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Showing posts from April, 2017

दरअसल : निस्‍संग रहे विनोद खन्‍ना

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दरअसल.... निस्‍संग रहे विनोद खन्‍ना -अजय ब्रह्मात्‍मज इस धरा पर कुछ व्‍यक्तियों की मौजूदगी हमें ताकत और ऊर्जा देती है। बात अजीब सी लग सकती है,लेकिन माता-पिता की तरह संपर्क में आए ऐसे लोग हमें अनेक स्‍तरों पर सिंचित कर रहे होते हैं। विनोद खन्‍ना से कुछ ऐसा ही रिश्‍ता था। आज उनकी मौत की खबर ने निष्‍पंद कर दिया। यों लगा कि मेरी जिंदगी के मिताब से चंद पन्‍ने फाड़ कर किसी ने हवा में उड़ा दिए। अब यह किताब उन पन्‍नों के बिना ही रहेगी। 2011 की गर्मियों की बात है। हेमामालिनी अपनी बेटी एषा देओल को लेकर ‘ टेल मी ओ खुदा ’ निर्देशित कर रही थीं। फिल्‍म के एक अहम किरदार में विनोद खन्‍ना भी थे। मुंबई से मीडिया की टीम शूटिंग कवरेज के लिए बुलाई गई थी। अब तो यह चलन ही बंद हो गया है। बहरहाल,ऐसी यात्राओं में फिल्‍म यूनिट के सदस्‍यों से अनौपचारिक मुलाकातें होती हैं। तय हुआ कि विनोद खन्‍ना बातचीत के लिए तैयार हैं। निश्चित समय पर हमारी बैठक हुई। नमस्‍कार करने के बाद उनके सामने बैठते ही मुझे काठ मार गया। जुबान तालु से चिपक गई। मैं उन्‍हें निहारता रहा। मुझे अवाक देख कर वे भी चौंके,लेकिन उन्‍हों

रोज़ाना : बाहुबली का बिज़नेस

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रोज़ाना बाहुबली का बिज़नेस -अजय ब्रह्मात्मज उम्मीद तो थी कि एस एस राजामौली की 'बाहुबली' को देश भर में जबरदस्त ओपनिंग मिलेगी। वही हुआ भी। पहले दिन ही देश भर से आ रही खबरें उत्साहजनक हैं। पहले दिन के रिकॉर्डतोड़ कलेक्शन से जाहिर है कि देश के दर्शक उम्मीद और भरोसा बन जाने पर केवल राजनीतिक पार्टियों को ही नही,फिल्मों को भी समर्थन दे सकते हैं। 2015 में आई 'बाहुबली' ने चौंकाया था। तब इस फ़िल्म को मिली प्रतिक्रिया अप्रत्याशित थी। उत्तर भारत के दर्शकों ने परिवार के साथ 'बाहुबली' देखी थी और बार-बार देखी थी। राजामौली ने 'बाहुबली2' की योजना पहली फ़िल्म की कामयाबी के बाद नहीं बनाई थी। वे पहले से ही दो फिल्मों के तौर पर 'बाहुबली' की प्लानिंग की थी। दक्षिण की फ़िल्म इंडस्ट्री में योजना और अनुशासन है। हिंदी फिल्मों की तरह दक्षिण की भाषाओं में 'मौका पर चौका' मारने का फैशन नहीं है। 'बाहुबली' के बिजनेस से ट्रेड पंडित गदगद हैं। उन्‍हें लिखने और बताने के लिए एक नया उदाहरण मिल गया है। प्रारंभिक अनुमान है कि यह फिल्‍म पहले ही दिन 1

विनोद खन्ना के बारे में महेश भट्ट

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विनोद खन्ना के बारे में महेश भट्ट सुबह टेलीफोन की घंटी बजी। टीवी के एक रिपोर्टर की आवाज़ थी। उसने विनोद खन्ना साहब के इंतकाल की खबर दी। उसने कहा , आपको स्टू़डियो में ट्रांसफर करती हूं - आप उनके बारे में कुछ बताएंगे ? ये ख़बर सुनते ही न जाने क्यूं मैंने फोन बंद कर दिया और हज़ारों यादें एक साथ ज़हन में घूम गयीं। विनोद खन्ना और मेरा सफर एक साथ ही शुरू हुआ था। " मेरा गांव मेरा देश " में मैं प्रोडक्शन असिस्टेंट था। मुझे वह दिन आज भी याद है , जब राज खोसला साहब ने उनका पहला शाॅट लिया था। डकैत ड्रामा की इस फिल्म में वे अपने साथियों के साथ आते हैं और घोड़े से उतर कर चलते हुए एक दरवाज़े के पास जाते हैं। दरवाज़े को लात मार कर खोलते हैं और अंदर घुस जाते हैं। उस शाॅट के ख़तम होते ही राज खोसला साहब ने कहा कि यह लड़का स्टार है। यह हिंदुस्तान में आग लगा देगा। राज खोसला के उस कथन में उनका अपना सालों का अनुभव बोल रहा था। फिल्म सेट पर स्टार से दूसरे तीसरे असिस्टेंट की दोस्ती हो जाती है। वही उन्हें शाॅट के लिए बुलाता है , शाॅट समझाता है - तो एक अपनापा हो जाता है। पहले ही दिन स

फिल्‍म समीक्षा : बाहुबली कन्‍क्‍लूजन

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फिल्‍म रिव्‍यू बाहुबली कंक्‍लूजन -अजय ब्रह्मात्‍मज कथा आगे बढ़ती है... राजमाता शिवगामी फैसला लेती हैं कि उनके बेटे भल्‍लाल की जगह अमरेन्‍द्र बाहुबली को राजगद्दी मिलनी चाहिए। इस घोषणा से भल्‍लाल और उनके पिता नाखुश हैं। उनकी साजिशें शुरू हो जाती हैं। राज्‍य के नियम के मुताबिक राजगद्दी पर बैठने के पहले अमरेन्‍द्र बाहुबली कटप्‍पा के साथ देशाटन के लिए निकलते हैं। पड़ोस के कुंतल राज्‍य की राजकुमारी देवसेना के पराक्रम से प्रभावित होकर वे उन्‍हें प्रेम करने लगते हैं। उधर राजमाता भल्‍लाल के लिए देवसेना का ही चुनाव करती हैं। दोनों राजकुमारों की पसंद देवसेना स्‍वयं अमरेन्‍द्र से प्रेम करती है। वह उनकी बहादुरी की कायल है। गलतफहमी और फैसले का ड्रामा चलता है। भल्‍लाल और उसके पिता अपनी साजिशों में सफल होते हैं। अमरेन्‍द्र को राजमहल से निकाल दिया जाता है। राजगद्दी पर भल्‍लाल काबिज होते हैं। उनकी साजिशें आगे बढ़ती हैं। वे अमरेन्‍द्र बाहुबली की हत्‍या करवाने में सफल होते हैं। पिछले दो सालों से देश में गूंज रहे सवाल ‘ कटप्‍पा ने बाहुबली को क्‍यों मारा ’ का जवाब भी मिल जाता है। फिल्‍म

रोज़ाना : सुनील शेट्टी का 'स्वस्थ भारत'

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रोज़ाना सुनील शेट्टी का ' स्वस्थ भारत '                                 - अजय ब्रह्मात्मज गोवा में ' इंडियाज़ असली चैंपियन ' की शूटिंग कर रहे सुनील शेट्टी का रंग धूप और गर्मी की वजह से गाढ़ा हो गया है। अगले महीने से ऐंड टीवी पर आने वाले इस शो के मेजबानी में तल्लीन सुनील शेट्टी को मनमाफिक काम मिला है। 12 प्रतिभागियों के साथ गोवा में लगातार शूटिंग कर रहे सुनील शेट्टी चाहते हैं कि दर्शक उनके शो से कुछ सीखें। 12 प्रतिभागियों के माध्यम से सुनील शेट्टी दर्शकों के बीच शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने का संदेश भी देना चाहते हैं। उनकी पहल पर इस शो के साथ ' स्वस्थ भारत अभियान ' जोड़ दिया गया है। ध्वनि और उद्देश्य में यह ' स्वच्छ भारत अभियान ' से मिलता-जुलता है। सुनील मानते हैं कि स्वच्छता और स्वास्थ्य का सीधा संबंध है। पिछले कुछ समय से सुर्खियों से गायब सुनील शेट्टी ने काम से छुट्टी ले रखी थी। उनके पिता सख्त बीमार थे। पिता की तीमारदारी में दिल-ओ-जान से लगे सुनील शेट्टी ने लगभग तीन सालों तक खुद को लाइमलाइट से बाहर रखा। पिता के दिव

रोज़ाना : क्‍यों नहीं होती दक्षिण भारत के फिल्‍मकारों की चर्चा

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रोज़ाना क्‍यों नहीं होती दक्षिण भारत के फिल्‍मकारों की चर्चा -अजय ब्रह्मात्‍मज हिंदी सिनेमा की चर्चा और खबरों के बीच हमारा ध्‍यान दक्षिण भारत की भाषाओं की फिल्‍मों की ओर कम ही जाता है। हम वहां के कलाकारों और निर्देशकों से अपरिचित हैं। तमिल फिल्‍मों के रजनीकांत और कमल हासन के अलावा हम तेलुगू,कन्‍नड़ और मलयालम के कलाकरों के नाम तक नहीं जानते। हालांकि टीवी पर इन दिनों दक्षिण भारतीय भाषाओं की डब फिल्‍मों की बहार है। पिछले साल तूलुगू के पावर स्‍टार पवन कल्‍याण ने बताया था कि बनारस भ्रमण के दौरान वे इस तथ्‍य से चौंक गए कि वहां की गलियों में भी लोगों ने उन्‍हें पहचाल लिया। पता चला के टीवी के जरिए ही उनकी यह पहचान बनी थी। भारत सरकार और प्रदेशों के सिनेमा संबंधी मंत्रालय देश में ही सभी भाषाओं की फिल्‍मों के आदान-प्रदान और प्रदर्शन में यकीन नहीं रख्‍ते। पिछले साल बिहार सरकार में फिल्‍म वित्‍त निगम के अध्‍यक्ष बनने पर गंगा कुमार प्रादेशिक भाषाओं की फिल्‍मों का फस्टिवल किया था। ऐसी कोशिशें हर प्रदेश में होनी चाहिए। हाल ही में तेलुगू के श्रेष्‍ठ फिल्‍मकार के विश्‍वनाथ को दादा साहे

रोज़ाना : लौट आई हैं प्रियंका चोपड़ा

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रोज़ाना लौट आई हैं प्रियंका चोपड़ा - अजय ब्रह्मात्मज अमेरिका में अभिनय अभियान का पहला चक्र पूरा कर प्रियंका चोपड़ा मुंबई लौट आई हैं। पिछले शनिवार को मुंबई लौटी प्रियंका चोपड़ा अभी दोस्तों से मिल रही हैं और ज़्यादातर शामें पार्टियों में बिता रही हैं। एक अरसे के बाद दोस्तों से मिल रही प्रियंका के पास सुनने-बताने के लिए बहुत कुछ है। रितः सिधवानी ने उनकी वापसी पर दी पार्टी में : दिल धड़कने दो ' के कलाकार रणवीर सिंह और निर्देशक ज़ोया अख्तर को भी बुलाया था। रणवीर और प्रियंका की अच्छी छनती है। पर्दे पर दोनों ने भाई-बहन और पति-पत्नी की भूमिकाएं भी निभाई हैं। माना जाता है कि दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा में कड़ी टक्कर है , लेकिन रणवीर और प्रियंका की दोस्ती एक अलग स्तर की है। प्रियंका चोपड़ा अपने कैरियर में अभी खास मोड़ पर हैं। अपना उत्कर्ष देने के पहले ही उनके कैरियर में हॉलीवुड का विक्षेप आया। अमेरिका जाकर उन्होंने ' क्वांटिको ' टीवी शो के दो सीजन और एक फ़िल्म ' बेवाच ' की। फ़िल्म की रिलीज बाकी है। फ़िल्म आने के बाद सही अंदाज लगेगा कि हॉलीवुड में उनके

रोज़ाना : अनारकली... को मिल रहे दर्शक

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रोज़ाना अनारकली... को मिल रहे दर्शक -अजय ब्रह्मात्‍मज हाल ही में ‘ अनारकली ऑफ आरा ’ के निर्माता संदीप कपूर और निर्देशक अविनाश दास ने सोशल मीडिया पर शेयर किया कि उनकी फिल्‍म पांचवें हफ्ते में प्रवेश कर गई है। दिल्‍ली और मुंबई के कुछ थिएटरों में वह अभी तक चल रही है। रांची और जामनगर में वह इस हफ्ते लगी है। किसी स्‍वतंत्र और छोटी फिल्‍म की यह खुशखबर खुद में बड़ी खबर है। हम सभी जानते हैं कि छोटी फिल्‍मों का वितरण और प्रदर्शन एक बड़ी समस्‍या है। पीवीआर के साथ होने पर भी ‘ अनारकली ऑफ आरा ’ केवल 277 स्‍क्रीन में रिलीज हुई थी। इस सीमित रिलीज को भी उम्‍त कंपनी ने कायदे से प्रचारित और प्रदर्शित नहीं किया था। मजेदार तथ्‍य है कि मुंबई में अंधेरी स्थित पीवीआर के एक थिएटर में इम्तियाज अली ने यह फिल्‍म देखी। फिल्‍म देखने के बाद उन्‍होंने निर्देशक अविनाश दास के साथ सेल्‍फी लेने के लिए फिल्‍म के पोस्‍टर या स्‍टैंडी की खाज की तो वह नदारद...उन्‍होंने ताकीद की तो थिएटर के कर्मचारियों ने स्‍टैंडी का इंतजाम किया। तात्‍पर्य यह कों की रुचि कैसी बढ़गी ? बहरहाल, ’ अनारकली ऑफ आरा ’ दर्शकों क

दरअसल : पक्ष और निष्‍पक्ष

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दरअसल... पक्ष और निष्‍पक्ष -अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले दिनों सोनू निगम अपने पक्ष को रखने की वजह से चर्चा में रहे। उसके कुछ दिनों पहले सुशांत सिंह राजपूत अपना पक्ष नहीं रखने की वजह से खबरों में आए। फिल्‍म जगत के सेलिब्रिटी आए दिन अपने पक्ष और मंतव्‍य के कारण सोशल मीडिया,चैनल और पत्र-पत्रिकाओं की सुर्खियों में रहते हैं। कुछ अपने अनुभवों और मीडिया मैनेजर के सहयोग से बहुत खूबसूरती से बगैर विवादों में आए ऐसी घटनाओं से डील कर लेते हैं। और कुछ नाहक फंस जाते हैं। अभी एक नया दौर है,जब सारे मंतव्‍य राष्‍ट्रवाद और सत्‍तासीन राजनीतिक पार्टी के हित के नजरिए से आंके जाते हैं। नतीजतन अधिकांश सेलिब्रिटी किसी भी मुद्दे पर अपना पक्ष रखने से बचते हैं। वे निष्‍पक्ष और उदासीन होने का नाटक करते हैं। आप अकेले में मिले तो ‘ ऑफ द रिकॉर्ड ’ वे अपनी राय शेयर करते हैं,लेकिन सार्वजनिक मंचों से कुछ भी कहने से कतराते हैं। कुछ समय पहले सहिष्‍णुता के मसले पर आमिर खान और शाह रूख खान के खिलाफ चढ़ी त्‍योरियां सभी को याद होंगी। गौर करें तो एक जिम्‍मेदार नागरिक के तौर पर उन्‍होंने अपना सहज पक्ष रखा था,लेकिन उन

फिल्‍म समीक्षा : नूर

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फिल्‍म रिव्‍यू बेअसर और बहकी नूर -अजय ब्रह्मात्‍मज जब फिल्‍म का मुख्‍य किरदार ‘ एक्‍शन ’ के बजाए ‘ नैरेशन ’ से खुद के बारे में बताने लगे और वह भी फिल्‍म आरंभ होने के पंद्रह मिनट तक जारी रहे तो फिल्‍म में गड़बड़ी होनी ही है। सुनील सिप्‍पी ने पाकिस्‍तानी पत्रकार और लेखिका सबा इम्तियाज के 2014 में प्रकाशित उपन्‍यास ‘ कराची,यू आर किलिंग मी ’ का फिल्‍मी रूपांतर करने में नाम और परिवेश के साथ दूसरी तब्‍दीलियां भी कर दी हैं। बड़ी समस्‍या कराची की पृष्‍ठभूमि के उपन्‍यास को मुंबई में रोपना और मुख्‍य किरदार को आयशा खान से बदल कर नूर राय चौधरी कर देना है। मूल उपन्‍यास पढ़ चुके पाठक मानेंगे कि फिल्‍म में उपन्‍यास का रस नहीं है। कम से कम नूर उपन्‍यास की नायिका आयशा की छाया मात्र है। फिल्‍म देखते हुए साफ पता चलता है कि लेखक और निर्देशक को पत्रकार और पत्रकारिता की कोई जानकारी नहीं है। और कोई नहीं तो उपन्‍यासकार सबा इम्तियाज के साथ ही लेखक,निर्देशक और अभिनेत्री की संगत हो जाती तो फिल्‍म मूल के करीब होती। ऐसा आग्रह करना उचित नहीं है कि फिल्‍म उपन्‍यास का अनुसरण करें,नेकिन किसी भी

रोज़ाना : सबा इम्तियाज की ‘नूर’

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रोज़ाना सबा इम्तियाज की ‘ नूर ’ -अजय ब्रह्मात्‍मज इस हफ्ते रिलीज हो रही सोनाक्षी सिन्‍हा की ‘ नूर ’ 2014 में प्रकाशित पाकिस्‍तानी अंग्रेजी उपन्‍यास ‘ कराची,यू आर किलिंग मी ’ का फिलमी रूपांतरण है। सबा इमित्‍याज का यह उपन्‍यास पाकिस्‍तान के शहर कराची की पृष्‍ठभूमि में एक महिला पत्रकार की रचनात्‍मक और भावनात्‍मक द्वंद्वों पर आधारित है। उपन्‍यास में कराची शहर,वहां की मुश्किलें और मीडिया हाउस की अंदरूनी उठापटक के बीच अपने वजूद की तलाश में आगे बढ़ रही आयशा खान का चित्रण है। यह उपन्‍यास लेखिका सबा इमित्‍याज के जीवन और अनुभवों पर आधारित है। सबा पेशे से पत्रकार हैं। फिलहाल वह जार्डन में रहती हैं और अनेक इंटरनेशनल अखबारों के लिए लिखती हैं। ‘ कराची,यू आर किलिंग मी ’ उनका पहला उपन्‍यास है। अभी वह ‘ नो टीम ऑफ एंजेल्‍स ’ लिख रही हैं। सबा इम्तियाज सभी पाकिस्‍तानी लड़कियों की तरह हिंदी फिल्‍मों की फैन हैं। वह हिंदी फिल्‍में देखती हैं। जब भारतीय निर्माताओं ने फिल्‍म के लिए उनके उपन्‍यास के अधिकार लिए तो वह बहुत खुश हुईं। उन्‍होंने तब इसकी परवाह भी नहीं की कि उनके उपन्‍यास पर आधारि

रोज़ाना : अशांत सुशांत

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रोज़ाना अशांत सुशांत -अजय ब्रह्मात्‍मज दिनेश विजन की फिल्‍म ‘ राब्‍ता ’ के ट्रेलर लांच पर सुशांत सिंह राजपूत और फिल्‍म पत्रकार भारती प्रधान के बीच हुई झड़प के मामले में सोशल मीडिया और मीडिया दो पलड़ों में आ गया है। सुशांत का पलड़ा भारी है। फैंस और मीडिया फैंस उनके समर्थन में उतर आए हैं। ऐसा लग रहा है कि गलती भारती प्रधान से ही हुई। अगर उस लांच के वीडियों को गौर से देखें तो पूरी स्थिति स्‍पष्‍ट होगी। हुआ यों कि सवाल-जवाब के बीच एक टीवी पत्रकार ने कुलभूषण जाधव के बारे में सवाल पूछा,जिन्‍हे कथित जासूसी के अपराध में पाकिस्‍तान ने फांसी की सजा सुनाई है। इस सवाल को सुनते ही थोड़ी देर के लिए खामोशी छा गई। फिर कृति सैनन ने निर्देशक दिनेश विजन का फुसफुसाकर सुझााया कि इस सवाल का जवाब नहीं दिया जाएं। दिनेश विजन ने कहा कि अभी हमलोग इस पर बातें ना करें। सवालों का सिलसिला आगे बढ़ गया। मंच के ठीक सामने बैठी सीनियर भारती प्रधान को यह बात नागवार गुजरी। उन्‍होंने खड़े होकर सवाल किया कि राष्‍ट्रीय महत्‍व के इस सवाल से कैसे बच सकते हैं ? मौजूद फिल्‍म स्‍टारों का इसका जवाब देना चाहिए। स

रोज़ाना : अशोभनीय प्रयोग

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रोज़ाना अशोभनीय प्रयोग -अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले दिनों श्रीजित मुखर्जी निर्देशित ‘ बेगम जान ’ आई। ‘ बेगम जान ’ में विद्या बालन नायिका हैं और फिल्‍म के निर्माता हैं विशेष फिल्‍म्‍स के महेश भट्ट और मुकेश भट्ट। इस फिल्‍म ने विद्या बालन और महेश भट्ट के अपने प्रशंसकों को बहुत निराश किया। ‘ बेगम जान ’ पंजाब में कहीं कोठा चलाती है। उसे वहां के राजा साहब की शह हासिल है। आजादी के समय देश का बंटवारा होता है। रेडक्लिफ लाइन बेगम जान के कोठे को चीरती हुई निकलती है। भारत और पाकिस्‍तान के अधिकारी चाहते हैं कि बेगम जान कोठा खाली कर दे। 11 लड़कियों के साथ कोठे में रह रही बेगम जान अधिकारियों के जिस्‍म के पार्टीशन कर देने का दावा करती है,लेकिन ताकत उसके हाथ से निकलती जाती है। आखिरकार वह कोठे में लगी आग में बची हुई लड़कियों के साथ जौहर कर लेती है। आत्‍म सम्‍मान की रक्षा की इस कथित मध्‍ययुगीन प्रक्रिया को 1947 गौरवान्वित करते हुए दोहराना एक प्रकार की पिछड़ी सोच का ही परिचायक है। उनकी बेबसी और लाचारगी के चित्रण के और भी तरीके हो सकते थे। प्रगतिशील महेश भट्ट का यह विचलन सोचने पर मजबूर कर