फिल्म समीक्षा : वेल डन अब्बा:
हंसी-खुशी के बेबसी -अजय ब्रह्मात्मज इन दिनों हम कामेडी फिल्मों में क्या देखते-सुनते हैं? ऊंची आवाज में बोलते एक्टर, बैकग्राउंड का लाउड म्यूजिक, हीरोइन के बेवजह डांस, गिरते-पड़ते भागते कैरेक्टर, फास्ट पेस में घटती घटनाएं और कुछ फूहड़-अश्लील लतीफों को लेकर लिखे गए सीन ़ ़ ़ यही सब देखना हो तो वेल डन अब्बा निराश करेगी। इसमें ऊपर लिखी कोई बात नहीं है, फिर भी हंसी आती है। एहसास होता है कि हमारी जिंदगी में घुस गए भ्रष्टाचार का वायरस कैसे नेक इरादों की योजनाओं को निगल रहा है। श्याम बेनेगल ने बावड़ी (कुआं) के बहाने देश की डेमोक्रेसी को कतर रहे करप्शन को उद्घाटित किया है। उन्होंने आम आदमी की आदत बन रही तकलीफ को जाहिर किया है। अरमान अली मुंबई में ड्राइवर है। वह अपनी बेटी मुस्कान की शादी के लिए छुट्टी लेकर गांव जाता है। गांव से वह तीन महीनों के बाद नौकरी पर लौटता है तो स्वाभाविक तौर पर बॉस की डांट सुनता है। अपनी नौकरी बचाने के लिए वह गांव में अपने साथ घटी घटनाएं सुनाता है और हमारे सामने क्रमवार दृश्य खुलने लगते हैं। अनपढ़ अरमान अली सरकार की कपिल धारा योजना के अंतर्गत बावड़ी के लिए आवे