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दरअसल : जैसी बहे बयार पीठ जब तैसी कीजै

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-अजय ब्रह्मात्‍मज     अभी तो वक्‍त बहुत संगीन है। हर बात के कई कोण है। अगर वे किसी के दृष्टिकोण से टकरा जाएं तो मुश्किलें आसानी से बढ़ जाती हैं। यों लगता है कि सोशल मीडिया पर एक्टिव हर व्‍यक्ति समय,व्‍यक्ति और समाज से खार खाए बैठा है। जरा सी भिन्‍न बात सुनाई या दिखाई भर पड़ जाएं तो वे चीर-फाड़ के लिए तैयार हो जाएं। असहिष्‍णुता इतनी बढ़ गई है कि कोई भी दूसरे को बर्दाश्‍त नहीं करना चाहता। पूरे माहौल में तनाव है। कहा जा रहा है कि सभी को लोकप्रिय सोच और भावनाओं का खयाल रखना चाहिए। ऐसी कोई बात नहीं करनी चाहिए कि दूसरे आहत हों। दिक्‍कत यह है कि हर बात के कई आयाम होते हैं। अगर दूसरों के विरोध और नाखुशी से बचना है तो खामोश ही रहना होगा।      पिछलें दिनों एक इंटरव्‍यू में दिए आमिर खान के जवाब से हुए हंगामे ने तिल को ताड़ और राई को पहाड़ बनाने का नमूना पेश किए। बचपन में मां सुनाती थी कि कौआ कान ले गया सुनने मात्र से कैसे कोई अपने कान छूने और देखने के बदले कौवे के पीछे भागा। आमिर खान के प्रसंग में यही हुआ। उन्‍होंने अपनी भावना शेयर की,लेकिन उनके आलोचक पिल पड़े और सभी ने उनकी बात को रा