दरअसल : पुरस्कारों का है मौसम
-अजय ब्रह्मात्मज हिंदी फिल्मों के पुरस्कारों का मौसम चल रहा है। समारोहों का आयोजन हो रहा है। कुछ हो चुके और कुछ अगले महीनों में होंगे। यह सिलसिला मई-जून तक चलता है। उसके बाद राष्ट्रीय पुरस्कारों की घोषणा होती है। राष्ट्रीय पुरस्कार के साथ ग्लैमर और चमक-दमक नहीं जुड़ा हुआ है,इसलिए मीडिया कवरेज में उस पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता। बाकी पुरस्कारों में परफारमेंस,नाच-गाने और हंसी-मजाक से मनोरंजक माहौल बना दिया जाता है। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के अनेक सितारों की मौजूदगी पूरे माहौल में चकाचौाध लगाती है। इन समारोहों और आयोजनों को स्पांसर मिलते हैं। इसकी वजह से ये आयोजन बड़े पैमाने पर भव्य तरीके से डिजायन किए जाते हैं। इन अवार्ड समारोहों के टीवी पार्टनर होते हैं। वे कुछ समय के बाद इसका टीवी प्रसारण करते हैं और विज्ञापनों से पैसे कमाते हैं। दरअसल,स्पांसर और विज्ञापनों से मिल रहे पैसों पर ही आयोजकों की नजर रहती है। सभी अपने अवार्ड समारोह की अच्छी पैकेजिंग करते हैं। इस पैकेजिंग के लिए पुरस्कार और विजेता तय किए जाते हैं। कभी पुरस्कार ...