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फिल्‍म समीक्षा : मोहेंजो दारो

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-अजय ब्रह्मात्‍मजंं अभी हमलोग 2016 ई. में हैं। आशुतोष गोवारीकर अपनी फिल्‍म ‘ मोहेंजो दारो ’ के साथ ईसा से 2016 साल पहले की सिंधु घाटी की सभ्‍यता में ले जाते हैं। प्रागैतिहासिक और भग्‍नावशेषों और पुरातात्विक सामग्रियों के आधार पर आशुतोष गावारीकर ने अपनी टीम के साथ रचा है। उनकी यह रचना कल्‍पनातीत है। चूंकि उस काल के पर्याप्‍त साक्ष्‍य नहीं मिलते,इसलिए आशुतोष गोवारीकर को ‘ मोहेंजो दारो ’ की दुनिया रचने की छूट मिल गई। इन तथ्‍यों पर बहस करना अधिक महत्‍व नहीं रखता कि कपड़े,पहनावे,भाषा और व्‍यवहार में क्‍या होना या नहीं होना चाहिए था ? ‘ मोहेंजो दारो ’ में लेखक और निर्देशक सबसे ज्‍यादा ‘ कदाचित ’ शब्‍द का इस्‍तेमाल करते हैं। ‘ कदाचित ’ का सरल अर्थ शायद और संभवत: है। शायद जोड़ते ही हर बात अनिश्चित हो जाती है। शायद एक साथ ‘ हां ’ और ‘ ना ’ दोनों है। फिल्‍म के संवादों में हर प्रसंग में ‘ कदाचित ’ के प्रयोग से तय है कि फिल्‍म के लेखक और निर्देशक भी अपने विवरण और चित्रण के प्रति अनिश्चित हैं। उनकी अनिश्चितता का असर फिल्‍म के विधि-विधान पर स्‍पष्‍ट है। 4032 साल पहले हड़प्‍पा से

प्रगतिशील थे पूर्वज : रितिक रोशन

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  ‘बैंग बैंग’ की रिलीज के करीब दो साल बाद रितिक रोशन की फिल्‍म मोहेंजो दारो अगले महीने रिलीज होगी। यह प्रागैतिहासिक काल की प्रेम कहानी है। इसके निर्देशक आशुतोष गोवारीकार ने कहानी में अपनी कल्‍पना के रंग भरे हैं। सिंधु घाटी सभ्‍यता के प्राचीन शहर मोहेंजो दारो के इतिहास को उसमें नहीं दर्शाया गया है। मोहेंजो दारो की शूटिंग के चलते रितिक रोशन ने कोई अन्‍य फिल्‍म नहीं की। उन्‍होंने उसे तसल्‍ली से पूरा किया। उसमें वह सरमन की भूमिका में हैं। मुश्किलों का डटकर किया सामना रितिक बताते हैं, ‘अगर मेरा बस चलता तो फिल्‍म की शूटिंग जल्‍दी पूरी हो जाती। मैं भली-भांति अवगत था कि इस फिल्म की शूटिंग कठिन है। मैं आशुतोष की कार्यशैली से बखूबी परिचित हूं। मुझे पता है कि बेहद बारीकी से वे अपने काम को अंजाम देते हैं। उनकी फिल्‍म निर्माण की प्रक्रिया काफी विस्‍तृत होती है। लिहाजा वक्त काफी लगेगा। स्क्रिप्‍ट पढ़ने के दौरान फिल्‍म से पहले मैंने खुद से कई सवाल किए थे। उनका गहराई से मंथन किया था। मैंने खुद से पूछा कि क्या मैं इस फिल्म के लिए तैयार हूं। क्या इस फिल्म ने मेरे दिलोदिमाग पर गहरी छाप