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फिल्‍म समीक्षा : मर्दानी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  यशराज फिल्म्स की प्रदीप सरकार निर्देशित 'मर्दानी' में रानी मुखर्जी मुंबई पुलिस के क्राइम ब्रांच की दिलेर पुलिस इंस्पेक्टर शिवानी शिवाजी राव की भूमिका निभा रही हैं। इस फिल्म का नाम शिवानी भी रहता तो ऐसी ही फिल्म बनती और दर्शकों पर भी ऐसा ही असर रहता। फिल्म का टाइटल 'मर्दानी' में अतिरिक्त आकर्षण है। यशराज फिल्म्स और प्रदीप सरकार ने महज इसी आकर्षण के लिए सुभद्रा कुमारी चौहान की मशहूर कविता 'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी' 'मर्दानी' शब्द ले लिया है। हिंदी फिल्मों के हाल-फिलहाल की फिल्मों से रेफरेंस लें तो यह 'दबंग' और 'सिंघम' की श्रेणी और जोनर की फिल्म है। फिल्मों की नायिका मर्दानी हो तो उसकी जिंदगी से रोमांस गायब हो जाता है। यहां रानी मुखर्जी पुलिस इंस्पेक्टर के साथ जिम्मेदार गृहिणी की भी भूमिका निभाती हैं। बतौर एक्टर स्क्रिप्ट की मांग के मुताबिक वह दोनों भूमिकाओं में सक्षम दिखने की कोशिश करती हैं। उन्हें बाल संवारने भी आता है। गोली चलाना तो उनकी ड्यूटी का हिस्सा है। उल्लेखनीय है कि किसी पुरुष प

फिल्‍म समीक्षा लफंगे परिंदे

गढ़ी प्रेमकहानी -अजय ब्रह्मात्‍मज एक नंदू है और एक पिंकी। दोनों मुंबई की एक ही वाड़ी में रहते हैं। निम्न मध्यवर्गीय परिवार की इस वाड़ी में पिंकी का परिवार तो दिखता है, लेकिन नंदू के परिवार का कोई सदस्य नहीं दिखता। उसके तीन और लफंगे दोस्त हैं। बॉक्सिंग का शौकीन नंदू वन शॉट नंदू के नाम से मशहूर हो जाता है। दूसरी तरफ पिंकी स्केटिंग डांस के जरिए इस वाड़ी से निकलने का सपना देखती है। इन दोनों के बीच उस्मान भाई आ जाते हैं। अनचाहे ही उनकी करतूत से दोनों की जिंदगी प्रभावित होती है। और फिर एक प्रेमकहानी गढ़ी जाती है। परिणीता के निर्देशक प्रदीप सरकार की लफंगे परिंदे लुक और अप्रोच में मॉडर्न होने के बावजूद प्रभावित नहीं कर पाती। लफंगे परिंदे के किरदार, लैंग्वेज, पहनावे और माहौल में मुंबई की स्लम लाइफ दिखाने में लेखक-निर्देशक असफल रहे हैं, क्योंकि सोच और दृष्टि का आभिजात्य हावी रहा है। फिल्म की जमीन स्लम की है, लेकिन उसकी प्रस्तुति यशराज की किसी और फिल्म से कम चमकीली नहीं है। फिल्म के नायक-नायिका अपने मैनरिज्म और लैंग्वेज में निरंतरता नहीं रख पाए हैं। कभी भाषा सुसंस्कृत हो जाती