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संडे नवजीवन : फिक्र उनको भी है ज़माने की,बातें हैं कुछ बताने की

संडे नवजीवन फिक्र उनको भी है ज़माने की,बातें हैं कुछ बताने की     -अजय ब्रह्मात्मज भाग रहा है तू जैसे वक्त से आगे निकल जाएगा तू थम जा, ठहर जा मेरी परवाह किए बिना खुशियां खरीदने में लगा है तू याद रख लकीरे तेरे हाथों में है पर मुझ से जुड़ा एक धागा भी है कुदरत हूं मैं ग़र लड़खडाई तो यह धागा भी टूट जाएगा हवा पानी मिट्टी के बिना तू कैसे जिंदा रह पाएगा तो तू थम जा, ठहर जा. इन पंक्तियों में कृति सैनन प्रकृति का मानवीकरण कर सभी के साथ खुद को भी सचेत कर रही है. लॉकडाउन(पूर्णबंदी) के इस दौर में अपनी मां और छोटी बहन नूपुर के साथ वह घरेलू कामों से फुर्सत मिलने पर या यूं कहे कि स्वयं को अभिव्यक्त करने की इच्छा से प्रेरित होकर कवितानुमा पंक्तियां लिख रही हैं. कृति की बहन नूपुर भी कविताएं कर रही हैं. और भी फिल्म कलाकार लिख रहे होंगे. उनकी ये पंक्तियां भले ही ‘कविता के प्रतिमान’ पर खरी ना उतरे, लेकिन इन पंक्तियों के भाव को समझना जरूरी है. पूर्णबंदी हम सभी को आत्ममंथन, विश्लेषण और आपाधापी की जिंदगी का मूल्यांकन करने का मौका दे रही है. हमारी दबी प्रतिभाएं प्रस्फूटित हो रही ह

सिनेमालोक : एक थीं रेणुका देवी

सिनेमालोक एक थीं रेणुका देवी -अजय ब्रह्मात्मज   अलीगढ़ के पापा मियां(शेख अब्दुल्ला) की बेटी खुर्शीद की तमन्ना थी कि वह फिल्मों में काम करें. संयोग कुछ ऐसा बना कि उनकी तमन्ना पूरी हो गई, दरअसल, हुआ यूं कि दसवीं की पढ़ाई के बाद जब खुर्शीद ने आगे पढ़ने से इंकार कर दिया तो तालीम के पैरोकार पापा मियां को बहुत कोफ़्त हुई. उन्होंने खुर्शीद की पढ़ाई में कोई रुचि नहीं देखी तो फिर जल्दी में शादी कर दी. खुर्शीद के शौहर अकबर मिर्जा यूपी में पुलिस की नौकरी में थे. इस बीच खुर्शीद के बड़े भाई मोहसिन बॉम्बे टॉकीज में हिमांशु राय के साथ काम कर रहे थे. उन्होंने बहन से हिमांशु राय और उनकी अभिनेत्री पत्नी देविका रानी की तारीफ की. खुर्शीद ने हिम्मत कर उन्हें अपनी ख्वाहिश लिखी और साथ में तस्वीर भी डाल दी. कुछ दिनों में जवाब आ गया, लेकिन खत शौहर के हाथ लगा. खुर्शीद ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उनके शौहर उनके ख़त खोल लिया करते थे. हिमांशु राय के यहां से आई चिट्ठी भी उन्होंने खोलकर पढ़ ली थी. उन्होंने बीवी से पूछा, तुमने हिमांशु राय को चिट्ठी लिखी थी? इस सवाल में उलाहना नहीं थी. खुर्शीद ने हाँ कहा और

सिनेमालोक : फिल्म प्रभाग का खज़ाना

सिनेमालोक फिल्म प्रभाग का  खज़ाना -अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों कुछ नया देखने की कोशिश में ‘फिल्म प्रभाग’ के साइट पर जाने का मौका मिला. हिंदी नाम से अधिक पाठक वाकिफ नहीं होंगे. हम सभी इसे ’फिल्म्स डिवीज़न’ के नाम से ज्यादा जानते हैं. किसी जमाने में यह अत्यंत सक्रिय संस्था थी. अब यह हर दूसरे साल शार्ट और डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का फेस्टिवल करती है. इसके अलावा इसके प्रांगण में ‘भारतीय फिल्मों का राष्ट्रीय संग्रहालय’ भी मौजूद है, जिसका उद्घाटन पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था. इस साइट के मुताबिक... ‘भारत के फिल्म्स डिवीजन की स्थापना 1948 में एक नए स्वतंत्र राष्ट्र की ऊर्जा को स्पष्ट रूप से क्रियाशील करने के लिए की गई थी. छह दशकों से अधिक समय से संगठन ने फिल्म पर देश की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक कल्पना और वास्तविकताओं का रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए अथक प्रयास किया है. इसने भारत में फिल्म निर्माण की संस्कृति को प्रोत्साहित करने, बढ़ावा देने में सक्रिय रूप से काम किया है जो व्यक्तिगत दृष्टि और सामाजिक प्रतिबद्धता का सम्मान करता है.’ .देश के आम नागरिक और फिल्म निर्मा

पैरासाइट : क्या ऑस्कर विजेता’ होना किसी फ़िल्म के सर्वश्रेष्ठ होने की सबसे बड़ी सनद है?

क्या ऑस्कर विजेता’ होना किसी फ़िल्म के सर्वश्रेष्ठ होने की सबसे बड़ी सनद है? प्रतिमा सिन्हा इतिहास के बनने का क्षण निश्चित होता है, जिस क्षण से पहले हम सब अनजान होते हैं, लेकिन उस क्षण के बीत जाने के बाद हम सिर्फ और सिर्फ चमत्कृत होते हैं. देर तक एक सम्मोहन में बंधे हुए रहते हैं. ऐसे ही एक सम्मोहन को मैंने भी छूकर देखने और महसूसने की कोशिश की. फिर मैंने उस नवनिर्मित इतिहास को कैसे देखा, समझा और ख़ुद उस विषय पर क्या सोचा, आज यही बात   आपसे साझा करना चाहती हूँ. हम अक्सर पश्चिम की मोहर लगने के बाद किसी भी चीज़ की महत्ता और मूल्य को ज़्यादा समझने लगते हैं. ऐसी ही मोहर से प्रामाणिक रूप में सर्वश्रेष्ठ बन गयी फ़िल्म ‘पैरासाइट’ इन दिनों चर्चा में है. निर्देशक बोंग जून हो निर्देशित ‘पैरासाइट’ पहली ऐसी एशियन फिल्म बन गई है, जिसे ऑस्कर अवार्ड से नवाजा गया है. कोरियाई भाषा की इस फिल्म को ऑस्कर 2020 की छह अलग-अलग श्रेणियों में नामांकित किया गया था, जिनमें से चार श्रेणियों का पुरस्कार ‘पैरासाइट’ ने अपने नाम कर लिया है. ‘सर्वश्रेष्ठ फिल्म’, ‘सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय फीचर फिल्म’, ‘ सर

सिनेमालोक : वैचारिक और रोचक ‘चाणक्य’

सिनेमालोक वैचारिक और रोचक ‘चाणक्य’ -अजय ब्रह्मात्मज   पिछले दिनों दूरदर्शन ने ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ के साथ अनेक पुराने धारावाहिकों का प्रसारण आरंभ किया. ये धारावाहिक नौवें दशक के उत्तरार्ध और पिछली सदी के अंतिम दशक में दूरदर्शन से पहली बार प्रसारित हुए थे. इनमें ही ‘चाणक्य’ का भी प्रसारण आरंभ हुआ है. ‘चाणक्य’ के लेखक, निर्देशक और अभिनेता डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी हैं. प्रसारण के समय यह धारावाहिक अत्यंत चर्चित और फिर विवादित भी हुआ था. विवाद बढ़ा और ऐसा बढ़ा कि इसे जल्दी से जल्दी समेटना पड़ा. 47 एपिसोड ही आ पाए. इस धारावाहिक को देख चुके और देख रहे दर्शक महसूस करेंगे कि कहानी अचानक समाप्त हो जाती है. यूं लगता है कि लेखक अपनी पूरी बात नहीं कर पाया. बहरहाल, डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी मूलतः राजस्थान के सिरोही के निवासी हैं. उनके पिता संस्कृत के अध्यापक थे. अनेक भाई-बहनों के साथ डॉ. द्विवेदी का परिवार मुंबई में रहता था. निम्न मध्यवर्गीय परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन अध्यापक पिता ने सभी बच्चों की पढ़ाई पर पूरा ध्यान दिया. डॉ. द्विवेदी की रुचि विज्ञान के साथ-साथ संस्

सिनेमालोक : हर तरह की फ़िल्में लिखने में सिद्धहस्त जावेद सिद्दीकी

सिनेमालोक हर तरह की फ़िल्में लिखने में सिद्धहस्त जावेद सिद्दीकी -अजय ब्रह्मात्मज कोरोना वायरस के प्रकोप की वजह से 14 मार्च को निश्चित फिल्मों का एक पुरस्कार समारोह मुंबई में नहीं हो सका. इस बार 8 भाषाओं में पांच (फिल्म, निर्देशक, अभिनेता, अभिनेत्री और लेखक) श्रेणियों के साथ फिल्मों में असाधारण योगदान के लिए भी प्रतिभाओं को सम्मानित करना था. समारोह नहीं हो पाने की स्थिति में इन पुरस्कारों से अधिकांश दर्शक और फिल्मप्रेमी वाकिफ नहीं हो सके. संक्षेप में फिल्म समीक्षकों की राष्ट्रीय संस्था फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड हर साल शॉर्ट फिल्म और फीचर फिल्मों के लिए पुरस्कार देती है. 2019 के लिए दूसरे साल में 8 भाषाओं की श्रेष्ठ फिल्म और प्रतिभाओं पर विचार किया गया. अगले साल भाषाओं की संख्या बढ़ सकती है. कोशिश है कि यह अखिल भारतीय पुरस्कार के तौर पर स्वीकृत हो. बहरहाल, फिल्मों में असाधारण योगदान के लिए इस साल लेखक जावेद सिद्दीकी के नाम पर सभी समीक्षक एकमत हुए थे. जावेद सिद्दीकी ने अभी तक 80 से अधिक फिल्में लिखी हैं, लेकिन उनके प्रचार प्रिय नहीं होने की वजह से फिल्मों के दर्शक उनके बारे में वि

सिनेमालोक : फिल्म ‘मंडी’ का मजार

सिनेमालोक फिल्म ‘मंडी’ का मजार -अजय ब्रह्मात्मज श्याम बेनेगल की फिल्म ‘मंडी’ में शबाना आज़मी और उनकी मंडली को शहर से निकलकर वीराने में अपना कोठा बनाना पड़ा था. कोठा बनने के बाद शहर के लोगों को ही आने-जाने लगते हैं और वह इलाका गुलज़ार हो जाता है. फिल्म देखी हो तो आपको याद होगा कि ‘मंडी’ में एक मजार भी था. बाबा खड़ग शाह का मजार. उस मजार का एक दिलचस्प किस्सा है. सालों पहले एक इंटरव्यू में श्याम बेनेगल ने यह किस्सा खुद सुनाया था. हुआ यों कि ‘मंडी’ का सेट जिस स्थान पर लगाया गया था, वह वास्तव में पाकिस्तान चले गए एक मुसलमान परिवार की खाली जमीन थी. वह खाली जमीन मुसलमान परिवार के जाने के बाद स्थानीय रेड्डी परिवार के कब्जे में थी. उन्होंने ने ही श्याम बेनेगल को वह ज़मीं फिल्म का सेट लगाने के लिए दी थी. सेट लगना शुरू हुआ तो श्याम बेनेगल और उनके कला निर्देशक नीतीश राय ने कोने की एक ढूह को मजार का रूप दे दिया. फिल्म के हिसाब से बने सेट के लिए वह मजार माकूल था. कुछ जोड़ ही रहा था. ‘मंडी’ का यह मजार मलाली पहाड़ी तलहटी के पास की जमीन पर बना था. मलाली पहाड़ी बहुत ही पवित्र मानी जाती है, क्यों

सिनेमालोक : मनाएं फॅमिली फिल्म फेस्टिवल

सिनेमालोक मनाएं फॅमिली  फिल्म फेस्टिवल -अजय ब्रह्मात्मज अनेक राज्यों में सिनेमाघर बंद कर दिए गए हैं. कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए केंद्र सरकार की पहल पर राज्य सरकारों ने एहतियातन यह कदम उठाया है. कोशिश है कि भीड़ इकट्ठी ना हो और लोग एक=दूसरे के संपर्क में ना आएं. इसी के तहत सिनेमाघरों को बंद रखने के आदेश दिए गए हैं. आम नागरिकों(दर्शकों) की सेहत के मद्देनजर सरकारों के इस जरूरी कदम का स्वागत होना चाहिए. फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखने के शौकीन दर्शकों के लिए यह मुश्किल घड़ी है. हम सभी जानते हैं कि फिल्में देश में मनोरंजन का सबसे सस्ता साधन हैं और सिनेमाघर इन फिल्मों के प्रदर्शन का माध्यम हैं. सिनेमाघरों के बंद होने से फिलहाल थिएटर में जाकर फिल्म देखना मुमकिन नहीं   होगा. सचमुच इस वक्त दर्शकों को मनोरंजन का विकल्प खोजना होगा. कामकाज ठप है. बाहर निकलना बंद है. ऐसे में घर में बैठे-बैठे और भी बोरियत होगी. अभी तो पहला हफ्ता ही है. हालांकि अभी तक यह आदेश 31 मार्च तक ही है, लेकिन कोरोलाग्रस्त मरीजों की बढ़ती संख्या देखते हुए कहा जा सकता है कि अप्रैल महीने में भी सिनेमाघर बंद रह सकते

सिनेमालोक : चांटा या पुचकार ?

सिनेमालोक चांटा या पुचकार ? -अजय ब्रह्मात्मज इन दिनों ‘थप्पड़’ के कलेक्शन को लेकर बहस चल रही है. एक ट्रेड पत्रिका ने लिखा कि दर्शकों ने ‘थप्पड़’ को मारा चांटा. उनका आशय था कि ‘थप्पड़’ पसंद नहीं की गई है. फिल्म का कलेक्शन उत्साहवर्धक नहीं है. उन्होंने इसी कड़ी में ‘पंगा’ और ‘छपाक’ फिल्मों के नाम भी जोड़ दिए थे. थोड़ा और पीछे चलें और बॉक्स ऑफिस की खबरें याद करें तो ‘सांड की आंख’ के लिए भी ऐसा ही कुछ नकारात्मक लिखा और कहा गया था. फिल्म इंडस्ट्री के कुछ निर्माताओं और उनके इशारों को चल रहे ट्रेड पंडितों को यह बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है कि महिला केंद्रित फिल्में आकर तारीख पा रही हैं. उनका कलेक्शन भी संतोषजनक हो रहा है. फिल्मों की सफलता-असफलता मापने के कई तरीके हैं. लागत और लाभ के सही आकलन के लिए जरूरी है कि दोनों के बीच का अनुपात निकाला जाए. अधिकांश ट्रेड खबरों में यह बताया जाता है कि फलां फिल्म ने कितने करोड़ का कलेक्शन किया, लेकिन उनकी लागत नहीं बताई जाती. दहाई करोड़ और सैकड़ों करोड़ का फर्क आम दर्शक नहीं समझ पाता. जाहिर सी बात है कि 12 करोड़ और 130 करोड़ के आंकड़े सामने हों तो 1

सिनेमालोक : फनीश्वरनाथ रेणु और 'तीसरी कसम'

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सिनेमालोक फनीश्वरनाथ रेणु और 'तीसरी कसम' -अजय ब्रह्मात्मज कल 4 मार्च को फनीश्वरनाथ रेणु का जन्मदिन है. यह साल उनकी जन्मशती का साल भी है. जाहिर सी बात है कि देशभर में उन्हें केंद्र में रखकर गोष्ठियां होंगी. विमर्श होंगे. नई व्याख्यायें भी हो सकती हैं. कोई और वक्त होता तो शायद बिहार में उनकी जन्मशती पर विशेष कार्यक्रमों का आयोजन होता. उन्हें याद किया जाता है. उनकी प्रासंगिकता को रेखांकित किया जाता. फिलहाल सरकार और संस्थाओं को इतनी फुर्सत नहीं है. उनकी मंशा भी नहीं रहती कि साहित्य और साहित्यकारों पर केंद्रित आयोजन और अभियान चलाए जाएं. साहित्य स्वभाव से ही जनपक्षधर रोता है. साहित्य विमर्श में वर्तमान राजनीति में पचलित जनविरोधी गतिविधियां उजागर होने लगती हैं, इसलिए खामोशी ही बेहतर है. हालांकि अभी देश भर में लिटररी फेस्टिवल चल रहे हैं, लेकिन आप गौर करेंगे कि इन आयोजनों में आयोजकों और प्रकाशकों की मिलीभगत से केवल ताजा प्रकाशित किताबों और लेखकों की चर्चा होती है. फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म पूर्णिया जिले के औराही हिंगना गांव में 4 मार्च 1921 को हुआ था. स्कूल के दिनों से ही जा