Posts

Showing posts with the label राकेश रोशन

फिल्‍म समीक्षा - काबिल

Image
फिल्म रिव्‍यू काबिल इमोशन के साथ फुल एक्शन -अजय ब्रह्मात्‍मज     राकेश रोशन बदले की कहानियां फिल्मों में लाते रहे हैं। ‘ खून भरी मांग ’ और ‘ करण-अर्जुन ’ में उन्होंने इस फॉर्मूले को सफलता से अपनाया था। उनकी फिल्मों में विलेन और हीरो की टक्कर और अंत में हीरो की जीत सुनिश्वित होती है। हिंदी फिल्मों के दर्शकों का बड़ा समूह ऐसी फिल्में खूब पसंद करता है, जिसमें हीरो अपने साथ हुए अन्याय का बदला ले। चूंकि भारतीय समाज में पुलिस और प्रशासन की पंगुता स्पष्‍ट है, इसलिए असंभव होते हुए भी पर्दे पर हीरो की जीत अच्छी लगती है। राकेश रोशन की नयी फिल्म ‘ काबिल ’ इसी परंपरा की फॉर्मूला फिल्म है, जिसका निर्देशन संजय गुप्ता ने किया है। फिल्म में रितिक रोशन हीरो की भूमिका में हैं।     रितिक रोशन को हम ने हर किस्म की भूमिका में देखा और पसंद किया है। उनकी कुछ फिल्में असफल रहीं, लेकिन उन फिल्मों में भी रितिक रोशन के प्रयास और प्रयोग को सराहना मिली। 21वीं सदी के आरंभ में आए इस अभिनेता ने अपनी विविधता से दर्शकों और प्रशंसकों को खुश और संतुष्‍ट किया है। रितिक रोशन को ‘ काबिल ’ लोकप्रियता के नए

इंडियन और वेस्टर्न टेेस्ट का मिश्रण है ‘कृष 3’- रितिक रोशन

Image
-अजय ब्रह्मात्मज -‘कृष 3’ के निर्माण की प्रक्रिया पिछले कई सालों से चल रही थी। वह कौन सी चीज मिली कि आप ने वह फिल्म बना दी? 0 मेरे ख्याल से कोई चीज बननी होती है तो वह पांच दिन में बन जाती है। नहीं बननी होती है तो उसमें सालों लग जाते हैं और नहीं बनती है। ‘कृष’ के अगले दो-तीन साल तक तो कोई ढंग की स्क्रिप्ट हाथ में नहीं आई। फिर एक स्क्रिप्ट आई। दूसरी आई। तीसरी हमने ट्राई की। इत्तफाकन जो हम सोच रहे थे, उन पर तो हॉलीवुड में फिल्में बन भी गईं। हमें हर बार नयी स्क्रिप्ट तैयार करनी पडी। -क्या  आप शेयर करना चाहेंगे वे आइडियाज और कौन सी फिल्में बन गईं?  0जी हां, हमने सोचा था कि हमारा विलेन एलियन होगा। वह रबडऩुमा होगा। किसी के शरीर में प्रवेश कर लेगा। कुछ वैसा ही ‘स्पाइडरमैन 3’ में दिखा।  काला एलियन किसी के शरीर में प्रवेश कर उस पर हावी हो जाता था। अपनी फिल्म के लिए भी हमने वही सोचा था। एक एलियन आएगा, कृष के शरीर में समाएगा। फिर कृष अपने स्याह पहलू को निकालने के लिए उससे लड़ेगा। दुर्भाग्य से जब ‘स्पाइडरमैन 3’ आई तो हम भौंचक्के रह गए। हम पांच लोग जानते थे अपने विलेन के बारे में। हम सब एक-

बच्चों काे पसंद आएगी ‘कृष 3’-राकेश रोशन

Image
-अजय ब्रह्मात्मज - ‘कृष 3’ आने में थोड़ी ज्यादा देर हो गई? क्या वजह रही? 0 ‘कृष 3’ की स्क्रिप्ट बहुत पहले लिखी जा चुकी थी। मैं खुश नहीं था। उसे ड्रॉप करने के बाद नई स्क्रिप्ट शुरू हुई। उसका भी 70 प्रतिशत काम हो गया तो वह भी नहीं जंचा। ऐसा लग रहा था कि हम जबरदस्ती कोई कहानी बुन रहे हैं। बहाव नहीं आ रहा था। भारत के सुपरहीरो फिल्म में गानों की गुंजाइश रहनी चाहिए। इमोशन और फैमिली ड्रामा भी पिरोना चाहिए। मुझे पहले फैमिली और बच्चों को पसंद आने लायक कहानी चुननी थी। उसके बाद ही सुपरहीरो और सुपरविलेन लाना था। फिर लगा कि चार साल हो गए। अब तो ‘कृष 3’ नहीं बन पाएगी। आखिरकार तीन महीने में कहानी लिखी गई, जो पसंद आई। 2010 के मध्य से 2011 के दिसंबर तक हमने प्री-प्रोडक्शन किया। - प्री-प्रोडक्शन में इतना वक्त देना जरूरी था क्या? 0 उसके बगैर फिल्म बन ही नहीं सकती थी। हम ने सब कुछ पहले सोच-विचार कर फायनल कर लिया। पूरी फिल्म को रफ एनीमेशन में तैयार करवाया। कह लें कि एनीमेटेड स्टोरी बोर्ड तैयार हुआ। अपने बजट में रखने के लिए  सब कुछ परफेक्ट करना जरूरी था। मेरे पास हालीवुड की तरह 300 मिलियन डॉलर तो ह

निर्देशन में राकेश रोशन के 25 साल

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज  राकेश रोशन का पूरा नाम राकेश रोशनलाल नागरथ है। संगीतकार पिता रोशन के पुत्र राकेश को छोटी उम्र से घर की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी। पिता की मौत के वक्त उनकी उम्र मात्र 17 साल थी। वयस्क होने से पहले ही पारिवारिक स्थितियों ने उन्हें जिंदगी के चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया। उन्होंने पढ़ाई जारी रखने या पूना फिल्म इंस्टीट्यूट जाने की अपनी इच्छा का गला घोंट दिया और एस एस रवेल के सहायक निर्देशक बन गए। उन दिनों एच एस रवेल दिलीप कुमार और वैजयंतीमाला के साथ संघर्ष बना रहे थे। रवेल के आरंभिक प्रशिक्षण के बाद राकेश रोशन ने निर्देशक मोहन कुमार के साथ काम किया। मोहन कुमार के साथ उन्होंने अनजाना और आप आए बहार आई फिल्में कीं। राकेश रोशन की इच्छा कैमरे के सामने आने की थी। उन्हें टी प्रकाश राव के निर्देशन में बनी घर घर की कहानी में बतौर हीरो अवसर मिला। सीमा, पराया धन और मन मंदिर से उन्हें पहचान तो मिली, लेकिन हिंदी फिल्मों के कामयाब हीरो का रुतबा उन्हें नहीं मिला। वे फिल्में करते रहे। बीच में उन्होंने निगेटिव शेड के किरदार भी निभाए। बेहतरीन अवसर न मिलने से निराश होकर वे खुद

प्यार की उड़ान है काइट्स-राकेश रोशन

-अजय ब्रह्मात्‍मज उनकी फिल्मों का टाइटल अंग्रेजी अक्षर 'के' से शुरू होता है और वे बॉक्स ऑफिस पर करती हैं कमाल। रिलीज से पहले ही सुर्खियां बटोर रही नई फिल्म काइट्स के पीछे क्या है कहानी, पढि़ए राकेश रोशन के इस स्पेशल इंटरव्यू में- [इस बार आपकी फिल्म का शीर्षक अंग्रेजी में है?] 2007 में अपनी अगली फिल्म के बारे में सोचते समय मैंने पाया कि आसपास अंग्रेजी का व्यवहार बढ़ चुका है। घर बाहर, होटल, ट्रांसपोर्ट; हर जगह लोग धड़ल्ले से अंग्रेजी का प्रयोग कर रहे हैं। लगा कि मेरी नई फिल्म आने तक यह और बढ़ेगा। ग्लोबलाइजेशन में सब कुछ बदल रहा है। अब पाजामा और धोती पहने कम लोग दिखते हैं। सभी जींस-टीशर्ट में आ गए हैं और अंग्रेजी बोलने लगे हैं। यहीं से काइट्स का खयाल आया। एक ऐसी फिल्म का विचार आया कि लड़का तो भारतीय हो, लेकिन लड़की पश्चिम की हो। उन दोनों की प्रेमकहानी भाषा एवं देश से परे हो। ]यह प्रेम कहानी भाषा से परे है, तो दर्शक समझेंगे कैसे?] पहले सोचा था कि भारतीय एक्ट्रेस लेंगे और उसे मैक्सिकन दिखाएंगे। बताएंगे कि वह बचपन से वहां रहती है, इसलिए उसे हिंदी नहीं आती। फिर लगा कि यह गलत होगा। यह सब

मैसेज भी है क्रेजी 4 में: राकेश रोशन

Image
राकेश रोशन ने अपनी फिल्म कंपनी फिल्मक्राफ्ट के तहत अब तक जितनी भी फिल्में बनाई हैं, सभी का निर्देशन उन्होंने खुद किया है, लेकिन क्रेजी-4 उनकी कंपनी की पहली ऐसी फिल्म है, जिसे दूसरे निर्देशक ने निर्देशित किया है। फिल्म में खास क्या है, बातचीत राकेश रोशन से। अपनी कंपनी की फिल्म क्रेजी 4 आपने बाहर के निर्देशक जयदीप सेन को दी। वजह? बात दरअसल यह थी कि कृष के बाद मैं बहुत थक गया था। इसलिए सोचा कि साल-डेढ़ साल तक कोई काम नहीं करूंगा, लेकिन छह महीने भी नहीं बीते कि बेचैनी होने लगी। एक आइडिया था, इसलिए मैंने सोचा कि यही बनाते हैं। मैंने जयदीप सेन से वादा किया था कि एक फिल्म निर्देशित करने के लिए दूंगा। इसलिए उनसे आइडिया शेयर किया। वह आइडिया सभी को पसंद आया और वही अब क्रेजी 4 के रूप में आ रही है। जयदीप के अलावा, अनुराग बसु भी मेरे लिए एक फिल्म निर्देशित कर रहे हैं। उनकी फिल्म गैंगस्टर से प्रभावित होकर मैंने रितिक रोशन और बारबरा मोरी की फिल्म काइट्स उन्हें दी है। मैं आगे भी नए और बाहर के निर्देशकों को फिल्में दूंगा। मेरे अंदर ऐसा गुरूर नहीं है कि अपने बैनर की सारी फिल्में मैं ही निर्देशित करूं। आ