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फिल्‍म समीक्षा : फालतू

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नाच-गाना और मैसेज -अजय ब्रह्मात्‍मज रेमो डिसूजा की फिल्म में नाच-गाना है। मस्ती है। दोस्ती है। संदेश है। देश की शिक्षा व्यवस्था पर किए गए सवाल हैं। पूरा माहौल है। फिल्म पूरी गति के साथ बांधे रखती हैं। बीच-बीच में हंसी भी आ जाती है। रेमो डिसूजा अपने कंफ्यूजन के साथ कभी कहानी तो कभी कभी नाच-गाने के बीच डोलते रहते हैं। फिल्म पूरी हो जाती है। मुद्दा समझ में नहीं आता तो किरदारों के जरिए छोटी-मोटी भाषणबाजी भी हो जाती है। कोरियोग्राफी के कमाल और युवकों के धमाल के लिहाज से फिल्म रोचक है। रेमो ने कोरियोग्राफी में कल्पनाशीलता का परिचय दिया है। क्लाइमेक्स के पहले के डांस सिक्वेंस में उन्होंने कुछ नया किया है। विषय और मुद्दे की बात करें तो लेखक-निर्देशक तय नहीं कर पाए हैं कि वे पढ़ाई में रुचि-अरुचि या ग्रेडिंग सिस्टम पर फोकस करें। कुछ समय पहले आई 3 इडियट के बाद शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाती फालतू का प्रयास बचकाना लगता है। यहां मौजूदा शिक्षा व्यवस्था के विकल्प के रूप में एक कालेज की ही कल्पना की जाती है। लेखक-निर्देशक ठीक से जानते भी नहीं कि यूनिवर्सिटी का मतलब क्या होता है? बस बोर्ड चिपक