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Showing posts from July, 2019

सिनेमालोक : गुरु-शिष्य संबधों पर दुर्वा सहाय की ‘आवर्तन’

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सिनेमालोक गुरु-शिष्य संबधों पर दुर्वा सहाय की ‘आवर्तन’. - अजय ब्रह्मात्मज दुर्वा सहाय हिंदी की लेखिका हैं. उनकी कहानियां ‘हंस’ समेत तमाम पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही है. ‘रफ्तार’ नाम से उनका एक कहानी संग्रह भी है. लेखन के साथ फिल्मों में भी उनकी रुचि रही है. 1993 में आई गौतम घोष की ‘पतंग’ की वह सहनिर्माता थीं. इसे उस साल सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था. हाल-फिलहाल में उन्होंने कुछ शार्ट फिल्में बनाईं,जिन्हें लेकर वह कान फिल्म महोत्सव तक गयीं. इन फिल्मों के लिए उनकी प्रशंसा हुई. प्रशंसा और सराहना से उनकी हिम्मत बढ़ी और अब उन्होंने ‘आवर्तन’ नाम की फीचर फिल्म पूरी की है. उन्होंने स्वयं ही इसका लेखन और निर्देशन किया है. गुरु-शिष्य परंपरा और संबंध के नाजुक पहलुओं को उकेरती यह फिल्म स्नेह, राग, द्वेष, ईर्ष्या और कलह के मनोभावों को अच्छी तरह से दर्शाती है. भावना सरस्वती कत्थक की मशहूर नृत्यांगना हैं. वह युवा प्रतिभाओं को नृत्य का प्रशिक्षण भी देती हैं. उनकी एक शिष्या निरंतर अभ्यास और लगन से दक्ष होती जाती है. उसके नृत्य प्रतिभा से प्रभावित होकर भावना सरस्वती

सिनेमालोक : इलाकाई सिनेमा और ‘धुमकुड़िया’

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सिनेमालोक इलाकाई सिनेमा और ‘धुमकुड़िया’ -अजय ब्रह्मात्त्मज पिछले दिनों रांची में निर्माता सुमित अग्रवाल और निर्देशक नंदलाल नायक की फिल्म ‘धुमकुड़िया’ देखने का अवसर मिला. झारखंड के नागपुरिया भाषा में बनी यह फिल्म वहीं के स्थानीय समस्या मानव तस्करी (खासकर लड़कियां) पर केंद्रित है. बताते हैं कि पिछले 10 सालों में 38000 लड़कियों की तस्करी हो चुकी है. उन्हें रोजगार दिलाने के लालच में ले जाया जाता है. घरेलू काम करवाने के अलावा खुलेआम उनका यौन शोषण भी होता है. मानसिक प्रताड़ना दी जाती है. इनमें से बहुत कम लड़कियां ही अपने गांव लौट पाती हैं. अधिकांश इस देश की अनगिनत आबादी में खो जाती हैं या मर-खप जाती हैं. निर्देशक नंदलाल नायक ने सच्ची घटनाओं पर आधारित एक कहानी बुनी है और उसे फिल्म का रूप दिया है. गौरतलब है कि नंदलाल नायक स्वयं इसी कम्युनिटी के सदस्य हैं और तस्करी की शिकार लड़कियों के पुनर्वास के लिए काम कर रहे हैं. उन लोगों की कोशिश है कि मानव तस्करी पर ही रोक लगाई जाए. नंदलाल नायक ने मुंबई के कुछ प्रसिद्ध कलाकारों के साथ स्थानीय प्रतिभाओं को शामिल कर फिल्म यूनिट तैयार की. फिल्म में

सिनेमालोक : कंगना से ताज़ा टकराव के बाद

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सिनेमालोक कंगना से ताज़ा टकराव के बाद पिछले दिनों कंगना रनोट की एक फिल्म के सोंग लॉन्च के इवेंट में एक पत्रकार से उनकी तू तू मैं मैं हो गई. बात उलाहने से शुरू हुई और फिर फिसलती गई. लगभग 8 मिनट की इस बाताबाती में कंगना रनोट का अहम और अहंकार उभर कर आया. पत्रकार लगातार उनकी बातों से इंकार करता रहा. बाद में कंगना रनोट के समर्थकों और उनकी बहन रंगोली चंदेल ने उक्त पत्रकार के पुराने ट्वीट के स्क्रीनशॉट दिख कर यह साबित करने की कोशिश की कि वह लगातार उनके खिलाफ लिखता रहा है. उनकी गतिविधियों का मखौल उड़ाता रहा है. हालाँकि इस आरोपण में दम नहीं है. फिलहाल फिल्म पत्रकारिता का जो स्वरूप उभरकर आया है, उसमें फिल्म बिरादरी के सदस्यों से सार्थक और स्वस्थ बातचीत नहीं हो पाती, पत्रकारों की संख्या बढ़ गई है, इसलिए फिल्म स्टार के इंटरव्यू और बातचीत का अंदाज और तरीका भी बदल गया है. पहले बमुश्किल एक दर्जन फिल्म पत्रकार होते थे. उनसे फिल्म कलाकार की अकेली और फुर्सत की बातचीत होती थी. लिखने के लिए कुछ पत्र पत्रिकाएं थीं. उनमें ज्यादातर इंटरव्यू, फिल्म की जानकारी और कुछ पन्नों में गॉसिप छपा करते थे, पत्

सिनेमालोक : अश्लीलता का क्रिएटिव व्यभिचार

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  सिनेमालोक अश्लीलता का क्रिएटिव व्यभिचार -अजय ब्रह्मात्मज वेब सीरीज धड़ल्ले से बन रही हैं. लगभग सारे कलाकार, तकनीशियन और बैनर किसी ने किसी वेब सीरीज के निर्माण से जुड़े हैं, फिल्म और टीवी के बाद आया वेब सीरीज का यह क्रिएटिव उफान सभी के लिए अवसर और लाभ जुटा रहा है. वेब सीरीज के प्रसारण के लिए विशेष प्लेटफॉर्म बन गए हैं. देश-विदेश के अनेक उद्यमी इस दिशा में सक्रिय हैं. सभी को अनेक संभावनाएं दिख रही है. खासकर वेब सीरीज पर सेंसर का अंकुश नहीं होने की वजह से लेखक, निर्देशक और कलाकार अभिव्यक्ति की नई उड़ानें भर रहे हैं, कुछ के लिए यह उनकी कल्पना का असीमित विस्तार है तो कुछ क्रिएटिव व्यभिचार में मशगूल हो गए हैं. वेब सीरीज में गाली-गलौज, हिंसा और सेक्स की भरमार चिंता का विषय है, समाज के नैतिक पहरुए तो लंबे समय से शोर मचा रहे हैं कि वेब सीरीज के कंटेंट की निगरानी हो. वे आपत्तिजनक दृश्यों और संवादों पर कैंची चलाना चाहते हैं. दूसरा तबका सेंसरशिप के सख्त खिलाफ है. फिल्म और टीवी की सेंसरशिप से उकताया यह तबका थोड़ी राहत महसूस कर रहा है. पिछले दिनों निर्देशक और अभिनेता तिग्मांशु धूलिया

सिनेमालोक : महज टूल नहीं होते कलाकार

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  सिनेमालोक महज टूल नहीं होते कलाकार -अजय ब्रह्मात्मज पिछले दो हफ्तों में ‘कबीर सिंह’ और ‘आर्टिकल 15 ’ रिलीज हुई हैं. दोनों में दर्शकों की रुचि है. वे देख रहे हैं. दोनों को लेकर अलग-अलग दृष्टिकोण से बहसें चल रही हैं. बहसों का एक सिरा कलाकारों की सामाजिक जिम्मेदारी से जुड़ा है. क्या फिल्मों और किरदारों(खासकर नायक की भूमिका) को चुनते समय कलाकार अपनी जिम्मेदारी समझते हैं. ‘आर्टिकल 15 ’ के संदर्भ में आयुष्मान खुराना ने अपने इंटरव्यू में कहा कि कॉलेज के दिनों में वह नुक्कड़ नाटक किया करते थे. उन नाटकों में सामाजिक मुद्दों की बातें होती थीं. मुद्दों से पुराने साहचर्य के प्रभाव में ही उन्होंने अनुभव सिन्हा की फिल्म ‘आर्टिकल 15 ’ चुनी. कहा यह भी जा रहा है कि अनुभव ने उन्हें पहले एक रोमांटिक कॉमेडी फिल्म ऑफर की थी, लेकिन ‘मुल्क’ से प्रभावित आयुष्मान खुराना ने वैसे ही मुद्दों की फिल्म में रुचि दिखाई.अनुभव ने मौका नहीं छोड़ा और इस तरह ‘आर्टिकल 15 ’ सामने आई. कह सकते हैं कि आयुष्मान खुराना ने अपनी लोकप्रियता का सदुपयोग किया. वह एक ऐसी फिल्म के साथ आए जो भारतीय समाज के कुछ विसंगत