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शूजित सरकार की नायिकाएं : उर्मिला गुप्ता

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शूजित सरकार की नायिकाएं (उर्मिला गुप्ता) ओटीटी प्लेटफार्म पर “गुलाबो-सिताबो” की रिलीज ने सबको एक साथ समीक्षक बना दिया. सभी ने पहले ही दिन फिल्म देख भी ली, और चटपट इतनी सारी समीक्षाएं भी लिख डालीं. कहना न होगा कि काफी ‘समीक्षाएं’ स्पोइलर हैं, और एक ही झटके में पूरी कहानी खोलकर रख देती हैं. वैसे “गुलाबो-सिताबो” फिल्म समीक्षा के मामले में एक नया ही रिकॉर्ड बना ले, तो कोई बड़ी बात नहीं होगी. मैं यहाँ गुलाबो-सिताबो की समीक्षा नहीं करुँगी. शूजित ऐसे निर्देशक हैं, जिनका  अपना एक अलग दर्शक वर्ग है. वो उनकी फिल्म किसी समीक्षा की वजह से नहीं देखता, तो जो शूजित का काम पसंद करते हैं, वो उनकी फिल्म जरूर देखेंगे, भले ही वो किसी भी प्लेटफार्म पर रिलीज हो. इस फिल्म ने मेरा ध्यान विशेष रूप से शूजित के महिला किरदारों की तरफ आकर्षित किया. फिर “पीकू” और “पिंक” को याद करके सोचा कि शूजित की तो फिल्मों में अक्सर महिला किरदार मुखर होते ही हैं. पर फिर भी कुछ तो बात थी, उन किरदारों में जिसने मुझे उनके बारे में और जानने के लिए प्रेरित किया. शूजित सरकार का जन्म बैरकपुर, कोलकाता में हुआ था. बंगाली हिन्दू परिवार म

सिनेमालोक : परतदार और समकालीन दस्तावेज है ‘चोक्ड:पैसा बोलता है’

सिनेमालोक परतदार और समकालीन दस्तावेज है ‘चोक्ड:पैसा बोलता है’ -अजय ब्रह्मात्मज पिछले हफ्ते अनुराग कश्यप की फिल्म ‘चोक्ड:पैसा बोलता है’ ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज हुई. फिलहाल निर्माता-निर्देशकों ने फिल्मों के रिलीज के लिए ओटीटी का रास्ता चुन लिया है. इस तथ्य से मल्टीप्लेक्स मालिक नाराज हैं. उनकी नाराजगी एक तरफ... समस्या यह है कि ‘कोरोना काल’ में पूर्णबंदी और उसके बाद की बरती जा रही सावधानियों का ख्याल रखते हुए फिल्मों की आउटडोर गतिविधियां ठप हो गई हैं. ऐसी स्थिति में तैयार फिल्मों को लंबे समय तक रिलीज से रोकना मुमकिन नहीं है. विकल्प की तलाश थी. इसी वजह से चोक्ड:पैसा बोलता है’ के बाद इस हफ्ते शूजीत सरकार की ‘गुलाबो सिताबो’ रिलीज की कतार में है. परंपरा के मुताबिक ओटीटी प्लेटफार्म पर भी फिल्में शुक्रवार को ही रिलीज की जा रही है. अनुराग कश्यप की ‘चोक्ड:पैसा बोलता है’ परतदार फिल्म है. यह फिल्म एक साथ कई स्तरों पर चलती है. कुछ का विस्तार करती है तो कुछ का केवल संकेत देती है. यह दंपति की कहानी है, जिनका एक 8 साल का बेटा है. पत्नी बैंक में काम करती है और पति फिर से काम की तलाश में है.

संडे नवजीवन : ओटीटी प्लेटफार्म की स्वछंदता पर आपत्ति

संडे नवजीवन ओटीटी प्लेटफार्म की स्वछंदता पर आपत्ति -अजय ब्रह्मात्मज लॉकडाउन में मनोरंजन के प्लेटफार्म के तौर पर ओटीटी का चलन बढ़ा है. पिछले कुछ सालों से भारत में सक्रिय विदेशी ओटीटी प्लेटफार्म ओरिजिनल सीरीज लाकर भारतीय हिंदी दर्शकों के बीच बैठ बनाने की कोशिश कर रहे थे. उन्हें बड़ी कामयाबी अनुराग कश्यप विक्रमादित्य मोटवानी के निर्देशन में आई ‘सेक्रेड गेम्स’ से मिली. विक्रम चंद्रा के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित इस वेब सीरीज का लेखन वरुण ग्रोवर और उनकी टीम ने किया था. दर्शक मिले और टिके रहे. इस वेब सीरीज के प्रसारण के समय से ही यह सवाल सुगबुगाने लगा था कि ओटीटी प्लेटफॉर्म को स्वच्छंद छोड़ना ठीक है क्या? सामाजिक,नैतिक और राष्ट्रवादी पहरुए तैनात हो गए थे. इस वेब सीरीज में प्रदर्शित हिंसा, सेक्स और गाली-गलौज पर उन्हें आपत्ति थी. उनकी राय में वेब सीरीज पर अंकुश लगाना जरूरी है. प्रकारांतर से वे ओटीटी प्लेटफॉर्म को सेंसर के दायरे में लाना चाह रहे थे. इस मांग और चौकशी की पृष्ठभूमि को समझना जरूरी है. वह ओटीटी के प्रसारण ‘सेक्रेड गेम्स’ के पहले से दर्शकों के बीच पहुंच रहे थे. इनके अलाव

सिनेमालोक : इंडस्ट्री में आई ख़ुशी की लहर

सिनेमालोक इंडस्ट्री में आई ख़ुशी की लहर -अजय ब्रह्मात्मज ढाई महीने तो हो ही गए. 19 मार्च से फिल्म संबंधी सारी गतिविधियां थप हैं. लाइट कैमरा एक्शन की आवाज नहीं सुनाई पड़ी. सब कुछ पॉज पर है. पिछले एक पखवाड़े से फिल्म इंडस्ट्री की संस्थाएं मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से शूटिंग की अनुमति की अपील कर रही हैं. कुछ मुलाकातों और वीडियो चैट के बाद आखिरकार राज्य सरकार ने शूटिंग के लिए सहमति जाहिर की है. साथ ही 16 पृष्ठों का दिशानिर्देश भी जारी किया है. शूटिंग के लिए तैयार यूनिटों को इसका पालन करना पड़ेगा. सबसे पहले तो इलाके के जिलाधिकारी से शूटिंग की अनुमति लेनी होगी. उसके बाद दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन करना होगा. किसी प्रकार की कोताही कलाकारों और तकनीशियनों के लिए भारी मुसीबत खड़ी कर देगी. निश्चित ही दिशानिर्देशों के पालन में हर फिल्म यूनिट का खर्च बढेगा. ऐसे में बड़े प्रोडक्शन हाउस अपनी निर्माणाधीन फिल्मों की बची-खुची शूटिंग पूरी कर लेंगे और जल्दी से जल्दी पोस्ट प्रोडक्शन पूरा कर रिलीज की तैयारी करेंगे. छोटे और मझोले निर्माताओं की आर्थिक दिक्कतें बड़ी हो गई हैं. ऐसा लग रहा है कि जल्द

सिनेमालोक : फिल्मकारों की बढ़ी चुनौतियाँ

सिनेमालोक फिल्मकारों की बढ़ी चुनौतियाँ -अजय ब्रह्मात्मज अगले महीने से विधिवत फिल्में ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आनी शुरू हो जाएगी. 5 जून को अनुराग कश्यप निर्देशित ‘चोक्ड-पैसा बोलता है’ आएगी और उसके बाद 12 जून को शूजीत सरकार निर्देशित ‘गुलाबो सिताबो’ दिखेगी. इन दोनों फिल्मों के बाद अनु मेनन निर्देशित ‘शकुंतला देवी’ का नंबर है. स्पष्ट संकेत है कि फिल्म निर्माता नई फिल्मों के लिए ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आने में हिचकना बंद कर रहे हैं. अभी तक फिल्में पहले सिनेमाघरों में रिलीज होती थीं. उसके बाद टीवी, सेटेलाइट और दूसरे प्रसारण और वितरण के लिए उनके अधिकार बेचे जाते थे. बड़ी फिल्मों को हमेशा से मुंहमांगी राशि मिलती रही है. बाकी छोटी और मझोली फिल्मों का भाव उनके बॉक्स ऑफिस परफॉर्मेंस के हिसाब से तय किया जाता था. इस प्रक्रिया में कई बार दर्शकों के बीच स्वीकृत और प्रशंसित छोटी फिल्मों को अच्छी कीमत मिल जाती थी और कभी-कभी बड़ी फिल्मों को भारी नुकसान उठाना पड़ता था. ओटीटी प्लेटफॉर्म के चलन में आने के बाद बिजनेस के तौर-तरीके बदलेंगे. ‘न्यू नार्मल’ में फिल्मों के मूल्य तय करने का पैमाना बॉक्स ऑफिस नही

सिनेमालोक : संभावना और आशंका दोनों सच हो गईं

सिनेमालोक  संभावना और आशंका दोनों सच हो गईं (कोरोना काल में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री) -अजय ब्रह्मात्मज संभावना और आशंका दोनों सच हो गयीं.. लॉकडाउन की सरकारी घोषणा से पहले ही देश के सिनेमाघर बंद होने लगे थे. सबसे पहले केरल, उसके बाद जम्मू और फिर दिल्ली के सिनेमाघरों के बंद होने के बाद तय हो गया था कि पूरे देश के सिनेमाघर देर-सवेर बंद होंगे. सिनेमाघर दर्शकों और फिल्मों के बीच का वह प्लेटफार्म है, जहां दोनों मिलते हैं. दर्शकों का मनोरंजन होता है. मल्टीप्लेक्स और फिल्म निर्माता मुनाफा कमाते हैं. मल्टीप्लेक्स का पूरा कारोबार सिर्फ और सिर्फ मुनाफे पर टिका होता है. मल्टीप्लेक्स के मालिक कस्बों और शहरों के पुराने सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर चित्रा, मिलन, एंपायर आदि जैसे सिनेमाघरों के मालिक नहीं हैं. याद करें तो बीसवीं सदी के सिनेमाघरों के मालिकों के लिए फिल्म का प्रदर्शन कारोबार के साथ-साथ उनका पैशन भी हुआ करता था. फ़िल्में देखने-दिखने में उनकी व्यक्तिगत रूचि होती थी. 21 वीं सदी में सब कुछ बदल चुका है. 20 सालों के विस्तार और विकास के बाद ‘कोरोना काल’ में मल्टीप्लेक्स के मुनाफे का मार्ग ऐसा

सिनेमालोक : मल्टीप्लेक्स की गुहार और धौंस

सिनेमालोक मल्टीप्लेक्स की गुहार और धौंस -अजय ब्रह्मात्मज कोविड- 19 का सबसे पहला असर सिनेमाघरों पर दिखा था. केरल और जम्मू के सिनेमाघरों के बंद होने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी सिनेमाघरों को बंद करने के आदेश दे दिए थे. उसके बाद तो एक-एक कर सभी राज्यों ने सिनेमाघर बंद किए और फिर पूर्णबंदी की घोषणा हो गई. सिनेमाघर बंद हैं और नई फिल्में रिलीज नहीं हो सकतीं. इस बार ईद का मुबारक मौका भी फिल्म इंडस्ट्री को नहीं मिल पाएगा. सलमान खान और अक्षय कुमार की फिल्में ईद पर आने के लिए जूझ रही थीं. पूर्णबंदी के हालात में इन फिल्मों की रिलीज के कोई आसार नहीं हैं. फिल्म इंडस्ट्री में घबराहट फैल रही है. पिछले कुछ समय से सुगबुगाहट जारी है. रिलीज के लिए तैयार फिल्मों के निर्माता ओटीटी प्लेटफॉर्म के अधिकारियों से बातें कर रहे हैं. कुछ फिल्मों के प्रसारण की समझदारी अंतिम चरण में है. इसकी भनक लगते ही मल्टीप्लेक्स के मालिक सक्रीय और सचेत हो गए हैं. उन्होंने संयुक्त विज्ञप्ति जारी की है. पहले तो वे गुहार कर रहे थे. फिल्म निर्माताओं से उनका आग्रह था कि वे धैर्य से काम लें और इंतजार

संडे नवजीवन : फिक्र उनको भी है ज़माने की,बातें हैं कुछ बताने की

संडे नवजीवन फिक्र उनको भी है ज़माने की,बातें हैं कुछ बताने की     -अजय ब्रह्मात्मज भाग रहा है तू जैसे वक्त से आगे निकल जाएगा तू थम जा, ठहर जा मेरी परवाह किए बिना खुशियां खरीदने में लगा है तू याद रख लकीरे तेरे हाथों में है पर मुझ से जुड़ा एक धागा भी है कुदरत हूं मैं ग़र लड़खडाई तो यह धागा भी टूट जाएगा हवा पानी मिट्टी के बिना तू कैसे जिंदा रह पाएगा तो तू थम जा, ठहर जा. इन पंक्तियों में कृति सैनन प्रकृति का मानवीकरण कर सभी के साथ खुद को भी सचेत कर रही है. लॉकडाउन(पूर्णबंदी) के इस दौर में अपनी मां और छोटी बहन नूपुर के साथ वह घरेलू कामों से फुर्सत मिलने पर या यूं कहे कि स्वयं को अभिव्यक्त करने की इच्छा से प्रेरित होकर कवितानुमा पंक्तियां लिख रही हैं. कृति की बहन नूपुर भी कविताएं कर रही हैं. और भी फिल्म कलाकार लिख रहे होंगे. उनकी ये पंक्तियां भले ही ‘कविता के प्रतिमान’ पर खरी ना उतरे, लेकिन इन पंक्तियों के भाव को समझना जरूरी है. पूर्णबंदी हम सभी को आत्ममंथन, विश्लेषण और आपाधापी की जिंदगी का मूल्यांकन करने का मौका दे रही है. हमारी दबी प्रतिभाएं प्रस्फूटित हो रही ह

सिनेमालोक : एक थीं रेणुका देवी

सिनेमालोक एक थीं रेणुका देवी -अजय ब्रह्मात्मज   अलीगढ़ के पापा मियां(शेख अब्दुल्ला) की बेटी खुर्शीद की तमन्ना थी कि वह फिल्मों में काम करें. संयोग कुछ ऐसा बना कि उनकी तमन्ना पूरी हो गई, दरअसल, हुआ यूं कि दसवीं की पढ़ाई के बाद जब खुर्शीद ने आगे पढ़ने से इंकार कर दिया तो तालीम के पैरोकार पापा मियां को बहुत कोफ़्त हुई. उन्होंने खुर्शीद की पढ़ाई में कोई रुचि नहीं देखी तो फिर जल्दी में शादी कर दी. खुर्शीद के शौहर अकबर मिर्जा यूपी में पुलिस की नौकरी में थे. इस बीच खुर्शीद के बड़े भाई मोहसिन बॉम्बे टॉकीज में हिमांशु राय के साथ काम कर रहे थे. उन्होंने बहन से हिमांशु राय और उनकी अभिनेत्री पत्नी देविका रानी की तारीफ की. खुर्शीद ने हिम्मत कर उन्हें अपनी ख्वाहिश लिखी और साथ में तस्वीर भी डाल दी. कुछ दिनों में जवाब आ गया, लेकिन खत शौहर के हाथ लगा. खुर्शीद ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उनके शौहर उनके ख़त खोल लिया करते थे. हिमांशु राय के यहां से आई चिट्ठी भी उन्होंने खोलकर पढ़ ली थी. उन्होंने बीवी से पूछा, तुमने हिमांशु राय को चिट्ठी लिखी थी? इस सवाल में उलाहना नहीं थी. खुर्शीद ने हाँ कहा और

सिनेमालोक : फिल्म प्रभाग का खज़ाना

सिनेमालोक फिल्म प्रभाग का  खज़ाना -अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों कुछ नया देखने की कोशिश में ‘फिल्म प्रभाग’ के साइट पर जाने का मौका मिला. हिंदी नाम से अधिक पाठक वाकिफ नहीं होंगे. हम सभी इसे ’फिल्म्स डिवीज़न’ के नाम से ज्यादा जानते हैं. किसी जमाने में यह अत्यंत सक्रिय संस्था थी. अब यह हर दूसरे साल शार्ट और डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का फेस्टिवल करती है. इसके अलावा इसके प्रांगण में ‘भारतीय फिल्मों का राष्ट्रीय संग्रहालय’ भी मौजूद है, जिसका उद्घाटन पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था. इस साइट के मुताबिक... ‘भारत के फिल्म्स डिवीजन की स्थापना 1948 में एक नए स्वतंत्र राष्ट्र की ऊर्जा को स्पष्ट रूप से क्रियाशील करने के लिए की गई थी. छह दशकों से अधिक समय से संगठन ने फिल्म पर देश की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक कल्पना और वास्तविकताओं का रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए अथक प्रयास किया है. इसने भारत में फिल्म निर्माण की संस्कृति को प्रोत्साहित करने, बढ़ावा देने में सक्रिय रूप से काम किया है जो व्यक्तिगत दृष्टि और सामाजिक प्रतिबद्धता का सम्मान करता है.’ .देश के आम नागरिक और फिल्म निर्मा