रह्मात्मज देश के विभाजन के बाद लाहौर के दो प्राण वहां से निकले – प्राण सिकंद और प्राण नेविले. प्राण सिकंद मुंबई आये.उन्होंने लाहौर में ही एक्टिंग आरम्भ कर दी थी. मुंबई आने के बाद वे प्राण के नाम से मशहूर हुए.पहले खलनायक और फिर चरित्र भिनेता के तौर पर अपनी अदाकारी से उन्होंने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया. दूसरे प्राण दिल्ली में रुके. उन्होंने भारतीय विदेश सेवा की नौकरी की.कला,संगीत और फिल्मों में उनकी खास रूचि रही.उन्होंने लाहौर की यादों को सह्ब्दों में लिखा और भारतीय संगीत में ठुमरी और फ़िल्मी संगीत पर अनेक निबन्ध और पुस्तकें लिखीं. उन्हें के एल सहगल खास पसंद रहे.उन्होंने के एल सहगल मेमोरियल सर्किल की स्थापना की और सहगल की यादों और संगीत को जोंदा रखा. उन्होंने भारत सरकार की मदद से सहगल की जन्म शताब्दी पर खास आयोजन किया और उनके ऊपर एक पुस्तक भी लिखी. पिछले गुरुवार को दिल्ली में उनका निधन हुआ.उनके निधन की ख़बरें अख़बारों की सुर्खिउयाँ नहीं बन पायीं.हम नेताओं , अभिनेताओं और खिलाडियों की ज़िन्दगी के इर्द-गिर्द ही मंडराते रहते हैं.ह

फिल्म लॉन्ड्री : #MeToo: मुंबई फिल्म उद्योग का खुला और घिनौना सच

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फिल्म लॉन्ड्री नया नहीं है यौन शोषण का मसला -अजय ब्रह्मात्मज तनुश्री दत्ता ने 2008 में ‘हॉर्न ओके प्लीज ’ के सेट पर एक डांस सीक्वेंस के समय हुए अप्रत्याशित और अपमानजनक अनुहवों को शेयर करते हुए नाना पाटेकर पर यौन शोषण का ताज़ा आरोप लगाया है. इस आरोप के बाद हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में यौन शोषण के मामले ने तूल पकड़ा है. पत्रकार छोटे , मझोले और बड़े फिल्म स्टार और अन्य हस्तियों से उनकी राय पूछ रहे हैं.कुछ समर्थन में तो कुछ महिलाओं के प्रति निस्संग सहानुभूति में अपनी रायरख रहे हैं. हॉलीवुड में ‘मी टू’ अभियान के जोर पकड़ने और हार्वी वाइनस्टीन का मामला सामने आने के बाद भारत में भी अभिनेत्रियों के बीच सुगबुगाहट दिख रही है. पिछले साल दबे स्वर में ही सही,लेकिन अनेक अभिनेत्रियों ने खुद के हौलनाक अनुभव शेयर किये.इसके बावजूद यह सच्चाई है कि कभी बदनामी और कभी अलग-थलग कर दिएजाने के डर से अभिनेत्रियाँ ऐसे अपराधियों के नाम लेने से हिचकिचाती हैं. एक निर्माता , एक निर्देशक.एक कास्टिंग डायरेक्टर और एक को-एक्टर का चेहराविहीन उल्लेख किया जाता है. अपराधियों का पर्दाफाश नहीं होता. कुछ समय के बाद फिल्म इ

सिनेमालोक : यौन शोषण के और किस्से आएंगे सामने

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सिनेमालोक और किस्से आएंगे सामने -अजय ब्रह्मात्मज तनुश्री दत्ता-नाना पाटेकर प्रसंग के किसी निदान और निष्कर्ष पर पहुँचने के पहले विकास बहल का मामला सामने आ गया है. उसके बाद से कुछ और नाम आये हैं.कुछ ने तो आरोप लगने की आशंका में माफ़ी मंगनी शुरू कर दी है.अगर प्रशासन ने इस मामले को उचित तरीके से सुलझाया तो यकीं करें सकदों मामले उजागर होंगे.अनेक चेहरे बेनकाब होंगे.स्त्रियों को लेकर बढ़ रही बदनीयती की सडांध कम होगी. पिछले पच्चीस सालों के अनुभव पर यही कहना चाहूँगा की भारतीय समाज की तरह फिल्म जगत में भी औरतों के प्रति पुरुषों का रवैया सम्मानजनक नहीं है.उन्हें दफ्तर , स्टूडियो औए सेट पर तमाम सावधानी के बावजूद शर्मनाक और अपमानजनक स्थितियों से गुजरना पड़ता है. सोमवार की ख़बरों के मुताबिक मुंबई पुलिस ने तनुश्री दत्ता के एफ़आईआर पर कार्रर्वाई शुरू कर दी है. गृह राज्य मंत्री दीपक केसरकर ने अस्वासन दिया था कि अगर तनुश्री दत्ता पुलिस में शिकायत दर्ज करती हैं तो मामले की पारदर्शी और निष्पक्ष जांच होगी.उम्मीद की जाती है कि मुंबई पुलिस तत्परता से जांच कर जल्दी ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचेगी.मुंबई की

सिनेमालोक : फ़िल्में और गाँधी जी

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सिनेमालोक  फ़िल्में और गाँधी जी -अजय ब्रह्मात्मज आज महात्मा गाँधी का जन्मदिन है. 1869 में आज ही के दिन महत्मा गाँधी का जन्म पोरबंदर गुजरात में हुआ था.मोहनदास करमचंद गाँधी को उनके जीवन कल में ही महत्मा और बापू संबोधन मिल चूका था. बाद में वे राष्ट्रपिता संबोधन से भी विभूषित हुए. अनेक समाजशास्त्रियों और इतिहासकारों का मनना है कि गौतम बुद्ध की तरह ही महात्मा गाँधी के नाम और काम की चर्चा अनेक सदियों तक चलती रहेगी. गाँधी दर्शन की नई टीकाएँ और व्याख्याएं होती रहेंगी. उनकी प्रासंगिकता बनी रहेगी. महात्मा गाँधी ने अपने समय के तमाम मुद्दों को समझा और निजी अनुभवों और ज्ञान से उन पर टिप्पणियां और प्रतिक्रियाएं दीं. बस,इस तथ्य पर ताज्जुब होता है कि उन्होंने अपने जीवन कल में पापुलर हो रहे मनोरंजन के माध्यम सिनेमा के प्रति उदासी बरती. उनसे कभी कोई आग्रह किया गया तो उन्होंने टिपण्णी करने तक से इंकार कर दिया. क्या इसकी वजह सिर्फ इतनी रही होगी कि आधुनिक तकनीकों के प्रति वे कम उदार थे. इन पूंजीवादी आविष्कारों के प्रभाव और महत्व को समझ नहीं पाए. यह भी हो सकता है कि सिनेमा उनकी सोच और सामाजिकता

फिल्म लॉन्ड्री : आज़ादी के पहले की बोलती ऐतिहासिक फ़िल्में

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फिल्म लॉन्ड्री ऐतिहासिक फ़िल्में आज़ादी के पहले की बोलती फ़िल्में -अजय ब्रह्मात्मज ऐतिहासिक फिल्मों को इतिहास के तथ्यात्मक साक्ष्य के रूप में नहीं देखा जा सकता.इतिहासकारों की राय में ऐतिहासिक फिल्मे किस्सों और किंवदंतियों के आधार पर रची जाती हैं.उनकी राय में ऐतिहासिक फ़िल्में व्यक्तियों , घटनाओं और प्रसंगों को कहानी बना कर पेश करती हैं. उनमें ऐतिहासिक प्रमाणिकता खोजना व्यर्थ है. ऐतिहासिक फिल्मों के लेखक विभिन्न स्रोतों से वर्तमान के लिए उपयोगी सामग्री जुटते हैं. फिल्मों में वर्णित इतिहास अनधिकृत होता है.फ़िल्मकार इतिहास को अपने हिसाब से ट्रिविअलाइज और रोमांटिसाइज करके उसे नास्टैल्जिया की तरह पेश करते हैं. कुछ फ़िल्मकार पुरानी कहानियों की वर्तमान प्रासंगिकता पर ध्यान देते हैं.बाकी के लिए यह रिश्तों और संबंधों का ‘ओवर द टॉप ’ चित्रण होता है,जिसमें वे युद्ध और संघर्ष का भव्य फिल्मांकन करते हैं.इतिहास की काल्पनिकता का बेहतरीन उदहारण ‘बाहुबली ’ है. हाल ही में करण जौहर ने ‘तख़्त ’ के बारे में संकेत दिया कि यह एक तरह से ‘कभी ख़ुशी कभी ग़म ’ का ही ऐतिहासिक परिवेश में रूपांतरण होगा.फिल

फिल्म समीक्षा : बत्ती गुल मीटर चालू

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फिल्म समीक्षा बत्ती गुल मीटर चालू -अजय ब्रह्मात्मज श्रीनारायण सिंह की पिछली फिल्म ‘टॉयलेट एक प्रेमकथा' टॉयलेट की ज़रुरत पर बनी प्रेरक फिल्म थी.लोकप्रिय स्टार अक्षय कुमार की मौजूदगी ने फिल्म के दर्शक बढ़ा दिए थे.पीछ फिल्म की सफलता ने श्रीनारायण सिंह को फिर से एक बार ज़रूरी मुद्दा उठाने के लिए प्रोत्साहित किया.इस बार उन्होंने अपने लेखको सिद्धार्थ-गरिमा के साथ मिल कर बिजली के बेहिसाब ऊंचे बिल को विषय बनाया.और पृष्ठभूमि और परिवेश के लिए उत्तराखंड का टिहरी गढ़वाल शहर चुना. फिल्म शुरू होती है टिहरी शहर के तीन मनचले(एसके,नॉटी और सुंदर ) जवानों के साथ.तीनो मौज-मस्ती के साथ जीते है. एसके(शाहिद कपूर) चालाक और स्मार्ट है.और पेशे से वकील है.नॉटी(श्रद्धा कपूर) शहर की ड्रेस डिज़ाइनर है.वह खुद को मनीष मल्होत्रा से कम नहीं समझती.छोटे शहरों की हिंदी फिल्मों में सिलाई-कटाई से जुड़ी नौजवान प्र्र्धि में मनीष मल्होत्रा बहुत पोपुलर हैं.भला हो हिंदी अख़बारों का. आशंकित हूँ की कहीं ‘सुई धागा' में वरुण धवन भी खुद को मनीष मल्होत्रा न समझते हों.खैर,तीसरा सुंदर(दिव्येन्दु शर्मा) अपना व्यवसाय ज़माने की

फिल्म समीक्षा : मंटो

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फिल्म समीक्षा मंटो -अजय ब्रह्मात्मज नंदिता दास की ‘मंटो' 1936-37 के आसपास मुंबई में शुरू होती है. अपने बाप द्वारा सेठों के मनोरंजन के लिए उनके हवाले की गयी बेटी चौपाटी जाते समय गाड़ी में देविका रानी और अशोक कुमार की ‘अछूत कन्या' का मशहूर गीत ‘मैं बन की चिड़िया’ गुनगुना रही है.यह फिल्म का आरंभिक दृश्यबंध है. ‘अछूत कन्या' 1936 में रिलीज हुई थी. 1937 में सआदत हसन मंटो की पहली फिल्म ‘किसान कन्या’ रिलीज हुई थी. मंटो अगले 10 सालों तक मुंबई के दिनों में साहित्यिक रचनाओं के साथ फिल्मों में लेखन करते रहे. उस जमाने के पोपुलर स्टार अशोक कुमार और श्याम उनके खास दोस्त थे. अपने बेबाक नजरिए और लेखन से खास पहचान बना चुके मंटो ने आसान जिंदगी नहीं चुनी. जिंदगी की कड़वी सच्चाइयां उन्हें कड़वाहट से भर देती थीं. वे उन कड़वाहटों को अपने अफसानों में परोस देते थे.इसके लिए उनकी लानत-मलामत की जाती थी. कुछ मुक़दमे भी हुए. नंदिता दास ने ‘मंटो’ में उनकी जिंदगी की कुछ घटनाओं और कहानियों को मिलाकर एक मोनोग्राफ प्रस्तुत किया है. इस मोनोग्राफ में मंटो की जिंदगी और राइटिंग की झलक मात्र है. इस फिल

विशाल भारद्वाज की पटाखा

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विशाल भारद्वाज की पटाखा - अजय ब्रह्मात्मज पहले दीपिका पादुकोण की पीठ की परेशानी और फिर इरफ़ान खान के कैंसर की वजह से विशाल भारद्वाज को अगली फिल्म की योजना टालनी पड़ी.वे दुसरे कलाकारों के साथ उस फिल्म को नहीं बनाना कहते हैं.अभी के दौर में यह एक बड़ी घटना है , क्योंकि अभी हर तरफ ‘ तू नहीं और सही , और नहीं कोई और सही ’ का नियम चल रहा है.विशाल ने उसके साथ ही ‘ छूरियां ' के बारे में भी सोच रखा था.चरण सिंह पथिक की कहने ‘ दो बहनें ' पर आधारित इस फिल्म की योजना लम्बे समय से बन रही थी.संयोग ऐसा बना कि ‘ छूरियां ’ ही बैक बर्नर से  ‘ पटाखा ' बन कर सामने आ गयी. विशाल भारद्वाज ‘ पटाखा ' के साथ फिर से ‘ मकड़ी ' और ‘ मकबूल ' के दौर की सोच और संवेदना में लौटे हैं.सीमित बजट में समर्थ कलाकारों को लेकर मनमाफिक फिल्म बनाओ और सृजन का आनद लो. ‘ पटाखा ' में राधिका मदान , सान्या मल्होत्रा और सुनील ग्रोवर मुख्य भूमिकाओं में हैं.तीनों फिल्मों के लिहाज से कोई मशहूर नाम नहीं हैं.सुनील ग्रोवर कॉमेडी शो में विभिन्न किरदारों के रूप में आकर दर्शकों को हंसाते रहे हैं.खुद उन